- Author, अमित सैनी
- पदनाम, मुज़फ़्फ़रनगर से बीबीसी हिंदी के लिए
-
यूपी के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के टिटोड़ा गांव के रहने वाले दलित मज़दूर राजेंद्र कुमार के घर खुशी का माहौल है.
गांव-परिवार के लोग ढोल बजाकर खूब जश्न मना रहे हैं और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी ज़ाहिर कर रहे हैं.
इस खुशी की वजह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजेंद्र के 18 साल के बेटे अतुल कुमार की आईआईटी धनबाद में सीट पक्की होना है.
छात्र अतुल कुमार और उनका परिवार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से बहुत खुश है.
अतुल कहते हैं, ”मैं सुप्रीम कोर्ट का आभारी हूं.आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरी खोई हुई सीट वापस दिलाई है.”
अतुल के पिता राजेंद्र इसे न्याय की जीत और सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फ़ैसला बताते हैं.
वो कहते हैं, ”उम्मीद से बढ़कर सुप्रीम कोर्ट ने हमारे हक़ में फ़ैसला सुनाया है.”
फीस के महज 17 हज़ार 500 रुपये वक़्त पर जमा नहीं करने की वजह से अतुल कुमार की आईआईटी धनबाद की सीट कैंसिल हो गई थी.
30 सितंबर को चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में फ़ैसला सुनाया और आईआईटी धनबाद को खाली सीट नहीं होने पर एक अतिरिक्त सीट बनाने का आदेश दिया.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में छात्र को हर संभव मदद करने का भरोसा दिया था.
जब चीफ जस्टिस ने कहा, ‘ऑल द बेस्ट’
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब दलित छात्र अतुल आईआईटी धनबाद में पढ़ सकेंगे.
उन्होंने झारखंड की आईआईटी धनबाद जाने के लिए अपनी पैकिंग भी अभी शुरू कर दी है.
हालांकि इसके लिए अभी उन्हें कुछ दिन इंतज़ार करना पड़ सकता है.
अतुल की तरफ से केस लड़ रहे सुप्रीम कोर्ट के वकील अमोल चितले बताते हैं, ”सुनवाई के दौरान अपने फैसले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि बच्चे की तरक्की में पैसे की कोई बाधा नहीं आनी चाहिए. इस बच्चे का एडमिशन इसलिए रुक गया, क्योंकि इसके पास फीस देने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे. केवल इस वजह से इसका एडमिशन नहीं रुकना चाहिए.”
अधिवक्ता अमोल चितले बताते हैं, ”चूंकि सभी खाली सीट पहले ही भर चुकी है और अतुल के एडमिशन के लिए किसी दूसरे छात्र के भविष्य से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, इसलिए हमने कोर्ट से ये भी अपील की थी कि अतुल के लिए अलग से एक सीट क्रिएट की जाए.”
वो बताते हैं, ”कोर्ट की ओर से आईआईटी को जारी किए गए नोटिस में एडिशनल सीट के साथ-साथ अतुल के लिए हॉस्टल की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया है.”
छात्र अतुल कुमार कहते हैं, ”सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए ऑल द बेस्ट कहा.”
ग़रीब छात्रों के लिए एक सबक हैं अतुल
अतुल कहते हैं, ”प्राइवेट कॉलेज की तरह ही अगर आईआईटी मद्रास भी फीस जमा नहीं होने पर फोन कॉल या ईमेल के जरिए कारण जानने की कोशिश करते तो मेरी सीट कैंसिल नहीं होती और ना ही मुझे सुप्रीम कोर्ट तक लडाई लड़नी पड़ती.”
वो कहते हैं, ”मेरे साथ अन्याय हुआ था. मुझे पहले ही मौका मिलना चाहिए था. लेकिन मेरी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई. जिस कारण मुझे इतना संघर्ष करना पड़ा.”
वो अपनी ही तरह के ग़रीब छात्रों के लिए कहते हैं, ”कभी भी फीस या फॉर्म भरने के लिए डेडलाइन का इंतज़ार नहीं करना चाहिए. ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर दूसरा मौका मिल सके. डेडलाइन ख़त्म होने के बाद मौका नहीं मिलता.”
पिता राजेंद्र बताते हैं, ”ये तीन महीने बड़ी टेंशन में गुजरे. हर वक्त ये ही सोचते थे कि पता नहीं क्या होगा और क्या नहीं? कभी कभी तो लगता था कि बच्चे का भविष्य अंधकार में जा रहा है.”
राजेंद्र कुमार बताते हैं, ”मेरे चार बेटे हैं. अतुल कुमार सबसे छोटा बेटा है. सबसे बड़ा बेटा मोहित कुमार हमीरपुर एनआईटी से कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग कर रहा है. उससे छोटा और दूसरे नंबर का बेटा रोहित कुमार आईआईटी खड़गपुर से कैमिकल इंजीनियरिंग में बीटेक कर रहा है. तीसरा बेटा मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली कस्बे में स्थित एक कॉलेज में बीए फाइनल का छात्र है.”
वो कहते हैं, ”मेरे सभी बच्चे होनहार हैं. हमारी यही इच्छा है कि ये उन्नति करें. कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते रहें.”
राजेंद्र ये भी कहते हैं, ”अतुल की लड़ाई में हमेशा साथ था. अगर अपना घर भी बेचना होता तो मैं पीछे नहीं हटता.”
सिर पर कर्ज और साहूकार का धोखा
जेईई एडवांस क्लीयर करने के बाद अतुल को आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की सीट अलॉट हुई थी.
फीस के 17,500 रुपये जमा करने के लिए 19 जून से 24 जून 2024 तक का समय मिला था.
राजेंद्र कुमार बताते हैं, ”घर की माली हालत ठीक नहीं है. बच्चों की पढ़ाई के लिए पहले ही तीन लाख का क़र्ज़ सिर पर है. अतुल की फीस के लिए एक साहूकार ने वादा किया था. 24 जून की दोपहर तक उसने कॉल ही नहीं उठाया तो फिर इधर-उधर से पैसों का बंदोबस्त किया. लेकिन तब तक पौने पांच बज चुके थे.”
अंतिम 15 मिनट में ऑनलाइन फीस जमा करने की चुनौतियों के बारे में अतुल ने कहा, ”पैसों का प्रबंध होने के बाद उसने ऑनलाइन प्रोसेस शुरू किया तो यूनिवर्सिटी की साइट बीच में ही लॉगआउट हो गई. तब तक 4 बजकर 57 मिनट हो चुके थे. फिर से ट्राई करना चाहा तो 3-4 मिनट में केवल डॉक्यूमेंट्स ही अपलोड हो सके. उसके बाद 5 बजते ही फीस प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया बंद हो गई.”
हर जगह हाथ लगी निराशा
अपना ख्वाब टूटता देख अतुल भी टूटने लगे लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
अतुल ने अपने कुछ जानकारों से मदद मांगी.
अतुल बताते हैं, ”इसके लिए हमने आईआईटी धनबाद और आईआईटी मद्रास से फोन और ईमेल के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी.”
इस बार आईआईटी की परीक्षा आईआईटी मद्रास ने करवाई थी.
अतुल कहते हैं, ”जब दोनों जगह से हमें निराशा हाथ लगी तो हमने एससी/एसटी आयोग का दरवाजा खटखटाया. मामले में सुनवाई के दौरान आईआईटी मद्रास के चेयरमैन ने आयोग में ये तो माना कि 24 जून को शाम साढ़े चार बजे से 5 बजे तक यूनिवर्सिटी की साइट में तकनीकी दिक़्क़त तो आई थी, लेकिन सारा कार्य कंप्यूटराइजड होने की बात कहते हुए मदद करने में असमर्थतता जताई.”
अतुल के पिता राजेंद्र कहते हैं, ”होनहार बेटे के सपनों को टूटता देख रहा नहीं गया. हमने कुछ लोगों से जानकारी ली और फिर हमने अदालत में जाने का फ़ैसला लिया.”
वो कहते हैं, ”हम पहले झारखंड हाईकोर्ट गए. वहां से राहत नहीं मिली तो फिर हम मद्रास हाईकोर्ट गए. लेकिन जब वहां से भी कोई मदद मिलने की आस दिखाई नहीं दी तो हमने सुप्रीम कोर्ट जाने का फ़ैसला किया.”
राजेंद्र बताते हैं, ”मद्रास हाईकोर्ट से अनुमति लेकर बेटे अतुल को न्याय दिलाने के लिए हम सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और बीती 24 सितंबर को इस मामले में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने पहली सुनवाई की.”
अतुल बताते हैं, ”सुप्रीम कोर्ट ने पहली ही सुनवाई में आईआईटी मद्रास को नोटिस जारी कर दिया था. कोर्ट ने उसे भी हर संभव मदद दिलाने का भरोसा दिया था.”
अतुल ये भी बताते हैं, ”इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पूछा था कि तीन महीने तक आप क्या कर रहे थे? तो हमारी तरफ से वकील की ओर से पूरा मामला बताया गया कि इतना लंबा वक्त क्यों लगा.”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ख़बर के बाद अतुल के घर पर लोगों का आना शुरू हुआ.
सभी लोग अतुल और उसके परिवार को शुभकामनाएं दे रहे हैं.
अतुल की मां राजेश देवी कहती हैं, ”मैं बहुत खुश हूं. मेरे बेटे को न्याय मिला है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित