- Author, सैय्यद मोज़िज़ इमाम
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों का सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार करने पर पैसे मिलेंगे और कथित तौर पर अश्लील, अभद्र और राष्ट्र विरोधी कंटेट परोसने पर कार्रवाई होगी.
इसी सप्ताह बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी डिजिटल मीडिया पॉलिसी, 2024 की घोषणा की थी जिसमें इस तरह के प्रावधान किए गए है.
इस नई पॉलिसी के सामने आने के बाद विपक्ष, कई विश्लेषक और सोशल मीडिया इन्फ़्लूएंसर्स सवाल उठा रहे हैं और सरकार की प्रचार-प्रसार करने पर पैसे देने की इस नीति को ‘रिश्वत’ क़रार दे रहे हैं.
साथ ही वो आरोप भी लगा रहे हैं कि इस नीति के बहाने सरकार अपने आलोचकों को धमकाकर उनका मुंह बंद करवाना चाहती है. वहीं सरकार इस नीति को प्रदेश में बेरोज़गारी दूर करने की दिशा में उठाया गया क़दम बता रही है.
डिजिटल नीति में क्या-क्या ख़ास बातें हैं?
नई डिजिटल नीति के बारे में उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद की ओर से 28 अगस्त 2024 को जारी प्रेस नोट में कहा गया है, “सरकार के काम काज का प्रसार करने पर प्रोत्साहन दिया जाएगा जो विज्ञापन के माध्यम से होगा.”
प्रदेश सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स (पूर्व में ट्विटर), फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर भी प्रदेश सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों पर आधारित कंटेट प्रदर्शित किए जाने पर प्रोत्साहन दिया जाएगा.
सरकार ने दावा किया है कि इस नीति के जारी होने से प्रदेश के निवासी जो देश और विदेश में रह रहे हैं उन्हें बड़ी संख्या में रोज़गार मिलने की संभावना बनेगी.
सरकार के मुताबिक़ इस योजना का लाभ सब्सक्राइबर्स या फ़ॉलोअर्स की संख्या के आधार पर मिलेगा. इसे सोशल मीडिया के आधार पर चार कैटेगरी में बांटा गया है जिसमें अधिकतम भुगतान पांच लाख रुपए तक निर्धारित किया गया है.
वहीं यूट्यूब पर श्रेणीवार अधिकतम भुगतान की सीमा आठ लाख रुपए प्रतिमाह निर्धारित की गई है.
कंटेंट किस तरह का होना चाहिए, कितनी अवधि (वीडियो के मामले में) का होना चाहिए और महीने में कितने पोस्ट होने चाहिए इसे लेकर भी इस पॉलिसी में विस्तृत मापदंड बनाए गए हैं.
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कब होगी कार्रवाई?
सरकार की तरफ से कहा गया है, “फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर आपत्तिजनक कंटेंट अपलोड किए जाने की स्थिति में संबंधित एजेंसी या फ़र्म के ख़िलाफ़ नियमानुसार क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी. किसी भी हालत में कंटेंट, अभद्र, अश्लील एवं राष्ट्र विरोधी नहीं होना चाहिए.”
हालांकि, कौन-सा कंटेट राष्ट्र विरोधी की श्रेणी में आएगा इसकी परिभाषा सरकार ने साफ नहीं बताई है.
ऐसे में कई विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि सरकार अपनी सहूलियत और राजनीति के हिसाब से राष्ट्र विरोधी की परिभाषा तय कर सकती है और इसका इस्तेमाल विरोधियों या सोशल मीडिया पर अपनी आलोचना करने वालोंका दमन करने के लिए किया जा सकता है.
हाई कोर्ट में वकील मनुश्रेष्ठ मिश्रा कहते हैं, “पहले आईपीसी में धारा 124 ए यानी राष्ट्र द्रोह में तीन साल से लेकर उम्रक़ैद तक का प्रावधान था लेकिन भारतीय न्याय संहिता 2023 में राजद्रोह को लेकर धारा नहीं है. पर धारा 152 इससे मिलती-जुलती है जिसमें भारत की संप्रुभता, एकता के ख़िलाफ़ काम करने पर उम्र कैद या सात साल की सज़ा के साथ जुर्माना किया जा सकता है.”
“वहीं सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर आईटी एक्ट के सेक्शन 66 (ई)और 66 (एफ़) में मुक़दमा लिखा जा सकता है.”
विपक्ष की आपत्ति
विपक्ष का कहना है कि इस कदम के ज़रिए सरकार सोशल मीडिया कंटेट को भी रेगुलेट करना चाहती है. विपक्ष का आरोप है कि इस क़दम से लोकतंत्र कमज़ोर होगा.
लेकिन प्रदेश सरकार के सूचना निदेशालय की तरफ़ से कहा गया है, “इस नीति के अंतर्गत सूचना निदेशक को अधिकृत किया गया है. वो क़ानूनी तौर पर ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं जिनका कंटेंट राष्ट्र विरोधी, समाज विरोधी और अभद्र होगा. यह कार्रवाई एफ़आईआर दर्ज कराने, पोस्ट को डिलीट करने और सरकारी विज्ञापनों को बंद करने तक की हो सकती है.”
सूचना निदेशालय की तरफ़ से ये भी कहा जा रहा है कि ये नीति लोगों के फ़ायदे के लिए है ना कि किसी को सज़ा देने के लिए.
टीम ने लिखा, “अभद्र टिप्पणी पर आजीवन कारावास तक की सज़ा के प्रावधान को लेकर भ्रामक सूचना सोशल मीडिया पर वायरल की जा रही है. सरकार की तरफ से डिजिटल मीडिया पॉलिसी में ऐसा कोई प्रस्ताव स्वीकृत नहीं किया गया है.”
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “जो तुमको हो पसंद, वही बात कहेंगे. तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे.”
उन्होंने कहा है, “सरकार की सोशल मीडिया पॉलिसी में न्याय मांग रही महिलाओं की आवाजें किस श्रेणी में आएँगी? 69000 शिक्षक भर्ती आरक्षण घोटाले में उठने वाले सवाल किस श्रेणी में आएंगे? भाजपा नेताओं-विधायकों द्वारा भाजपा सरकार की पोल-पट्टी खोलना किस श्रेणी में आएगा?”
प्रियंका गांधी ने कहा है, ” ‘तुम दिन को कहो रात तो रात, वरना हवालात’ नीति सच को दबाने का एक और तरीक़ा है. क्या भाजपा लोकतंत्र और संविधान को कुचलने से ज्यादा कुछ सोच ही नहीं सकती?”
वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने बीबीसी से कहा, “बीजेपी अपने दो रुपए वाले ट्रोल को रोज़गार से जोड़ना चाहती है. सरकार लालच भी दे रही है और डरा भी रही है. ये लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. प्रश्न करना और आलोचना करना लोकतंत्र की आत्मा है. वो इन्हें दबाना चाहती है. यह तानाशाही पूर्ण रवैया है. हम लोग सड़क से लेकर संसद तक आवाज़ उठाएंगे.”
प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, “ये भ्रष्टाचार का एक नया तरीका है.”
अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा, “हम बांट रहे हैं दाने, गाओ हमारे गाने. जेल तुम्हारा घर है, अगर हुए बेगाने! यही है उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की नई सोशल मीडिया पॉलिसी का सच.”
उन्होंने कहा है कि ये तरफ़दारी के लिए दी जाने वाली भाजपाई घूस है, भाजपा अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए सरकार के चरणों में पड़े रहने वाले नए ज़माने के चारण पैदा करना चाह रही है.
अखिलेश यादव ने लिखा है कि भाजपा भ्रष्टाचार की थाली में झूठ परोस रही है. जनता के टैक्स के पैसे से आत्म प्रचार एक नए तरीक़े का भ्रष्टाचार है.
लेकिन उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “विपक्ष सिर्फ भ्रम फैला रहा है. डिजिटल मीडिया पॉलिसी से नए रोजगार का सृजन होगा. सोशल मीडिया पर अफ़वाह फैलाकर कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों पर कठोरता से शिकंजा कसा जाएगा. यूपी की सोशल मीडिया पॉलिसी देश भर में नजीर बनेगी.”
क्या कह रहे हैं इन्फ़्लूएंसर्स?
उत्तर प्रदेश सरकार की इस योजना के बाद सोशल मीडिया पर इन्फ़्लूएंसर्स के दो ग्रुप में बंट गए हैं, एक जो इस योजना के समर्थन में हैं और दूसरा, जो इसके विरोध में हैं.
सोशल मीडिया इन्फ़्लूएंसर ध्रुव राठी ने लिखा, “टैक्स देने वालों के पैसे से क़ानूनी तौर पर रिश्वत दी जा रही है. अगर कोई इन्फ़्लूएंसर ऐसा करता है तो उसको सार्वजनिक तौर पर शर्मिंदा करना चाहिए.”
जिसके जवाब में एक दूसरे इन्फ़्लूएंसर गौरव तनेजा ने कहा, “क्या ये नियम टीवी और अख़बार पर भी लागू होगा.”
इस मुद्दे पर जम्मू कश्मीर में सरकार की नीतियों का समर्थन करे रहे ‘कश्मीर अहेड’ के संचालक पंकज शंकर ने बीबीसी से कहा, “स्वतंत्र न्यूज़ और व्यूज़ चलाने वाला डिजिटल मीडिया अब नया मेनस्ट्रीम मीडिया है और यूपी सरकार की नीति का स्वागत है. इसमें सरकार अपने काम काज को निचले स्तर पर बताना चाहती है और क्योंकि डिजिटल मीडिया की पहुंच ज़्यादा है और इसके दर्शक वफ़ादार होते हैं. इसलिए ये नीति लाई गई है.”
हालांकि लखनऊ में 60 लाख सब्सक्राइबर्स वाले ‘4 पीएम’ के संचालक संजय शर्मा कहते हैं, “मेरे पास अख़बार भी है लेकिन आज तक सात सालों में सरकार की तरफ़ से एक लाख का विज्ञापन तक नहीं दिया गया. प्रदेश में मैं सबसे बड़ा यूट्यूबर हूं क्या सरकार हमें विज्ञापन देगी, और नहीं देगी तो उसके लिए क्या कारण बताएगी.”
“ये सिर्फ़ डराने के लिए किया जा रहा है और सरकार के समर्थकों का इसमें फायदा होगा. हम लोग इस नीति के विरोध में हैं. देश में जब आईटी एक्ट है तो फिर इस तरह के नियम लाने की क्या ज़रूरत है.”
मतांतर नाम से यूटयूब चैनल चलाने वाले जितेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं, “ये पॉलिसी वैसी है जैसे अख़बारों को एड दिया जाता है या फिर टीवी पर सरकारी एड चलता है. इसमें कोई बुराई नहीं है.”
“लेकिन ये सवाल ज़रूर है कि ये कौन तय करेगा कि कंटेट कैसा है. सरकार की इस योजना के बारे में सवाल इसलिए उठ रहा है कि ये योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में लाया गया. लेकिन पंजाब की आप सरकार या राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी जब इसी तरह की पॉलिसी लाई तब किसी ने कुछ नहीं कहा.”
दूसरे राज्यों में भी हैं डिजिटल पॉलिसी
उत्तर प्रदेश से पहले पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक के अलावा कई और राज्यों में और केंद्र सरकार की भी अपनी डिजिटल पॉलिसी है.
इन राज्यों की डिजिटल पॉलिसी में भी सरकार की नीतियों के प्रचार प्रसार के लिए लोगों को प्रहोत्साहन स्वरूप पैसे देने का प्रावधान है.
जब कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह से राजस्थान की तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार की लाई डिजिटल पॉलिसी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उसका बचाव करते हुए कहा, “वो राज्य सरकार के प्रचार प्रसार के लिए थी ना कि लोगों को डराने धमकाने के लिए.”
पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार की भी सोशल मीडिया पॉलिसी की आलोचना राज्य में कई पत्रकार कर रहे हैं. लेकिन इस मसले पर कोई खुलकर बोलने के लिए राज़ी नहीं है.
एक पत्रकार ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, “पंजाब की सरकार चाहती है कि सोशल मीडिया पर कोई भी सरकार विरोधी कंटेट ना जाए. ऐसा करने वालों को विज्ञापन नहीं मिलता है.”
हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता नील गर्ग कहते हैं, “पंजाब में किसी तरह की प्रेस की आज़ादी पर पाबंदी नहीं है. जो लोग आलोचना कर रहे हैं ये उनका निजी या अलग मामला हो सकता है. जहां तक यूपी सरकार के बिल की बात है, हम लोग इसके विरोध में हैं, क्योंकि लोकतंत्र के लिए आज़ाद प्रेस का होना ज़रूरी है.”
इस मसले पर हमने पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा से बात की तो उन्होंने कहा, “पंजाब की सरकार प्रेस को दबाने का काम कर रही है और सरकार की कोशिश रहती है कि विपक्ष की ख़बरें ना चलें. यही नहीं, जो ख़बर सरकार के ख़िलाफ़ होती है वो भी दबाई जाती है, चाहे वो किसी भी प्लेटफ़ॉर्म पर चल रही हो”
वहीं कर्नाटक की कांग्रेस सरकार भी हाल ही में डिजिटल मीडिया पॉलिसी लेकर आई है. जिसके तहत सोशल मीडिया इन्फ़्लूएंसर्स को तीन कैटेगरी में बांटा गया है.
एक से लेकर पांच लाख फ़ॉलोअर्स को नैनो, पांच से दस लाख फ़ॉलोअर्स वालों को माइक्रो और इससे ऊपर वालों को मैक्रो कैटेगरी में बांटा गया है.
कर्नाटक की योजना में दंड देने की बात नहीं कही गई है लेकिन सरकार, प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया इन्फ़्लूएंसर का इस्तेमाल करना चाहती है.
धारा 7(2) को लेकर आपत्ति
भारत में डिजिटल मीडिया का दायरा बढ़ रहा है क्योंकि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है.
दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार शकील अख़्तर कहते हैं, “सोशल मीडिया की विश्वसनीयता बढ़ रही है. ज़्यादातर लोग अब सोशल मीडिया पर जा रहे हैं. मेनस्ट्रीम पर भरोसा कम हो रहा है, जिससे सरकारों को इसको क़ाबू करने में दिलचस्पी बढ़ रही है.”
एक बयान जारी कर प्रेस क्लब ने कहा, “संविधान से पत्रकारिता को जगह दी है उस पर सरकार को कब्ज़ा नहीं करना चाहिए. हमारी मांग है कि तुरंत प्रभाव से धारा 7(2) को हटाया जाए.”
धारा 7(2) में कहा गया है कि, “कोई भी कंटेंट राष्ट्र विरोधी, अभद्र या समाज विरोधी हो या समाज के विभिन्न तबकों की भावना को ठेस पहुंचाती हो ग़लत तथ्यों पर आधारित हो सरकार की योजनाओं को ग़लत ढंग से गलत मंशा से प्रस्तुत करता हो तो उस कंटेंट को रद्द करके निदेशक सूचना उस व्यक्ति या संबधित के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाई कर सकते हैं.”
कई यूट्यूबर्स पर कार्रवाई
14 मार्च 2023 को संजय राना नाम के यूटयूबर को ग़िरफ़्तार किया गया था. उन्होंने इसके दो दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के संभल में राज्यमंत्री गुलाब देवी से एक सवाल पूछा था.
हालांकि इस मसले पर शुभम राघव नाम के शख़्स ने राना के ख़िलाफ़ केस दायर किया था जिसमें उन्होंने राना पर सभा में हंगामा करने का आरोप लगाया गया था. राना ने इस आरोप से इनकार किया था.
वहीं आठ अप्रैल 2024 को तमिलनाडु के एक यूट्यूबर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि, “हर सोशल मीडिया पोस्ट पर ग़िरफ़्तारी होने लगे तो कितने लोगों को जेल भेजा जाएगा.”
कोर्ट ने ये ऑब्ज़र्वेशन एस दुरईमुरगन की ज़मानत याचिका पर दिया था जिन पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पर अभद्र टिप्पणी का आरोप था.
कोर्ट ने कहा, “किसी की आलोचना के आरोप में हर किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता है.”
2012 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी तब कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को मुंबई पुलिस ने राजद्रोह के मामले में ग़िरफ़्तार किया था. उन पर आरोप था कि अन्ना आंदोलन के दौरान उन्होंने ऐसे कार्टून बनाए थे जो इस क़ानून के दायरे में आते हैं.
हरियाणा में गांव-सवेरा नाम का पोर्टल चलाने वाले मंदीप पुनिया का चैनल कई बार ब्लॉक हो चुका है. पुनिया ने दावा किया कि किसान आंदोलन से जुड़ी ख़बरें दिखाने के लिए उनका चैनल ब्लॉक हुआ. बाद में हाईकोर्ट के आदेश के बाद चैनल फिर से शुरु हुआ है.