कांग्रेस के चुनाव अभियान की शुरूआत करते हुए राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने का वादा किया है.
उन्होंने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ़्रेंस के अध्यक्ष फ़ारुक़ अब्दुल्लाह के साथ दो जनसभाओं को संबोधित किया.
इस बार जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ़्रेंस, कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और पैंथर्स पार्टी का गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रहा है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस 51 सीटों जबकि कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पाँच सीटों पर दोनों दलों के बीच “फ़्रेंडली फाइट” होने जा रही है. सीट शेयरिंग समझौते के तहत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए कश्मीर में एक और पैंथर पार्टी के लिए जम्मू में एक सीट छोड़ी गई है.
जानकारों का कहना है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ़्रेंस का गठबंधन कारगर रहा था. मुमकिन है कि विधानसभा चुनावों में भी गठबंधन फायदेमंद साबित हो.
अपने चुनावी भाषणों में राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया. राहुल गांधी ने के रामबन में एक रैली में कहा, “आज जम्मू -कश्मीर में राजा बैठा हुआ है उसका नाम एलजी है, लेकिन है वो राजा है.”
उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो राज्य के बाहर के लोगों का फ़ायदा कर रही है. कश्मीर के में भी राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बीजेपी और आरएसएस मीडिया, अफ़सरशाही और दूसरी संस्थाओं पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं.
लेकिन बीजेपी कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ़्रेंस के बीच हुए गठबंधन को मौक़ापरस्ती बता रही है.
जम्मू कश्मीर में बीजेपी के प्रवक्ता जीएल रैना ने कहा, “ ये साफ़ है कि ये मौक़ापरस्ती का गठबंधन है. 1984 में जब कांग्रेस ने फ़ारुक़ अब्दुल्लाह की सरकार को डिसमिस किया था, तब इन लोगों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ क्या-क्या कहा था. ये लोगों को याद है. अभी केवल मोदी जी से नफ़रत और सत्ता पाने के लिए गठबंधन किया है.”
जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार साल 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे. उस समय पीडीपी और बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी. साल 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर के इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया.
आख़िरी बार साल कांग्रेस की ओर से ग़ुलाम नबी आज़ाद राज्य के सीएम बने थे. बदले सियासी हालात में क्या कांग्रेस एक बार फिर राज्य में वापसी कर सकती है?
बिछ गई है चुनावी बिसात
साल 2014 में कांग्रेस पार्टी को जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में कुल 12 सीटें मिली थीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत जम्मू क्षेत्र में बढ़ गया है.
कांग्रेस का असल मुक़ाबला और चुनौती जम्मू क्षेत्र में है जहां बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में 25 सीटें जीती थीं.
वहीं दूसरी ओर कश्मीर घाटी में कांग्रेस के लिए कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिखती, फिर भी पार्टी कुछ सीटों पर जीत पा सकती है.
साल 2009 तक जम्मू -कश्मीर में कांग्रेस पार्टी की अच्छी ख़ासी मौजूदगी रही है. उसके बाद से क्षेत्र में कांग्रेस का असर आहिस्ता -आहिस्ता कम होता गया.
आज भी कश्मीर घाटी में कांग्रेस को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. बीते दो दशकों से जम्मू-कश्मीर के सियासी नक़्शे पर कई दूसरे राजनीतिक दल उभर आये, जिससे कांग्रेस को कश्मीर में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इन नए सियासी दलों में खासकर पीडीपी यानी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का उभरना था.
पीडीपी के उभार और बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति के कारण जम्मू में कांग्रेस कमज़ोर होती गई. पार्टी को अब नए सिरे से जम्मू-कश्मीर में अपनी सियासी वापसी का प्रयास कर रही है.
विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस शायद इस बार उभरने का एक मौका मिला है.
जम्मू यूनिवर्सिटी की राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर रेखा चौधरी कहती हैं, “इस बार कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का जो चुनावी गठबंधन हुआ है, उससे कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ गई हैं और उन्हें एक सियासी एडवांटेज नज़र आ रहा है.”
वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू -कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बाँट कर लद्दाख को भी एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया था.
विशेष दर्जा ख़त्म करने की बाद जम्मू-कश्मीर एक लम्बे समय तक बंद रहा था और इंटरनेट सेवाओं पर भी प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद जम्मू -कश्मीर के अधिकांश राजनीतिक दल स्टेटहुड को वापस करने की लगातार मांग कर रहे हैं. बीजेपी ने भी स्टेटहुड का दर्जा वापस देने की बात की है.
कौनसी पार्टी मज़बूत?
इस सवाल पर डॉक्टर रेखा चौधरी बताती हैं, “इस बार एनसी-कांग्रेस का गठबंधन हुआ है. मेरे ख़्याल से ये एकमात्र गठबंधन है जो जम्मू-कश्मीर में अभी तक हुआ है. बीजेपी के लिए अभी तक कोई गठबंधन नहीं है और न ही उनकी ऐसी कोई दिलचस्पी है. न कोई दूसरा दल उनके साथ खुले तौर पर गठबंधन करना चाहता है.
वे कहती हैं, ” दूसरी अहम बात ये है कि शायद इस बार कोई भी दल जम्मू -कश्मीर में बहुमत हासिल नहीं कर रहा है. लेकिन कांग्रेस और एनसी के इस गठबंधन से कांग्रेस को फ़ायदा मिल रहा है.”
वो कहती हैं कि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में एनसी-कांग्रेस गठबंधन कामयाब रहा क्योंकि एनसी ने कश्मीर में दो सीटें जीतीं.
कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक तारिक़ भट कहते हैं कि कांग्रेस को इस बार ये उम्मीद है कि उनकी पार्टी की साख़ फिर से बढ़ेगी.
उन्होंने बताया, “कांग्रेस ये भी समझती है कि यहां के लोग सरकार से खुश नहीं हैं और एक सत्ता विरोधी लहर का जो फैक्टर है उसे भुनाना चाहती है. इस बात में कोई शक़ नहीं कि जम्मू -कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी सरकार से पहले कांग्रेस नंबर दो पर रही है. बीजेपी की कश्मीर में एंट्री दो दशक पहले की बात है, जबकि कांग्रेस तो जम्मू -कश्मीर में वर्ष 1950 से है.”
विश्लेषक ये भी कहते हैं कि गठबंधन के अंदर नेशनल कॉन्फ्रेंस से कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदारी इस बार कांग्रेस पर है क्योंकि जम्मू में ज़्यादा सीटों पर कांग्रेस ही चुनाव लड़ रही है.
तारिक़ भट कहते हैं, “जम्मू इस समय बीजेपी का गढ़ है. पार्टी कश्मीर घाटी में अपने बल पर चुनाव लड़ रही है और जम्मू में एनसी महज़ दस सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी कांग्रेस पर है न की नेशनल कॉन्फ्रेंस पर.”
“कांग्रेस के 25 उम्मीदवार जम्मू में चुनाव लड़ रहे हैं.अगर बीजेपी को जम्मू में रोकना है तो कांग्रेस को जम्मू में अच्छा करना होगा. कश्मीर में सीधे तौर पर एनसी का मुक़ाबला बीजेपी से नहीं है. इसलिए अगर कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन की सरकार बनानी है तो उसकी बड़ी ज़िम्मेदारी कांग्रेस पर है.”
जम्मू -कश्मीर के लोगों को कांग्रेस से क्या उम्मीदें हो सकती हैं, इस सवाल के जवाब में तारिक़ भट्ट कहते हैं, “कश्मीर के लोगों का अभी सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि उनको लगता है कि अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही उनको हर चीज़ से बेदख़ल कर दिया गया है. वो समझते हैं कि उन्हें हर लिहाज़ से प्रभावहीन कर दिया गया है.
तारिक भट्ट कहते हैं, “कांग्रेस उस सेंटीमेंट को समझती है और इसलिए राहुल गांधी ने भी अपने भाषण में कहा कि हम जम्मू -कश्मीर का स्टेटहुड बहाल करेंगे. इस लिए कई सीटों में लोगों के पास ये विकल्प है कि कांग्रेस को वोट देना उनके लिए फायदे की बात है और राहुल गांधी संसद में उनकी आवाज़ बन सकते हैं.”
कांग्रेस को लेकर क्या है रुझान
जम्मू के रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक और लेखक ज़फर चौधरी बताते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरह से जम्मू -कश्मीर के इस विधानसभा चुनाव में जो निजी दिलचस्पी ली है उस से जम्मू में एक फिर एक उम्मीद उभरी है.
उनका ये भी कहना था कि कांग्रेस के इस गठबंधन फ़ैसले से मतदाताओं के रुझान पर असर होगा. लेकिन वह ये भी कहते हैं कि जम्मू -कश्मीर में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बेहतर नहीं है.
उनका कहना था, “अगर कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा ठीक होता तो और भी अच्छी उम्मीद की जा सकती थी. कुछ गिने-चुने चेहरे हैं, कुछ लोग हैं और कुछ इलाक़े हैं जहां उनसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है.”
ज़फ़र चौधरी ये भी कहते हैं कि आम लोगों को कांग्रेस से जो उम्मीदें हैं वो ‘बीजेपी के अहंकार’ से मुक्ति पाने की उम्मीद है.
कश्मीर यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के पूर्व प्रोफ़ेसर नूर अहमद बाबा कहते हैं, “लोग चाहते हैं कि बीजेपी की जगह उन्हें कोई अच्छा विकल्प हो तो वो उनको वोट कर सकते हैं, क्योंकि बीजेपी की नीतियों से लोग खुश नहीं दिखते.”
उनका ये भी कहना था कि राहुल गांधी का जम्मू -कश्मीर में चुनावी प्रचार की शुरुआत बहुत अहमियत रखता है. वो ये भी कहते हैं कि अगर कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस को अच्छी तादाद में सीट मिल गईं तो जम्मू-कश्मीर से बाहर भी एक अच्छा संदेश जा सकता है.
जम्मू- कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. ये चुनाव तीन चरणों 18 सितम्बर, 25 सितम्बर और एक अक्टूबर को होंगे. वोटों की गिनती आठ अक्टूबर को होगी. जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं की कुल संख्या क़रीब 88 लाख है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित