बिहार में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड के मंत्री अशोक चौधरी के बयान पर पार्टी बँटी हुई दिख रही है.
अशोक चौधरी का एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह अप्रत्यक्ष रूप से जहानाबाद लोकसभा सीट पर पार्टी की हार के लिए भूमिहार जाति को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.
पिछले हफ़्ते गुरुवार को जहानाबाद में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अशोक चौधरी इलाक़े के दबंग भूमिहार नेता जगदीश शर्मा को निशाने पर ले रहे थे. दलित नेता अशोक चौधरी ने कहा था कि कुछ लोगों ने जेडीयू का समर्थन नहीं किया.
अशोक चौधरी ने जहानाबाद सीट पर जेडीयू उम्मीदवार चंद्रेश्वर चंद्रवंशी की हार के लिए भूमिहारों को दोषी ठहराया था.
अशोक चौधरी ने कहा था, “जो सिर्फ़ पाने के लिए नीतीश जी के साथ रहते हैं, हमें वैसे नेता नहीं चाहिए. हम भी कोई विदेश के नहीं हैं. हम भी जहानाबाद के ही हैं. मेरी बेटी की शादी भी भूमिहार में हुई है. हम भूमिहारों को अच्छी तरह से जानते हैं.”
इस साल लोकसभा चुनाव में जेडीयू के चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार सुरेंद्र यादव से हार गए थे.
अशोक चौधरी ने कहा था, “आप जब अति-पिछड़ा को उम्मीदवार बनाते हैं तो भूमिहार लोग भाग जाते हैं कि हम अति पिछड़ा को वोट नहीं देंगे. राजनीति करनी है तो मुद्दों के साथ राजनीति कीजिए. हमारे नेता ने जब फ़ैसला कर लिया तो उस निर्णय के साथ खड़े रहिए.”
ऐसा माना जाता है कि नौ बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके जेडीयू के स्थानीय नेता जगदीश शर्मा ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट नहीं मांगा था. अशोक चौधरी का निशाना मूल रूप से उन्हीं पर था.
ख़बर के मुताबिक़ जगदीश शर्मा चाहते थे कि इस सीट पर उनके बेटे को जेडीयू का टिकट मिले. लेकिन नीतीश कुमार ने साल 2019 में चुनाव जीतने वाले चंद्रेश्वर चंद्रवंशी को ही टिकट दिया था.
पार्टी के अंदर अपने बयान का विरोध देख अशोक चौधरी ने इस पर सफाई भी दी है.
उन्होंने कहा है, “जेडीयू में रहते हुए जिन लोगों ने पार्टी को वोट नहीं दिया, मैं उनके बारे में बोल रहा हूं… मैं उस भावना के ख़िलाफ़ बोल रहा हूँ. मैं उनके बारे में बोल रहे हैं जो पार्टी में हैं और पार्टी में आगे बढ़ना चाहते हैं.”
जेडीयू के भीतर क्या सब कुछ ठीक है?
जनता दल यूनाइटेड के भीतर हाल के दिनों में कई चीज़ें देखने को मिली हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जेडीयू के कई नेताओं ने कई जातियों पर वोट नहीं देने का इल्ज़ाम लगाया.
इसके बाद केसी त्यागी ने जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफ़ा दे दिया. हाल के दिनों में केसी त्यागी एनडीए का हिस्सा रहते हुए बीजेपी की नीतियों की खुलकर आलोचना कर रहे थे. माना जा रहा है कि केसी त्यागी को इसी वजह से जाना पड़ा. हालांकि पार्टी ने इस्तीफ़े की कोई ठोस वजह नहीं बताई है.
यह सब ऐसे वक़्त पर हो रहा है, जब बिहार के सियासी दल राज्य विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी रह हैं. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतकर नीतीश कुमार ने कई सियासी पंडितों को हैरान कर दिया था. लेकिन उनकी इस जीत का श्रेय बीजेपी के साथ गठबंधन को भी दिया जा रहा है.
बिहार में भूमिहार नीतीश कुमार की पार्टी को वोट करते रहे हैं. ललन सिंह भूमिहार जाति से हैं और जेडीयू की कमान उनके पास भी रही है. मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में नीतीश कुमार ने ललन सिंह को ही मंत्री बनवाया है. ललन सिंह को नीतीश कुमार का भरोसेमंद साथी माना जाता है.
अशोक चौधरी के बयान पर विवाद
अशोक चौधरी के बयान पर जेडीयू के नए प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने बीबीसी के कहा है कि अब इस पर कहने के लिए कुछ नया नहीं है क्योंकि उन्होंने स्पष्टीकरण भी दे दिया है.
राजीव रंजन ने कहा, “जनता विवेकशील है और हम जनता के विवेक पर सवाल नहीं उठा सकते.”
जहानाबाद में भूमिहार और यादव जातियों का चुनावों में बड़ा असर है. बिहार के जातिवार सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक़ राज्य में भूमिहार आबादी तीन फ़ीसदी से थोड़ी कम है.
बाक़ी जातियों की तुलना में बिहार में भूमिहार आर्थिक और राजनीतिक रूप से संपन्न तबका है.
अशोक चौधरी के बयान के बाद जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता और बिहार विधान परिषद के सदस्य नीरज कुमार ने उन पर निशाना साधा था. इससे जेडीयू के अंदर एक नया विवाद खड़ा हो गया था.
नीरज कुमार ख़ुद भूमिहार जाति से आते हैं. उन्होंने अशोक चौधरी पर परिवारवादी होने और पार्टी के सिद्धांतो के ख़िलाफ़ काम करने का आरोप लगा दिया था.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ के मुताबिक़ नीरज कुमार ने कहा, “नीतीश जी ने कभी किसी जाति का नाम तक नहीं लिया. वो वंशवाद की राजनीति के ख़िलाफ़ हैं, लेकिन अशोक चौधरी हमेशा अपने परिवार के लिए काम करते हैं. एक जाति के लोग परिस्थिति के हिसाब से वोट देते हैं या नहीं देते हैं और उनके प्रति कोई नफ़रत नहीं होनी चाहिए. पार्टी अशोक चौधरी के बयान को पूरी तरह से ख़ारिज करती है.”
अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर इस साल पहली बार सांसद बनी हैं. वो समस्तीपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं. उनकी शादी एक भूमिहार परिवार में हुई है.
हालाँकि इस साल जब उनकी बेटी को एलजेपी का टिकट मिला था तो बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा भी थी कि नीतीश कुमार इससे नाराज़ हैं.
दरअसल नीतीश कुमार और एलजेपी के बीच रामविलास पासवान के ज़माने से ही अदावत मानी जाती है. साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को हुए नुक़सान के बाद नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच दूरियां और बढ़ गई थीं.
अशोक चौधरी के बयान पर विपक्ष की प्रतिक्रिया
अशोक चौधरी के बयान के बाद जेडीयू नेता जगदीश शर्मा ने द हिन्दू अख़बार से कहा कि उनकी टिप्पणी पूरी तरह से जातिवादी थी. उन्होंने अशोक चौधरी के बयान की कड़ी आलोचना की है.
वहीं भागलपुर सीट से कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा ने अशोक चौधरी पर तीखा हमला बोला. अजीत शर्मा ख़ुद भूमिहार जाति से आते हैं.
अजीत शर्मा ने कहा है, “यह पूरे बिहार को और देश को शर्मसार करने की बात है. आपको जनता ने सरकार में इसलिए भेजा है कि आप जाति से ऊपर उठकर काम करेंगे.”
अजीत शर्मा ने अशोक चौधरी से अपने बयान के लिए माफ़ी मांगने के लिए कहा है.
हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब जेडीयू के नेता ने इस साल के लोकसभा चुनाव में वोट न देने के लिए किसी जाति या धर्म के लोगों पर टिप्पणी कर रहे हैं.
इससे पहले सीतामढ़ी से जेडीयू के सांसद देवश चंद्र ठाकुर ने लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद कहा था कि ‘यादव और मुसलमानों ने उन्हें वोट नहीं दिया, इसलिए वो उनकी मदद नहीं करेंगे.’
उन्होंने कहा था, “अब मैं यादव और मुसलमानों के लिए कोई काम नहीं करूंगा क्योंकि उन्होंने मुझे वोट नहीं दिया है. यादव और मुसलमान अगर हमारे यहां आते हैं तो उनका स्वागत है. चाय पीजिए, मिठाई खाइए लेकिन मैं आपका कोई काम नहीं करूंगा.”
इस बीच बिहार में जातिगत जनगणना की मांग करने वाले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी अशोक चौधरी और जेडीयू पर हमला बोला है.
तेजस्वी ने कहा है, “सीतामढ़ी के सांसद ने भी यादव, मुसलमान और कुशवाहा भाइयों के प्रति कितनी घृणा वाले बयान दिए थे. जेडीयू का चरित्र ही ऐसा है. ये जातीय उन्माद पैदा करते हैं. एक व्यक्ति से कुछ बुलवाते हैं और दूसरे से कुछ.”
बिहार में विधानसभा के लिए अगला चुनाव अगर समय पर होता है तो इसमें क़रीब एक साल का वक़्त बचा है. हालाँकि माना जाता है कि नीतीश कुमार राज्य में समय से पहले विधानसभा चुनाव कराना चाहते हैं.
बिहार की राजनीति में जाति
बिहार में पिछड़ी जातियों और दलितों की ज़्यादा आबादी के बावजूद 1947 से 1967 तक बिहार कांग्रेस में सवर्णों का वर्चस्व रहा है. कांग्रेस में वर्चस्व रहने का मतलब था कि सत्ता में वर्चस्व रहना.
इसकी वजह यह थी कि सवर्ण आर्थिक और शैक्षणिक रूप से मज़बूत थे. 1967 के आम चुनाव तक कांग्रेस के नेतृत्व में सवर्णों का प्रभाव बना रहा. हालांकि इसी दौर में सवर्ण नेतृत्व को अहसास हो गया था कि ग़ैर-सवर्णों को सत्ता में भागीदारी से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता है.
इसका अहसास 1957 और ख़ासकर 1962 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद ही हो गया था. यह बिहार की राजनीति और कांग्रेस पार्टी के लिए एक अहम परिघटना थी.
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का निधन जनवरी 1961 में हुआ था. श्री कृष्ण सिंह जब तक ज़िंदा रहे तब तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. श्री कृष्ण सिंह के निधन के बाद बिहार की राजनीति ने अलग करवट ली. श्री कृष्ण सिंह भी भूमिहार जाति से ही थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित