बिहार, झारखंड और पूर्वी यूपी के कई इलाकों में हर साल जितिया पर्व मनाया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि इस पर्व से संतान को दीर्घायु होने का ‘आशीर्वाद’ मिलता है.
इस साल भी ये पर्व मनाया गया लेकिन बिहार के कई परिवारों में खुशियों की जगह मातम ने ले ली.
25 सितंबर को जितिया पर्व के दौरान अलग-अलग जगह डूबने से 37 बच्चों की मौत हो गई.
बिहार सरकार की प्रेस रिलीज़ कहती है, “जितिया पर्व में स्नान के दौरान प्रदेशभर में डूबने से 46 लोगों की मौत हो गई. इसमें 37 बच्चे, 7 महिलाएं और 2 पुरुष शामिल हैं.”
इन घटनाओं पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताया और मरने वालों के परिवारवालों को 4-4 लाख रुपये की मदद की घोषणा की. वहीं बिहार सरकार में आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री का कहना है कि “इसे संयोग कहें कि एक दिन में इतनी बड़ी घटना हो गई.”
घटना और मदद की घोषणा के बीच ये सवाल है कि आख़िर एक दिन में इतने बच्चों की मौत कैसे हुई और सरकार ऐसे हादसों को रोकने के लिए क्या कर रही है?
कैसे हुईं ये मौतें?
मरने वालों में बच्चियों की संख्या ज़्यादा है. औरंगाबाद में सबसे ज़्यादा 9 बच्चियों समेत 10 की मौत हुई है.
औरंगाबाद के अलावा पश्चिमी चंपारण, नालंदा, कैमूर, बक्सर, सीवान, रोहतास, सारण, वैशाली, मुज़फ़्फ़रपुर, समस्तीपुर, गोपालगंज और अरवल से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं.
औरंगाबाद के कुशहा गांव के रहने वाले वीरेंद्र यादव दुकान चलाते हैं.
हर रोज़ की तरह जब 25 सितंबर को बाज़ार से अपने घर लौट रहे थे तो उन्हें किसी ने बताया कि उनके गांव के एक आहर (डैम) में डूबकर कई बच्चों की मौत हो गई है.
हालांकि, उन्हें तब तक ये नहीं पता था कि मरने वालों में उनकी बेटी भी है.
जैसे ही वो अपने घर पहुंचते हैं, चीख-पुकार सुनकर उन्हें समझ आता है कि उनकी बेटी सोनाली अब नहीं रही और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए सदर अस्पताल ले जाया गया है.
इसी गांव के अंकज कुमार, नीलम कुमारी और राखी कुमारी की मौत भी डूबने से हो गई. ये सभी बच्चे 15 साल से कम उम्र के थे.
अंकज के पिता उपेंद्र यादव उस वक्त अपने घर से महज 400 मीटर दूर धर्मेंद्र के घर मज़दूरी कर रहे थे. जब गांव में इस बात का शोर हुआ कि पोखर में कई बच्चे डूब गए हैं तो वह भागे-भागे आहर किनारे पहुंचे. पता चला कि अंकज की डूबने से मौत हो गई.
चितरंजन इस हादसे का संभावित कारण बताते हुए कहते हैं, “कुछ महीने पहले करीब डेढ़ किलोमीटर में फैले इस पोखर की 5 फीट खुदाई की गई थी.”
“लेकिन कुछ दिन पहले पोखर को बीच से 10 फीट खोद दिया गया. इसकी जानकारी लोगों को नहीं थी.”
यानी आहर (डैम) किनारे से पांच फीट गहरा है. लेकिन आगे बढ़ने पर सीधे 15 फीट गहरा हो जाता है. चितरंजन का दावा है कि इसी गहरे पानी में जाने से बच्चों की मौत हुई है.
परिवार वाले इस मौत के लिए लघु जल संसाधन विभाग को जिम्मेदार बताते हैं.
वो कहते हैं, “हमलोगों ने पहले ही विभाग के इंजीनियर से आग्रह किया था कि इसके गेट को बंद कर दिया जाए. लेकिन किसी ने नहीं सुनी. इस आहर से करीब 250 बीघा खेतों की सिंचाई होती है. आसपास के पहाड़, गांव का पानी और एनएच का पानी इसमें आता है.”
इन आरोपों पर लघु जल संसाधन विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर अशोक कुमार, गहराई की बात को खारिज करते हैं.
उनका कहना है, “इसकी गहराई तकरीबन पांच से छह फीट ही है. ताकि सिंचाई के लिए पानी का संचय किया जा सके. स्थानीय लोग का आरोप कि इसकी गहराई ज्यादा है वह ग़लत है. काफ़ी संख्या में बच्चे इसमें नहाने जाते हैं. बच्चे पेड़ से कूदकर इसमें नहाते हैं. अभिभावकों को अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहिए.”
बीबीसी हिन्दी से बातचीत में बिहार सरकार में आपदा प्रबंधन और लघु जल संसाधन मंत्री संतोष सुमन ने कहा, “स्थानीय लोगों ने बताया कि आहर की ज्यादा खुदाई होने के कारण बच्चे डूब गए. इसकी जांच कराई जानी चाहिए.”
पूर्वी चंपारण के मोतिहारी स्थित लक्ष्मीपुर साउ टोला में नहाने के दौरान तीन बच्चियों की मौत हो गई.
इनमें रीमा कुमारी, रंजू कुमारी और मंजू कुमारी की मौत गहरे पानी में डूबकर हो गई. सभी की उम्र करीब 13 से 17 साल के बीच की थी.
रीमा कुमारी के पिता परमानंद बैठा ने बताया कि जितिया पर्व के दौरान गांव की महिलाओं के साथ पोखर में स्नान करने चली गई थी. इसी दौरान गहरे पानी में जाने के कारण डूब गई.
उन्हें ऐसा लगता है कि पोखर में बारिश के कारण पानी अत्याधिक होने से यह हादसा हुआ है.
आपदा विभाग और आपदा प्रबंधन मंत्री का क्या कहना है?
अलग-अलग जगहों पर एक साथ ऐसा बड़ा हादसा क्यों हुआ और सरकार आगे इससे बचने के लिए क्या उपाय कर रही है.
इस सवाल के जवाब में बीबीसी हिन्दी से बातचीत में आपदा प्रबंधन और लघु जल संसाधन मंत्री संतोष सुमन ने कहा, “ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए सरकार की तरफ़ से उपाय किए जाते रहे हैं.”
वो कहते हैं, “इस तरह की घटना ना हो इसके लिए बिहार सरकार की ओर से लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जाती है. लोगों को भी चाहिए कि वे कम से कम बारिश या फिर बाढ़ के दिनों में अपने छोटे-छोटे बच्चों को तालाब या नदी में नहाने के लिए नहीं जाने दें. सरकारी स्तर पर जितने भी तालाबों को निर्माण कराया गया है वहां इससे संबंधित बोर्ड लगाने का प्रावधान है.”
बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग में ओएसडी अविनाश कुमार कहते हैं, “बाढ़ के समय नदी, तालाब और आहरमें पानी का लेवल काफी बढ़ जाता है. इससे बचने के लिए कई प्रकार के सुझाव अखबारों में भी प्रकाशित किए जाते हैं. साथ ही सभी जिलों में एनडीआरएफं और एसडीआरएफं की टीमें तैनात रहती हैं. इसके लिए सबसे पहले लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. किसी भी तरह के आपदा से निपटने के लिए विभाग के गाइडलाइन का पालन करना होगा.”
सत्ताधारी जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार बीबीसी हिन्दी से बातचीत में ऐसी मौतों पर चिंता ज़ाहिर की, साथ ही अभिभावकों से अपील की.
नीरज कुमार ने कहा, “सरकारी स्तर पर बाढ़ और बारिश के दौरान जगह-जगह बैरिकेडिंग और माइकिंग के जरिए लोगों को आगाह किया जाता है. लेकिन आप देखेंगे कि बच्चे हो या बड़े सरकारी निर्देशों का पालन नहीं करते. इसलिए घटनाएं होती रहती हैं. अभिभावकों से अपील है कि वे अपने बच्चों को अकेला नदी या तालाबों में नहाने के लिए ना भेजें.”
सरकारी तंत्र की तरफ़ से आए इन दावों के अलावा आंकड़े ये बताते हैं कि बिहार में हर साल सैकड़ों लोगों की मौत डूबने से हो हो रही है.
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक़, जून से दिसंबर 2018 में डूबने से राज्य भर के 205 लोगों की जान चली गई.
साल 2019 में डूबने से मौत का आंकड़ा बढ़कर 630, 2020 में 1060 और साल 2021 में 18 नवंबर तक यह आंकड़ा 1206 पहुंच गया.
यानी की 2018 से 2021 के बीच मौत के आंकड़ों में कई गुना का इज़ाफ़ा हुआ है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित