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भारत सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स(जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर बार-बार कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया है.
सरकार ने यह बात अदालत में दायर अपने हलफनामे में कही है.
सरकार का कहना है कि एक्स देश के कानून का पालन नहीं करता है. वह कानून, न्यायपालिका और कार्यपालिका को कम करके आंकता है.
सरकार ने यह बात दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक की एक अदालत में एक्स की ओर से दायर एक अपील के जवाब में कही है. बीबीसी ने इन कागजों को देखा है.
केंद्र सरकार के इस जवाब पर एक्स ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
ट्विटर के साथ भारत सरकार का झगड़ा
एक्स ने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील की है. उसने हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील की है जिसमें कुछ अकाउंट और पोस्ट को ब्लॉक करने के सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी.
एक साल से अधिक समय तक ऐसे कई आदेशों का पालन नहीं करने पर अदालत ने एक्स पर 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था.
अदालत ने एक्स को जुर्माने की आधी रकम यानी 25 लाख रुपये जमा करने को कहा है. बाकी की रकम जमा करने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है.
एक्स ने 24 अगस्त को यह अपील दायर की थी. सरकार की दलील है कि अदालत को एक्स की मांगों को खारिज कर देना चाहिए.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने इस सप्ताह की शुरुआत में पहली बार इसे लेकर खबर दी. इसके बाद सरकार की प्रतिक्रिया सार्वजनिक हुई.
सरकार का कहना है कि ब्लॉकिंग के सभी आदेश जरूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के हित में दिए गए हैं.
सरकार का कहना है कि कई बार एक्स ने या तो लंबे समय तक ब्लॉकिंग आदेश का पालन नहीं किया या उन्हें ब्लॉक करने के बाद अज्ञात कारणों से उन खातों और ट्वीट्स को अनब्लॉक कर दिया.
सरकार के मुताबिक यह जानबूझकर उसका आदेश न मानना और निषिद्ध सामग्री प्रकाशित करने के अपराध को बढ़ावा देने जैसा था.
एक्स से क्या अनुरोध कर रही है भारत सरकार


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सरकार का कहना है कि याचिका दायर कर एक्स ने उसके आदेशों का पालन न करते हुए सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की है.
उसका कहना है कि भारत में लाखों लोग एक्स का इस्तेमाल करते हैं और लाखों ट्वीट करते हैं, लेकिन सरकार हर ट्वीट को ब्लॉक करने को नहीं कह रही है.
भारत एक्स से लगातार ट्वीट और पोस्ट को ब्लॉक करने के लिए कह रहा है. सरकार के कहने पर 2022 में 3 हजार 417 ट्विटर यूआरएल ब्लॉक किए गए, जबकि 2014 में केवल आठ यूआरएल ब्लॉक किए गए थे.
इस साल जून में ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने आरोप लगाया था कि सरकार ने 2020 में किसानों के प्रदर्शन से जुड़े कई ट्वीट और अकाउंट हटाने के लिए कहा था.
उनका कहना था कि सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के अकाउंट भी ब्लॉक करने को कहा गया था. डोर्सी ने यह कहा था कि भारत सरकार ने प्लेटफार्म को बंद करने और उसके कर्मचारियों पर छापे की धमकी दी थी.
भारत सरकार ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कंपनी पर स्थानीय कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया था.
भारत सरकार और एक्स का विवाद


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एक्स और सरकार के बीच पिछले कुछ सालों से विवाद चल रहा है. सरकार का कहना है कि एक्स को अपनी मध्यस्थ स्थिति और कानून में दी गई सुरक्षा खोने का जोखिम है.
यह सुरक्षा फेसबुक और एक्स जैसे प्लेटफार्म पर लागू होती है, जो कि यूजर्स की ओर से तैयार की गई सामग्री को होस्ट करते हैं और यूजर्स की ओर से पोस्ट की जाने वाली सामग्री के उत्तरदायित्व से उन्हें सुरक्षित रखता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस सुरक्षा को खोना भारत में काम करने वाली किसी भी सोशल मीडिया कंपनी के लिए अंत की घंटी के समान होगी.
सरकार ने अदालत में दी गई अपनी नई दलीलों में यह बताया है. उदाहरण के लिए, सरकार ने कहा है कि एक्स को भारतीय कानूनों के तहत रेजिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर की नियुक्ति करनी थी, लेकिन इसे उसने तब तक नहीं किया जब तक कि अदालत ने यह टिप्पणी नहीं की कि इस आदेश का पालन न करने पर उस पर जुर्माना लग सकता है.
वहीं एक्स का कहना है कि किसान आंदोलन से जुड़े अकाउंट्स को ब्लॉक करने का आदेश भारतीय कानून के मुताबिक नहीं थे और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के उसके सिद्धांत के खिलाफ थे.
सरकार का कहना है कि सरकारी अनुरोधों का पालन करने की दर काफी कम रही है, इस वजह से सरकार को कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी करना पड़ा.
एक अन्य उदाहरण देते हुए सरकार ने बताया कि कंपनी ने उसके आदेशों का पालन तभी किया जब वह अदालती कार्यवाही का हिस्सा बनी.
नरेंद्र मोदी और एलन मस्क की मुलाकात


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सरकार ने फिर कहा है कि भारतीय कानूनों के पालन को व्यवसाय के लिए विकल्प या बाधा के रूप में नहीं देखा जा सकता है.
उसका कहना है कि यदि कंपनी इनका पालन नहीं करती है, तो वह उसे मिली सुरक्षा खो सकती है या उस पर दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है.
सरकार ने आगाह करते हुए कहा है कि प्लेटफार्म ऑनलाइन सामग्री के लिए मध्यस्थ या नियामक की भूमिका नहीं निभा सकता. वह यह परिभाषित नहीं कर सकता कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है.
सरकार ने अदालत में जो उदाहरण दिए हैं, वे 2022 में एलन मस्क की ओर से किए गए एक्स के अधिग्रहण से पहले के हैं. मस्क के नेतृत्व में कंपनी ने सरकार के आदेशों का पालन किया है.
अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद मस्क ने कहा था कि कंपनी को अनिवार्य रूप से स्थानीय सरकार के कानूनों का पालन करना होगा, ऐसा न करने पर उसके बंद होने का खतरा होगा.
किसी सोशल मीडिया कंपनी की ओर से सरकार के सामग्री हटाने के आदेशों को लेकर भारत सरकार पर मुकदमा करने का यह पहला मामला है. इसका परिणाम जो भी होगा, वह काफी महत्वपूर्ण होगा.
कई अधिकार कार्यकर्ता सामग्री हटाने के सरकार के आदेशों के अस्पष्ट और अपारदर्शी होने को लेकर आलोचना करते हैं. इस मामले में अदालत का फैसला भारत में इंटरनेट पर यूजर्स की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को तय कर सकता है.