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मनरेगा पर ‘त्रिशूल’ से वार कर रही है मोदी सरकार, जाने-माने अर्थशास्त्री ने ऐसा क्यों कहा?

Byadmin

Mar 19, 2023


  • इक़बाल अहमद
  • बीबीसी संवाददाता

झारखंड

इमेज स्रोत, ANAND DUTTA/BBC

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झारखंड में मनरेगा के तहत मज़दूरी करती महिलाएं

रोज़गार गारंटी स्कीम – मनरेगा में कथित बजट कटौती और इसकी मज़दूरी के भुगतान में देरी के ख़िलाफ़ दिल्ली के जंतर-मंतर में पिछले कुछ दिनों से धरना जारी है.

जाने-माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ ने पिछले दिनों धरना दे रहे मज़दूरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के समर्थन में प्रेस ब्रीफ़िंग की और केंद्र की मोदी सरकार पर मनरेगा को ख़तरे में डालने का आरोप लगाया.

बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में ज्यां द्रेज़ ने कहा कि केंद्र सरकार मनरेगा पर ‘त्रिशूल’ से वार कर रही है. जिस तरह त्रिशूल के तीन नोक होते हैं, उसी तरह ये सरकार इसे तीन तरह से ख़तरे में डाल रही है.

उन्होंने कहा कि एक तो सरकार ने इसका बजट घटा कर 60 हजार करोड़ रुपये कर दिया. दूसरे, वो इसमें हाज़िरी लगाने के लिए एक अनिवार्य डिजिटल ऐप का इस्तेमाल कर रही है. जो उनके अनुसार ग्रामीण इलाक़ों में कभी काम करता है, कभी नहीं. इससे मज़दूरों को उनकी मज़दूरी मिलने में देरी होती है.

मनरेगा बजट में कटौती?

ज्यां द्रेज़ समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार ने मनरेगा का बजट घटा दिया है.

हालांकि सरकार इन आरोपों को ख़ारिज करती है.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के बाद अपने मीडिया इंटरव्यू में कहा था, “मनरेगा मांग आधारित योजना है. मांग के आधार पर बजट आवंटन को बढ़ाना संभव है. राज्य से अगर और मांग आयी तो हम संसद से सप्लीमेंटरी डिमांड कर सकते हैं.”

ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने भी बीबीसी से बातचीत में यही कहा था कि मांग बढ़ने पर बजट बढ़ा दिया जाएगा.

पिछले साल के बजट के दौरान मनरेगा के लिए 73 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जिसे बाद में संशोधित करके 89,400 करोड़ किया गया.

और आख़िर में सरकार ने मनरेगा पर पिछले साल 98,468 करोड़ रुपये ख़र्च किए.

जब ज्या द्रेज़ से पूछा गया कि आप सरकार की इस बात से क्यों सहमत नहीं हैं, तो उनका कहना था, “98 हज़ार करोड़ ख़र्च करने के बावजूद पिछले साल 10-15 हज़ार करोड़ रुपए कम पड़ गए.”

उनका कहना था कि मनरेगा क़ानून के तहत नेशनल रोज़गार फ़ंड का प्रावधान था. उसकी सोच यह थी कि एक फ़ंड रहे जिसमें हमेशा इतना पैसा रहे कि जितनी भी मांग हो उसका भुगतान हो जाए उसमें कोई देरी ना हो. लेकिन सरकार ने इसे बजट आधारित बना दिया है.

ज्यां द्रेज़ ने कहा कि ”सरकार मनरेगा में ज़रूरत पड़ने पर आवंटन बढ़ाती है. लेकिन ये पर्याप्त नहीं होता. शुरू में प्रावधान कम होता है बाद में बढ़ाया जाता है. लेकिन तब तक मज़दूरी के भुगतान में देर हो चुकी होती है बक़ाया बढ़ जाता है.”

”इस बक़ाये को फिर अगले साल के लिए टाल दिया जाता है. यानी पहले कम प्रावधान, पेमेंट में देरी और बक़ाया जमा होते जाना. यानी ये एक दुष्चक्र बन जाता है.”

मज़दूरों से जुड़े आंकड़े

यूपीए-2 से ही मनरेगा कमज़ोर होने लगा

2005 में शुरू हुए मनरेगा कार्यक्रम की अब तक कि यात्रा के बारे में जब द्रेज़ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ”इस स्कीम का उद्देश्य काफ़ी अच्छा रहा है. इसकी सफलता की चर्चा यूरोप और अमेरिका तक में हुई है. इस क़ानून में स्कीम के विकेंद्रीकरण की बात थी, लेकिन अब इसे केंद्र अपने क़ाबू में करना चाहता है.”

हालांकि इसमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल यूपीए-2 के शासनकाल में शुरू हो गया था, लेकिन अब इसका बहुत ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है और इससे ये जटिल बनता जा रहा है. लिहाज़ा अपने मकसद से दूर होता जा रहा है. जबकि सरकार एक तरह से टेक्नोलॉजी के भ्रमजाल में फंसी हुई है. उसे लगता से इससे सबकुछ सुलझ सकता है लेकिन बहुत ज़्यादा टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से जटलिता ही पैदा हो रही है. “

बजट घाटे को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती

ज्यां द्रेज़ का कहना है कि मनरेगा के साथ-साथ कई दूसरी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बजट में भी कमी हो रही है. सरकार का तर्क है कि बजट घाटे को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती की जा रही है.

जब ज्यां द्रेज़ से पूछा गया कि आख़िर सरकार के इस तर्क में ग़लत क्या है, तो उनका कहना था, “सरकार कहती है कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि मज़दूरी नहीं बढ़ रही है. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर ख़र्च नहीं बढ़ रहा है तो फिर आर्थिक विकास का फ़ायदा क्या है. सबसे ग़रीब लोगों के लिए कुछ पैसे क्यों नहीं दिए जा रहे हैं. कई देश ऐसा करते हैं तो भारत क्यों नहीं कर सकता है.”

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पोषाहार कार्यक्रमों में खर्च घटाने के आरोप

अगर सरकार योजनाओं में कटौती कर रही है तो फिर विपक्ष इसको मुद्दा क्यों नहीं बनाता है, इसके जवाब में ज्या द्रेज़ ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को डराया जा रहा है. अगर विपक्षी पार्टी मनरेगा के मामले में ज़्यादा आवाज़ उठाएँगी तो उनको ख़तरा है कि उनके ख़िलाफ़ जांच हो सकती है, उनपर सीबीआई, आईटी या ईडी की रेड हो सकती है.

लेकिन जब उनसे पूछा गया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब पूरे देश में भारत जोड़ो यात्रा कर सकते हैं तो फिर मनरेगा मज़दूरों के पक्ष में वो क्यों नहीं सड़क पर आ सकते हैं? इस सवाल पर ज्यां द्रेज़ ने कहा कि कुछ दिनों पहले जब विपक्ष के नेताओं के साथ उनकी बैठक हुई थी तो लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी के एक प्रवक्ता ने कहा कि “हमलोग मरनेगा जैसे मुद्दे उठाएंगे तो पता नहीं हमलोगों का क्या होगा?”

आरजेडी के ही रघुवंश प्रसाद सिंह ने यूपीए-1 में बतौर ग्रामीण विकास मंत्री मनरेगा योजना की शुरुआत की थी.

पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बल पर अपने वोटरों की एक बड़ी फ़ौज तैयार कर ली है और लगभग सभी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में इस लाभार्थी वर्ग का बहुत बड़ा योगदान था.

ज्यां द्रेज़ से पूछा गया कि अगर सरकार मज़दूरों और ग़रीबों के ख़िलाफ़ काम कर रही है तो फिर वो चुनाव कैसे जीत रही है, इसके जवाब में ज्यां द्रेज़ कहते हैं, “जनता को सुलाया गया है. लोकतंत्र का विनाश हो रहा है और इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है.”

उन्होंने कहा कि यह विपक्षी पार्टियों की असफलता है और सत्ताधारी पार्टी की प्रोपगैंडा मशीन की सफलता है. लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि सरकार की कई योजनाओं से आम आदमी को कई लाभ भी मिले.

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