- ओल्गा इव्शिना और होवार्ड झांग
- बीबीसी वर्ल्ड सर्विस

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यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई को एक साल होने को है. अब इस बात के संकेत मिलने लगे हैं कि चीन रूस के साथ ‘असीमित दोस्ती’ पर पुनर्विचार करने लगा है.
चीन यूक्रेन में पुतिन की असफलताओं से हैरान है और ख़ुद भी कई समस्याओं से जूझ रहा है.
अब वो रूस का साथ देने के नकारात्मक असर को सीमित करना चाह रहा है. साथ ही पश्चिमी दुनिया के साथ अपने संबंधों को पटरी पर लाना चाह रहा है.
रूस की यूक्रेन पर चढ़ाई के बीस दिन पहले यानी बीते वर्ष फ़रवरी में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन के नेता शी जिनपिंग से मिले थे.
उस ऐतिहासिक बैठक में दोनों नेताओं ने ‘असीमित दोस्ती’ और ‘हर क्षेत्र में सहयोग’ की बात की थी.
ब्रितानी अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया था कि दोनों नेताओं ने यूक्रेन के बारे में भी बात की थी, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण करने संबंधी कोई बात नहीं की थी.
चीन का नाज़ुक संतुलन
हालांकि हम ये बात पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग को रूस के जंग की तैयारी के बारे में कुछ न मालूम हो, पर चीन ने यूएन में रूसी हमले की आलोचना वाले प्रस्ताव को अपना समर्थन नहीं दिया था.
यूक्रेन युद्ध के शुरूआती दिनों में चीन में कई लोग रूस की सैन्य कार्रवाई के प्रति उत्साहित थे.
कई लोगों ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की उस स्पीच के वीडियो शेयर किए थे जिसमें उन्होंने यूक्रेन में स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन की घोषणा की थी. रूस अब भी यूक्रेन में चल रही जंग को मिलिट्री ऑपरेशन ही बताता है.
दूसरी तरफ़ चीनी नेता यूक्रेन में जंग शुरू होने के लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार बताते रहे हैं. उनके मुताबिक ये पश्चिमी द्वारा नेटो के विस्तार का परिणाम है.
इसके बावजूद चीन ने रूस की मदद करने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट दावा करता है कि रूस ने बार-बार चीन से वित्तीय और टेक्नोलॉजिकल मदद मांगी है.
अख़बार के मुताबिक शी जिनपिंग दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए मदद के विरुद्ध नहीं थे लेकिन वास्तविकता तो यही है कि रिश्तों में तनाव है.
पोस्ट के मुताबिक चीन रूस की स्थिति को तो समझता है पर वो अपने हालात को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.
नुकसान कम करने की कोशिश


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यूक्रेन के जंग शुरू होने के बाद एक ही बार दोनों देशों के राष्ट्रपति मिले हैं. बीते साल सितंबर में उज़्बेक शहर समरकंद में ये मुलाक़ात हुई थी.
ये मुलाक़ात ऐसे वक्त में हुई थी जब यूक्रेन रूस पर जवाबी हमले कर रहा था. इन हमलों की बदौलत यूक्रेन ने रूस के कब्ज़े वाले बड़े इलाक़े को आज़ाद करवा लिया था.
समरकंद की बैठक के बाद पुतिन ने कहा था कि वे यूक्रेन युद्ध के बारे में चीन की संतुलित पॉजिशन का आदर करते हैं.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन, रूस के साथ मिलकर दुनिया में पॉज़िटिव एनर्जी लाने के लिए तैयार है.
लेकिन कैमरे के सामने की इन मीठी-मीठी बातों के पीछे एक जटिल सच्चाई छिपी थी.
यूक्रेन के युद्ध ने चीन के सामने ऐसी समस्याएं पैदा की हैं जिन्हें आसानी से हल नहीं किया जा सकता है.
रूसी हमले के वजह से यूरोप में ऊर्जा की कीमतें बढ़ी हैं. जिसकी वजह से लोगों के हाथों में चीनी सामान को ख़रीदने के लिए कैश कम हुआ है.
रूस में थमता चीनी निवेश


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शी और पुतिन आपस में मिलते रहते हैं लेकिन इन बैठकों के बावजूद दोनों में आपसी भरोसे की कमी दिखती है.
चीन के रूसी हमले की आलोचना न करने की वजह से पश्चिमी देशों के साथ उसके रिश्तों में तनाव आया है.
चीन के लिए ये दिक्कत वाली बात है, क्योंकि यूरोप और अमेरिका चीन के प्रमुख ट्रेडिंग पार्टनर हैं.
साल 2022 के पहले छह महीनों में रूस में कोई भी नया चीनी निवेश नहीं हुआ है. विश्लेषकों का कहना है कि चीन निवेश न करके, अमेरिका की ओर संभावित प्रतिबंधों से बचना चाह रहा है.
चीन के रूसी एक्सपर्ट लियोनिड कोवचिच कहते हैं, ‘असीमित दोस्ती’ के जुमले का असर हक़ीक़त में उठाए गए क़दमों सें नहीं हुआ है.
वे कहते हैं, “सारे पश्चिमी जगत के साथ अपने रिश्तों को जटिल बनाना चीन के हित में बिल्कुल नहीं है. अमेरिका के साथ तो चीन के रिश्ते लंबे समय तक तनाव से भरे रहने वाले हैं, ऐसे में चीन के लिए ये अहम है कि वो यूरोपीय संघ के साथ संबंध ख़राब न करे.”
ये भी मुमकिन है कि चीन युद्ध के शुरूआती दिनों में ये न भांप पाया हो कि जंग का यूरोपीय संघ पर क्या असर होगा और उसे उस बात का भी अंदाज़ा नहीं था कि यूरोप पैसों और हथियारों से यूक्रेन की ख़ूब मदद करेगा.
लियोनिड कोवाचिच कहते हैं, “यही वजह है कि चीन अब यूरोप के साथ रिश्तों को ठीक करने में लगा है. कम से कम शब्दों के ज़रिए तो ऐसा हो ही रहा है.”
यूक्रेन युद्ध के असर के कारण चीन के ताइवान मुद्दे को हैंडल करने को भी प्रभावित किया है. चीन का मानना है कि ताइवान उसका एक विद्रोही प्रांत है जिसे एक न एक दिन चीन में शामिल होना है.
हाल के महीनों में ताइवान और चीन के संबंधों में तनाव आया है. दिसंबर में चीन ने ताइवान के आस-पास एक बड़ा हवाई और समुद्री सैन्य प्रदर्शन किया था. यूक्रेन के युद्ध के शुरुआती दिनों में कई विश्लेषकों को लगा था कि अब चीन भी ताइवान के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है.
लेकिन अब एक्सपर्ट कह रहे हैं कि यूक्रेन के हमले पर अमेरिका और पश्चिम की प्रतिक्रिया को देखते हुए चीन ताइवान पर कार्रवाई का दुस्साहस नहीं करेगा.
चीन की अंदरूनी सियासत


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चीनी विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता झाओ लिजियान की तुलना रूसी प्रवक्ता मारिया ज़ख़ारोवा से होती रही है.
नौ जनवरी को चीन के नए विदेश मंत्री चिंग गैंग ने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से बात की थी.
रूस के निवेदन पर हुई बातचीत में आधिकारिक रुप से बताया गया, ‘दोनों देशों के बीच संबंध निरपेक्ष और किसी तीसरे मुल्क पर हमले पर आधारित नहीं हैं,”
ये बयान पिछले साल फ़रवरी में ‘असीमित दोस्ती’ वाली बात से बहुत दूर लगता है.
चिंग की नियुक्ति, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियान को पद से हटाए जाने के बाद हुई थी.
झाओ को अपने आक्रामक रुख़ के लिए योद्धा कहा जाता था. वो चीन की नीतियों का ज़ोरदार पक्ष रखते थे और चीन के विरोधियों को आड़े हाथों लेते थे. अक्सर उनकी तुलना रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ख़ारोवा से की जाती थी. ज़ख़ारोवा भी पश्चिमी देशों पर तीख़ी टिप्पणियां करने के लिए जानी जाती हैं.
कुछ विश्लेषक कहते हैं कि विदेश मंत्रालय से झाओ का हटाया जाना एक दिखावा है, लेकिन कुछ का मानना है कि ये चीन का पश्चिमी देशों के साथ संबंध को सहज बनाने का प्रयास है.
चीन के लिए पश्चिम के साथ संबंधों को बेहतर करना महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड के बाद ये देश, दुनिया का आत्मविश्वास फिर से जीतना चाहता है.
मॉस्को से निराशा


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यूक्रेन के युद्ध रूस को प्रत्याशित सफलता नहीं मिली है. इसका असर उसके चीन के साथ रिश्तों पर पड़ा है.
चीनी सरकार के समर्थक और राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि चीन की सरकार रूस से निराश है और वो युद्ध को एक रणनीतिक चूक मानती है.
इस बात का एक संकेत बीते साल नवंबर में मिला था. चीनी नेता शी जिनपिंग ने जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ के साथ एक साझे बयान में कहा था, ‘परमाणु युद्ध की धमकी अस्वीकार्य है.’
अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने एक अज्ञात चीनी अधिकारी के हवाले लिखा है, “पुतिन पागल हैं. यूक्रेन पर हमला करने का फ़ैसला रूसी सरकार के एक बहुत ही छोटे समूह ने किया था. चीन को बिल्कुल रूस का साथ नहीं देना चाहिए.”
इस बात की उम्मीद कम है कि चीन रूस विरोधी बयानबाज़ी करना शुरू कर दे लेकिन वो भविष्य में सावधान रहना चाहेगा. चीन इस सावधानी के ज़रिए रूस की यूक्रेन में विफलता के परिणामों और अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल के नुकसान को कम करना चाहेगा.