स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर की जोड़ी के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने न्यूज़ीलैंड की महिला क्रिकेट टीम को तीसरे वनडे मैच में छह विकेट से हरा दिया है.
भारतीय टीम दूसरा वनडे मैच हार गई थी. पहले दोनों मैचों में स्मृति मंधाना का रंगत में नहीं होना भारतीय टीम को खल रहा था. लेकिन तीसरे वनडे मैच में मंधाना ने शतकीय पारी खेल कर शानदार वापसी की.
स्मृति मंधाना का यह वनडे करियर का आठवां शतक है और वह इसके साथ ही भारत के लिए सर्वाधिक वनडे शतक लगाने वाली महिला क्रिकेटर बन गई हैं.
उन्होंने इस शतक से पूर्व कप्तान मिताली राज को पीछे छोड़ा है.
बाएँ हाथ की सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर टीम को बेहतरीन शुरुआत देनी हो या फिर विपक्षी गेंदबाज़ी आक्रमण के छक्के छुड़ाना हो, स्मृति ये सब बख़ूबी करती आई हैं.
न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 121 गेंदों में शतक जड़ने वाली स्मृति मंधाना ने अपनी पारी में दस चौके जड़े.
मंधाना पहले दो मैचों में पांच और शून्य के स्कोर पर आउट हुई थीं, लेकिन तीसरे मैच में उन्होंने पूरे संयम के साथ बल्लेबाज़ी की और अपना स्कोर आगे बढ़ाया.
मंधाना के करियर का राहुल द्रविड़ कनेक्शन
एक बार विकेट पर जमने के बाद मंधाना ने खुलकर अपने हाथ भी दिखाए और बड़े शॉट लगाए.
मंधाना ने मैच में ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ चुने जाने पर कहा,”सिरीज़ जीतने से बहुत खुश हूं. पिछले एक-डेढ़ महीने काफ़ी मुश्किल रहे हैं. पिछले दो मैच अच्छे नहीं रहे. इस पारी की ख़ास बात ख़ुद पर नियंत्रण के साथ खेलना रहा.”
“आप हर मैच में एक सा नहीं खेल सकते हैं पर टीम के लिए रन बनाना जरूरी होता है. मैं पहले 10 ओवर में संयमित होकर खेली पर बाद में स्वाभाविक खेल खेली.”
29 साल की स्मृति ने बीते सात साल में भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए एक से बढ़कर एक मुकाम हासिल किया है.
साल 2019 में ही वह आईसीसी की वनडे रैंकिंग में शीर्ष बल्लेबाज़ बनीं थीं.
साल 2018 में स्मृति मंधाना को आईसीसी की महिला क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर अवॉर्ड के लिए चुना गया था. उस साल उनके लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें वनडे क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
2018 में स्मृति को आईसीसी की ओर से चुनी गई वनडे और टी-20 टीम में भी शामिल किया गया था. साल 2022 में उन्हें आईसीसी विमेंस क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर का अवॉर्ड मिला है.
स्मृति मंधाना ने 17 साल की स्मृति ने फर्स्ट क्लास वनडे गेम में दोहरा शतक लगाया था. वेस्ट ज़ोन के अंडर-19 टूर्नामेंट में उन्होंने 32 चौके लगाते हुए 138 गेंदों पर 200 रन बनाए और 224 पर वो नाबाद रही.
ये एक रिकॉर्ड शतक था क्योंकि इससे पहले किसी भारतीय महिला क्रिकेटर ने वनडे मैच में दोहरा शतक नहीं लगाया था.
अपने फॉर्म के साथ स्मृति ने इस शतक का श्रेय राहुल द्रविड़ को दिया. दरअसल कुछ साल पहले स्मृति के भाई की मुलाक़ात राहुल द्रविड़ से हुई.
द्रविड़ ने अपनी किट से एक बैट निकाल कर उन्हें दिया तो भाई ने अपनी बहन के लिए बल्ले पर ऑटोग्राफ़ करवाया. स्मृति ने इस बल्ले से अंडर-19 में गुजरात के ख़िलाफ़ दोहरा शतक लगाया.
स्मृति अगले कई साल तक इसी बल्ले से खेलती रहीं और धमाकेदार अंदाज़ में रन बटोरती रहीं. चार बार मरम्मत कराया गया यह बल्ला अब स्मृति के घर की बैठक का हिस्सा है.
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ‘रन मशीन’
इस पारी से स्मृति का नाम क्रिकेट जगत में चमक गया. अन्य दो टूर्नामेंटों में भी ऐसी ही बल्लेबाज़ी के दम पर स्मृति ने चैलेंजर ट्रॉफ़ी टूर्नामेंट के लिए टीम में जगह बनाई.
साल 2016 में चैलेंजर ट्रॉफ़ी के तीन मैचों में उन्होंने तीन अर्धशतक जमाए. फ़ाइनल मुक़ाबले में 62 गेंदों पर 82 रन बनाकर उन्होंने टीम को चैंपियन बनाने में मदद की.
हालाँकि इससे पहले ही उन्हें 2013 में भारतीय टीम से खेलने का मौक़ा मिल चुका था. 2014 में स्मृति को आईसीसी महिला टी20 यानी महिला टी-20 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चुना गया था.
इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए स्मृति को 12वीं की परीक्षा छोड़नी पड़ी थी.
स्मृति को पूरा एक साल पढ़ाई से दूर रहना पड़ा क्योंकि विश्व कप के बाद उन्हें इंग्लैंड के दौरे पर जाना था. इंग्लैंड दौरे पर मिली कामयाबी के बाद क्रिकेट के मैदान पर स्मृति के पाँव एकदम से जम गए.
इंग्लैंड दौरे पर भारतीय महिला टीम ने जब आठ साल बाद टेस्ट मैच जीता था तो उस टेस्ट मैच में स्मृति ने अर्धशतक बनाकर ख़ुद को साबित किया था. दो साल बाद स्मृति ने ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान होबार्ट में शतक लगाया.
साल 2017 विश्व कप से पहले, स्मृति घुटने की चोट के कारण पाँच महीने के लिए क्रिकेट से बाहर रहीं. इस बात को लेकर संशय बना हुआ था कि वह वर्ल्ड कप खेल पाएँगी या नहीं.
लेकिन फ़िज़ियो के मार्गदर्शन में उन्होंने वापसी करने के लिए काफ़ी मेहनत की.
विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में स्मृति ने पहले ही मैच में मेज़बान इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 90 रन की शानदार पारी खेली थी.
इस मैच के पाँच दिन बाद ही उन्होंने वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ 106 रनों की शानदार पारी खेली. भारतीय टीम फ़ाइनल में तो पहुँची, लेकिन ख़िताब नहीं जीत सकी.
इस टूर्नामेंट में अपने प्रदर्शन से स्मृति ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ख़ुद को मज़बूती से स्थापित किया.
भारत लौटने के बाद स्मृति समेत भारतीय महिला टीम के प्रदर्शन की काफ़ी तारीफ़ हुई थी. इस टूर्नामेंट के दौरान टीवी पर महिला क्रिकेट मैच देखने का उत्साह देखने को मिला.
साल 2018 में स्मृति ने दक्षिण अफ़्रीका दौरे में अर्धशतक और शतक जड़कर ख़ुद को साबित किया.
धीरे धीरे स्मृति मंधाना को भारतीय महिला टीम की ‘रन मशीन’ के तौर पर जाना जाने लगा. स्मृति की इस कामयाबी भरे सफ़र में उनके भाई का योगदान बहुत अहम रहा है.
स्मृति ने लगातार खेल कर टेस्ट और एकदिवसीय टीमों में खुद को स्थापित किया और धीरे-धीरे टी-20 टीम का अभिन्न अंग बन गई. जब उन्हें क्रिकेट की अच्छी समझ हुई तो स्मृति ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू हेडन की तरह खेलना चाहती थीं.
भाई से मिली प्रेरणा
हालाँकि बाद में स्मृति मंधाना, श्रीलंका के कुमार संगकारा से प्रभावित हुईं. शायद इसीलिए स्मृति की बल्लेबाज़ी में संगकारा की आक्रामकता और सूक्ष्मता का बेहतरीन मिश्रण महसूस किया जा सकता है.
स्मृति को अंतरराष्ट्रीय दौरे पर संगकारा से मिलने का मौक़ा मिला. स्मृति ने ट्विटर पर संगकारा के साथ एक फ़ोटो भी शेयर किया था. स्मृति के खेल की विशेषता बाएँ हाथ से खेलना है.
जिस सहजता से वह वाइड हिट कर सकती हैं, उसी कौशल के साथ सिंगल्स और डबल्स चुरा सकती हैं.
दरअसल मिताली राज और झूलन गोस्वामी के संन्यास से टीम इंडिया में जो जगह खाली हुई, उसकी कमी को पूरा करने के लिए बीते कुछ साल में हरमनप्रीत और स्मृति मंधाना ने ख़ुद को उस चुनौती के लिए तैयार किया है.
भाई-बहन का रिश्ता हमेशा ख़ास होता है. एक-दूसरे के सामान का इस्तेमाल करना, बातें साझा करना, और बहुत कुछ. ऐसी ही कहानी है भाई-बहन स्मृति और श्रवण की.
दरअसल स्मृति ने क्रिकेट का खेल अपने भाई श्रवण को खेलते हुए देखकर सीखा. भाई को खेलते देखकर उन्हें लगा कि वही करना चाहिए, जो भाई कर रहा है.
उनकी माँ ने अपने बेटे की ड्रेस को बेटी की नाप का बनाया और इसी ड्रेस में स्मृति मंधाना ने बल्ला थाम लिया.
जब उनका भाई अभ्यास करता था, तो वह बल्लेबाज़ी करती थी. भाई का काम नेट्स पर गेंदबाज़ी करना हो गया था. मुंबई से शुरू हुआ यह जुनून मंधाना परिवार के सांगली में बसने के बाद भी जारी रहा.
दरअसल स्मृति मंधाना के पिता और भाई श्रवण मंधाना सांगली के लिए ज़िला स्तर की क्रिकेट टीम का हिस्सा रह चुके हैं.
पिता अपने बेटे के साथ जब बल्लेबाज़ी करते थे, तो बाएँ हाथ से करते, यही देखकर मंधाना ने बाएँ हाथ से बल्लेबाज़ी शुरू की. पिता ने भी बेटी के शुरुआती क्रिकेट प्रेम को बढ़ावा दिया.
खान-पान में सावधानी
वे स्मृति को ऊंची श्रेणी के क्रिकेट की एक झलक देने के लिए मेरठ में अंडर-19 टूर्नामेंट में ले गए. माता-पिता को उम्मीद थी कि वह बड़ी लड़कियों के क्रिकेट और उनके जोख़िम को देखकर शायद क्रिकेट खेलना छोड़ देंगी.
लेकिन हुआ इसके ठीक उल्टा. क्रिकेट के प्रति उनका जुनून और बढ़ गया. वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पेशेवर क्रिकेटर बनने के सफ़र पर निकल पड़ीं.
11 साल की उम्र में उन्हें महाराष्ट्र की अंडर-19 टीम में चुना गया. लेकिन अंतिम एकादश में खेलने के लिए दो साल लंबा इंतज़ार करना पड़ा.
उनके पास जीवन के लिए दो ही विकल्प थे, विज्ञान या क्रिकेट में करियर. स्मृति ने क्रिकेट को चुना और भारतीय महिला क्रिकेट टीम को एक सितारा मिल गया.
इसके लिए स्मृति ने अनंत तांबवेकर के मार्गदर्शन में सांगली में कंक्रीट की पिचों पर अभ्यास किया, जबकि बड़े शहरों में समकालीन खिलाड़ी बेहतर सुविधाओं के साथ अच्छे मैदान पर अभ्यास कर रहे थे.
सुबह अभ्यास, फिर स्कूल और शाम को फिर अभ्यास, यह अनुशासित जीवन सालों तक रहा.
इस दौरान परिवार को रिश्तेदारों से काफ़ी कुछ सुनना पड़ा, लेकिन स्मृति की माँ ने बेटी से कहा कि ‘अपना ध्यान खेल पर लगाए रखो.’
क़रीब एक दशक से भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहीं और देश विदेश की यात्रा करने के बाद भी स्मृति मंधाना ने सांगली से अपना रिश्ता नहीं तोड़ा है.
वह सांगली के मशहूर सांभा भेल को बहुत पसंद करती हैं. पनीर गार्लिक ब्रेड और वड़ा पाव भी उन्हें काफ़ी पसंद हैं, लेकिन उन्हें खान-पान में काफ़ी परहेज करना पड़ता है क्योंकि वह लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना चाहती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित