डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सड़क हादसों और एक्सीडेंट में होने वाली मौतों को रोकने के लिए हाईवे मंत्रालय ने फैसला किया है कि अगर बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर मॉडल के तहत बने नेशनल हाईवे के किसी खास हिस्से पर साल में एक से ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं तो कॉन्ट्रैक्टर को सजा दी जाएगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी।
सड़क परिवहन और हाईवे सचिव वी उमाशंकर ने कहा कि हाईवे मंत्रालय ने BOT दस्तावेज में बदलाव किया है और अब कॉन्ट्रैक्टर्स को क्रैश मैनेजमेंट करना होगा और अगर BOT मॉडल के तहत उनके बनाए हाईवे के हिस्से पर एक खास समय में एक से ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं तो उन्हें सुधार के कदम उठाने होंगे।
‘एक्सीडेंट नहीं रुके तो बढ़ जाएगा जुर्माना’
उन्होंने कहा, “अगर किसी खास हिस्से, मान लीजिए 500 मीटर में एक से ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं तो कॉन्ट्रैक्टर पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा। अगर अगले साल कोई एक्सीडेंट होता है तो पेनल्टी बढ़कर 50 लाख रुपये हो जाएगी।”
उमाशंकर ने कहा कि हाईवे मंत्रालय ने 3,500 दुर्घटना संभावित हिस्सों की पहचान की है। नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट्स मुख्य रूप से तीन तरीकों से पूरे किए जाते हैं: बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी), हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल (एचएएम) और इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन।
बीओटी मॉडल पर मेंटेनेंस सहित प्रोजेक्ट्स के लिए रियायत अवधि 15 से 20 साल और एचएएम के लिए 15 साल है। कंसेशन पाने वाला, प्रोजेक्ट के कंसेशन पीरियड के अंदर एनएच के अलग-अलग हिस्सों के मेंटेनेंस के लिए जिम्मेदार होता है।
सरकार जल्द शुरू करेगी ये वाली स्कीम
उमाशंकर ने यह भी कहा कि सरकार जल्द ही पूरे भारत में सड़क दुर्घटना के पीड़ितों के लिए एक कैशलेस इलाज स्कीम शुरू करेगी। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के दौरान टेक्निकल और प्रोजेक्ट लर्निंग को शामिल करके स्कीम में जरूरी बदलाव किए जाएंगे।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इस साल मई में जारी एक अधिसूचना में कहा था कि सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को पहले सात दिनों तक खास अस्पतालों में 1.5 लाख रुपये तक के कैशलेस इलाज का हक होगा।