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- Author, संदीप राय
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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भारत में इंडिगो एयरलाइन संकट के चलते रद्द हुई सैकड़ों उड़ानों के बाद नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स को नोटिस भेजा है.
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, शनिवार को भेजे गए नोटिस में डीजीसीए ने बड़े पैमाने पर उड़ानों में आई बाधा और योजना, देख-रेख और संसाधनों के मैनेजमेंट में भारी चूक के लिए कंपनी को ज़िम्मेदार ठहराया.
बीते बुधवार को तब संकट शुरू हुआ जब इंडिगो की 150 उड़ानें रद्द हो गईं और दर्जनों उड़ानों को देरी का सामना करना पड़ा. अकेले शुक्रवार को ही 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द हुई हैं.
इसकी वजह से अन्य एयरलाइंस के किराए भी आसमान छूने लगे और शनिवार को भारत सरकार ने दखल देते हुए विमान किरायों की सीमा तय कर दी.
इंडिगो ने पायलटों के लिए ड्यूटी टाइम लिमिटेशंस (एफ़डीटीएल) नियमों में बदलाव को इस संकट का कारण बताया और कहा कि कंपनी नए सिरे से रोस्टर में सुधार करने की कोशिशें कर रही है लेकिन इस समस्या को हल करने में कुछ दिन और लगेंगे.
कंपनी ने यात्रियों को तुरंत ऑटो रिफ़ंड की भी सुविधा शुरू करने की बात कही है.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़, इन नियमों के अनुसार उड़ान सुरक्षा के लिए पायलट को 28 दिनों में 100 घंटे से अधिक काम करने की इजाज़त नहीं है.
और ड्यूटी उड़ान भरने के एक घंटे पहले रिपोर्टिंग टाइम से शुरू मानी जाएगी.
उधर, रविवार को भी देश के विभिन्न हवाईअड्डों पर यात्री उड़ानों के रद्द होने या देरी के चलते काफ़ी परेशान रहे.
विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इस समस्या के लिए उड्डयन क्षेत्र में मोनोपोली (एकाधिकार) को इस संकट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि इंडिगो की गड़बड़ी सरकार के एकाधिकार वाले मॉडल की क़ीमत है.
इस समय घरेलू उड्डयन क्षेत्र में इंडिगो की अकेले हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से अधिक है और इतने बड़े ऑपरेशन के संकट में आने से हवाई यात्रियों की एक बड़ी संख्या प्रभावित हुई है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
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एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्द्धन ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, “कुछ हद तक ये बात सही है कि एविएशन इंडस्ट्री में इंडिगो की मोनोपोली है- लगभग 65 प्रतिशत. लेकिन ये मोनोपोली एनडीए सरकार के ही समय में नहीं बनी है.”
उन्होंने कहा कि “आज जो कुछ हो रहा है, उसमें इस मोनोपोली का बहुत बड़ा हाथ है. इसकी वजह से पूरा देश लगभग बंधक बन गया है.”
“हमारे देश में एविएशन मार्केट काफ़ी बढ़ गया है और ऐसे में जिसके पास 65 प्रतिशत हिस्सेदारी है, अगर उस कंपनी में दिक्कत आएगी तो यह संकट पूरे मार्केट को बैठा ही देगा.”
उन्होंने कहा, “किसी भी तरह का यातायात, ख़ासकर हवाई यातायात किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में अहम भूमिका निभाता है. यह अर्थव्यवस्था की नसों में बहते ख़ून की तरह है.”
हर्षवर्द्धन ने इसके लिए सरकारी नीतियों को ज़िम्मेदार बताया और कहा कि इसके लिए ‘सिर्फ़ एनडीए को ही ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. यूपीए की सरकार भी उतनी ही ज़िम्मेदार रही है.’
ये मोनोपोली कैसे पैदा हुई?
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हर्षवर्द्धन के अनुसार, “समय के साथ इंडिगो बाइ डिफ़ॉल्ट मोनोपोली पोज़िशन में आ गई है. जिस समय कंपनी की शुरुआत हुई थी, बाज़ार में और भी एयरलाइंस थीं और काफ़ी प्रतिस्पर्द्धा थी, जैसे- जेट एयरवेज़, किंगफ़िशर, गो एयर आदि. धीरे धीरे एक एक करके ये एयरलाइंस बंद होती गईं.”
स्पाइस जेट भी एक तरह से लड़खड़ाती हुई चल रही है.
उन्होंने कहा, “लेकिन इसी दौरान इंडिगो अपना विस्तार करती रही और किराए की दरों का ऐसा टिकाऊ ढांचा विकसित किया जिसका मुक़ाबला बाक़ी ऑपरेटर्स नहीं कर सके. इसके अलावा एयरलाइंस के संचालन में लागत भी बढ़ती रही. लागत को लेकर जो हमारा ढांचा है, उसमें भी बाक़ी एयरलाइंस टिक नहीं पाईं.”
“ये देखा जा सकता है कि जब भी तेल के दाम बढ़ते हैं तो सरकार कॉस्ट बढ़ा देती है. लेकिन जब तेल के दाम कम हुए तब भी सरकार टैक्स लगा देती है. रुपये का अवमूल्यन (डेप्रिसिएशन) भी लगातार होता रहा. ऑपरेटर्स को ऐसे में किराए को बढ़ाने का मार्जिन मिलता नहीं है.”

एयरलाइन के परिचालन में 60 प्रतिशत पेमेंट विदेशी मुद्रा में होने को भी एक्सपर्ट लागत बढ़ोतरी का एक कारण मानते हैं, क्योंकि रुपये के लगातार अवमूल्यन (डेप्रिसिएशन) से यह बोझ बढ़ता जा रहा है.
इन हालात में बाकी एयरलाइंस टिक नहीं सकीं और इंडिगो की मोनोपोली हो गई.
हालांकि इंडिगो का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है, ख़ासकर बाज़ार आधारित किराए की दरों के चलते. क्योंकि वहां वे किराया बहुत अधिक नहीं बढ़ा सकते, इससे हवाई यात्रा की मांग ख़त्म होने का डर था.
हर्षवर्द्धन कहते हैं, “सरकार एविएशन सेक्टर में किसी भी तरह के नए निवेश को आकर्षित करने में विफल रही है. पहले यूपीए सरकार के समय तक होता ये था कि एक ऑपरेटर बंद हुआ तो दूसरा आ जाता था. साल 2013 में इंडिगो की मार्केट हिस्सेदारी लगभग 32 प्रतिशत थी, जो अब 65 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है.”
मोनोपोली के क्या ख़तरे हैं?
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उड्डयन क्षेत्र में मोनोपोली को लेकर भारत में कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं.
हर्षवर्द्धन कहते हैं, “सरकार को मोनोपोली को लेकर सख़्त नियम बनाने चाहिए जहां कोई कंपनी एक सीमा तक ही जा सकती है. पहले मोनोपोली को रोकने के उपाय किए जाते थे. लेकिन अभी उन्हें खुली छूट मिल गई है. प्रतिस्पर्द्धा आयोग रस्मी कार्रवाई करता है लेकिन किसी ग़लत लाभ को रोकता नहीं है.”
उन्होंने कहा कि सरकार की नीति ही मोनोपोली के पक्ष में हो गई है और कई और सेक्टर हैं जहां ऐसा लगता है कि सरकार प्रायोजित मोनोपोलाइजे़शन हो रहा है, जैसे शिपिंग सेक्टर, एयरपोर्ट्स आदि.
उन्होंने कहा, “इससे लगता है कि सेक्टरों को मोनोपोलाइज़ करने के डिज़ाइन पर सरकार चल रही है. सरकार इस पर कोई रोक नहीं लगा रही. मान लिया जाए कि किसी कंपनी को 200 करोड़ रुपये के निवेश की छूट है उससे ऊपर के लिए विशेष अनुमति लेनी होगी. ऐसी स्थिति में मोनोपोली से बचा जा सकता है.”
उन्होंने सवाल किया कि ये कैसे हुआ कि एक अकेले ऑपरेटर को इतनी छूट दी गई कि आज उसका एकाधिकार सा हो गया है.
अभी स्थिति ये है कि ऑपरेटर चाहे जितना निवेश करना हो या विस्तार करना हो, कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि अब एकाधिकार का असर इसलिए व्यापक नहीं हो पाता क्योंकि यहां प्रतिस्पर्द्धात्मक किराये का बाज़ार आधारित ढांचा है.
दूसरे, बाज़ार का 65 प्रतिशत हिस्सा सस्ती हवाई सेवाएं हैं और इसमें बहुत रास्ता नहीं है.
मोनोपोली का सबसे बड़ा ख़तरा है कि अगर वो कंपनी बंद हुई तो पूरा सेक्टर ही बैठ जाएगा.
क्या उपाय हैं?
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भारत का एविएशन उद्योग सालाना 10 से 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, जो कि सभी मानते हैं कि यह दुनिया में सबसे तेज़ ग्रोथ है. उस हिसाब से नए निवेश को आकर्षित करना चाहिए.
मौजूदा हालात से बचने के लिए हर्षवर्द्धन ने कुछ सुझाव दिए.
हर्षवर्द्धन का कहना है कि मोनोपोलाइज़ेशन से बचने के दो रास्ते हैं.
वो कहते हैं, “पहला ये कि सरकार को अपना लागत ढांचा तर्कसंगत बनाना चाहिए. अभी बेइंतहां टैक्स है, एयरपोर्ट ऑपरेटर्स यात्रियों से तरह तरह के शुल्क ले रहे हैं. जीएसटी आदि के नाम पर भी तरह तरह के टैक्स हैं. इन सारी वजहों से इस सेक्टर पर नए निवेश नहीं आ पा रहे हैं.”
वो कहते हैं, “जब तक सरकार माहौल नहीं बनाएगी, नए निवेश नहीं आएंगे.”
उनकी दूसरी सलाह है, “बाज़ार हिस्सेदारी की सीमा तय की जानी चाहिए और 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए.”
मौजूदा संकट कैसे पैदा हुआ?
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बीते एक नवंबर से पायलटों के ड्यूटी मानक पूर्ण रूप से लागू होने के कारण इस मामले की शुरुआत हुई.
सरकार ने इसे एक साल के लिए टाल दिया था ताकि एयरलाइन अपने चालक दल की योजना बना सकें. एयरलाइन ने इसे लागू होने पर व्यापक उड़ान रद्द होने की चेतावनी दी थी.
लेकिन पायलट संगठनों ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख़ किया और अप्रैल 2025 में इसे लागू करने का आदेश मिला.
दिल्ली हाई कोर्ट के अप्रैल 2025 के आदेश के अनुसार, दो चरणों में इसे लागू किया जाना था. इसमें साप्ताहिक आराम के घंटे 36 से बढ़ाकर 48 घंटे करने सहित कई प्रावधान एक जुलाई से लागू कर दिए गए थे.
वहीं रात के समय पायलटों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले बाक़ी प्रावधान एक नवंबर से लागू होने थे.
द हिन्दू के मुताबिक़, ”इन्हीं अंतिम प्रावधानों के लागू होने के बाद से एयरलाइंस पायलटों की कमी से जूझ रही हैं. पायलटों से अपनी छुट्टियाँ रद्द करने का अनुरोध कर रही हैं. लेकिन पिछले कई वर्षों से चल रहे असंतोष के कारण पायलट सहयोग करने के मूड में नहीं हैं.”
”डीजीसीए मानकों के तहत 13 घंटे की ड्यूटी अवधि से ज़्यादा काम करना, 7,000 करोड़ के मुनाफ़े के बावजूद वेतन वृद्धि न होना और एयरलाइन द्वारा नए पायलट ड्यूटी मानदंडों की व्याख्या अपने हित में मोड़ने को लेकर पायलट नाराज़ हैं.”
सरकार की ओर से विमान किरायों पर कैप लगाने के बाद इंडिगो ने शनिवार को कहा कि वह ऑपरेशन सामान्य बनाने के लिए काम कर रहा है.
एयरलाइंस ने कहा है कि कैंसलेशन अब 850 से कम तक आ गई हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.