ईरान में कई रूढ़िवादी समूह अपना धैर्य खो रहे हैं. इसकी वजह इसराइल का लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ठिकानों को निशाना बनाना और उस पर ईरान की तरफ़ से कोई पर्याप्त कदम न उठाना है.
हिज़्बुल्लाह को ईरान का क़रीबी माना जाता है. इन दोनों का साथ पुराना है.
जब ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र की महासभा को संबोधित किया, तो उन्होंने इसराइल की ग़ज़ा में जंग शुरू करने को लेकर आलोचना की और चेतावनी दी कि लेबनान में किए जा रहे हमलों का जवाब ज़रूर दिया जाएगा.
मगर जुलाई में चुनकर आए राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान ने इस मामले पर जो रवैया अख़्तियार किया है वो रूढ़िवादी नेताओं के रवैये के मुकाबले मेल-मिलाप वाला दिख रहा है.
क्योंकि पेज़ेश्कियान ने इस्लामिक गणतंत्र के दुश्मन को ख़त्म कर देने वाली बात को हाल-फिलहाल के लिए टाल दिया है.
उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी के लिए शांति चाहते हैं. हम किसी भी देश के साथ विवाद नहीं चाहते हैं.’’
उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार पश्चिमी ताकतों के साथ परमाणु मामले में बातचीत को फिर शुरू करने के लिए तैयार है.
उन्होंने कहा, ‘‘हम साल 2015 परमाणु संधि के सहयोगियों के साथ जुड़ने के लिए तैयार हैं.’’
इसी तरह, जब इसराइल के ईरान और उसके क़रीबी सहयोगियों हमास और हिज़्बुल्लाह पर हमला करने को लेकर जवाब देने की बात आई, तो इस पर अन्य वरिष्ठ ईरानी अधिकारियों और इस्लामिक रिवॉल्यूशन गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कमांडरों ने भी संयमित रवैया दिखाया.
ईरान इन दोनों समूहों को हथियार और फंड मुहैया करवाता है. ईरान, इसराइल पर कोई भी बड़ा हमला करने के लिए हिज़्बुल्लाह पर निर्भर है.
लेबनान में हिज़्बुल्लाह के सबसे ताकतवर समूह के तौर पर उभर कर आने में ईरान का सहयोग अहम है. 1980 में इस समूह की स्थापना करने के लिए इस्लामिक रिवॉल्यूशन गार्ड्स (आईआरजीसी) ने मदद की थी.
हिज़्बुल्लाह को हथियार भेजने वालों में आईआरजीसी की मुख्य भूमिका है. इन्हीं हथियारों को हिज़्बुल्लाह इसराइल के ख़िलाफ़ तैनात करता है. खासतौर पर एडवांस्ड मिसाइल और ड्रोन्स.
हाल ही में अमेरिका ने यह आरोप लगाया था कि ईरान हर साल 700 मिलियन डॉलर का फंड भी उपलब्ध करवाता है.
पिछले सप्ताह, मोजात्बा अमानी (लेबनान में ईरान के राजदूत) बेरूत में दूतावास में हुए पेजर धमाके में घायल हो गए थे. हिज़्बुल्लाह के सदस्य भी पेजर्स और वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल करते हैं.
ऐसे हज़ारों पेजर्स और वॉकी-टॉकी में दो हमलों के ज़रिए धमाके हुए थे. इसमें 39 लोग मारे गए थे. ईरान ने इस मामले में इसराइल पर आरोप तो लगाया था, लेकिन तुरंत जवाब देने की कोई धमकी नहीं दी थी.
इसके उलट जब इसराइल ने अप्रैल में सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास को निशाना बनाया था, तो इस्लामिक रिवॉल्यूशन गार्ड कोर के उच्च रैंक वाले आठ कमांडर मारे गए थे.
इसके बाद ईरान ने इसराइल के ख़िलाफ़ सैकड़ों ड्रोन और मिसाइल लॉन्च कर दी थी.
वहीं, जब जुलाई में हमास के नेता इस्माइल हानिया की तेहरान में मौत हो गई थी, तो ईरान ने इसका आरोप भी इसराइल पर लगाया.
इस घटनाक्रम का बदला लेने की कसम भी खाई थी. हालांकि, यह नहीं बताया गया कि था इसके बाद ईरान ने क्या किया.
एक भूतपूर्व आईआरजीसी कमांडर ने बीबीसी से कहा था कि बिना कोई कार्रवाई के इसराइल को लगातार धमकाना, ईरान और विदेश में रह रहे ईरानी सेना के समर्थकों के बीच ईरान की सेना की छवि और उसकी विश्वसनीयता को नुक़सान पहुंचा रहा है.
इससे पहले सोमवार को राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान ने अमेरिकी मीडिया के सदस्यों से न्यूयॉर्क में कहा था कि इसराइल, ईरान को जंग में खींचने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘ईरान, इसराइल के साथ तनाव ख़त्म करने के लिए तैयार है. यदि इसराइल हथियार डालता है तो ईरान भी ऐसा करने के लिए तैयार है.’’
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई के क़रीबी माने जाने वाले रूढ़िवादी नेताओं ने ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के इसराइल के साथ तनाव को ख़त्म करने के बयान की आलोचना की थी.
नेताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान को अपने पद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए और इस तरह के इंटरव्यू देने से बचना चाहिए.
राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान ने बुधवार को न्यूयॉर्क में एक प्रेसवार्ता आयोजित की थी, मगर बाद में ये रद्द कर दी गई.
यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि प्रेसवार्ता को रद्द करने की असल वजह क्या थी.
दरअसल, ईरान में पूरी ताकत अयातुल्लाह खामनेई और आईआरजीसी के हाथों में है. वे लोग ही मुख्य रणनीतिक फ़ैसले लेते हैं, न कि राष्ट्रपति.
गौरतलब है कि अयातुल्लाह खामनेई ने भी बुधवार को जब देश को संबोधित किया तो उन्होंने अपनी ओर से इसराइल को धमकाने या जवाब देने जैसी कोई बात नहीं कही. उनका ये रवैया भी सामान्य नहीं है.
बराक राविद अमेरिकी न्यूज़ साइट एक्सियोस पर इसराइल के पत्रकार हैं.
उन्होंने मंगलवार को एक रिपोर्ट में बताया था कि दो इसराइली अधिकारियों और पश्चिमी राजनयिकों ने यह संकेत दिया था कि हिज़्बुल्लाह ईरान से अपील कर रहा था कि इसराइल के हमलों का जवाब देने के लिए ईरान उसका साथ दे.
राविद के मुताबिक इसराइली अधिकारियों ने दावा किया कि ईरान ने हिज़्बुल्लाह से कहा, ‘‘यह सही समय नहीं है.’’
पिछले सप्ताह, ईरान के इंटरनेट टीवी प्रोग्राम ‘मैदान’ के होस्ट ने ईरान के ख़ुफिया विभाग के सूत्रों के हवाले से कहा था कि इसराइल ने पिछले महीने एक स्पेशल ऑपरेशन चलाया था.
इसका मक़सद आईआरजीसी सदस्यों को मारना और दस्तावेज़ों को चुराना था. इस होस्ट को आईआरजीसी का करीबी बताया जाता है.
उन्होंने बताया कि ईरानी प्रेस को इस घटना की रिपोर्ट करने से मना कर दिया गया था. कथित तौर पर यह घटना ईरान में हुई थी. और अधिकारी इस बात को दबाने में जुटे हुए थे.
आईआरजीसी से जुड़ी तस्नीम न्यूज़ एजेंसी ने इस तरह के आरोपों को नकार दिया था. दरअसल, ईरान फिलहाल खुद को अनिश्चितता की स्थिति में देख रहा है.
उसको इस बात की चिंता है कि इसराइल पर हमला अमेरिकी सेनाओं की प्रतिक्रिया को उकसा सकता है. इस कारण ईरान सरहद से जुड़े विवादों में पड़ सकता है.
अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था पंगु हो गई है. इस वजह से वहां अस्थिरता का माहौल है.
अगर अमेरिका आईआरजीसी को लेकर कोई कदम उठाता है, तो इससे ईरान और कमजोर पड़ सकता है. ईरान की सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है और ईरान के विरोधियों को फिर से खड़ा होने का मौका मिल सकता है.
हालांकि अगर ईरान हिज़्बुल्लाह और इसराइल के बीच जारी विवाद में सीधे हस्तक्षेप नहीं करता है, तो उस इलाक़े में अन्य चरमपंथी समूहों को यह संदेश जाने का ख़तरा है कि मुसीबत के समय ईरान उन समूहों की तुलना में खुद की प्राथमिकताओं को तवज्जों देगा.
इससे उस क्षेत्र में ईरान का प्रभाव कमजोर भी पड़ सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित