
महाराष्ट्र में पुणे ज़िले के एक सरकारी आदिवासी हॉस्टल की कई छात्राओं ने आरोप लगाया है कि छुट्टियों से लौटने पर, हॉस्टल में प्रवेश से पहले उनसे यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट (यूपीटी) कराया जाता है, जबकि सरकारी नियमों में ऐसी कोई शर्त नहीं है.
महाराष्ट्र की आदिवासी विकास आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहना है कि ऐसा कोई टेस्ट नहीं करवाया जाना चाहिए.
लेकिन प्रशासनिक दावों के बावजूद छात्राएं कहती हैं कि परीक्षण रोकने के निर्देश के बाद भी प्रक्रिया जारी है.
महाराष्ट्र के आदिवासी विकास विभाग की ओर से चल रहे सरकारी हॉस्टल में रहने वाली कॉलेज छात्रा स्नेहा (बदला हुआ नाम) ने बीबीसी न्यूज़ मराठी को बताया, “हमें टेस्ट क्यों करवाना पड़ता है? जब से मैं फर्स्ट ईयर में आई हूँ, मैडम कहती हैं कि अगर हम टेस्ट नहीं कराएंगे, तो हमें यहां हॉस्टल में रहने नहीं दिया जाएगा.”
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इस हॉस्टल की कई अन्य छात्राओं ने भी यही आरोप दोहराया.
आशा (बदला हुआ नाम) ने भी कहा, “हमारी शिकायत ये है कि सात-आठ दिन की छुट्टी से आने के बाद हमें यूपीटी टेस्ट देना पड़ता है. इसे बंद किया जाना चाहिए.”
उनके साथ मौजूद एक अन्य छात्रा रेखा (बदला हुआ नाम) ने कहा, “यूपीटी टेस्ट तब होता है जब लड़कियां घर में छुट्टियां बिताकर लौटती हैं. मुझे हॉस्टल में ही इसके बारे में बताया गया था.”
वह आगे कहती हैं, “वे यूपीटी टेस्ट किए बिना फ़िटनेस सर्टिफ़िकेट नहीं देते. इसकी एक प्रक्रिया है. वे प्रक्रिया का पालन करके ही सर्टिफ़िकेट देते हैं.”
इन छात्राओं का कहना है कि छुट्टियों के बाद उनसे फ़िटनेस सर्टिफ़िकेट मांगा जाता है और फिर प्रेग्नेंसी टेस्ट कराना पड़ता है.
मामला क्या है?

सरकारी नियमों के अनुसार हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट कराना ज़रूरी नहीं है. संबंधित अधिकारियों ने भी यह साफ़ कर दिया है.
स्नेहा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “हमें एक प्रेग्नेंसी किट लेनी होती है. उससे टेस्ट करवाना होता है. अगर टेस्ट नेगेटिव आता है, तभी हॉस्टल में रहने की अनुमति मिलती है.”
अगर छात्राएं यूपीटी टेस्ट न करें और बाक़ी टेस्ट करके मेडिकल पूरा कर लें, तो क्या होगा?
इस बारे में बात करते हुए एक अन्य छात्रा आशा (बदला हुआ नाम) ने कहा, “वे कहते हैं कि यूपीटी टेस्ट अनिवार्य है. अगर आप ऐसा नहीं करेंगी, तो वे आपको छात्रावास में प्रवेश नहीं करने देते.”
आशा ने भी 24 नवंबर को यह टेस्ट करवाया था.
वह बताती हैं, “मुझे मेडिकल टेस्ट के लिये फ़ॉर्म मिला. इसके बाद प्रेग्नेंसी किट मिली. किट के साथ सरकारी अस्पताल जाना होता है. अस्पताल में उस पर लिख देते हैं कि मुझे यूपीटी करवाना है. वहां से आपको दूसरे डॉक्टर के पास जाना होता है. आपको शौचालय से पेशाब लेकर उनके सामने किट में डालना होता है. अगर रिपोर्ट नेगेटिव आती है, तो वे उसे लिख लेते हैं. फिर हमें मैडम के हस्ताक्षर और मुहर के साथ फ़ॉर्म कॉलेज में जमा करवाना होता है.”
मानसिक तनाव
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छात्राओं ने इस सारी प्रक्रिया को बेहद ‘शर्मनाक’ बताया है.
स्नेहा (बदला हुआ नाम) ने कहा, “हमने यह मुद्दा उठाया है. लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं हुआ है.”
एक अन्य छात्रा ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उसने कई बार प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया है. बीबीसी मराठी को छात्राओं ने बताया कि सभी लड़कियों को ये टेस्ट करवाना पड़ता है.
आशा (बदला हुआ नाम) ने कहा कि इस स्थिति का असर न केवल लड़कियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है, बल्कि वे मानसिक तनाव से भी गुज़र रही हैं.
वह आगे कहती हैं, “यूपीटी टेस्ट बंद होना चाहिए. लोग हमें शक की निगाहों से देखते हैं. लोगों को लगता है कि ‘जब हम शादीशुदा नहीं हैं, तो यह टेस्ट क्यों करवा रहे हैं?’
आश्रम स्कूल की छात्राओं का भी यही अनुभव
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पुणे ज़िले के एक आश्रम स्कूल से भी यही शिकायत मिली है.
महाराष्ट्र के पहाड़ी और दूरदराज़ इलाक़ों में रहने वाले लोगों की सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के लिए आश्रम स्कूल चलाए जाते हैं.
महाराष्ट्र का आदिवासी विकास विभाग 552 सरकारी आश्रम स्कूल चलाता है. इनमें से 412 सरकारी आश्रम स्कूल आदिवासी उप-योजना क्षेत्र में और 140 आदिवासी उप-योजना क्षेत्र से बाहर हैं.
इसके अलावा, राज्य में कई स्तरों पर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्टूडेंट्स के लिए सरकारी हॉस्टल चलाए जाते हैं. ये हॉस्टल भी आदिवासी विकास विभाग के तहत आते हैं.
एक अभिभावक ने यह भी पुष्टि की कि पुणे ज़िले में ही एक आश्रम स्कूल में भी छात्राओं को गर्भावस्था परीक्षण कराना अनिवार्य है. संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का दौरा करने के बाद वहां के एक डॉक्टर ने भी इस बारे में जानकारी दी है.
इस आश्रम स्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा की माँ ने बताया, “सिर्फ़ मासिक धर्म वाली लड़कियों को ही मेडिकल करवाना पड़ता है. मेडिकल में किट का इस्तेमाल होता है. किट के ज़रिए पेशाब की जांच होती है. फिर अगर वह पॉज़िटिव है या नेगेटिव, तो फ़ॉर्म पर वे उसी हिसाब से लिख देते हैं.”
माँ ने बताया, “कुछ सरकारी ज़िम्मेदारी भी होनी चाहिए. हर लड़की को ये टेस्ट करवाने के लिए 150-200 रुपये का ख़र्च करने पड़ते हैं. हर बार माता-पिता को इसका ख़र्च उठाना पड़ता है.”
इस संबंध में जानकारी लेने के लिए हम संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गए.
एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “आश्रम स्कूल के निर्देशानुसार, वे यूपीटी परीक्षण किट लाती हैं. हमारे पास भी यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट के लिए किट उपलब्ध हैं. यह हमारे रजिस्टर में भी दर्ज है और आश्रम स्कूल के फ़ॉर्म पर भी इसका उल्लेख है. इस आश्रम स्कूल में 12वीं कक्षा तक की लड़कियाँ हैं. “
जब उनसे पूछा गया कि गर्भावस्था परीक्षण के दौरान छात्राओं के साथ कौन होता है, तो उन्होंने कहा, “कभी-कभी माता-पिता होते हैं. कभी-कभी दादा-दादी होते हैं. कई बार लड़कियां अकेली आती हैं.”
परीक्षण रोकने की मांग
छात्र संगठन ‘स्टूडेंट फे़डरेशन ऑफ इंडिया’ ने इस टेस्ट को रोकने की मांग की है और प्रशासन को एक बयान भी सौंपा है.
एसएफआई की पुणे ज़िला अध्यक्ष संस्कृति गोडे ने कहा, “जब हम यूपीटी टेस्ट के लिए जाते हैं, तो हमें वहां लोगों का सामना करना पड़ता है. वहां के डॉक्टर भी इसे जिस तरह से देखते हैं, वह मानसिक यातना है.”
वो कहती हैं, “हमने बार-बार इस बात का विरोध किया है. लड़कियों का यूपीटी टेस्ट करवाना उन्हें मानसिक यातना देने जैसा है. हमारी मांग है कि यूपीटी टेस्ट फौरन बंद किया जाए.”
राज्य महिला आयोग की भूमिका
इसी साल सितंबर में, पुणे के एक हॉस्टल में गर्भावस्था परीक्षण किए जाने की बात सामने आई थी. राज्य महिला आयोग ने इस पर संज्ञान लिया और इसे रोकने का निर्देश दिया.
बीबीसी मराठी से बात करते हुए राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रुपाली चाकनकर ने कहा, “मुझे एक ट्वीट के ज़रिए शिकायत मिली थी. उन्होंने कहा था कि आदिवासी लड़कियों के लिए एक सरकारी छात्रावास है, जहां यूपीटी टेस्ट कराया जाता है.”
रुपाली कहती हैं, “यह मेरे लिए बहुत चौंकाने वाला था. मैंने बिना कोई जानकारी दिए वाकड स्थित हॉस्टल का अचानक दौरा किया. लड़कियों को एक तरफ़ ले जाकर उनसे बात करने पर पता चला कि कुछ लड़कियों को यूपीटी टेस्ट देना पड़ा था.”
उन्होंने कहा, “क़ानून में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है. पढ़ाई के दौरान लड़कियों का यह टेस्ट कराना उनके आत्मविश्वास को नष्ट करने जैसा है.”
“साथ ही, सर्कुलर में क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. ऐसा कोई नियम नहीं है कि एडमिशन के समय यह टेस्ट लिया जाए. हमने नोटिस जारी कर दिया है कि संबंधित विभाग के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.”
आदिवासी और स्वास्थ्य विभाग ने क्या कहा?
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आदिवासी विकास आयुक्तालय ने 30 सितंबर को इस संबंध में एक पत्र जारी किया.
इसमें यह निर्देश दिया गया कि सरकारी छात्रावासों में स्वास्थ्य जांच के दौरान लड़कियों पर गर्भावस्था परीक्षण के लिए दबाव नहीं डाला जाना चाहिए.
इस संबंध में परियोजना अधिकारी प्रदीप देसाई ने स्पष्ट किया कि “हम किसी भी लड़की को यूपीटी परीक्षण लिए नहीं कह रहे हैं, इस संबंध में हमारे पास कोई पत्राचार नहीं हुआ है.”
लेकिन इन दावों के बावजूद कई लड़कियों ने बीबीसी मराठी को बताया कि उन्हें अक्तूबर और नवंबर में प्रेग्नेंसी टेस्ट कराना पड़ा था.
इस बारे में आदिवासी विकास आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहा, “आदिवासी विकास विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए. कहीं भी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. “
पुणे ज़िला सिविल सर्जन डॉक्टर नागनाथ येमपल्ले ने कहा, “यूपीटी टेस्ट चार महीने पहले से बंद कर दिया गया है. पहले, जब लड़कियां घर से हॉस्टल लौटती थीं तो उनसे यह टेस्ट कराने को कहा जाता था.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.