यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के मामले में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को मिली मौत की सज़ा फ़िलहाल स्थगित कर दी गई है. उन्हें 16 जुलाई को सज़ा दी जानी थी, लेकिन इसे अंतिम समय पर टाल दिया गया और फ़िलहाल इसकी नई तारीख़ के बारे में कुछ नहीं बताया गया है.
इस घोषणा से निमिषा प्रिया की मां प्रेमा कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ के सदस्यों को बड़ी राहत मिली है.
ये लोग निमिषा प्रिया को मौत की सज़ा से बचाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. साथ ही, वे महदी परिवार से माफ़ी हासिल करने के प्रयास में लगे हैं, क्योंकि निमिषा को मिली मौत की सज़ा को केवल स्थगित किया गया है, उसे पलटा नहीं गया है.
बीबीसी तमिल ने उन लोगों से बात की जिन्होंने निमिषा को बचाने की मुहिम में शुरुआत से लेकर अब तक अहम भूमिका निभाई है.
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सैमुअल जेरोम
तमिलनाडु के मूल निवासी सैमुअल जेरोम कई साल से अपने परिवार के साथ यमन में रह रहे हैं. यमन में एक निजी कंपनी में एविएशन कंसल्टेंट के तौर पर काम करने वाले जेरोम ही निमिषा प्रिया मामले को मीडिया की सुर्ख़ियों में लाए थे.
यमन में निमिषा के परिवार की ओर से केस लड़ने का पावर ऑफ़ अटॉर्नी उनके पास है.
बीबीसी तमिल से बात करते हुए सैमुअल जेरोम ने कहा, “साल 2017 में महदी की हत्या के बाद, निमिषा के पासपोर्ट की फ़ोटो और महदी के शव की तस्वीर व्हाट्सऐप पर प्रसारित होने लगी. यमन में निमिषा की मदद करने के संदेह में कुछ भारतीयों को गिरफ्तार भी किया गया था.”
उन्होंने कहा, “मैं उस समय पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में था. यमन के सना पहुँचने के बाद, मैंने निमिषा मामले की जाँच शुरू की.”
जब साल 2017 में निमिषा प्रिया को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब यमन में भारतीय दूतावास गृहयुद्ध के कारण चालू नहीं था.
सैमुअल कहते हैं, “निमिषा की गिरफ़्तारी के बाद, एक यमनी कार्यकर्ता ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि अगर आप इस मामले में भारत सरकार से संपर्क नहीं करेंगे, तो निमिषा को निष्पक्ष इंसाफ़ नहीं मिलेगा. इसके बाद मैंने तत्कालीन भारतीय विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह से संपर्क किया और मदद मांगी.”
सैमुअल कहते हैं, “इसके बाद, वीके सिंह ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती स्थित भारतीय दूतावास के माध्यम से यमन को एक पत्र (नोट) भेजा. हमने इसे लिया और हूती विदेश मंत्रालय को सौंप दिया. इसके बाद ही निमिषा के मामले में उचित न्यायिक जाँच हुई.”
निमिषा के परिवार ने सैमुअल को यमन के शरिया क़ानून के अनुसार महदी के परिवार के साथ क्षमादान के लिए बातचीत करने के लिए अधिकृत किया है.
सैमुअल कहते हैं, “मैंने निमिषा से पहली बार साल 2018 में बात की थी. न सिर्फ़ उनका पक्ष जानने के इरादे से बात की, बल्कि मैंने यह भी चाहा कि किसी भारतीय की जान किसी विदेशी मुल्क में न जाए. उन्होंने मुझे 14 पन्नों की चिट्ठी लिखी जिसमें पूरी घटना का ब्योरा था. मैंने उसी के आधार पर मीडिया से बात की.”
सैमुअल ने निमिषा की मौत की सज़ा को आख़िरी समय में बिना कोई तारीख़ दिए ही टाल दिए जाने का ज़िक्र करते हुए कहा कि महदी परिवार के साथ बातचीत के लिए और समय दिया गया है.
उन्होंने कहा, “हमें महदी के परिवार के तर्क को भी समझना होगा. इसमें कोई शक नहीं कि निमिषा को सज़ा हो चुकी है. लेकिन हम सिर्फ़ इसलिए कोशिश कर रहे हैं क्योंकि शरिया क़ानून में एक रास्ता है. लेकिन वे (महदी परिवार) अभी भी क्षमादान देने में रुचि नहीं रखते. पर हम बातचीत जारी रखे हुए हैं.”
निमिषा की मां प्रेमा कुमारी, जो पिछले वर्ष अप्रैल में भारत सरकार से विशेष अनुमति लेकर यमन गई थीं, सैमुअल जेरोम के परिवार के साथ यमन में रह रही हैं.
‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की मुहिम
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वकील और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की उपाध्यक्ष दीपा जोसेफ़ कहती हैं, “साल 2019 में, मैंने एक अख़बार में इस मामले के बारे में पढ़ा. मैं इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकी.”
“मैंने सोचा कि एक ऐसे देश में फँसी भारतीय महिला के लिए कैसा होगा जहाँ गृहयुद्ध चल रहा है. मेरा मक़सद यह सुनिश्चित करना था कि उसे यमन में उचित क़ानूनी सहायता मिले,”
उन्होंने आगे कहा, “मैं साल 2020 में निमिषा के परिवार से मिली. निमिषा की माँ विधवा थीं. वह एर्नाकुलम में घरेलू काम किया करती थीं. उन्होंने पलक्कड़ में अपनी एकमात्र संपत्ति बेचकर यमन की जेल में बंद अपनी बेटी के क़ानूनी ख़र्चों के लिए पैसे भेजे. उनके ठोस इरादे को देखते हुए, निमिषा की मदद के लिए अक्तूबर 2020 में सेव निमिषा प्रिया काउंसिल का गठन किया गया.”
‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ ने निमिषा को बचाने के लिए दान के ज़रिए धन जुटाया है. इसी संगठन की मदद से निमिषा की माँ प्रेमा कुमारी ने भारत सरकार से विशेष अनुमति हासिल की और अप्रैल 2024 में यमन चली गईं.
उसी साल संगठन ने महदी परिवार के साथ बातचीत की व्यवस्था करने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा नियुक्त यमनी वकील के खाते में दो किस्तों में चालीस हज़ार डॉलर का भुगतान किया.
सेव निमिषा प्रिया काउंसिल के सदस्य बाबू जॉन कहते हैं, “हम महदी परिवार को उसके लिए 8.5 करोड़ रुपये (क़रीब 10 लाख अमेरिकी डॉलर) तक की ‘ब्लड मनी’ देने को तैयार हैं. लेकिन महदी परिवार ने ब्लड मनी के संबंध में कोई शर्त नहीं रखी है. उनकी निमिषा को माफ़ करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.”
बाबू जॉन, जो साल 2002 से 2015 तक यमन में एक कच्चे तेल की कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करते थे और अब केरल में रहते हैं, कहते हैं कि वह निमिषा के अपराध को सही नहीं ठहरा रहे हैं.
“हम मारे गए तलाल को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन पलक्कड़ के एक छोटे से गाँव की रहने वाली निमिषा अपने परिवार को ग़रीबी से उबारने के लिए यमन गई थी. उसने वहाँ एक ‘क्लीनिक’ शुरू करने के लिए कई लाख का कर्ज़ लिया था.”
बाबू जॉन कहते हैं, “ऐसे हालात में तो वह महदी को मारने के इरादे से ऐसा नहीं करती. हम निमिषा की माँ और उसकी बेटी का दर्द समझते हैं. इसलिए हम हर संभव कोशिश कर रहे हैं.”
केरल के पलक्कड़ के एक रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ के सदस्य मूसा कहते हैं, “मैंने कुछ साल के लिए अबू धाबी में शिक्षक के रूप में काम किया है. मैं जानता हूँ कि यमन जैसे देश में, जहाँ कोई राजनीतिक स्थिरता नहीं है, हत्या के मामले में फँसना कैसा होता है. इसलिए हमने काउंसिल के माध्यम से निमिषा को ज़रूरी मदद की है.”
‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की ओर से 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें भारत सरकार को कॉन्सुलर कार्रवाई के ज़रिए निमिषा प्रिया को छुड़ाने का आदेश देने की मांग की गई थी.
इसे दायर करने वाले वकील सुभाष चंद्रन भी निमिषा को बचाने के अभियान में जुड़े हुए हैं.
सुभाष चंद्रन कहते हैं, “यमनी न्यायपालिका निमिषा को क्षमादान पाने का अवसर दे रही है. इसलिए हम इसकी कोशिश कर रहे हैं. निमिषा पहले ही कई साल जेल में बिता चुकी है.”
शेख़ अब्दुल मलिक अल नेहाया और अब्दुल्ला आमिर
यमन में कई आदिवासी समूह हैं जिनका यमनी राजनीति पर गहरा प्रभाव है. दरअसल, तलाल अब्दो महदी ‘अल-ओसाब’ नामक आदिवासी समूह से ताल्लुक रखते हैं.
निमिषा प्रिया के मामले में, महदी के परिवार से माफ़ी पाना आसान नहीं है, क्योंकि न तो निमिषा का परिवार और न ही सैमुअल जेरोम उनसे सीधे बात कर सकते हैं. यह काम कुछ आदिवासी नेताओं के ज़रिए ही हो सकता है.
सैमुअल जेरोम को महदी परिवार के साथ बातचीत में मदद करने वाले प्रमुख लोगों में से एक शेख़ अब्दुल मलिक अल-नेहाया हैं. वह अल-ओसाब समूह के शेख़ हैं. यमन में, ‘शेख़’ को एक जातीय समूह का नेता माना जाता है.
बीबीसी तमिल से बात करते हुए शेख़ अब्दुल मलिक अल-नेहाया ने कहा, “मैं महदी की हत्या के पहले से ही निमिषा और महदी को जानता था. वे दोनों मिलकर एक क्लीनिक चलाते थे, जिसे शुरू करने में मैंने मदद की थी. मैं उन दोनों परिवारों को भी जानता था.”
उन्होंने कहा, “मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता कि निमिषा ने यह हत्या क्यों और कैसे की. उसे अदालत ने सज़ा सुना दी है. अब सैमुअल जेरोम शरिया क़ानून के मुताबिक़ माफ़ी पाने की कोशिश कर रहा है. मैं जो कर सकता हूँ, कर रहा हूँ.”
अब्दुल मलिक ने यह भी कहा, “साल 2023 में एक बार मैंने जेल में निमिषा से बात की और उसने पूछा कि क्या ‘महदी’ परिवार उसे माफ़ कर देगा, तो मैंने कहा कि मैं अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूँ.”
इसी तरह, अब्दुल्ला आमिर एक यमनी वकील हैं जिन्हें भारत सरकार ने साल 2020 में निमिषा का केस लड़ने के लिए नियुक्त किया था. वह भी एक यमनी जनजाति से हैं.
महदी हत्याकांड में यमन की राजधानी सना की एक स्थानीय अदालत ने साल 2020 में निमिषा को मौत की सज़ा सुनाई थी. इसके बाद ही अब्दुल्ला आमिर को इस मामले में नियुक्त किया गया था.
उन्होंने सना की अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ यमन के सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की. हालाँकि नवंबर 2023 में यह अपील ख़ारिज कर दी गई और मौत की सज़ा बरक़रार रखी गई.
अब्दुल्ला आमिर ने यह सुनिश्चित किया कि निमिषा को ‘माफ़ी’ का अवसर मिले.
वह महदी परिवार के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
2018 में सैमुअल के माध्यम से निमिषा का मामला मीडिया की सुर्ख़ियों में आने के बाद, वकील केएल बालचंद्रन केरल एनआरआई आयोग के समक्ष निमिषा की ओर से पेश हुए और उनके मामले के बारे में बताया.
बालचंद्रन ने कहा, “इस मामले की शुरुआत में निमिषा को यमन में उचित क़ानूनी सहायता नहीं मिली, नतीजतन, वह अपना पक्ष पेश नहीं कर पाई. उसने उन सभी दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर कर दिए जो उसे दिखाए गए थे, जबकि वह वहाँ की भाषा नहीं जानती थी.”
निमिषा को क्यों सुनाई गई है सज़ा
केरल के पलक्कड़ की रहने वाली निमिषा प्रिया साल 2008 में एक नर्स के रूप में काम करने के लिए यमन गई थीं.
वहां कई अस्पतालों में काम करने के बाद वह साल 2011 में केरल वापस आईं और टॉमी थॉमस से उनकी शादी हुई. दोनों की एक बेटी है, जो इस समय केरल में रहती है.
साल 2015 में निमिषा ने यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक मेडिकल क्लीनिक की शुरुआत की थी.
साल 2017 में महदी का शव एक वॉटर टैंक में पाया गया.
इसके एक महीने बाद निमिषा को यमन-सऊदी अरब की सीमा से गिरफ़्तार किया गया.
निमिषा पर आरोप लगे कि उन्होंने नींद की दवा की अधिक डोज़ देकर महदी की हत्या की और उनके शव को छिपाने की कोशिश की.
निमिषा के वकील ने दलील दी कि महदी ने निमिषा का शारीरिक उत्पीड़न किया था. उन्होंने उनसे सारी रक़म छीन ली थी, उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया था और बंदूक़ से उन्हें धमकाया था.
तलाल अब्दो महदी के भाई अब्देल फ़तेह ने बीबीसी से इन दावों का खंडन किया.
साल 2020 में, सना की एक अदालत ने निमिषा को मौत की सज़ा सुनाई. 2023 में यमन के सर्वोच्च न्यायालय ने इस सज़ा को बरक़रार रखा. निमिषा प्रिया फ़िलहाल सना केंद्रीय कारागार में बंद हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित