
पटना के राजेंद्र नगर में मोइनुल हक़ स्टेडियम की दीवार से लगी कई झुग्गियां हैं. हेमवती देवी कोयले के चूल्हे पर चाय की केतली चढ़ाकर बार-बार फूंक मार रही हैं.
चूल्हा जलने लगता है तो वह अपनी कुर्सी पर संतोष के भाव के साथ बैठ जाती हैं. इनके पति की मौत हो गई है और चारों बच्चे भी इनके साथ नहीं रहते हैं. चाय बेचकर अपनी जीविका चलाती हैं.
हेमवती देवी से पूछा कि चाय बेचने से इतनी कमाई हो जाती है कि अपना सारा खर्च निकाल सकें? जवाब में वह कहती हैं, ”हर महीने 1100 वृद्धा पेंशन भी मिलती है. सरकार से हर महीने चावल और गेहूँ भी मुफ़्त में मिलता है. इसलिए खाने-पीने की दिक़्क़त नहीं है.”
हेमवती देवी इस बार के चुनाव में भी नीतीश कुमार से संतोष जताती हैं. जनसुराज और प्रशांत किशोर के बारे में पूछने पर हेमवती कहती हैं कि वह नहीं जानती हैं.
हेमवती की झुग्गी के ठीक सामने विश्वनाथ पासवान रिक्शेवालों के लिए खाना बेचते हैं. शाम का वक़्त है और विश्वनाथ रोटी बनाने के लिए आटा गूंथ रहे हैं. उनकी बहू सीमा सब्ज़ी बना रही हैं.

‘विधायक का चेहरा तक नहीं देखा’
विश्वनाथ पासवान नीतीश कुमार से ख़फ़ा हैं.
वह कहते हैं, ”जब शराबबंदी नहीं थी तो हर दिन 20 रुपए में मेरा काम हो जाता था. अब उसी एक गिलास के लिए हर दिन 60 रुपए ख़र्च करने पड़ रहे हैं. मैं ये नहीं कहूंगा कि नीतीश कुमार ने काम नहीं किया है लेकिन कुछ ऐसे काम किए हैं, जो फालतू के हैं. कभी शराबबंदी तो कभी नोटबंदी. चिराग पासवान मेरी जाति के हैं लेकिन लेकिन मुझे इससे कोई मतलब नहीं है. बिहार के लिए लालू जी ही ठीक हैं.”
विश्वनाथ पासवान याद करते हुए बताते हैं, ”लालू यादव मुख्यमंत्री थे तो हमलोग बस्तियों में आते थे. मेरे बच्चे सड़क पर गंदगी में बैठे रहते थे तो लालू जी ने एक दिन बुलाकर कहा, बच्चों को नहाया करो और साफ़ कपड़े पहनाया करो. अब तो मुख्यमंत्री बहुत दूर की बात बात है, हमने तो पिछले 20 सालों से अपने विधायक का भी चेहरा नहीं देखा.”
हेमवती देवी और विश्वनाथ पासवान कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के वोटर हैं. यह सीट गणित के चर्चित प्रोफ़ेसर कृष्ण चंद्र सिन्हा यानी केसी सिन्हा के उम्मीदवार बनने दिलचस्प हो गई है.
साल 2005 तक यह सीट पटना सेंट्रल नाम से जानी जाती थी और 2008 में परिसीमन के बाद इसका नाम बदलकर कुम्हरार कर दिया गया था.

कुम्हरार बीजेपी का क़िला
पटना सेंट्रल से सुशील कुमार मोदी 1990, 1995 और फिर 2000 में विधायक बने थे. इसके बाद फ़रवरी 2005 और अक्तूबर 2005 में बीजेपी से अरुण कुमार सिन्हा चुनाव जीते.
साल 2008 में कुम्हरार सीट बनने के बाद भी अरुण कुमार सिन्हा ही चुनाव जीतते रहे. इस बार बीजेपी ने सिन्हा के बदले संजय गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है. जनसुराज पार्टी से केसी सिन्हा मैदान में हैं और महगठबंधन से कांग्रेस को यह सीट मिली है.
इस सीट पर सवर्ण मतदाता ज़्यादा हैं. सवर्णों में कायस्थ ज़्यादा हैं. अरुण कुमार सिन्हा कायस्थ ही थे लेकिन बीजेपी ने इस बार बनिया जाति से ताल्लुक रखने वाले संजय गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है.
कहा जाता है कि यह ऐसी सीट है, जहाँ से बीजेपी जिसे भी खड़ा कर दे, वो जीत जाएगा. नब्बे के दशक में लालू यादव की लोकप्रियता जब उफान पर थी, तब भी इस सीट से बीजेपी को ही जीत मिलती थी.
क्या केसी सिन्हा बीजेपी के दबदबे को तोड़ पाएंगे? क्या केसी सिन्हा राजनीति के गणित की पहेली सुलझा पाएंगे?
केसी सिन्हा को बिहार की कई पीढ़ियां जानती हैं. गणित की किताबें हों या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए एक्सरसाइज़ बुक्स, केसी सिन्हा बिहार के हर घर में किसी ना किसी रूप में मौजूद रहे हैं. एक अच्छे टीचर के तौर पर केसी सिन्हा बिहार में काफ़ी प्रतिष्ठित हैं.

केसी सिन्हा का कितना प्रभाव
संजय सिंह नब्बे के दशक में हिन्दुस्तान टाइम्स में पटना में पॉलिटिकल रिपोर्टर थे.
सिंह कहते हैं, ”प्रशांत किशोर भले कहते हैं कि वह जाति नहीं मुद्दो की राजनीति कर रहे हैं लेकिन केसी सिन्हा को कायस्थ होने के कारण ही जनसुराज ने यहां से टिकट दिया है. मेरा मानना है कि उन्हें कायस्थों का कुछ वोट भले मिल जाएगा लेकिन बीजेपी को इस सीट से हराना टेढ़ी खीर है.”
संजय सिंह कहते हैं, ”नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद से यह सीट बीजेपी के लिए और मुफीद हो गई है. क्योंकि सवर्णों के अलावा नीतीश के कारण कुर्मी भी बीजेपी के वोटर हो गए हैं. ज़ाहिर है कि मतदान केवल जाति के आधार पर नहीं होता है लेकिन बिहार में पार्टियों का वोट बैंक अब भी उसी पहचान से जकड़ा हुआ है.”
”मुझे इस बार जनसुराज पार्टी की भूमिका 2020 में चिराग पासवान की एलजेपी की तरह दिख रही है. लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूंगा कि प्रशांत इसी तरह से मेहनत करते रहे तो ज़रूर बिहार में विकल्प बनकर उभरेंगे क्योंकि नीतीश की जगह ख़ाली हो रही है.”
केसी सिन्हा से बीबीसी हिन्दी ने पूछा कि क्या उन्हें प्रशांत किशोर ने कायस्थ होने के कारण कुम्हरार से उम्मीदवार बनाया है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ”मैं ऐसा नहीं मानता हूँ. मैं इसी विधानसभा क्षेत्र का वोटर हूँ. यहीं मेरा जीवन बीता है. यह सच्चाई है कि कुम्हरार में कायस्थ अच्छी ख़ासी संख्या में हैं और मैं भी उसी जाति से ताल्लुक रखता हूँ.”
केसी सिन्हा बिहार की कई यूनिवर्सिटी में वीसी भी रहे हैं. ऐसे में इलाक़े के नौजवान भी उन्हें बख़ूबी जानते हैं. पटना यूनिवर्सिटी का सैदपुर होस्टल इसी विधानसभा क्षेत्र में हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की जो तस्वीर है, सैदपुर होस्टल उससे अलग नहीं दिखता है. गेट से प्रवेश करते ही, होस्टल में गंदगी का अंबार दिखता है.

केसी सिन्हा को लेकर कितना उत्साह
अभिषेक कुमार पटना यूनिर्वसिटी से एमबीए कर रहे हैं और इसी होस्टल में रहते हैं. अभिषेक कहते हैं कि इस होस्टल के वार्डेन बीएन कॉलेज में इंग्लिश के प्रोफ़ेसर डीएन सिन्हा हैं लेकिन आज तक यहाँ कभी नहीं आए.
अभिषेक केसी सिन्हा के राजनीति में आने से बहुत आश्वस्त नहीं दिखते हैं.
वह कहते हैं, ”देखिए केसी सिन्हा सिस्टम सुधारने के लिए नहीं जाने जाते हैं. 2023 में पटना यूनिवर्सिटी के वीसी थे लेकिन मुझे एक काम नहीं याद आ रहा है कि उन्होंने ऐसा किया, जिससे पटना यूनिवर्सिटी की सेहत सुधरी हो. इसके अलावा वह बिहार की कई यूनिवर्सिटी में वीसी रहे लेकिन सेशन तक रेग्युलर नहीं करा पाए. ऐसे में मैं उनसे क्यों उम्मीद करूं कि विधायक बनने के बाद सिस्टम ठीक कर देंगे?”
अभिषेक कुमार कहते हैं, ”बिहार मुझे एक होपलेस स्टेट लगने लगा है. एक उदाहरण से इसे समझिए. एमबीए में हमलोग के फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा इस साल जनवरी में हुई थी. अभी तक रिजल्ट नहीं आया और अब दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा हो गई. पहले सेमेस्टर में जो पास करता है, वही दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा देता है लेकिन यहां कुछ भी चल रहा है.”
केसी सिन्हा से यही सवाल पूछा कि वह वीसी रहते यूनिवर्सिटी को बहुत नहीं बदल बदल पाए तो विधायक बनने के बाद ऐसा क्या कर लेंगे? इसके जवाब में वह कहते हैं, ”वीसी की एक सीमा होती है. वह बहुत बदलाव नहीं कर सकता है.”

बीजेपी की रणनीति
संजय गुप्ता को कुम्हरार से बीजेपी के उम्मीदवार बनाने के पीछे की रणनीति क्या है?
संजय सिंह कहते हैं, ”कायस्थों से जुड़ा एक वाक़या मैं बताता हूँ. 1995 में लालू के घर के बाहर टिकट मांगने के लिए लाइन लगी थी. तब मैं हिन्दुस्तान टाइम्स में सीनियर रिपोर्टर था. मैं वहीं था. अभी जेडीयू के सीनियर नेता हैं और वह भी टिकट के लिए लाइन में लगे थे.”
”लालू के पास पहुँचने के बाद उन्होंने कहा कि कायस्थों को भी टिकट मिलना चाहिए. इस पर लालू ने कहा- मतदान के दिन तो सब कायस्थ छुट्टी ले लेते हैं और नॉन वेज बनाकर खाते हैं. तुमलोग वोट करने तो निकलते नहीं हो. देखो महामाया प्रसाद कायस्थ थे और उनको यादवों ने मुख्यमंत्री बनाया. अब तुमलोग की बारी है कि यादव को मुख्यमंत्री बनाओ.”
संजय सिंह कहते हैं, ”इस वाक़ये का ज़िक्र मैं इसलिए कर रहा हूँ कि इस सीट पर 35 प्रतिशत से ज़्यादा टर्नआउट कभी-कभार ही हुआ है.” कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में कुल चार लाख 31 हज़ार मतदाता हैं.
कुम्हरार सीट पर पहले चरण में छह नवंबर को मतदान है. केसी सिन्हा बीजेपी के किले में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह आसान लक्ष्य नहीं है.
केसी सिन्हा के बेटे अनुराग सिन्हा कहते हैं, ”हम कोशिश करके देख रहे हैं. बिहार के लिए हमारा भी एक सपना है. निजी तौर पर देखिए तो हमारे परिवार के लिए ज़िंदगी बहुत मुश्किल नहीं है. हम किसी भी शहर में अच्छे से रह सकते हैं लेकिन बिहार को लेकर हमारा एक इमोशन है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित