राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा विधेयकों की मंजूरी पर समय सीमा तय करने के मामले में भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी जिसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई भी शामिल हैं। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर राय मांगी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विधेयकों की मंजूरी के बारे में समय सीमा तय करने के मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार 22 जुलाई को सुनवाई करेगा। राष्ट्रपति का रिफरेंस सुप्रीम कोर्ट की जारी मंगलवार की सुनवाई सूची में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा है।
नियम के मुताबिक राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ही सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को देती है। जो पीठ मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगी उसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा तथा जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं।
14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी
सुप्रीम कोर्ट ने गत आठ अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में दिए फैसले में राज्य के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसी संबंध में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत प्राप्त शक्तियों में सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेज कर राय मांगी है। राष्ट्रपति ने भेजे गए रिफरेंस में कुल 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है।
रिफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए समय सीमा लगाई जा सकती है। इतना ही नहीं न्यायिक आदेश के जरिए विधेयक को कानून घोषित करने पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी मिले बगैर लागू होगा।
संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंध
- राष्ट्रपति के रिफरेंस में लगभग सभी सवाल संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं जो राज्य विधानमंडल से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बारे में हैं। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब राज्यपाल के समक्ष अनुच्च्छेद 200 के तहत कोई विधेयक मंजूरी के लिए पेश किया जाता है तो उनके पास क्या क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं। क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए पेश किये गए विधेयकों में संविधान के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह और सहायता से बंधें हैं।
- क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग करना न्यायोचित है। यह भी पूछा है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 361, राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत किये गए कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। यानी कि क्या राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 में विधेयकों की मंजूरी के संबंध में किये गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर अनुच्छेद 361 पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
समय सीमा तय किए जाने पर पूछे सवाल
राष्ट्रपति ने रिफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 में कार्य करने के लिए प्रक्रिया और समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए शक्तियों के इस्तेमाल के तरीके और समय सीमा तय की जा सकती है। यह भी पूछा है कि जब राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रख लिया हो या अन्यथा, तो क्या राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली योजना के आलोक में राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए।
क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने के पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति न्यायालयों को है। क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में राष्ट्रपति और राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी तरह प्रस्स्थापित (सब्टीट्यूट) किया जा सकता है।