जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और गठबंधनों की जीत हार तय हो गई है। लेकिन यह चुनाव आयोग की सफलता के रूप में भी गिना जाएगा। एसआइआर को विपक्षी दलों ने राजनीतिक लड़ाई का मुद्दा बना दिया था।
जबकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में मिली सफलता के बाद मतदान में भी यह साबित कर दिया कि सबकुछ दुरुस्त है और सुधार के कदम बढ़ रहे हैं। इस बार चुनाव में बिहार में अब तक का सबसे ज्यादा मतदान हुआ और उससे भी बडी सफलता यह रही है कि एक भी बूथ पर पुर्नमतदान की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यानी किसी भी स्तर पर संशय ही नहीं पैदा हुआ।
चुनाव आयोग की बड़ी सफलता
यह कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग बहुत सजग और सक्रिय था। बिहार चुनाव के दौरान आयोग ने इस बार सामान्य पर्यवेक्षकों के साथ बड़ी संख्या में पुलिस पर्यवेक्षकों की भी तैनाती दी थी। जो कानून- व्यवस्था पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए थे।
बिहार में 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भी दो-दो बूथों पर,वहीं वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 96 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान हुआ था। इसके साथ ही बिहार चुनाव में इस बार रिकार्ड 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ था, जिसमें इस बार सर्वाधिक 71.78 प्रतिशत महिलाओं और 62.98 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया है। 2020 में बिहार में 58 प्रतिशत मतदान हुआ था।
रिकॉर्ड मतदान, पुनर्मतदान नहीं
बिहार चुनाव को सफलतापूर्वक कराने के लिए चुनाव आयोग को कड़े संघर्ष का भी करना पडा। खासकर जैसे बिहार में एसआइआर कराने का ऐलान हुआ, तुरंत विपक्षी दलों ने आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आयोग पर वोट चोरी जैसे गंभीर आरोप भी लगाए।
लेकिन इन आरोपों व निजी हमलों के बाद भी आयोग अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटा। उनसे विपक्ष के आरोपों को न सिर्फ जवाब दिया बल्कि एसआइआर के दौरान उन्हें किसी तरह की गड़बडि़यों पर दावे-आपत्तियां दर्ज कराने का मौका दिया।
मतदाता सूची का शुद्धीकरण
छुटपुट आपत्तियों को छोड़ दें तो एसआइआर पर विपक्ष कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं खोज पाया था। गौरतलब है कि बिहार में एसआइआर के दौरान मतदाता सूची से आयोग ने करीब 22 लाख मृत मतदाताओं, 36 लाख स्थाई रूप से स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं का हटाकर शुद्धीकरण किया।