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बीते महीने उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा की एक अदालत से 2015 में हुई मोहम्मद अख़लाक़ हत्याकांड के सभी अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केस को वापस लेने की अनुमति माँगी है.
इस पर अख़लाक़ के परिवार ने कहा है कि वह कोर्ट में अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.
जब यह घटना हुई, उस वक्त मोहम्मद अख़लाक़ की उम्र 50 साल थी. 28 सितंबर की रात को दादरी के बिसाहड़ा गाँव में यह अफ़वाह फैली थी कि अख़लाक़ ने अपने घर में गोमांस रखा है और इसे खाया था.
अख़लाक़ का परिवार इस बात का खंडन करते आ रहा है कि उनके घर पर गोमांस था.
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भारत में गाय का वध एक संवेदनशील मुद्दा है. हिंदू समुदाय गाय को पवित्र मानता है. उत्तर प्रदेश उन 20 राज्यों में से है जहां गायों के वध पर प्रतिबंध लागू है.
राजधानी दिल्ली से 49 किलोमीटर दूर हुई इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. यह गो-हिंसा का पहला ऐसा मामला था जिस पर व्यापक रिपोर्टिंग हुई थी. इस मामले के बाद ‘मॉब लिंचिंग’ शब्द व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा.
18 अभियुक्त और सभी ज़मानत पर
अख़लाक़ के परिवार के वकील मोहम्मद यूसुफ़ सैफ़ी ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा कि इस मामले में फ़िलहाल 18 अभियुक्त हैं और सभी ज़मानत पर हैं.
घटना के 10 साल बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में एक आवेदन पत्र डाला है, जिसमें उन्होंने कहा है कि इस मामले में गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और ‘सामाजिक सद्भाव की बहाली’ के लिए सरकार ने कोर्ट से केस को वापस लेने की अनुमति माँगी है.
इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होनी है.
अख़लाक़ के छोटे भाई जान मोहम्मद ने बीबीसी हिंदी को कहा कि केस वापस लेने के लिए आवेदन पत्र डालना एक ‘चौंकाने’ वाली बात है.
उन्होंने कहा, “हमने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि इंसाफ़ के लिए हमारी 10 साल की लड़ाई को इस तरह से ख़त्म करने की कोशिश की जाएगी.”
साथ ही उन्होंने कहा कि घटना के बाद अख़लाक़ का पूरा परिवार गाँव छोड़कर चल गया था और उसके बाद कभी वापस नहीं लौटा.
उन्होंने कहा, “अब हमें अपनी सुरक्षा की और भी ज़्यादा चिंता है. क्या इस क़दम से अपराधियों का प्रोत्साहन नहीं बढ़ेगा?”
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मामला क्या था?
अख़लाक़ की पत्नी इकरामन ने पुलिस से अपनी शिकायत में कहा था, “28 सितंबर, 2015 की रात घर पर उनका पूरा परिवार सो रहा था. क़रीब 10.30 बजे हिंदुओं का एक गुट लाठी, लोहे के रॉड, तलवार और तमंचा लिए उनके घर में घुस गया और उन पर गाय का वध और उसका मांस खाने का आरोप लगाकर अख़लाक़ और उनके बेटे को पीटने लगा. इस घटना में अख़लाक़ की मौत हो गई, और उनके 22 वर्षीय बेटे दानिश को गंभीर चोटें आईं.”
परिवार का कहना है कि बाद में उन्हें पता चला कि हमले से पहले एक मंदिर से यह घोषणा की गई थी कि किसी ने गाय को मारा और खाया है.
अख़लाक़ के फ़्रिज में कुछ मांस पाया गया था, जिसे इस बात का सबूत बताया गया कि उनके घर में गोमांस था. हालांकि, उनके परिवार का कहना है कि वह भेड़ का मांस था.
इस मामले ने देशभर में आक्रोश पैदा किया. घटना के कुछ दिन बाद ही कुछ लोगों की गिरफ़्तारियाँ हुईं. कई लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह कहते हुए आलोचना कि उन्होंने अख़लाक़ की मौत के कई दिन बाद इस घटना पर टिप्पणी की.
वहीं भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं पर भी आरोप लगे कि वे इस घटना से जुड़े हमलावरों का बचाव कर रहे हैं. एक नेता ने इस हत्या को ‘दुर्घटना’ बताया था, वहीं दूसरे ने कहा था कि गोमांस खाना अस्वीकार्य है.
दिसंबर 2015 में पुलिस ने अपनी चार्जशीट दायर की, जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इसमें एक नाबालिग और एक स्थानीय बीजेपी नेता के बेटे के नाम शामिल थे. बाद में इस मामले में अभियुक्तों की संख्या कुल 19 हुई.
2016 में एक अभियुक्त रवीन सिसोदिया की मौत जेल में हो गई थी. इनकी मौत के बाद भी बिसाहड़ा गाँव में बहुत तनाव था. कुछ लोगों ने उन्हें ‘शहीद’ बताया था और परिवार वालों ने उनका अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था.
सिसोदिया के परिवार का कहना था कि उनकी मौत के पीछे कुछ साज़िश है, जबकि अधिकारियों का कहना था कि उनकी मौत ‘ऑर्गन फ़ेलियर’ के कारण हुई थी. उनका शरीर तिरंगा में लपेट कर गाँव में कुछ दिनों के लिए रखा गया था. बाद में राज्य सरकार और दो बीजेपी नेताओं ने मुआवज़े का वादा किया, तब जाकर उनके शव को दफ़नाया गया.
2021 में मामले में ट्रायल शुरू हुआ. मोहम्मद यूसुफ़ सैफ़ी का कहना है कि अब तक केवल एक गवाह का बयान कोर्ट के सामने पेश हुआ है.
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क्यों लिया जा रहा केस वापस?
पिछले महीने उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि अख़लाक़ के परिवार के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते. सरकार का कहना है कि अख़लाक़ की पत्नी ने अपनी शिकायत में 10 लोगों के नाम लिए थे, जबकि उनकी बेटी शाइस्ता ने 16 और बेटे दानिश ने 19 नाम लिए.
सरकार ने अपने आवेदन में लिखा, “उसी गाँव का निवासी होने के बाद भी वादी और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में अभियुक्तगणों की संख्या में बदलाव किया है.”
अख़लाक़ के परिवार के वकील मोहम्मद यूसुफ़ सैफ़ी ने कहा कि यह स्वाभाविक है कि घटना के समय हर गवाह सभी अभियुक्तों को न देख पाया हो.
उन्होंने बोला, “केवल ये देखने की बात है कि जितने नाम लिए गए हैं क्या उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत है या नहीं.”
आवेदन में यह भी कहा गया कि पुलिस ने अभियुक्तों से पाँच लाठियाँ, लोहे की रॉड और ईंटें बरामद कीं, लेकिन कोई तमंचा या तलवार नहीं मिली. अख़लाक़ की पत्नी ने अपनी शिकायत में तमंचे और तलवार का उल्लेख किया था.
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अख़लाक़ के परिवार के ख़िलाफ़ केस
इसके बाद यह भी कहा गया कि घटनास्थल से बरामद मांस को फोरेंसिक रिपोर्ट ने गोमांस बताया है. 2016 में अख़लाक़ के परिवार के ख़िलाफ़ गोवध क़ानून के तहत एक मामला दर्ज किया गया था, जो अब भी अदालत में लंबित है.
हालाँकि परिवार ने इन आरोपों का लगातार खंडन किया है. मोहम्मद यूसुफ़ सैफ़ी ने आरोप लगाया कि यह मामला परिवार पर ‘दबाव डालने’ के लिए दर्ज किया गया.
उन्होंने कहा कि स्थानीय पशु चिकित्सा की एक प्रारंभिक रिपोर्ट ने मांस को बकरी का बताया था, गाय का नहीं.
उन्होंने कहा कि अब अदालत पर निर्भर करता है कि वह सरकार द्वारा दिए गए आवेदन को स्वीकारती है या नहीं.
मोहम्मद यूसुफ़ सैफ़ी ने इस आवेदन पत्र पर भी अपनी हैरानी जताई. उन्होंने कहा, “क्या मॉब लिंचिंग जैसे गंभीर मामले में केस वापस होगा?”
अख़लाक़ का परिवार भी इस मामले में उम्मीद लगाए बैठा है. जान मोहम्मद ने कहा, “मुझे अब भी अदालत पर भरोसा है. मुझे यकीन है कि एक दिन न्याय मिलेगा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.