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दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर अजय राज शर्मा का लंबी बीमारी के बाद सोमवार, 10 फ़रवरी की रात निधन हो गया. 81 वर्ष के अजय राज शर्मा नोएडा के एक अस्पताल में भर्ती थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उनके परिवार के एक करीबी ने बताया कि अजय राज शर्मा फेफड़ों में संक्रमण से पीड़ित थे. उन्हें दो हफ्ते पहले नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था. अजय राज शर्मा के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं.
अजय राज शर्मा को श्रद्धांजलि देते हुए, बीएसएफ ने एक्स पर पोस्ट किया, “डीजी बीएसएफ और सभी रैंक श्री अजय राज शर्मा, आईपीएस, पूर्व डीजी बीएसएफ (2002-2004) के निधन पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं. उनका दूरदर्शी नेतृत्व और विरासत हमें प्रेरित करती रहती है. प्रहरी परिवार उनके परिवार के साथ है.”
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यूपी के कई संवेदनशील इलाकों में हुई तैनाती
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अजय राज शर्मा 1966 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. भारतीय पुलिस सेवा में उनकी यात्रा आगरा में शुरू हुई थी.
बरेली, वाराणसी, बांदा, फर्रुखाबाद, अलीगढ़, इलाहाबाद (अब प्रयागराज), मेरठ और लखनऊ जैसे ज़िलों में भी उनकी तैनाती हुई. इनमें से कुछ ज़िले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थे और कुछ सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील थे.
दिल्ली पुलिस के आयुक्त पद पर रहने के बाद उन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का महानिदेशक नियुक्त किया गया. इस पद से वे 2004 में सेवानिवृत्त हुए.
अपने करियर में अजय राज शर्मा ने कई हाई प्रोफाइल मामले निपटाए. उन्होंने कई ऐसे मामले संभाले, जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.
इन मामलों में यूपी के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन, गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर, लाल किले पर चरमपंथी हमले की जांच, क्रिकेट में मैच फिक्सिंग कांड की जांच और 2001 दिसंबर में हुए संसद हमले की जांच शामिल है.
खुद रखा था यूपी एसटीएफ बनाने का प्रस्ताव
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उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध का मुकाबला करने के लिए 1998 में अजय राज शर्मा के नेतृत्व में एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) का गठन हुआ था.
अजय राज शर्मा ने यूपी एसटीएफ के गठन की कहानी अपनी लिखी किताब ‘बाइटिंग द बुलेट्स – मेमॉएर्स ऑफ़ अ पुलिस ऑफ़िसर’ में बताई.
ये किताब साल 2020 में प्रकाशित हुई थी. इसमें उन्होंने अपने पुलिस जीवन में सुलझाए गए मामलों की कहानियाँ बयान कीं.
इस किताब की प्रस्तावना में अजय राज शर्मा ने लिखा, “मुझे याद है कि मैं लखनऊ में अतिरिक्त महानिदेशक (कानून व्यवस्था) का पद नहीं लेना चाहता था, लेकिन जब मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मुझे श्रीप्रकाश शुक्ला के खतरे के बारे में बताया और बताया कि कैसे उसने उनकी हत्या के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी ली है, तो मेरे पास ज़िम्मेदारी लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. नतीजतन, स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ का गठन हुआ.”
इसी किताब में अजय राज शर्मा ने लिखा कि वो एडीजी लॉ एंड ऑर्डर का चार्ज लेने के लिए तैयार हुए, लेकिन साथ ही उन्होंने कल्याण सिंह के सामने अपनी एक मांग रख दी.
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अजय राज शर्मा ने किताब में लिखा, “कल्याण सिंह ने मेरी बात ध्यान से सुनी. पिछले कई वर्षों में, अपनी कई पोस्टिंग के दौरान, मैंने डाकुओं को खत्म करने के अभियान के लिए बेहतरीन टीमें बनाने के लिए कड़ी मेहनत की थी. समय की मांग थी कि पुलिस कर्मियों का एक ऐसा विशिष्ट बल विकसित किया जाए, जिसमें अपराधियों और गिरोहों को पकड़ने की असाधारण क्षमता हो, जो दुर्दांत अपराधियों के साथ मुठभेड़ में अनुभवी हो, खुफिया जानकारी जुटाने में कुशल हो और उच्च निष्ठा वाला हो. अगर सीएम ने इसकी मंज़ूरी दे दी, तो ऐसा बल स्थापित करने का यह सही मौका है. मैंने सीएम से कहा कि शुक्ला जैसे गैंगस्टर के खिलाफ सफलता हासिल करने के लिए ऐसा बल जरूरी है. इस बल को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) कहा जाएगा.”
इस तरह यूपी एसटीएफ का गठन हुआ.
छह महीने के अंदर श्रीप्रकाश शुक्ला के गैंग का अंत
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यूपी एसटीएफ की टीम ने 22 सितंबर 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर किया था.
इस टीम का हिस्सा रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडे कहते हैं, “अजय राज शर्मा में लीडरशिप की अद्भुत क्षमता थी. अपने ऑपरेशन्स में हम लोग कभी फेल भी होते थे, तो वो हमेशा उसे भूलने के लिये कहते थे और नये सिरे से कोशिश करने के लिए कहते थे. यही कारण था कि श्रीप्रकाश के गैंग का अंत निर्धारित छह महीने के अंदर हो गया.”
राजेश पांडे बताते हैं कि अजय राज शर्मा किसी असफलता पर कभी मलाल नहीं करते थे और किसी भी सफलता पर जश्न नहीं मनाते थे. वो यही कहते थे कि ये तो पुलिस का काम है.
राजेश पांडे कहते हैं, “लखनऊ से ही अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस के कमिश्नर हुए और बाद में बीएसएफ के डीजी भी हुए. उनकी बनाई हुई एसटीएफ आज राज्य की सबसे सशक्त यूनिट के रूप में जानी जाती है.”
दिल्ली पुलिस का आयुक्त बनाए जाने की कहानी
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एक जुलाई 1999 को अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस के आयुक्त बने, लेकिन तब उनकी ये नियुक्ति अपने आप में एक अनूठी बात थी. वजह ये थी कि अजय राज शर्मा यूपी कैडर के थे, जबकि उस वक़्त दिल्ली पुलिस का आयुक्त एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिज़ोरम और यूनियन टेरिटरी) कैडर के अधिकारी को बनाए जाने का नियम था.
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार नीरज राजपूत कहते हैं, “अजय राज शर्मा दिल्ली के पहले ऐसे पुलिस कमिश्नर थे, जो एजीएमयूटी कैडर के नहीं थे. एजीएमयूटी कैडर यानी अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम और यूनियन टैरिटरी कैडर. दिल्ली में एजीएमयूटी कैडर के अधिकारी ही नियुक्त होते थे. लेकिन अजय राज शर्मा यूपी कैडर के थे. यूपी में रहते हुए उनकी जो कार्यशैली थी, उससे तब की केंद्र सरकार काफी प्रभावित थी क्योंकि अजय राज शर्मा ने यूपी में संगठित अपराध को काफी नियंत्रित किया था.”
दिल्ली में अपनी पोस्टिंग को लेकर अजय राज शर्मा खुद भी हैरान हुए थे.
इसके बारे में उन्होंने अपनी किताब में लिखा, “20 जून 1999 को मुझे एक फोन आया था. मैं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) मुख्यालय में अपने दफ़्तर में बैठा था, जब मुझे भारत सरकार के गृह सचिव का फ़ोन आया. उन्होंने मुझे बताया कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में मेरी नियुक्ति के आदेश जारी किए जा रहे हैं. मैं हैरान रह गया. मुझे सीमा सुरक्षा बल में अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में शामिल हुए बमुश्किल छह महीने ही हुए थे. साथ ही, अन्य राज्य कैडर के अधिकारियों को बहुत कम ही दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता था.”
नीरज राजपूत बताते हैं कि उस वक्त ब्यूरोक्रेटिक सर्कल में भी इस बात को लेकर काफी हलचल थी कि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर की नियुक्ति दूसरे कैडर से कैसे हो सकती है.
वो कहते हैं कि हालांकि, उस वक्त के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, जो तब उप प्रधानमंत्री भी थे, वो चाहते थे कि अजय राज शर्मा दिल्ली आएं और यहां की कानून व्यवस्था संभालें.
वहीं दूसरी ओर उनके दिल्ली पुलिस का आयुक्त बनने से पहले के कुछ महीनों में, जेसिका लाल, इरफान हुसैन और शिवानी भटनागर जैसी हत्याओं के कुछ सनसनीखेज मामले दिल्ली में घटित हुए थे, जिससे दिल्ली पुलिस की काफी बदनामी हुई थी.
नीरज राजपूत कहते हैं, “अजय राज शर्मा के सामने दोहरी चुनौती थी. पहली चुनौती ये थी कि वो दिल्ली की कानून व्यवस्था संभालें, उसे दुरुस्त करें. दूसरा उन्हें ये भी देखना था कि दूसरे कैडर का होने के नाते किसी तरह का असंतोष न हो जाए क्योंकि दिल्ली पुलिस के अधिकारी एजीएमयूटी कैडर के थे. हालांकि, अजय राज शर्मा ने अपना काम बखूबी किया. सभी अधिकारियों ने भी उनकी बहुत मदद की.”
अजय राज शर्मा ने एक जुलाई 2002 तक दिल्ली पुलिस में तीन साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद वो बीएसएफ के डीजी बने और 31 दिसंबर 2004 को सेवानिवृत्त हुए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित