वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने की उम्मीद के मक़सद से दुनियाभर के नेता संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाली बड़ी बैठक में आने को तैयार हैं. तापमान में वृद्धि के कारण स्पेन में हाल में आई बाढ़ अधिक जानलेवा हो गई.
अज़रबैजान में होने वाली कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (सीओपी29) का मुख्य उद्देश्य सहमति बनाना है कि गरीब देशों के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गैस को निकलने से रोकने के लिए कैसे अधिक पैसे प्राप्त किए जाएं. ऐसा इसलिए ताकि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से होने वाले नुकसान से निपटने में मदद हो.
लेकिन अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं. ट्रंप को उस शख्स के तौर पर जाना जाता है जो कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को संदेह की नज़र से देखते हैं. वहीं दूसरी ओर युद्ध और जीवनयापन से जुड़े मुद्दे ध्यान भटकाने वाले साबित हो रहे हैं. सीओपी29 में कई बड़े नेता हिस्सा नहीं ले रहे हैं.
सीओपी29 की मेज़बानी करने वाला अज़रबैजान मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले में जांच के दायरे में है. अज़रबैजान पर साथ ही आरोप लग रहा है कि वो इस बैठक (सीओपी29) का इस्तेमाल जीवाश्म ईंधन से जुड़ी डील के लिए कर रहा है.
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सीओपी29 क्या है?
सीओपी29 बैठक जलवायु परिवर्तन मुद्दे को लेकर सबसे अहम बैठक में से एक है. अज़रबैजान की राजधानी बाकू में इसकी बैठक 11 नवंबर से 22 नवंबर तक होगी.
सीओपी की फुल फॉर्म ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़’ है. इसमें वो देश शामिल हैं जिन्होंने ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन’ संधि पर हस्ताक्षर किए हैं.
इस पर 1992 में क़रीब 200 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. सीओपी में शामिल देशों के प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीकों को लेकर बातचीत करने के लिए हर साल बैठक करते हैं.
सीओपी29 में कौन शामिल होगा और कौन नहीं?
सीओपी की बैठक में सामान्य तौर पर देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जाते हैं, लेकिन इस बार कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले और कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों के प्रमुख सीओपी29 में शामिल नहीं होंगे.
सीओपी29 में शिरकत नहीं करने वाले नेताओं में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों शामिल हैं.
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ शॉल्त्स भी इसमें हिस्सा नहीं लेंगे.
ये नेता कई कारणों से बैठक से दूर रहेंगे. जो नेता सीओपी29 में भाग लेंगे उनके ज़ेहन में भी मध्य पूर्व में संघर्ष और यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग रहेगी.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थॉमस हेल ने कहा कि बैठक में आने वाले नेताओं के ज़ेहन में भी पहला मुद्दा जलवायु परिवर्तन नहीं होगा.
एक बात ये भी है कि अज़रबैजान के पास इतनी राजनयिक या वित्तीय ताकत नहीं है कि वो सीओपी29 में हुए समझौते को सुरक्षित कर सके. कई देशों के प्रमुखों को ये भी लग रहा है कि ब्राजील में होने वाले सीओपी30 बैठक में प्रमुख काम होगा.
सीओपी29 में क्या चर्चा होगी?
इस साल की बैठक का मुख्य सवाल पैसा है. साल 2015 में हुए पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. ऐसे करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना होगा और इसके लिए देशों को अपनी कोशिश में तेज़ी लाने की ज़रूरत है.
पेरिस समझौते के तहत कई देशों ने 2025 तक विकासशील देशों के लिए एक नया नकदी लक्ष्य तय करना था. इसका इस्तेमाल उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देश की कार्बन उत्सर्जन घटाने में मदद करने के लिए करना था.
नए आर्थिक लक्ष्य पर सहमति अमीर और गरीब देशों के बीच विश्वास कायम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा जाता है, लेकिन इसका अब तक ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है.
अफ्रीकी और द्वीपीय देशों की मांग है कि 2030 तक जलवायु के लिए पैसा 1 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए. वहीं खाड़ी देशों और चीन को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इस कारण इन्हें योगदान में छूट दी जाती है.
इसको लेकर यूरोपीय संघ और अन्य संपन्न देशों का कहना है कि पैसे बढ़ाने हैं तो इसे बदलना होगा.
किसी देश की अपने यहां जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने के लिए बनाई गई योजनाएं भी एक पेचीदा मामला हो सकता है. इन्हें पांच साल में अपनी योजना अपडेट करनी होगी (अगली समयसीमा फरवरी है.)
कई देश सीओपी की बैठक में अपनी रणनीति साझा करेंगे, लेकिन वो अगर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान नहीं बढ़ने को रोकने को लेकर असमर्थ हैं तो इससे जलवायु परिवर्तन से लड़ने वाले महत्वपूर्ण देशों में परेशानी पैदा हो सकती है.
पिछली बैठक में जीवाश्म ईंधन को लेकर हुए समझौते अभी वैसे बने हुए हैं. इस साल हुए जी20 में ऐसे संकेत मिले थे कि कई देश कोयला, गैस और तेल को लेकर किए गए अपने वादे से पीछे हटना चाहते हैं.
पर्यावरण को लेकर होने वाली बैठक कैसे असफल होती है इसको लिए आपको ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है. दो हफ्ते पहले ही कोलंबिया में हुई चर्चा इसलिए सफल नहीं हो पाई कि इसके मुख्य मकसद को लेकर कई देश सहमत नहीं हुए.
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सीओपी29 अज़रबैजान में होना विवादित क्यों है?
अज़रबैजान की अगले दशक तक गैस उत्पादन को एक तिहाई तक बढ़ाने की बड़ी योजना है. ऐसे में कुछ पर्यवेक्षकों को चिंता है.
बीबीसी की कई रिपोर्ट में सामने आया है कि अज़रबैजान के अधिकारी सीओपी29 का इस्तेमाल अपने तेल और गैस कंपनी में निवेश बढ़ाने के लिए कर रहे हैं.
खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले इस देश में होने वाले इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को आयोजित करने को लेकर भी कई आपत्तियां हैं.
डोनाल्ड ट्रंप की जीत सीओपी29 पर कैसे असर डालेगी?
डोनाल्ड ट्रंप की जीत से भी कई चिंताएं सामने आई है. ट्रंप कई बार ग्रीन एनर्जी यानी हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास को ‘धोखा’ बता चुके है. ट्रंप की जीत कई जलवायु विशेषज्ञ झटके के तौर पर देख रहे हैं.
ट्रंप वैसे सीओपी29 में नहीं होंगे, लेकिन बाइडन का प्रशासन जो भी मुद्दे पर ज़ोर देगा वो नए प्रशासन यानी ट्रंप के नेतृत्व वाले प्रशासन के लिए बाध्य नहीं होगा.
इस साल में दुनिया में क्या रहा?
अमेरिका में तूफान ‘हेलेन’ और ‘मिल्टन’ ने गर्मियों में दस्तक दी. इसके अलावा स्पेन में आई बाढ़ ने क़रीब 200 लोगों की जान ले ली.
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के प्रोफ़ेसर जोएरी रोगेल्ज ने कहा, “जलवायु परिवर्तन साझा समस्या है. इसमें हर साल देरी का मतलब है कि अतिरक्त ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना. अब समय आ गया है कि इसको लेकर काम किए जाए.”
क्या असर होगा?
थोड़े समय के लिए सीओपी किसी देश को अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है. जैसे कि ग्रीन पॉवर को बढ़ावा देना.
यह अमीर देशों को गरीब देशों के लिए बड़ी रकम का भुगतान करने के लिए भी प्रतिबद्ध कर सकता है.
ब्रिटेन में फिलहाल कर दाताओं के पैसे के मुक़ाबले प्राइवेट वित्तीय संस्थानों से महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद की जा रही है.
लंबे समय के लिए देखा जाए तो सुरक्षित और स्वच्छ दुनिया का निर्माण हर किसी के लिए करना है ताकि जलवायु परिवर्तन की सबसे खराब स्थिति को रोका जा सके.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित