गौतम अदानी पर अमेरिका में लगे आरोपों का असर भारत से लेकर कीनिया तक में स्पष्ट दिखा.
कीनिया ने गुरुवार को अचानक अदानी समूह से नैरोबी एयरपोर्ट के विस्तार और ऊर्जा सेक्टर के क़रार को रद्द करने का फ़ैसला किया.
अदानी समूह के प्रोजेक्ट को लेकर नैरोबी में काफ़ी विवाद था.
अगर कीनिया में अदानी समूह को एयरपोर्ट विस्तार की डील मिल जाती तो उन्हें 30 साल के लिए नैरोबी एयरपोर्ट के संचालन की ज़िम्मेदारी मिलती.
नैरोबी एयरपोर्ट के वर्कर अदानी के साथ इस डील का विरोध कर रहे थे. इन्हें डर था कि एयरपोर्ट के संचालन का काम अदानी को मिलेगा तो उनकी नौकरी ख़तरे में पड़ सकती है.
कीनिया के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने गुरुवार को अदानी से क़रार रद्द करने की घोषणा की तो कई तरह के सवाल उठने लगे.
कीनिया में एयरपोर्ट के वर्कर के साथ वहाँ का विपक्ष भी अदानी से क़रार को लेकर राष्ट्रपति विलियम रुटो को निशाने पर ले रहा था.
कीनिया के एक्टिविस्ट नेता मोरारो केबासो ने इसी साल 31 अगस्त को अपने एक्स अकाउंट पर लिखा था, ”भ्रष्ट भारतीय आख़िरकार यहाँ आ ही गए. मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि ये सब हो रहा है. हमारे राष्ट्रपति जो कीनिया से बहुत मोहब्बत करते हैं, उन्होंने 30 साल के लिए एयरपोर्ट अदानी को दे दिया है. अदानी सुन लीजिए अगर 2027 में हम राष्ट्रपति चुने गए तो आपको यहाँ से भागना होगा. हम भ्रष्टाचार से नफ़रत करते हैं, इसलिए आपसे भी नफ़रत करते हैं.”
क़रार रद्द होने के बाद भी सवाल
कीनिया के राष्ट्रपति ने भले अदानी से क़रार रद्द करने की घोषणा की है लेकिन वहाँ के मीडिया में कई और सवाल पूछे जा रहे हैं.
कीनिया के मशहूर अंग्रेज़ी अख़बार नेशन ने लिखा है कि अदानी के साथ कीनिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी 79 करोड़ डॉलर की डील की है लेकिन राष्ट्रपति ने इस पर चुप्पी साध रखी है.
गुरुवार को कीनिया के कुछ नेताओं ने वहाँ के स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ अदानी की डील को लेकर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया. कीनिया के सीम से सांसद डॉ जेम्स नैकल जो कि वहाँ की संसद में हेल्थ कमेटी के सदस्य भी हैं, उन्होंने कहा कि सरकार अदानी के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय से हुई डील पर चुप है.
हालांकि कीनिया के मीडिया में अदानी से क़रार रद्द करने को राष्ट्रपति विलियम रुटो का मजबूरी में लिया गया साहसिक फ़ैसला बताया जा रहा है.
अदानी एनर्जी सॉल्युशन ने अक्तूबर में लगभग 74 करोड़ डॉलर की डील कीनिया इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी से की थी.
इसके तहत अदानी समूह को चार ट्रांसमिशन लाइन और दो सबस्टेशन बनाने थे. इसके एवज में अदानी समूह को 30 साल के संचालन की ज़िम्मेदारी मिलती.
इसके अलावा अदानी समूह एक और डील फ़ाइनल करने के क़रीब था. यह डील कीनिया एयरपोर्ट अथॉरिटी के साथ एक अरब 82 करोड़ डॉलर की थी.
इसके तहत अदानी समूह को जोमो केन्याटा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विस्तार करना था. कहा जा रहा है कि कीनिया ने भले क़रार रद्द करने की घोषणा की है लेकिन उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंकि यह डील फाइनल थी और इसे तोड़ने का मतलब क़ानूनी अनुबंधों का पालन नहीं करना होगा.
भारत के लिए झटका
कीनिया के इस फ़ैसले को कई लोग भारत के लिए झटके के रूप में देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि अदानी का विदेशों में पाँव जमाना भारत के वैश्विक उभार से सीधा जुड़ा है.
दक्षिण एशिया में भारत को चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है. चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड में भूटान को छोड़कर भारत के सारे पड़ोसी देश शामिल हैं.
अंतरराष्ट्रीय मामलों का जानकार कांति बाजपेयी भी तर्क देते रहे हैं कि चीन का सामना करने के लिए भारत को अदानी जैसे प्राइवेट फर्म की ज़रूरत है. अदानी के वैश्विक उभार को भारत के वैश्विक आर्थिक प्रभाव से जोड़ा जाता रहा है.
कीनिया के क़रार रद्द करने पर भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ”बांग्लादेश की तरह अमेरिका ने कीनिया में भारत के हितों को झटका दिया है. कीनिया ने अदानी से क़रार रद्द कर चौंकाया है. यह चीन के लिए है.”
कंवल सिब्बल कहना चाह रहे हैं कि बांग्लादेश में भारत की पसंद वाली शेख़ हसीना की सरकार थी और अमेरिका को यह रास नहीं आ रहा था. अमेरिका शेख़ हसीना को लगातार मानवाधिकार और लोकतंत्र को लेकर घेर रहा था.
अमेरिका पर शक
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस को बाइडन प्रशासन का पसंदीदा बताया जाता है लेकिन उनके आने से भारत की असहजता बढ़ी है.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर पोस्ट किया, ”अदानी और अन्य पर कथित रिश्वत का मामला भारत में हुआ है लेकिन इन पर आरोप अमेरिका में तय हो रहा है. अमेरिका चाहता है कि वो अपने क़ानून के हिसाब से कार्रवाई करे क्योंकि अदानी ने अमेरिकी निवेशकों से पैसे जुटाए थे. निज्जर और पन्नू केस की तरह मोदी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है.”
कंवल सिब्बल ने पूरे मामले को लेकर लिखा है, ”अदानी पर आरोप है कि वह कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों की सरकारों वाले राज्यों में रिश्वत के मामले में शामिल थे. रिश्वत का आरोप भारतीयों पर है न कि अमेरिकी नागरिकों पर. कथित भ्रष्टाचार भारत में हुआ है.”
”किसी भी तरह की जांच भारत में होना चाहिए. जो अमेरिका में प्रभावित हुए हैं, उन्हें भारत की न्यायिक व्यवस्था में आना चाहिए. यह मामला अमेरिका के न्यायिक अधिकार क्षेत्र का नहीं है. जब तक अमेरिका में कोई भारतीय अपराध नहीं करता है, तब तक उसे अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है. अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था का बहुत ही राजनीतिकरण हो चुका है.”
अदानी के प्रोजेक्ट को लेकर कीनिया के अलावा श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश में भी विवाद हो चुका है.
जून 2022 में श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के अध्यक्ष ने संसदीय समिति के सामने ये बयान दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देश में एक बिजली परियोजना अदानी समूह को दिलवाने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर ‘दबाव’ बनाया था.
सीईबी चेयरमैन एम.एम.सी फ़र्डिनांडो ने साल 2022 में 10 जून को सार्वजनिक उद्यमों पर संसद की समिति को बताया था कि मन्नार ज़िले में एक विंड पावर प्लांट का टेंडर भारत के अदानी समूह को दिया गया. उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर ये सौदा अदानी समूह को देने के लिए दबाव बनाया गया था.
फ़र्डिनांडो ने संसदीय समिति को बताया था कि राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने उन्हें कहा था कि ये टेंडर अदानी समूह को दिया गया है क्योंकि ऐसा करने के लिए भारत सरकार की ओर से दबाव है.
संसदीय समिति के सामने फ़र्डिनांडो ने कहा था, “राजपक्षे ने मुझे बताया था कि वो मोदी के दबाव में हैं.”
हालांकि अदानी समूह ने इन आरोपों को भी सिरे से ख़ारिज कर दिया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित