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“मैं जेल में था, लेकिन आप लगभग वहाँ पहुँच ही गए थे,” मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कैमरों के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मज़ाक में कहा.
यह एक जोखिमभरा मज़ाक था, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी बात संभाल ली, क्योंकि ट्रंप इस मज़ाक से ज़्यादा सहज नहीं दिख रहे थे. कहा जा सकता है कि ऐसा मज़ाक केवल एक अनुभवी और हालिया जीत से आत्मविश्वास से भरा एक नेता ही कर सकता है.
उन्होंने अभी-अभी ट्रंप के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत मलेशिया के अमेरिकी निर्यात पर टैरिफ़ 24 फ़ीसदी से घटाकर 19 फ़ीसदी कर दिया गया था.
हालाँकि समझौते से जुड़े कई अन्य विवरण अभी साफ़ नहीं हैं, लेकिन यह भरोसा कि टैरिफ़ आगे नहीं बढ़ेगा. अस्थिरता के माहौल में ये स्वागत भरा कदम है.
लेकिन सबसे अहम बात यह थी कि अनवर ने ट्रंप को उस क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में आने के लिए मना लिया था, जिसकी उपयोगिता पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति कुआलालंपुर में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की बैठक में केवल थाईलैंड और कंबोडिया के बीच अनवर द्वारा कराए गए ‘शांति समझौते’ की अध्यक्षता करने आए थे.
अनवर ने इस साल की शुरुआत में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच हुए खूनी सीमा संघर्ष के बाद नाज़ुक युद्धविराम में भी मध्यस्थ की भूमिका निभाई.
ट्रंप ने जंग नहीं रुकने की स्थिति में दोनों पक्षों पर शुल्क लगाने की धमकी दी थी.
कुछ लोगों ने इसे मलेशिया की कूटनीतिक जीत कहा, जबकि अन्य ने कहा कि अनवर बस सही समय पर सही जगह पर थे.
इस साल आसियान की अध्यक्षता मलेशिया के प्रधानमंत्री के पास थी.
लेकिन अनवर के बारे में कहना होगा कि उन्होंने अपनी बारी के लिए 25 साल इंतज़ार किया. एक लंबा अशांत दौर जिसमें उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा.
सत्ता तक का तूफ़ानी सफ़र
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अनवर ने पहली बार एक करिश्माई और जोशीले छात्र नेता के रूप में बनाया में नाम कमाया.
उन्होंने मलेशिया के इस्लामिक यूथ मूवमेंट एबीआईएम शुरू किया.
1982 में उन्होंने लंबे समय से सत्ता में रही पार्टी यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइजेशन (यूएमएनओ) में शामिल होकर सभी को चौंका दिया. जबकि कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि वे सत्ता से दूरी बनाए रखेंगे.
लेकिन यह एक समझदारी भरा राजनीतिक कदम साबित हुआ. उन्होंने तेज़ी से ऊँचाइयाँ हासिल कीं और कई मंत्री पद संभाले.
1993 में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के उप-प्रधानमंत्री बने और उन्हें उनका उत्तराधिकारी माना जाने लगा.
यह तब तक चला जब तक 1997 में आए एशियाई वित्तीय संकट के प्रबंधन को लेकर दोनों में मतभेद नहीं हुआ. इस संकट ने मलेशिया की अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया.
अगले ही साल अनवर को बर्खास्त कर दिया गया और उन्हें समलैंगिकता और भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल भेजा गया.
अनवर इन आरोपों को आज तक सिरे से नकारते आए हैं. उनका कहना है कि यह उन्हें राजनीतिक रूप से समाप्त करने की साज़िश थी.
2004 में, जब महातिर ने पद छोड़ा, उसके एक साल बाद मलेशिया के सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता में उन्हें दोषी ठहराने के फ़ैसले को पलट दिया और अनवर को रिहा कर दिया.
वह एक नई ऊर्जा से भरे विपक्ष के नेता के रूप में उभरे और 2013 के चुनावों में उनके नेतृत्व में विपक्ष ने शानदार प्रदर्शन किया.
एक साल से भी कम समय बाद, जब वे राज्य चुनाव की तैयारी कर रहे थे, उन पर फिर समलैंगिकता के आरोप लगाए गए. उन्हें दोबारा जेल भेज दिया गया.
फिर 2016 में एक चौंकाने वाला मोड़ आया जब महातिर मोहम्मद सियासी रिटायरमेंट से लौटे.
वो इसलिए आए थे ताकि शीर्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकें, क्योंकि तत्कालीन नेता नजीब रज़ाक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.
तब 92 साल के महातिर ने जेल में बंद अनवर के साथ एक अप्रत्याशित समझौता किया, जिसमें उन्होंने वादा किया कि यदि वे चुने गए तो अनवर को रिहा करेंगे और बाद में प्रधानमंत्री का पद उन्हें सौंप देंगे.
उनके गठबंधन ने 2018 में ऐतिहासिक जीत दर्ज की, लेकिन जैसे-जैसे इस बुज़ुर्ग नेता (महाथिर) ने सत्ता हस्तांतरण को टालना शुरू किया, गठबंधन बिखरने लगा.
2022 के चुनाव में अनवर के गठबंधन ने सबसे अधिक सीटें जीतीं, लेकिन सरकार बनाने के लिए ज़रूरी बहुमत से वे पीछे रह गए.
कई दिनों के गतिरोध के बाद राजा ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया.
कुछ लोगों को लगा था कि उनका कार्यकाल छोटा रहेगा लेकिन लगभग तीन साल बाद, 78 वर्षीय अनवर ने अपने तीनों पूर्व प्रधानमंत्रियों से अधिक समय तक यह पद संभाले रखा है.
स्थिर लेकिन विभाजित
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अनवर की सबसे बड़ी उपलब्धि शायद वह राजनीतिक स्थिरता है जो वह एक ऐसे देश में लाने में सफल रहे हैं जिसने 2020 और 2021 के बीच तीन प्रधानमंत्रियों को बदलते देखा था.
मलेशिया की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी की राजनीति विज्ञान की प्रोफ़ेसर सयज़ा शुक्री कहती हैं, “आजकल मलेशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे स्थिर देशों में से एक माना जाता है जिससे यह निवेशकों के लिए भी अपेक्षाकृत आकर्षक बन गया है.”
लेकिन मलेशिया में कई दूसरे देशों की तरह जीवन-यापन की लागत बढ़ रही है.
जुलाई में, बढ़ती महंगाई और आर्थिक सुधारों की कमी से नाराज़ होकर 20,000 प्रदर्शनकारी कुआलालंपुर की सड़कों पर उतरे और अनवर के इस्तीफ़े की मांग की.
साथ ही, सेमीकंडक्टर निर्माण और डेटा सेंटर में किए गए महंगे निवेशों का लाभ देश को अभी तक नहीं मिला है.
इसीलिए अमेरिका के साथ टैरिफ़ समझौता इस निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण था.
दूसरे लोग उनकी सरकार पर यह आरोप लगाते हैं कि बढ़ते इस्लामी प्रभाव के बीच वह एक मलेशिया को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं.
मुस्लिम-बहुल इस देश में धार्मिक आक्रोश कई बार हिंसा में भी बदल चुका है.
2024 में, एक सुपरमार्केट चेन ने “अल्लाह” (जो ईश्वर के लिए अरबी शब्द है) छपे मोज़े बेचकर भारी विवाद खड़ा कर दिया, जिसे कई मुसलमानों ने इस्लाम का अपमान माना.
लोगों ने स्टोर का बहिष्कार करने और कंपनी के अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की मांग की. इस दौरान स्टोर पर मोलोटोव कॉकटेल से हमला भी किया गया.

2023 में, एक चीनी मुस्लिम रेस्तरां को तब सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी पड़ी जब उसके एक कर्मचारी ने क्रूस (ईसाई प्रतीक) का हार पहन रखा था और इस पर विवाद भड़क गया.
एशियाई अध्ययन के प्रोफ़ेसर जेम्स चिन ने सीएनए में प्रकाशित एक लेख में लिखा, “मलेशियाई राजनीति का मध्यम मार्ग अब सहिष्णु, बहु-जातीय मलेशिया नहीं रहा, बल्कि एक रूढ़िवादी इस्लामी दृष्टिकोण वाला मलेशिया बन गया है. राजनीतिक इस्लाम पर अनवर का रुख़ देश को अनजान दिशा में ले जा सकता है.”
आलोचक अनवर पर पक्षपात के आरोप भी लगाते हैं और उनकी भ्रष्टाचार विरोधी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाते हैं.
इसकी वजह ये है कि साल 2023 में, अभियोजकों ने उनके एक प्रमुख सहयोगी (उप-प्रधानमंत्री) पर लगे 47 भ्रष्टाचार के मामलों को विवादास्पद रूप से वापस ले लिया था.
कूटनीतिक संतुलन
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अनवर अधिक सफल रहे हैं. प्रधानमंत्री के रूप में, उनके सामने यह चुनौती है कि जिस उभरती हुई अर्थव्यवस्था की बागडोर उनके हाथ में है, वह अमेरिका और चीन के बीच फँसे नहीं.
उन्होंने चीन के नेता शी जिनपिंग को भी इस शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया था.
शी जिनपिंग ने अप्रैल में 12 साल बाद मलेशिया की आधिकारिक यात्रा की थी, लेकिन इस सप्ताह के शिखर सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया.
लेकिन ट्रंप की मौजूदगी दक्षिण-पूर्व एशिया की उन अर्थव्यवस्थाओं के लिए कोई छोटी बात नहीं थी जो अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं.
इसका मतलब था कि थाईलैंड और वियतनाम जैसे अन्य देश भी टैरिफ़ पर चर्चा कर सकते थे और कुछ आश्वासन हासिल कर सकते थे.
अनवर कूटनीतिक मोर्चे पर काफी सक्रिय रहे हैं. प्रधानमंत्री बनने के पहले ही साल में उन्होंने म्यांमार को छोड़कर सभी आसियान देशों का दौरा किया.
म्यांमार में 2021 से सेना के सत्ता में आने के बाद से गृहयुद्ध चल रहा है.
म्यांमार का गृहयुद्ध आसियान के लिए सबसे कठिन चुनौतियों में से एक रहा है,अनवर को इस मुद्दे पर मुखर होने के लिए सराहना मिली है.
लेकिन ज़मीनी स्थिति में बहुत बदलाव नहीं आया है क्योंकि चीन का सैन्य जुंटा पर सबसे अधिक असर है.
फिर भी, प्रोफ़ेसर चिन का मानना है कि अनवर ने आसियान की प्रासंगिकता को पुनर्स्थापित करने में “थोड़ा बदलाव ज़रूर किया है.”
थाईलैंड-कंबोडिया संघर्षविराम में उनकी भूमिका ने भी अनवर की प्रतिष्ठा को बढ़ाया, लेकिन आम मलेशियाई नागरिकों के लिए ये कूटनीतिक जीतें ज़्यादा मायने नहीं रखतीं.
घरेलू स्तर पर जो सबसे अधिक गूंजा है, वह है फ़लस्तीन के मुद्दे पर उनकी मुखरता, जो 2023 में ग़ज़ा युद्ध शुरू होने के बाद और भी तेज़ हो गई.

एस राजरत्नम स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ की मलेशिया प्रोग्राम समन्वयक एरियल टैन कहती हैं, “जनता की भावनाओं को शांत करने और उन विरोधियों से खुद को मज़बूत बनाने के लिए अनवर को फ़लस्तीनी झंडा पूरी ऊँचाई तक लहराना होगा, जो उन पर आक्रामक नहीं होने का आरोप लगाते हैं.”
लेकिन टैन कहती हैं कि अनवर एक दुविधा में हैं क्योंकि उन्हें अमेरिका के साथ अच्छे संबंध भी बनाए रखने हैं और कहने की ज़रूरत नहीं कि ये ख़ासा जटिल है क्योंकि अमेरिका इसराइल का सबसे शक्तिशाली सहयोगी है.
वो कहती हैं, “ट्रंप के दोबारा चुने जाने के बाद से, उन्होंने इस संघर्ष में अमेरिका की भूमिका की आलोचना कम कर दी है. अमेरिका से जुड़ाव अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है, खासकर शुल्क (टैरिफ) के ख़तरे के चलते.”
अब सवाल यह है कि क्या अनवर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों मोर्चों की मांगों के बीच संतुलन बना पाएँगे, और क्या वे अपनी वैश्विक सफलताओं को घरेलू स्तर पर भी दोहरा पाएँगे?
इस सवाल का जवाब 2028 में होने वाले अगले चुनाव में उनके राजनीतिक भविष्य के लिए निर्णायक साबित होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.