अफ़ग़ान तालिबान के सुप्रीम लीडर हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा का एक आदेश चर्चा में है. इसके तहत उन्होंने देश के सैन्य संसाधन और हथियारों का नियंत्रण अपने पास ले लिया है.
उनके इस फ़ैसले के मुताबिक़ अब से सुरक्षा बलों को हथियार उपलब्ध करवाने के लिए आदेश जारी करने का अधिकार केवल तालिबान प्रमुख के पास होगा.
इस क़दम को अप्रत्यक्ष तौर पर तालिबान प्रमुख द्वारा सुरक्षा मंत्रालयों और सुरक्षा संस्थानों के प्रमुखों के अधिकार में कटौती करने के तौर पर देखा जा रहा है.
हालांकि, ताबिलान प्रवक्ता ने कहा कि यह क़दम उठाने का मक़सद हथियार और गोला-बारूद का इस्तेमाल “सही और सुरक्षित ढंग” से किया जाना सुनिश्चित करना है.
जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह आदेश उन रिपोर्ट्स के सामने आने के बाद लिया गया है, जिसमें तालिबान प्रशासन के नेताओं के बीच अविश्वास की स्थिति पैदा होने का दावा किया गया है.
दरअसल, न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख प्रकाशित हुआ था. इसमें यह दावा किया गया कि आंतरिक मामलों के मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी तालिबान प्रमुख के “प्रभुत्व को चुनौती” देते दिख रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के निजी समाचार चैनल टोलो न्यूज़ ने यह ख़बर 8 नवंबर को एक्स पर साझा की थी.
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फ़ैसले में क्या लिखा है?
आठ बिंदुओं के इस फ़ैसले में अख़ुंदज़ादा ने कहा कि तालिबान प्रशासन के आंतरिक मंत्रालय, रक्षा विभाग, जनरल डायरेक्टोरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस; अब हथियार, असलहा, गोला-बारूद और सैन्य संसाधन सुरक्षाकर्मियों को जारी नहीं कर सकेंगे.
तालिबान प्रमुख के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने एक चैनल से कहा कि अब से हथियार और असलहा तालिबान प्रमुख के सीधे आदेश के बाद ही जारी किए जाएंगे.
उन्होंने बताया कि यह निर्णय इस बात को सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है कि हथियार और असलहा का “सुरक्षित और सुव्यवस्थित” उपयोग किया जा सके.
तालिबान के उप-प्रवक्ता हमदुल्लाह फ़ितरत ने भी इस फ़ैसले के जारी होने की बात की पुष्टि की.
तालिबान के नियंत्रण वाले रेडियो टेलीविज़न ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान ने एक्स पर एक ऑडियो क्लिप शेयर की.
इसमें उन्होंने कहा कि अख़ुंदज़ादा ने नया आदेश जारी किया है. यह “हथियारों और सभी तरह के सैन्य संसाधनों के बेहतर उपयोग, सुरक्षा और निगरानी से संबंधित है.”
फ़ितरत के मुताबिक, इस फ़ैसले में हथियारों के “न्यायसंगत उपयोग” और “ग़ैर-पंजीकृत हथियारों” के पंजीयन की बात भी कही गई है.
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क्या यह क़दम प्रमुख मंत्रियों के साथ पैदा हुए अविश्वास के बाद उठाया है?
हालांकि, कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ कि क्या इस फ़ैसले की वजह तालिबान प्रमुख का उन लोगों के प्रति अविश्वास की स्थिति है, जो उनके प्रशासन में सुरक्षा और सुरक्षा संस्थानों के प्रमुख हैं.
सामी यूसुफ़ज़ाई एक अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकार हैं.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “क्या शेख़ हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा अब रक्षा मंत्री, आंतरिक मामलों के मंत्री और रक्षा प्रमुख पर भरोसा नहीं करते हैं?”
“अगर वे उन पर विश्वास करते हैं तो फिर उन्होंने हथियार जारी करने और हथियार भंडार की सुरक्षा करने का अधिकार उनके प्रमुख मंत्रियों से लेकर अपने पास क्यों रख लिया है.”
अफ़ग़ानिस्तान में एक राजनीतिक दल अफ़गानिस्तान ग्रीन ट्रेंड है, जिसका नेतृत्व पूर्व अफ़गान उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह करते हैं.
वो तालिबान प्रमुख के इस क़दम को उठाने की वजह न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे गए लेख को बताते हैं.
इस लेख में यह आरोप लगाया गया था कि आंतरिक मामलों के मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी तालिबान “प्रमुख के प्रभुत्व” को चुनौती दे रहे हैं.
उन्होंने एक्स पर की गई पोस्ट में लिखा कि अफ़ग़ानिस्तान ग्रीन ट्रेंड का मानना है कि तालिबान प्रमुख ने जो निर्णय लिया है, उसकी वजह न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा गया लेख है.
उन्होंने लिखा, “न्यूयॉर्क टाइम्स ने सिराजुद्दीन हक़्क़ानी (तालिबान के आंतरिक मामलों के मंत्री) के वो मंसूबे सामने लाकर रख दिए, जिसमें वो तालिबान में एक अलग शक्ति संगठन तैयार करने की कोशिश में जुटे थे.”
“इसके बाद मुल्ला हिब्तुल्लाह ने आंतरिक मामलों के मंत्री, रक्षा मंत्री और जनरल डायरेक्टोरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस के अधिकारों में कटौती कर दी. उन्होंने दो पेज का एक फ़ैसला जारी किया.”
“इसमें उन्होंने इन मंत्रियों से हथियारों और हथियार भंडार के रख-रखाव के अलावा हथियारों को जारी किए जाने के अधिकार भी उनसे ले लिए.”
तालिबान प्रमुख ने “हथियार भंडार” से इन सभी प्रमुख लोगों का नियंत्रण हटा दिया है.
इसका मतलब यह है कि “वहां हथियारों के भंडार के लिए स्वतंत्र मंत्रालय की स्थापना होने वाली है.”
इस पोस्ट में लिखा गया, “इस फ़ैसले के मुताबिक़, आंतरिक मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और डायरेक्टोरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस मुल्ला हिब्तुल्लाह के लिखित आदेश के बिना हथियार भंडार न खोल सकते हैं और न बंद कर सकते हैं.”
यह आदेश 26 अक्तूबर को जारी किया गया था.
न्यूयॉर्क टाइम्स का लेख क्रिस्टिना गोल्डबॉम ने लिखा था. उन्होंने अपने लेख में हक़्क़ानी को अख़ुंदज़ादा की तुलना में “व्यवहारिक” और “उदारवादी” बताया.
इस लेख में मौजूदा राजनियक और विश्लेषकों के हवाले से गोल्डबॉम कहती हैं कि हक़्क़ानी “उन चुनिंदा लोगों में शुमार हैं, जो शेख़ हिब्तुल्लाह के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं.”
“उन्होंने अपने हक़ में माहौल बनाने के लिए बाहर का रूख़ करना शुरू कर दिया है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित