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अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बदलने का पता केवल राष्ट्रपति भवन या मंत्रालयों से नहीं चलता, बल्कि नई सरकार के आने के बाद सड़कों पर गाड़ियों के अलग-अलग मॉडल्स और ब्रांड्स से भी इसका अंदाज़ा होता है.
अफ़ग़ानिस्तान में हमेशा से सत्ता परिवर्तन का असर फ़ौजियों के ज़रिए इस्तेमाल की जाने वाली गाड़ियों पर पड़ा है.
अतीत में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत और अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी और सत्ता परिवर्तन के दौरान देश की सेना ने कई कंपनियों और अलग-अलग मॉडल की गाड़ियां इस्तेमाल कीं.
अब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार अमेरिकी कंपनी रेंजर गाड़ियों से छुटकारा पाकर दूसरे मॉडलों की गाड़ियां इस्तेमाल करना चाहती है.
अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने नई गाड़ियां ख़रीदने के लिए जापान की मशहूर कार बनाने वाली कंपनी टोयोटा मोटर्स से संपर्क किया है. देश में टोयोटा की स्थानीय डीलरशिप ‘हबीब गुलज़ार मोटर्स’ के पास है.
उन्होंने बीबीसी से इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि तालिबान सरकार ने उनसे गाड़ियों के लिए संपर्क किया था, लेकिन उनकी यह मांग नहीं मानी गई.
टोयोटा का इनकार
कंपनी के डायरेक्टर अहमद शाकिर अदील ने बीबीसी को बताया कि अफ़ग़ान तालिबान ने टोयोटा से लगभग दो महीने पहले, यानी 27 सितंबर 2025 को संपर्क किया था.
उन्होंने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में टोयोटा की प्रतिनिधि कंपनी केवल “अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, कुछ ग़ैर-सरकारी संगठनों और दूतावासों को कारें बेचने के लिए अधिकृत है.”
बीबीसी ने जब उनसे पूछा कि तालिबान की मांग पर कंपनी ने क्या जवाब दिया, तो उन्होंने कहा, “हमने उन्हें मना कर दिया है.”
तालिबान सरकार के गृह मंत्रालय ने अमेरिकी कंपनी फ़ोर्ड की बनी रेंजर गाड़ियों को बदलकर दूसरी गाड़ियां ख़रीदने का फ़ैसला किया है, हालांकि अभी यह पता नहीं चल सका है कि वह इसके बदले कौन-सी गाड़ियां ख़रीदेंगे.
यह समझा जा रहा था कि जापानी कंपनी टोयोटा की गाड़ियां तालिबान के विकल्पों में से एक थीं.
इससे पहले अंतरिम सरकार के गृह मंत्रालय ने बीबीसी को बताया था कि दूसरे मॉडल पर अभी फ़ैसला नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा था, “दूसरी गाड़ियों की ख़रीदारी के लिए कोई बजट मंज़ूर नहीं किया गया है, लेकिन पुलिस की नई वर्दी टोयोटा की हाइलक्स मॉडल को ध्यान में रखकर डिज़ाइन की गई है.”
अमेरिकी गाड़ियों का दौर ख़त्म
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अफ़ग़ानिस्तान में पिछले दो दशकों के दैरान अमेरिका और पश्चिमी सेनाओं द्वारा समर्थित सरकारें बड़े पैमाने पर अमेरिकी निर्मित रेंजर गाड़ियां इस्तेमाल करती रही हैं.
अमेरिकी कंपनी एएमएस को अफ़ग़ानिस्तान में गाड़ियों की मरम्मत और रखरखाव का ठेका मिला हुआ था. कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि रेंजर गाड़ियां विशेष रूप से अफ़ग़ानिस्तान के हालात को ध्यान में रखकर बनाई गईं थीं.
उन्होंने बताया कि इन गाड़ियों के ज़्यादातर पार्ट्स थाईलैंड में बनते थे और फिर अफ़ग़ानिस्तान लाए जाते थे.
अफ़ग़ानिस्तान में सेना की गाड़ियों की मरम्मत और देखरेख करने वाली कंपनी का कहना है कि 2017 से 2021 के बीच उन्होंने सेना और पुलिस की एक लाख तीस हज़ार से ज़्यादा गाड़ियों की मरम्मत की थी.
इसके लिए अमेरिकी सरकार के साथ एक अरब बीस करोड़ डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट था.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के आने से पहले अमेरिकी सरकार अफ़ग़ान सेना को वित्तीय सहायता देती थी.
एएमएस कंपनी के पूर्व कर्मचारी का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय लोग इन गाड़ियों की मरम्मत कर लेते थे, लेकिन अब ऐसे ज़्यादातर लोग देश छोड़कर चले गए हैं.
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ान तालिबान इसलिए अमेरिकी गाड़ियां बदलना चाहते हैं क्योंकि उनके स्पेयर पार्ट्स मिलना मुश्किल हो गया है और जो मिलते हैं वह बहुत महंगे हैं. तालिबान सरकार पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध लगे हुए हैं, इसलिए वह फ़ोर्ड कंपनी से कोई समझौता भी नहीं कर सकती.
टोयोटा के इनकार के बाद यह साफ़ नहीं है कि तालिबान का दूसरा विकल्प क्या होगा, हालांकि वह बाज़ार में उपलब्ध दूसरी गाड़ियां भी ख़रीद सकते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में बड़ी संख्या में सेकंड-हैंड गाड़ियां आयात होती हैं, जिनमें ज़्यादातर टोयोटा की होती हैं. पहले इस्तेमाल की जा चुकीं ज़्यादातर गाड़ियां दुबई और ईरान के रास्ते मंगवाई जाती हैं.
खाड़ी और यूरोपीय देशों के लिए टोयोटा की हाइलक्स और लैंड क्रूज़र को तीन तरह से बांटा जाता है.
मुल्ला उमर और मोटरसाइकिल

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी किताब ‘इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर’ में एक दिलचस्प घटना बताई है.
वह लिखते हैं, “दिसंबर 2001 के पहले हफ़्ते में, मुल्ला मोहम्मद उमर हार मानते हुए होंडा मोटरसाइकिल पर सवार होकर भाग निकले. जब जापान के प्रधानमंत्री ने मुझसे पूछा कि मुल्ला उमर कहां हैं, तो मैंने कहा कि वह होंडा मोटरसाइकिल पर सवार होकर भाग गए.”
“मैंने हंसते हुए कहा कि अगर मुल्ला उमर होंडा पर सवार हों और उनकी दाढ़ी हवा में लहरा रही हो, तो यह होंडा के लिए सबसे शानदार विज्ञापन होगा.”
अफ़ग़ान तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर मोटरसाइकिल से फ़रार हुए थे या गाड़ी पर, इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन दोनों ही स्थितियों में उनकी सवारी जापानी कंपनी की ही थी.
याद रहे कि अक्तूबर 2012 में तालिबान ने कहा था कि ज़ाबुल प्रांत में मलबे के ढेर से एक टोयोटा कार भी बरामद हुई है. तालिबान का कहना था कि यह वही गाड़ी है जिस पर 2002 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिकी हमले के बाद मुल्ला उमर कंधार से निकले और लापता हो गए थे.
जापानी गाड़ियों और तालिबान लड़ाकों का रिश्ता इनके अभियान के शुरुआती दिनों से ही रहा है और आगे भी इसके जारी रहने की संभावना है.
अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य साज़ो-सामान और विदेशी मदद
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पिछली आधी सदी से अधिक समय से अफ़ग़ानिस्तान में सेना के ज़रिए इस्तेमाल किए जाने वाले साज़ो-सामान का सीधा संबंध देश के राजनीतिक हालात और बाहरी हस्तक्षेप से रहा है.
1978 से 1992 तक, जब काबुल में सोवियत समर्थक सरकारें रहीं, तब फ़ौजी साज़ो-सामान जैसे रूसी ट्रक कामाज़ से सोवियत संघ और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सैन्य संबंधों का पता चलता था.
हालांकि इसी दौरान जापान में बनीं गाड़ियां सोवियत समर्थित सरकारों के ख़िलाफ़ अगले मोर्चे पर इस्तेमाल की जाने लगीं थीं.
यही वह दौर था जब अफ़ग़ान युद्ध में पहली बार टोयोटा शामिल हुई. तालिबान के उदय और सत्ता में आने के दौरान टोयोटा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली गाड़ियों में से एक थी.
11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद जब अमेरिकी सेनाओं ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया और वहां एक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की, तो उस समय अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमेरिका की मौजूदगी का अंदाज़ा वहां मौजूद अमेरिकी गाड़ियों से आसानी से लगाया जा सकता था.
इस दौरान अफ़ग़ान सेना ने कई मॉडल की गाड़ियां इस्तेमाल कीं. पिछले दो दशकों में अमेरिकी कंपनी फ़ोर्ड की बनाई रेंजर कार अफ़ग़ान गृह मंत्रालय में इस्तेमाल होने वाली सबसे अहम गाड़ी थी.
जहां इस्लामी गणराज्य अफ़ग़ानिस्तान की सेनाएं अमेरिकी गाड़ियों का इस्तेमाल करती थीं, वहीं अब अफ़ग़ान तालिबान होंडा मोटरसाइकिल और टोयोटा कंपनी की बनाई हुई फ़ील्डर गाड़ियों में सफ़र करते हैं.
अफ़ग़ान तालिबान जापानी गाड़ियां ही क्यों ख़रीदना चाहते हैं?
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9/11 हमलों के दो महीने बाद अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि टीवी फ़ुटेज में तालिबान को लैंड क्रूज़र चलाते देखा जा सकता है.
इसके बाद जापानी कंपनी टोयोटा ने एक बयान जारी किया कि पिछले पांच सालों में अफ़ग़ानिस्तान ने केवल एक लैंड क्रूज़र क़ानूनी ढंग से आयात की थी.
कंपनी ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद टोयोटा के प्रोडक्ट्स पड़ोसी देशों से ग़ैर-सरकारी चैनलों के ज़रिए मंगवाए गए हैं” यानी उन गाड़ियों को स्मगल किया गया था.
इस मामले में टोयोटा को अपनी गाड़ियों का तालिबान और अल-क़ायदा से जुड़ाव पसंद नहीं था. यही वजह है कि अब जब तालिबान सत्ता में हैं तब भी कंपनी ने उन्हें गाड़ियां बेचने से इनकार कर दिया है.
टोयोटा का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है और कंपनी वहां गाड़ियां निर्यात नहीं करती है.
न्यूयॉर्क टोयोटा के प्रवक्ता वेड हॉयट ने कहा था, “यह हमारे सामान के लिए सबसे बुरा विज्ञापन है, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि तालिबान भी दूसरे ग्राहकों की तरह भरोसेमंद और टिकाऊ सामान तलाश करते हैं.”
अगर आपने दुनिया भर में तथाकथित इस्लामिक स्टेट के प्रोपेगैंडा वीडियो देखे हैं, तो आपने उन्हें टोयोटा हाइलक्स मॉडल की गाड़ियां चलाते ज़रूर देखा होगा.
अक्तूबर 2014 में जब सीरिया और इराक में तथाकथित इस्लामिक स्टेट अपने चरम पर था, तब वह अपने कई प्रोपेगैंडा वीडियो में लैंड क्रूज़र और हाइलक्स का इस्तेमाल करता था.
‘टोयोटा वॉर’
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टोयोटा ने इंटरनेट पर सवाल-जवाब का एक ख़ास पेज बनाया था जिसका नाम था “युद्ध क्षेत्रों में टोयोटा गाड़ियों के इस्तेमाल पर रिपोर्ट्स”.
इस पेज पर टोयोटा ने कहा था, “हम जिस भी देश में काम करते हैं, वहां के क़ानूनों का पालन करते हैं और बिना कंपनी की जानकारी व सहमति के फ़ौजी इस्तेमाल के लिए गाड़ियां बेचना प्रतिबंधित है.”
टोयोटा ने कहा था कि सशस्त्र समूहों द्वारा इस्तेमाल की जा रही उनकी गाड़ियां ग़ैर-सरकारी या सेकंड-हैंड चैनलों से स्मगल की गई होती हैं.
टोयोटा ने ज़ोर देकर कहा था कि वह सीरिया में अपनी कार नहीं भेजती और वह लीबिया और इराक़ में अपने प्रोडक्ट्स केवल उन उपभोक्ताओं को देती है जिनकी पहचान पहले से मालूम हो.
टोयोटा के लिए यह इतनी बड़ी समस्या बन गई कि कुछ देशों में टोयोटा ने ग्राहकों के लिए यह शर्त रखी कि वह गाड़ियां ख़रीदने के एक साल तक वह किसी और को नहीं बेच सकते.
मज़बूत इंजन, पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाक़ों और कच्चे-पक्के रास्तों पर चलने की क्षमता, कम ईंधन खपत, स्पेयर पार्ट्स की आसानी से उपलब्धता और कई तरह के हथियार लगाने की जगह – ये वे ख़ास बातें हैं जिनसे टोयोटा की गाड़ियां चरमपंथियों को बहुत पसंद आती हैं.
1977 में चाड और लीबिया के बीच जो युद्ध हुआ वह ‘टोयोटा वॉर’ के नाम से जाना गया था.
उस जंग को ‘टोयोटा वॉर’ इसलिए भी कहा गया कि उस वक़्त टोयोटा पिकअप ट्रक (ख़ासकर हाइलक्स और लैंड क्रूज़र) बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुए थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित