‘अब सबकी चोरी पकड़ी जा रही’, फ़िल्मों की नकल और ओटीटी की तारीफ़ में बोलीं रत्ना पाठक
रत्ना पाठक शाह फ़िल्म, थिएटर और टेलीविज़न की एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है.
‘कहानी ज़िंदगी की’ के ज़रिये रत्ना पाठक के ज़िंदगी के सफ़र और उनके योगदान को जानना न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह उनके विचारशील व्यक्तित्व और सामाजिक कार्यों को भी रेखांकित करता है.
बात जब अभिनय की हो तो उसके लिए शर्तों को उनसे सुनना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि उनकी नज़र में भारत से लेकर वैश्विक शिक्षण संस्थानों तक एक्टिंग के अच्छे शिक्षक हैं ही नहीं.
रत्ना पाठक का जन्म 7 अगस्त 1957 को मुंबई में एक गुजराती परिवार में हुआ था. उनकी मां दीना पाठक एक जानी-मानी अभिनेत्री थीं और बहन सुप्रिया पाठक भी सिनेमा जगत में बड़ा नाम हैं.
एनएसडी में नसीरुद्दीन शाह से मुलाक़ात
रत्ना पाठक ने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) से 1981 में अभिनय की औपचारिक शिक्षा हासिल की.
हालांकि, रत्ना पहले अभिनेत्री बनने की इच्छुक नहीं थीं लेकिन नियति उन्हें रंगमंच तक ले आई, जहां उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध रंगमंच निर्देशक सत्यदेव दुबे से हुई, जिन्होंने उनके अभिनय और भाषा की समझ को एक नई दिशा दी.
सत्यदेव दुबे के मार्गदर्शन में रत्ना ने रंगमंच पर अपनी कला को निखारा. रंगमंच की यात्रा के दौरान ही उनकी मुलाक़ात अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से हुई, जो आज उनके जीवनसाथी हैं.
रत्ना पाठक की अभिनय यात्रा रंगमंच से शुरू होकर टेलीविज़न और सिनेमा तक गई.
जिस शो से रत्ना को मिली घर-घर में पहचान
1980 के दशक में ‘इधर उधर’ सीरियल से उन्हें लोकप्रियता मिली, लेकिन ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ में माया साराभाई की उनकी भूमिका ने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई.
उनके इस किरदार ने दर्शकों को खूब हंसाया.
फ़िल्मों में ‘मिर्च मसाला’, ‘जाने तू या जाने ना’, ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा’ जैसी फ़िल्मों में उनकी भूमिका ने साबित किया कि वो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं.
इन फ़िल्मों ने उन्हें कई अवॉर्ड्स और नॉमिनेशंस दिलाए, जिसमें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए फिल्मफेयर भी शामिल हैं.
थिएटर और फ़िल्मों के अलावा, रत्ना पाठक सामाजिक कार्यों में भी गहरी रुचि रखती हैं. वो पिछले कई वर्षों से एक गैर-सरकारी संगठन से जुड़ी हैं, जो बच्चों की शिक्षा और कल्याण के लिए काम करता है.
रत्ना का मानना है कि समाज की प्रगति तभी संभव है जब बच्चों को उचित अवसर मिलें.
मोटली थिएटर ग्रुप में अब भी कर रहीं काम
रत्ना पाठक और नसीरुद्दीन शाह मोटली थिएटर ग्रुप के ज़रिये आज भी सक्रिय हैं. मोटली भारतीय रंगमंच में न्यूनतम सेट और गहरे कथानकों के लिए जाना जाता है.
‘डियर लायर’, ‘इस्मत आपा के नाम’ और हाल ही में ‘ओल्ड वर्ल्ड’ जैसे नाटकों में उनकी जोड़ी ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है.
रत्ना पाठक का कहना है कि रंगमंच के माध्यम से हमें प्रगति और उन्नति के सपने को जगाए रखना चाहिए. सत्यदेव दुबे की शिक्षाओं और नसीर के साथ उनकी साझेदारी ने उन्हें न केवल एक बेहतर अभिनेत्री बनाया, बल्कि एक गहरी सोच रखने वाली इंसान भी बनाया.
रत्ना पाठक शाह की कहानी ‘कहानी ज़िंदगी की’ के लिए एक आदर्श उदाहरण है.
‘कहानी ज़िंदगी की’ में विभिन्न विषयों पर खुले, उत्साहजनक और चुटीले अंदाज़ में उनसे हुई ये बातचीत उनके अब तक उपलब्ध साक्षात्कारों में सबसे अलग और ख़ास है.
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित