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”मैं फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट खेला हूं. मैं अपनी मां से कहा करता था कि मेरे सभी साथी इंडिया खेल गए, लेकिन मैं नहीं खेल पाया, पता नहीं क्यों नहीं खेल पाया, शायद भगवान की मर्ज़ी है. और मेरी मां जवाब में कहा करती थी कि बेटा कोई बात नहीं, तू नहीं खेला, लेकिन तेरा बेटा ज़रूर इंडिया खेलेगा.”
राज कुमार शर्मा उन दिनों का ज़िक्र करते हुए भावुक हो जाते हैं. और हो भी क्यों ना. उनकी मां जो कहा करती थीं, वो अब हक़ीक़त में बदल चुका है.
वो आगे कहते हैं, ”ये बहुत अच्छा वक़्त है, मेरे लिए गर्व का क्षण है. हर मां-बाप की इच्छा होती है कि बेटा हो या बेटी, वो अपने पैरों पर खड़े हों और जिस भी फील्ड में जाएं, उसमें अच्छा करें.”
“हमारे बेटे ने कई साल पहले बल्ला उठाया था, संघर्ष किया, ख़ूब मेहनत की. आज वो ना सिर्फ़ इंडिया के लिए खेल रहा है, बल्कि मैच भी जिता रहा है. ये देखकर दिल खुश हो जाता है.”
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राज कुमार शर्मा, एशिया कप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ तूफ़ानी पारी खेलने वाले अभिषेक शर्मा के पिता तो हैं ही, उनके कोच भी हैं, संघर्ष के साथी रहे हैं और अब अपने बेटे की कामयाबी का गवाह बन रहे हैं.
तीन-चार साल की उम्र में पिता ने दिया प्लास्टिक का बैट
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कामयाबी की इस कहानी की शुरुआत क़रीब 22 साल पहले पंजाब के अमृतसर में हुई थी, जब तीन-चार साल की उम्र में अभिषेक ने अपने पिता का भारी बल्ला उठाने की कोशिश की.
राज कुमार शर्मा बीबीसी को बताते हैं, ”मैं खुद क्रिकेट खेला करता था, तो घर पर मेरा सामान, क्रिकेट किट इधर-उधर पड़ी रहती थी. अभिषेक की उम्र क़रीब तीन-चार साल रही होगी, जब वो मेरा सामान, बैट उठाने की कोशिश करता था. भारी होने की वजह से उससे बल्ला उठता नहीं था. फिर मैंने उसे प्लास्टिक का बैट लाकर दिया.”
उन्होंने कहा, ”उस बैट के साथ वो ख़ूब शॉट मारा करता था. उसकी आवाज़ भी ठीक से नहीं निकलती थी, लेकिन बोलता था कि पापा, बॉल फेंको. अपनी बहनों से बोलता था कि बॉल फेंको, रात में मेरी वाइफ़ को बोलता था कि बॉलिंग कराओ. ऐसे ही बल्लेबाज़ी करते-करते उसका जुनून यहां तक पहुंच गया.”
इसी जुनून और अपने बल्ले के दम पर अभिषेक शर्मा तेज़ रफ़्तार से दुनिया के शीर्ष बल्लेबाज़ों में शुमार होते दिख रहे हैं.
अभिषेक शर्मा का अब तक का करियर
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अपने छोटे, लेकिन असरदार टी20 इंटरनेशनल करियर में उन्होंने अब तक 21 मैच खेले हैं, जिनमें वो 708 रन बना चुके हैं. इन रनों के पीछे उनके इम्पैक्ट की कहानी छिपी है. ये रन उन्होंने 35.40 की औसत से बनाए हैं, जो टी20 में बढ़िया एवरेज है. और स्ट्राइक रेट है 197.21 का, जो किसी भी सलामी बल्लेबाज़ के लिए शानदार है.
वो बॉल के हिसाब से टी20 क्रिकेट में सबसे जल्दी 50 छक्के लगाने वाले बल्लेबाज़ बन गए हैं. 331 गेंदों में उन्होंने ये मील का पत्थर छुआ है. उन्होंने 366 गेंद में ये कमाल करने वाले वेस्टइंडीज़ के एविन लुइस का रिकॉर्ड तोड़ा है.
क्रिकेट के जानकार उनमें वीरेंद्र सहवाग का एग्रेशन और युवराज सिंह का एलीगेंट स्टाइल देख रहे हैं.
पाकिस्तान से मैच के बाद वीरेंद्र सहवाग एक चैट में अभिषेक को समझा रहे थे कि जब 70 रन तक पहुंच जाओ, तो उसे शतक में बदला करो.
सहवाग ने कहा था, ”बाद में ये बातें याद आती हैं, क्योंकि ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलेंगे. मैं क्या बता रहा हूं, कुछ देर में युवराज सिंह का फ़ोन आपके पास आता ही होगा, और वो भी यही समझाएंगे.”
सहवाग की बात सुनकर अभिषेक कहते हैं, ”जी हां, आप ठीक कह रहे हैं. मैं भी इस पर काम कर रहा हूं. जी, वो (युवराज) भी यही समझाएंगे.”
इस मैच में अभिषेक ने महज़ 39 गेंदों में 74 रनों की पारी खेली थी. वो लंबे हिट लगा रहे थे, और जिस गेंद पर आउट हुए, उस बॉल में इतना दम नहीं था, लेकिन वो मिसहिट कर गए.
सहवाग ने युवराज सिंह का ज़िक्र क्यों किया, इसकी कहानी बाद में. पहले अभिषेक शर्मा के बचपन, टीनएज और जवानी के दिनों के सफ़र पर गौर कर लेते हैं.
अभिषेक शर्मा का सफ़र
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टी20 में
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अभिषेक शर्मा के पिता बैंक में नौकरी किया करते थे, और क्रिकेट भी खेला करते थे. उनके परिवार में मां के अलावा, दो बड़ी बहनें हैं. एक बहन टीचर हैं, दूसरी डॉक्टर.
शर्मा पुराने दिनों को याद करते हैं, ”मैं जब ग्राउंड पर जाता था, तो वो मेरे साथ ही जाता था. मैं बड़े बच्चों को ट्रेनिंग देता था, कोचिंग देता था. बड़े बच्चे अभिषेक को देखते थे, तो बोलते थे कि आपके बेटे में बहुत टैलेंट है.”
“इसका बल्ला सीधा आता है, ये सीधे शॉट मारता है और ज़ोर से मारता है. ऐसा लगता है कि ये बड़ा प्लेयर बन सकता है. जब मैंने इसका जुनून देखा तो तय कर लिया कि इसे क्रिकेट में ही डालेंगे. मैं सेलेक्टर था, रेफ़री था, कोच था, लेकिन जब इसे देखा तो तय किया कि मैं ही इसे कोचिंग दूं.”
और ऐसा नहीं है कि अभिषेक क्रिकेट खेलते थे, तो पढ़ते नहीं थे. वो दिल्ली पब्लिक स्कूल, अमृतसर में पढ़ा करते थे और हर क्लास में 90 पर्सेंट नंबर लाते थे.
उनके पिता ने बीबीसी को बताया, ”वो पढ़ाई में बहुत तेज़ थे. वो टूर्नामेंट के बीच में आते थे, पेपर देते थे और शानदार नंबर लाते थे. किसी क्लास में भी उनके कम नंबर नहीं आए. उन्होंने बीए तक की पढ़ाई की है.”
अभिषेक की ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट
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लेकिन अभिषेक की ज़िंदगी में वो टर्निंग पॉइंट कब आया, जब वो प्रोफेशनल सेटअप में दाख़िल हुए और शुभमन गिल से उनकी दोस्ती इतनी गाढ़ी क्यों है?
दरअसल, कई साल पहले पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन ने अंडर 12 और अंडर 14 की टीम बनाई थी और एक कैंप लगाया गया. मक़सद था कि नए बच्चों को आगे लेकर जाएं. इसके हेड हुआ करते थे डी पी आज़ाद, जो कपिल देव के गुरु थे. पंजाब क्रिकेट में उनका बहुत सम्मान था.
इसके लिए पूरे पंजाब से 30 बच्चों को सेलेक्ट किया गया. उस समय अभिषेक शर्मा और शुभमन गिल बच्चे हुए करते थे.
राज कुमार शर्मा ने बताया, ”ये दोनों बहुत छोटे-छोटे थे. आज़ाद जी ने कहा कि इन दोनों में नेचुरल टैलेंट है. मैं बच्चों से मिलने गया, उनका मैच देखा, तो आज़ाद भी थे और अरुण बेदी भी थे. बेदी जी मुझे अकेले में ले गए और बोले कि 30 बच्चों में ये दो सबसे ख़ास हैं. लिखकर जेब में डाल लो, ये दोनों इंडिया खेलेंगे, और ओपनिंग करेंगे.”
“इसके बाद फिर आज़ाद आए. वो मेरे गुरु रहे हैं, मैंने उनके पैर छुए और वो बोले तेरे बेटे में बहुत टैलेंट है, वो जब भी बैटिंग के लिए आता है, मैं देखता रह जाता हूं. ये असाधारण बच्चे हैं. सारी उम्र मेरी बात याद रखना, ये दोनों इंडिया की टीम में खेलेंगे.”
इन दोनों कोच की बातों ने राज कुमार शर्मा का प्रण और मज़बूत कर दिया. उन्होंने और अभिषेक ने रात-दिन मेहनत की. वो बैंक में सर्विस किया करते थे, लेकिन छुट्टी लेकर अभिषेक को कोच करते थे.
जब अभिषेक अंडर 14 टीम में थे तो उनके पिता130-140 की स्पीड से बॉल खेलाते थे. दूसरे कोच बोलते थे कि इतनी तेज़ क्यों करवा रहे हो, तो अभिषेक अपने पिता से बोलते थे कि और तेज़ बॉल डालो, वो खेलने के लिए तैयार हूं.
अभिषेक शर्मा अंडर 16 में पंजाब के कप्तान थे. एक सीज़न में उन्होंने 1200 रन किए और 57 विकेट निकाली, जिसके बाद बीसीसीआई ने उन्हें नमन अवॉर्ड से नवाज़ा.
इसके बाद उन्हें अंडर 19 नॉर्थ ज़ोन का कप्तान बनाया गया और उनकी टीम जीती. इसके बाद वो नेशनल क्रिकेट एकेडमी पहुंचे, जहां राहुल द्रविड़ की देखरेख में उनके टैलेंट में और निखार आया.
आगे चलकर अभिषेक अंडर 19 इंडिया के कप्तान बने और उनकी अगुवाई में टीम ने श्रीलंका में आयोजित एशिया कप जीता.
अभिषेक के खेल में आने वाला ये निखार उन्हें भारतीय क्रिकेट के स्टार युवराज सिंह के क़रीब लाता जा रहा था.
अभिषेक की युवराज सिंह से मुलाकात
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दोनों की मुलाकात रणजी ट्रॉफ़ी की वजह से हुई. पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन चाहता था कि अभिषेक और शुभमन को रणजी में चांस दिया जाए. ये वो समय था, जब युवराज सिंह अपनी बीमारी को हराकर दोबारा भारतीय टीम में वापसी की कोशिशों में जुटे थे और बीसीसीआई के निर्देश पर रणजी खेलने लौटे थे.
युवराज सिंह को बताया गया कि अंडर 19 से दो लड़के आ रहे हैं. उन्हें बताया गया कि एक सलामी बल्लेबाज़ है और दूसरा लेफ़्ट आर्म स्पिनर है.
राज कुमार शर्मा याद करते हैं, ”युवराज बोले मुझे बल्लेबाज़ चाहिए क्योंकि बॉलर मेरे पास हैं. सेलेक्टर्स ने बोला कि नहीं दोनों को चांस देना चाहिए. एक मैच में तीन-चार प्लेयर जल्दी आउट हो गए. युवराज बैटिंग कर रहे थे. उन्होंने बोला कि अभिषेक को पैड करवाकर भेजो. फिर वो आए और युवराज देखते रह गए. वो 40 पर खेल रहे थे, अभिषेक आए और तेज़-तर्रार 100 रन बना गए.”
शर्मा ने बताया कि युवराज सिंह ने अंदर मैदान पर ही बोला कि क्या अभिषेक उनके पास ट्रेनिंग करेंगे, इस पर अभिषेक ने जवाब दिया कि वो युवराज को अपना आइडल, अपना भगवान मानते हैं, और उन्हें ही देख-देखकर खेलना सीखे हैं. तब से वही आज तक अभिषेक को ट्रेनिंग करवा रहे हैं.
दोनों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. ऐसे एक वीडियो में इसमें युवराज सिंह, अभिषेक शर्मा से कहते हैं, ”तू ना सुधरी, बस छक्के मारी जाईं, थल्ले ना खेलीं.’ हिंदी में बोलें तो तुम सिर्फ़ छक्के ही मारते रहना, ज़मीनी शॉट भी खेल लिया करो.
उनके पिता बताते हैं, ”युवराज ही उन्हें ट्रेनिंग करवा रहे हैं. वो मेरे बेटे का पूरा ख़्याल रखते हैं. उसे मेंटली, फिजिकली स्ट्रॉन्ग बना दिया है. अपनी पूरी टीम लगा दी उसके पीछे कि ये एक भी दिन खाली नहीं रहना चाहिए. अगर वर्ल्ड क्लास ऑलराउंडर बंदा ट्रेनिंग करवाएगा तो सोच लीजिए कि प्लेयर कहां तक जा सकता है. अभी तो बस शुरुआत है!”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित