सितंबर 2024 में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की अमेरिका पहुंचे और अमेरिकी नेताओं के सामने विजय की अपनी योजना पेश की.
यह योजना अपने देश की संसद के सामने पेश करने से कुछ हफ़्ते पहले ही उन्होंने इसे अमेरिकी नेताओं के सामने रखा था.
दरअसल यह उनकी यूक्रेन युद्ध समाप्त करने की रणनीति है.
जब ज़ेलेंस्की अमेरिकी राष्ट्रपति से मिले तो उपराष्ट्रपति और डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस भी साथ खड़ी थीं.
कमला हैरिस ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के अंत के बारे में कोई भी फ़ैसला यूक्रेन की सहमति के बिना नहीं हो सकता.
उसके एक दिन बाद राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की न्यूयॉर्क में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप से मिले.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “यह युद्ध जल्द समाप्त होना चाहिए क्योंकि यूक्रेन और उसके राष्ट्रपति बड़ी कठिनाइयां झेल रहें हैं.”
वहीं ज़ेलेंस्की ने कहा, “इस दौर में अमेरिका मज़बूती के साथ खड़ा रहा है और उन्हें उससे पूरी उम्मीद है.”
उन्होंने कहा कि इसीलिए उन्होंने दोनों उम्मीदवारों से मुलाक़ात की है.
इस सप्ताह हम दुनिया जहान में यही जानने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति यूक्रेन युद्ध पर क्या असर डाल सकता है?
रूस-यूक्रेन जंग के हालात
यूक्रेनी शोधकर्ता और कीएव स्थित थिकटैंक डेमोक्रेटिक इनीशिएटिव फ़ाउंडेशन में क्षेत्रीय संघर्ष और सुरक्षा अध्ययन की प्रमुख मारिया ज़ोलकीना कहती हैं, “यूक्रेन किसी क़ीमत पर समर्पण नहीं करेगा, क्योंकि रूस यूक्रेन की सरकार का अस्तित्व मिटाना चाहता है.”
वो कहती हैं, “मगर यूक्रेन के कई सहयोगी देशों की, ख़ास तौर पर अमेरिका की यह सोच है कि सामरिक दृष्टि से कम से कम युद्धविराम की संभावना पर विचार किया जा सकता है.”
क्राइमिया, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय यूक्रेन का हिस्सा मानता है उस पर रूस ने 2014 में कब्ज़ा करके अपने साथ मिला लिया था और फिर 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया.
कई सालों से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दावा करते रहे हैं कि ऐतिहासिक रूप से यूक्रेन रूस का हिस्सा रहा है इसलिए वो उसे एक अलग देश नहीं मानते.
मारिया ज़ोलकीना का कहना है कि रूस के लिए जीत का मतलब यह है कि यूक्रेन एक स्वतंत्र देश के रूप में काम करने में असमर्थ हो जाए.
वो कहती हैं, “रूस का मक़सद अभी भी वही है. वो यूक्रेनी शहरों को, ऐसा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं कि वहां लोगों के लिए रहना मुश्किल हो जाए. ख़ास तौर पर सर्दी के दिनों में.”
मारिया ज़ोलकीना के मुताबिक, अगस्त में यूक्रेनी सेना ने कुर्स्क क्षेत्र में रूसी इलाकों पर हमला करके उन पर कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया. दूसरे महायुद्ध के बाद ऐसा पहली बार हुआ है.
इस हमले ने रूस को चौंका दिया. इसका मक़सद यह था कि यूक्रेन अपने समर्थकों को भरोसा दिला सके कि युद्ध में उनकी यूक्रेन को दी जा रही सहायता से फ़ायदा हो रहा है.
मगर बाद में रूस ने उस क्षेत्र की एक चौथाई ज़मीन पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया और रूसी सेनाएं पूर्वी यूक्रेन में घुस आईं.
यूक्रेन में रूस की लगातार बढ़त
मारिया ज़ोलकीना कहती हैं, “धीरे धीरे करके रूसी सेनाएं दोनेत्स्क क्षेत्र के भीतरी शहरों तक पहुंच गई हैं. वो यूक्रेन के केंद्र तक पहुंचना चाहते हैं.”
उनके मुताबिक़, पक्रौस्क और बुग्लेडार पर कब्ज़ा करने के बाद रूसी सेना के लिए दोनेत्स्क क्षेत्र के क्रैमोतोर और बगलांस्क शहर तक पहुंचने का रास्ता खुल गया है.
वहां से उनके लिए निप्रोव क्षेत्र तक पहुंचना आसान हो जाएगा जो यूक्रेन का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है.
वो कहती हैं, “ऐसा हुआ तो 2022 के बाद से पहली बार यूक्रेनी सेना सबसे बड़ी मुश्किल स्थिति में आ जाएगी.”
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने जीत की जो योजना अमेरिकी सांसदों के सामने पेश की उसके कई पहलू हैं. एक तो यह कि यूक्रेन को नेटो की सदस्यता दी जाए, लेकिन उसके लिए नेटो के सभी सहयोगियों की सहमति ज़रूरी है.
वहीं यूक्रेन के नेटो में शामिल होने से पश्चिमी देशों का रूस से सीधा टकराव होगा.
मारिया ज़ोलकीना कहती हैं, “यूक्रेन ने पश्चिमी देशों से यह मांग भी की है कि उनके द्वारा दी गई लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों को रूस के भीतरी क्षेत्रों में हमला करने की मंज़ूरी दी जाए.”
“यूक्रेन यह भी कह रहा है कि रूस के ख़िलाफ़ लगाए आर्थक प्रतिबंधों से अब रूस को ख़ास नुकसान नहीं हो रहा है, इसलिए उसके ख़िलाफ़ और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएं.”
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि अगर उन्हें पर्याप्त सहायता मिले तो वो अगले साल तक युद्ध ख़त्म कर सकते हैं.
मगर मारिया ज़ोलकीना ने कहा कि यूक्रेन को इस बात की चिंता भी है कि अमेरिका में अगला राष्ट्रपति कौन होगा. यूक्रेन को मिलने वाली सहायता मुश्किल में भी पड़ सकती है.
डेमोक्रेट पार्टी का रुख़
डेमोक्रेटिक पार्टी की रणनीतिकार और राजनीतिक विश्लेषक मैरी एन मार्श कहती हैं कि अमेरिका यूक्रेन की संप्रभुता का सबसे बड़ा समर्थक है और राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हमेशा इस पर कटिबद्ध रहे हैं.
डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार यूक्रेन संबंधी फ़ैसलों में शुरू से ही शामिल रही हैं.
मैरी एन मार्श कहती हैं, “वो यूक्रेन संबंधी हर बैठक में शामिल रही हैं. उन्होंने राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को रूसी हमले की ख़ुफ़िया जानकारी भी दी थी ताकि वो उससे निपटने के लिए तैयारी कर सकें.”
वे कहती हैं, “वो ख़ुफ़िया मामलों पर ज़ेलेंस्की को सलाह भी देती हैं. अगर वो राष्ट्रपति बनती हैं तो यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी हमले को ख़त्म करने में यूक्रेन को काफ़ी मदद मिलेगी.”
दर्जनों देश यूक्रेन को सैनिक, आर्थिक और मानवीय सहायता प्रदान कर रहे हैं मगर यूक्रेन को सबसे अधिक सहायता अमेरिका दे रहा है.
इसी महीने अमेरिका ने 42 करोड़ डॉलर से अधिक की सैनिक सहायता यूक्रेन को दी है.
अब यूक्रेन की निजी कंपनियां भी हथियार उत्पादन के क्षेत्र में आ रही हैं. मगर देश के कई क्षेत्रों को चलाने और कर्मचारियों की तनख़्वाह के लिए यूक्रेन को सहयोगी देशों से आर्थिक सहायता की ज़रूरत है.
मैरी एन मार्श का कहना है कि युद्ध की शुरुआत के समय से ही यूक्रेन को सहायता के विषय में अमेरिका की दोनों पार्टियों के बीच सहमती रही है.
वो कहती हैं, “डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के अलावा रिपब्लिकन पार्टी के बहुसंख्यक सांसद भी यूक्रेन को दी जाने वाले सहायता पैकेज का समर्थन करते रहे हैं.”
लेकिन यह काम आसान भी नहीं रहा है. 61 अरब डॉलर के सहायता पैकेज को मंज़ूरी देने में महीनों की देरी हो चुकी है.
कई रिपब्लिन सांसदों की राय है कि इस धन का इस्तेमाल मेक्सिको के साथ लगी सीमा पर अवैध प्रवासन को रोकने के लिए दीवार बनाने के लिए खर्च किया जाना चाहिए.
कई रिपब्लिकन मतदाता भी इस सोच का समर्थन करते हैं.
अगर कमला हैरिस राष्ट्रपति चुनी जाती हैं तो क्या यूक्रेन का समर्थन ऐसे ही जारी रहेगा या उसमें कोई बदलाव आएगा?
मैरी एन मार्श कहती हैं, “अभी इसका जवाब देना मुश्किल है. उनके यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ अच्छे संबंध हैं मगर जिस प्रकार वो इसराइल-गज़ा युद्ध में संघर्ष विराम पर ज़ोर दे रही हैं हो सकता है कि वो यूक्रेन में युद्धविराम पर बल दें.”
यहां यह भी बता दें कि कमला हैरिस ने कभी भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात या फ़ोन पर बात नहीं की है लेकिन अमेरिकी चुनावों में उनके प्रतिद्वंदी डोनाल्ड ट्रंप पुतिन के संपर्क में रहे हैं.
रिपब्लिकन का रवैया
अटलांटिक काउंसिल के स्कोक्रॉफ़्ट सेंटर फॉर स्ट्रैटेजी एंड सिक्युरिटी के उपाध्यक्ष मैथ्यू क्रोनिग रिपब्लिकन विदेश नीति पर कई किताबें लिख चुके हैं.
वो याद दिलाते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन युद्ध रोकना चाहते हैं. वो कहते हैं, “वो बयान दे चुके हैं कि वो ज़ेलेंस्की से कहेंगे कि वो समझौता करें वरना अमेरिका सहायता रोक देगा.”
“लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि वो पुतिन से भी कहेंगे कि वो समझौता कर लें, नहीं तो अमेरिका यूक्रेन को पहले से भी अधिक सहायता देना शुरू कर देगा.”
तो सवाल है कि यह किस प्रकार का समझौता होगा?
मैथ्यू क्रोनिग के अनुसार, ट्रंप के कुछ क़रीबी लोगों की सोच है कि समझौते के तहत यूक्रेन को सैनिक सहायता जारी रख कर सुरक्षा की यह गारंटी दी जाए ताकि भविष्य में रूस उस पर दोबारा हमला नहीं कर पाएगा.
वो कहते हैं, “मगर इसका मतलब यह नहीं है कि रूस यूक्रेन की हड़पी हुई ज़मीन अपने कब्ज़े में रख ले. बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत यूक्रेन को उसकी ज़मीन वापिस सौंपी जाए. मौजूदा हालात को देखते हुए यह व्यावहारिक रवैया हो सकता है.”
पुतिन को लेकर असमंजस
पुतिन कब क्या करेंगे कहना मुश्किल होता है और यही बात डोनाल्ड ट्रंप पर भी लागू होती है.
मिसाल के तौर पर उन्होंने अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान कई विवादास्पद बयान दिए, फ़ैसले किए और धमकियां दीं.
उन्होंने ईरान को धमकी दी थी कि अगर उसने परमाणु हथियार बनाए तो उसे वो अंजाम भुगतना होगा जैसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ.
उनके कुछ पूर्व अधिकारियों के अनुसार, उन्होंने पुतिन को भी कहा था कि अगर उन्होंने यूक्रेन पर हमला किया तो अंजाम बुरा होगा.
इसलिए पुतिन भी सावधान रहेंगे क्योंकि वो जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप क्या करेंगे इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.
मगर ट्रंप ने यूक्रेन को दी जा रही सैनिक सहायता के बारे में चुनावी अभियान के दौरान क्या कहा है?
मैथ्यू क्रोनिग के अनुसार, “ट्रंप ने कहा कि अमेरिका यूक्रेन को बहुत ज़्यादा सहायता दे रहा है. एक बार उन्होंने यह भी कहा कि ज़ेलेंस्की दुनिया के सबसे अच्छे सेल्समैन हैं. वो वॉशिंगटन आते हैं और अरबों डॉलर का पैकेज ले जाते हैं.”
2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान अमेरिका को नेटो से बाहर करने की धमकी भी दी थी.
मैथ्यू क्रोनिग मानते हैं कि सहयोगी देशों में इस बात को लेकर चिंता है कि अगर यूक्रेन को मिल रही अमेरिकी सहायता रुक जाए तो क्या होगा?
मगर यूरोप अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारी भागीदार है इसलिए ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका यूरोप का साथ छोड़ेगा.
मैथ्यू क्रोनिग के अनुसार, फ़िलहाल ट्रंप के चुनाव जीतने की संभावना 50 प्रतिशत है यानि वो आने वाले कुछ महीनों में यूक्रेन में कोई समझौता कराएंगे इसकी संभावना भी पचास प्रतिशत है.
वे कहते हैं कि इसलिए विश्लेषकों ओर सरकारी अधिकारियों को इस समझौते के स्वरूप पर सोचना शुरू करना चाहिए क्योंकि इसका असर सभी पर पड़ेगा.
जोख़िम की घड़ी
यूकेन स्थित थिंकटैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टिट्यूट में सैन्य विज्ञान के निदेशक मैथ्यू सैविल कहते हैं कि फ़िलहाल यूक्रेन युद्ध में रूस का पलड़ा भारी होता दिख रहा है.
वो कहते हैं, “रूस समझौते के लिए कब तैयार होगा, यह कहना मुश्किल है. रूस के लक्ष्य अभी भी वही हैं. एक लक्ष्य है कि यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन हो, दूसरा यह कि यूक्रेन नेटो या यूरोपीय संघ का सदस्य ना बने जिससे रूस के लिए सुरक्षा का मसला खड़ा हो जाए. रूस के मक़सद अभी भी वही हैं.”
“यूक्रेन की सफलता यही है कि उसने अभी तक अपनी अधिकांश ज़मीन को अपने कब्ज़े में रखा है और रूस को उसके लक्ष्य से दूर रखा है.”
“लेकिन राष्ट्रपति बाइडन का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद नए राष्ट्रपति के कार्यभार संभालने के बीच का अंतराल यूक्रेन के लिए जोख़िम का समय हो सकता है.”
बाइडन ने यह तो सुनिश्चित कर दिया है कि यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता उस तक पहुंच जाए.
मगर मैथ्यू सैविल कहते हैं कि यूक्रेन की समस्या केवल हथियारों की सप्लाई नहीं बल्कि युद्ध में हताहत हुए सैनिकों की जगह नए सैनिकों की भर्ती है.
रूस को भी अगले साल तक अपने टैंक और हथियारों की सप्लाई को बढ़ाना पड़ेगा ताकि युद्ध में उसके सैन्य संसाधनों की क्षतिपूर्ती हो सके.
यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों ने यूक्रेन को इस साल के अंत तक 38 अरब डॉलर का कर्ज़ देने का फ़ैसला किया है जिसे ज़ब्त किए गए रूसी धन से मिलने वाले ब्याज़ से चुकाया जाएगा.
मैथ्यू सैविल की राय है कि यूक्रेन के लिए अमेरिका का समर्थन तो ज़रूरी है लेकिन उसे यूरोपीय संघ को अधिक समर्थन के लिए राज़ी करना पड़ेगा.
उन्होंने कहा, “यूरोप रक्षा संसाधनों पर रूस से कहीं अधिक खर्च करता है मगर सवाल यह है कि यह पैसे कैसे खर्च हो रहे हैं. दूसरी बात यह है कि अगर अमेरिकी सहायता किसी कारणवश खटाई में पड़ती है तो यूक्रेन को यूरोप का समर्थन जारी रहे.”
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने अमेरिका यात्रा के बाद नेटो प्रमुख से भी मुलाक़ात की और अपनी जीत की योजना को ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं के सामने पेश किया.
मैथ्यू सैविल का कहना है कि अमेरिका और यूरोप ने यूक्रेन को एक समान सहायता का वादा किया था लेकिन यूरोप अभी तक अपने वादे के अनुसार पर्याप्त सहायता नहीं दे पाया है जिस वजह से उसकी आलोचना भी हो रही है.
वो कहते हैं कि लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या इस मामले में यूरोप में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है?
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर -अमेरिका का अगला राष्ट्रपति यूक्रेन युद्ध पर क्या असर डाल सकता है?
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार चाहते हैं कि युद्ध समाप्त हो. मगर सवाल यह है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन को उनके लक्ष्य प्राप्त करने से रोकने के लिए वो क्या रणनीति अपनाएंगे?
राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की अपनी विजय योजना कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप के सामने पेश कर चुके हैं.
अब कुछ ही दिनों में यूक्रेन के लोगों को पता चल जाएगा की उनको सबसे अधिक सहायता देने वाला अमेरिका इस युद्ध में उन्हें आगे कितनी सहायता देगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित