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भारत और अमेरिका के संबंधों में जिस समय काफ़ी उतार-चढ़ाव नज़र आ रहे हैं, उसी समय अमेरिका, पाकिस्तान के साथ लंबे समय से चले आ रहे कूटनीतिक ठहराव के बाद सहयोग के रास्ते खोलता दिखाई दे रहा है.
हालिया महीनों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफ़ी सुधार हुआ है और यह आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक साझेदारी और उच्च-स्तरीय कूटनीतिक दौरों के ज़रिए साफ़ नज़र आता है.
ऐतिहासिक रूप से शीत युद्ध और अफ़ग़ानिस्तान में शुरुआती सालों के सुरक्षा सहयोग के दौरान अमेरिका-पाकिस्तान के बीच क़रीबी साझेदारी शुरू हुई, लेकिन समय के साथ इनमें गिरावट आई और समय-समय पर कूटनीतिक तनाव पैदा होता रहा.
हालांकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इन रिश्तों में नए सिरे से संतुलन बनाने की झलक दिखाई दी है.
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यह नई पहल ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका और भारत के रिश्तों में व्यापार और टैरिफ़ को लेकर खींचतान बढ़ी है.
इसके साथ ही मई में भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव के दौरान अमेरिका ने संघर्षविराम कराने में अहम भूमिका निभाने का दावा किया था.
हालिया सालों में अमेरिका की विदेश नीति चीन के असर को संतुलित करने के लिए भारत के पक्ष में झुकी रही है.
लेकिन रूस से तेल ख़रीदने और अमेरिकी सामान पर भारत की ऊंची टैरिफ़ दर का हवाला देते हुए ट्रंप ने भारतीय सामान पर कुल 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है. इसके बाद अमेरिका और भारत के रिश्तों में खटास आई है.
इसकी तुलना में पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में मौजूद किसी भी देश की तुलना में अमेरिका के साथ टैरिफ़ पर अच्छी डील की है और टैरिफ़ दरें कम रखने में कामयाबी हासिल की है.
पाकिस्तान में कई लोग अमेरिका के साथ रिश्तों में आई गर्मजोशी को लेकर आशावादी हैं और इसे “नया अध्याय” बता रहे हैं, जबकि कुछ ने मौजूदा नज़दीकी की स्थिरता पर संदेह जताया है.
भारत में विशेषज्ञों का कहना है कि यह सहयोग रणनीतिक से ज़्यादा लेन-देन आधारित हैं, जो अमेरिका के आर्थिक और सामरिक हितों पर आधारित हैं.
अमेरिका-पाकिस्तान के गहरे होते रिश्ते
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बीते महीनों में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच उच्च-स्तरीय संपर्क तेज़ हुए हैं, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में सुधार साफ़ दिखाई देता है.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग को बढ़ाया है और इसके साथ ही एनर्जी और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग की संभावना तलाशनी शुरू की है.
अप्रैल में एरिक मेयर की अगुवाई में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद का दौरा किया था और क्रिटिकल मिनरल्स में निवेश की संभावनाओं पर चर्चा की, जो कि अमेरिका के एडवांस्ड टेक्नोलॉजीज़ के क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग के लिए रणनीतिक प्रयास का संकेत भी है.
इसी दौरान पाकिस्तान ने घोषणा की कि ट्रंप समर्थित एक क्रिप्टोकरेंसी वेंचर ने पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल के साथ समझौता किया है ताकि क्रिप्टोकरेंसी एप्लिकेशंस को आगे बढ़ाया जा सके और ब्लॉकचेन इनोवेशन में तेज़ी लाई जा सके.
जुलाई में एक बड़ी कामयाबी तब हाथ लगी जब पाकिस्तानी सामान पर 19 फ़ीसदी टैरिफ़ पर अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हुए. ट्रंप ने कहा कि यह सौदा पाकिस्तान को “विशाल तेल भंडार” का दोहन करने में मदद करेगा.
कूटनीतिक संबंध भी तब काफ़ी गहरे हुए जब पाकिस्तानी सेना के प्रमुख फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर अगस्त में दोबारा अमेरिका के दौरे पर गए. इससे पहले उन्होंने जून में हुए दौरे में ट्रंप के साथ प्राइवेट लंच किया था.
पाकिस्तान के प्रति नरम रुख़
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जुलाई में उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मिनरल्स, व्यापार, टेक्नोलॉजी और आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग पर चर्चा की थी. इस बैठक के बाद दोनों नेताओं के बीच कई बार टेलीफ़ोन पर बातचीत हुई थी.
ख़ास बात यह भी है कि इसी बीच अमेरिका ने बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और उसके सहयोगी मजीद ब्रिगेड को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया, जो पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही मांग थी.
ग़ौरतलब बात यह रही कि अमेरिका ने मुनीर के ‘परमाणु हमले की चेतावनी’ वाले बयान से खुद को दूर रखा और कहा कि वह दोनों क्षेत्रीय शक्तियों के बीच बातचीत को अहमियत देता है.
दिप्रिंट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार आसिम मुनीर ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अगर भारत के साथ भविष्य की जंग में पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरा हुआ तो वह पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देगा.
इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, ”परमाणु हमले की धमकी देना पाकिस्तान की आदत में शामिल है.”
14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर रुबियो ने हाइड्रो कार्बन और क्रिटिकल मिनरल्स में सहयोग की प्रतिबद्धता दोहराई.
रिश्तों में उतार-चढ़ाव
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अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा जटिल रहे हैं. 1979 में सोवियत हमले के बाद दोनों क़रीब आए, लेकिन हालिया दशकों में रिश्ते अस्थिर बने रहे.
2000 के दशक की शुरुआत में आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग ने दोनों को जोड़ा, अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के हमले के बाद पाकिस्तान अमेरिका के एक सहयोगी के रूप में उभरा. मगर इस दौरान अमेरिका के ड्रोन हमलों से अविश्वास भी बढ़ा.
हालांकि इस दौरान दोनों के बीच सैन्य सहयोग गहरा हुआ लेकिन पाकिस्तान के क़बायली इलाक़ों पर अमेरिकी ड्रोन हमलों से दोनों के बीच अविश्वास भी पैदा हुआ.
ओबामा कार्यकाल के दौरान दोनों के संबंध तनावपूर्ण भी हुए. ख़ासकर साल 2011 में इस्लामाबाद के नज़दीक ओसामा बिन लादेन को मारने के बाद क्योंकि इससे अमेरिका का संदेह फिर से जाग उठा कि पाकिस्तान ‘डबल गेम’ खेल रहा है.
दोनों के बीच हालात तब और ख़राब हुए जब साल 2018 में ट्रंप ने पाकिस्तान की 25.5 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद रोक दी और इस्लामाबाद पर “झूठ और धोखाधड़ी” का आरोप लगाया.
हालांकि इस दौरान दोनों पक्षों ने संबंधों को फिर से बहाल करने की कोशिशें कीं लेकिन पाकिस्तान के अफ़ग़ान तालिबान और दूसरे चरमपंथी समूहों को कथित समर्थन के कारण इनमें रुकावटें आती रहीं.
जो बाइडन के दौर में अमेरिका ने भारत को प्राथमिकता दी और पाकिस्तान से सिर्फ़ आतंकवाद-रोधी मुद्दों पर बातचीत की.
पाकिस्तानी अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक़, “अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद वॉशिंगटन की नज़र में पाकिस्तान की अहमियत और घट गई.”
हालांकि बाइडन प्रशासन के जाने के बाद ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अब रिश्तों में सुधार की शुरुआती झलक मिली है.
फिर क्या बदला?
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कुछ विश्लेषकों ने ट्रंप के पाकिस्तान को लेकर रवैये में साफ़ बदलाव महसूस किया है, जिनमें इस बदलाव के लिए आर्थिक, सुरक्षा और भूराजनीतिक कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
पाकिस्तानी मीडिया और अधिकारी रिश्तों में बेहतरी का श्रेय आतंकवाद-रोधी सहयोग और मई में भारत के साथ सैन्य संघर्ष के बाद इस्लामाबाद की कूटनीति को दे रहे हैं.
उर्दू अख़बार जंग लिखता है, “भारतीय हमले के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी सेना के शानदार और ज़िम्मेदाराना प्रदर्शन और सरकार की तथ्यों और तर्कों पर आधारित विदेश नीति ने अंतरराष्ट्रीय स्थिति को पाकिस्तान के पक्ष में मोड़ने में सफलता हासिल की. इसका परिणाम है कि अमेरिका अब भारत समर्थित आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के साथ खड़ा है.”
हालांकि, भारत में मौजूद विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिका का ध्यान अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों पर ज़्यादा है, जिनमें क्रिटिकल मिनरल्स, क्रिप्टो सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता शामिल है.
भारतीय अख़बार द फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस के एक लेख के मुताबिक़, ‘ट्रंप की इस दिलचस्पी की सबसे बड़ी वजह के पीछे अमेरिका की क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर चीन पर निर्भरता को घटाना है.’
इस लेख में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान के ईरान के साथ ‘मज़बूत’ संबंध भी एक अहम कारण है, क्योंकि ट्रंप ‘पाकिस्तान को एक पुल के तौर पर इस्तेमाल करते हुए बातचीत शुरू कर सकते हैं या युद्ध के ख़तरे को कम कर सकते हैं.’
वहीं जाने-माने भारतीय टिप्पणीकार ब्रह्मा चेलानी का मानना है कि पाकिस्तान के साथ बढ़ती नज़दीकियों की वजह ट्रंप के परिवार का इस्लामाबाद की क्रिप्टो संपत्ति में निवेश होना है.
वहीं कुछ विश्लेषक इसके लिए पाकिस्तान की कूटनीति और लॉबिंग को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. उनका तर्क है कि अमेरिका की ट्रेड डील को भारत के स्वीकार नहीं करने और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम के लिए ट्रंप के दावे को ख़ारिज करने से ट्रंप नाराज़ हैं.
पूर्व भारतीय राजनयिक विकास स्वरूप कहते हैं कि पाकिस्तान को लेकर ट्रंप के ‘नरम रुख़’ का ‘मतलब यह नहीं है कि उन्होंने भारत को छोड़ दिया है या भारत अब उनके लिए विरोधी है.’
वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि यह उनके हिसाब से सौदे को हासिल करने के लिए एक दबाव की रणनीति का हिस्सा है.”
अब आगे क्या हो सकता है?
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क्या पाकिस्तान और अमेरिका के बीच यह नज़दीकी लंबे समय तक बनी रहेगी, यह अभी साफ़ नहीं है. लेकिन कुछ विश्लेषक और मीडिया आउटलेट्स इसके लिए आशावादी हैं और सचेत रहने को भी कहते हैं.
पाकिस्तानी दैनिक अख़बार जंग लिखता है कि पाकिस्तान को उम्मीद करनी चाहिए कि अमेरिका के साथ बेहतर रिश्तों का “गहरा असर” देखने को मिलेगा.
वहीं एक दूसरा उर्दू अख़बार नवा-ए-वक़्त लिखता है कि पाकिस्तान के लिए ‘यह बेहद महत्वपूर्ण है’ कि वह अतीत के कई कड़वे अनुभवों और अभी तक झेल रहे नकारात्मक परिणामों को याद रखे.
“इसलिए इस बार राष्ट्रीय हितों ख़ासकर चीन के साथ पाकिस्तान की रणनीतिक साझेदारी के संबंध में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.