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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ महीनों में ही चीन पर दूसरी बार टैरिफ़ लगाकर बड़ा झटका दिया है. चीन से आयातित हर सामान पर 20 फ़ीसदी टैरिफ़ लगेगा.
बीजिंग पर यह नया टैरिफ़ हमला है. अमेरिका ने पहले ही चीन से आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100 फ़ीसदी तो कपड़ों और जूतों पर 15 फ़ीसदी तक टैरिफ़ लगा रखा है.
चीन इलेक्ट्रिक कार, सोलर पैनल, कपड़ों और खिलौनों सहित कई चीज़ों का निर्माण करता है और फिर इसे दुनिया भर में निर्यात करता है. इसके पास फैक्ट्रियों, असेंबली लाइन और सप्लाई की एक पूरी चेन है. लेकिन ट्रंप के टैरिफ़ ने चीन की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर सीधा प्रहार किया है.
अपने मजबूत निर्यात के बल पर दुनिया के देशों के साथ चीन का ट्रेड सरप्लस रिकॉर्ड 1 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ गया था. चीन ने 2024 में 3.5 ट्रिलियन डॉलर का निर्यात किया था और 2.5 ट्रिलियन डॉलर का आयात किया था.
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चीन लंबे समय से विश्व का कारखाना बना हुआ है. 1970 के दशक के आख़िर में अपनी अर्थव्यवस्था को इसने दुनिया के लिए खोला था. इसके बाद सस्ते श्रम और बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश के कारण यह बढ़ता गया.
अब देखना यह है कि ट्रंप का यह टैरिफ़ युद्ध चीन की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को कितना नुकसान पहुंचा सकता है?
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टैरिफ़ क्या है और यह कैसे काम करता है?
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दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला शुल्क टैरिफ़ कहलाता है.
इसका भुगतान आयातक ही करते हैं. किसी वस्तु पर 10 फीसदी टैरिफ़ का मतलब है कि चीन से अमेरिका में आई 4 डॉलर की उस वस्तु पर 0.40 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क देना होगा.
इससे आयातित वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और उपभोक्ता सस्ते घरेलू उत्पाद खरीदने लगते हैं. इससे आयात करने वाले देश को अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद मिलती है.
ट्रंप इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, नौकरियों की रक्षा करने और कर राजस्व बढ़ाने के तरीके के रूप में देखते हैं.
ट्रंप ने कहा है कि इस टैरिफ़ का उद्देश्य चीन पर दबाव डालना है. जिससे वह अमेरिका में आ रहे ओपिओइड फेंटेनाइल को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए.
मैक्सिको और कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ लगाते हुए उन्होंने कहा कि इन देशों के नेता अवैध ड्रग व्यापार को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं.
क्या टैरिफ़ से चीन की फैक्ट्रियों को नुकसान हो सकता है?
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विश्लेषकों की मानें तो इससे चीन की फैक्ट्रियों को नुकसान हो सकता है.
मूडीज एनालिटिक्स के अर्थशास्त्री हैरी मर्फी क्रूज ने बीबीसी को बताया कि निर्यात चीन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है. अगर टैरिफ़ जारी रहता है तो अमेरिका को होने वाले निर्यात में एक चौथाई से लेकर एक तिहाई की कमी आ सकती है.
चीन की आय का पांचवां हिस्सा निर्यात से आता है. टैरिफ़ 20 फीसदी लगाने के कारण विदेशी मांग कम हो सकती है और इससे ट्रेड सरपल्स कम हो सकता है.
हांगकांग नेटिक्सिस में एशिया-प्रशांत के लिए प्रमुख अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेरेरो ने बीबीसी को बताया, “टैरिफ़ चीन को नुकसान पहुंचाएंगे. उन्हें इस दिशा में बहुत कुछ करने की ज़रूरत है. शी जिनपिंग पहले ही कह चुके हैं कि घरेलू मांग को बढ़ावा देने की जरूरत है.”
चीनी लोग अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए पर्याप्त खर्च नहीं कर रहे हैं. चीन ने देश में उपभोग बढ़ाने के लिए कुछ उपायों की घोषणा की है.
विश्लेषकों का कहना कि टैरिफ़ से चीन की मैन्युफैक्चरिंग गति कम हो सकती है लेकिन इसे आसानी से रोका या फिर ख़त्म नहीं किया जा सकता हैं.
गार्सिया-हेरेरो कहती हैं, ” चीन सिर्फ निर्यातक ही नहीं है बल्कि कई मामलों में इकलौता निर्यातक ही है.अगर आपको सोलर पैनल चाहिए तो यह सिर्फ चीन से ही मिलेगा”
ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले ही चीन ने कपड़े और जूते बनाने से हटकर रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी उन्नत तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया था.
चीन की “जल्दी आगे बढ़ने” की आदत ने फ़ायदा दिया है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उसके उत्पादन के पैमाने की तो तुलना ही नहीं की जा सकती है.
स्टैंडर्ड चार्टर्ड में प्रमुख अर्थशास्त्री (चीन) शुआंग दिंग का कहना है कि उच्च-स्तरीय तकनीक से लैस चीनी कारखाने कम लागत पर बड़ी मात्रा में उत्पादन कर सकते हैं.
वो कहते हैं, ” इसका विकल्प ढूंढना सचमुच कठिन है…बाजार में चीन का वर्चस्व है और इसे बदलना बहुत ही कठिन है.”
ट्रंप के टैरिफ़ पर चीन कैसे ज़वाब दे रहा है?
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अमेरिकी टैरिफ़ के जवाब में चीन ने भी उसके कृषि उत्पादों, कोयला, एलपीजी, पिक-अप ट्रकों और कुछ स्पोर्ट्स कारों पर 10 से 15 फीसदी का टैरिफ़ लगाया है.
इसके साथ ही विमानन, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अमेरिकी कंपनियों के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं. गूगल के ख़िलाफ़ एकाधिकार विरोधी जांच की घोषणा कर दी है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी चीन ने कई सालों तक टैरिफ़ की मार झेली है. टैरिफ़ से बचने के लिए चीन के कुछ निर्माता अपनी फैक्ट्रियों को देश से बाहर ले गए हैं. ऐसे में अब सप्लाई चेन वियतनाम और मेक्सिको पर अधिक निर्भर हैं. अब यहां से निर्यात किया जाता है.
गार्सिया-हेरेरो कहती हैं कि ट्रंप के मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ़ से चीन को बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा क्योंकि वियतनाम पीछे से चीनी वस्तुओं के लिए बड़ा दरवाजा बना हुआ है.
वह कहती हैं, “वियतनाम यहां अहम कड़ी है. अगर वियतनाम पर टैरिफ़ लगाया जाता है, तो काफी मुश्किल हो जाएगा.”
विश्लेषकों का कहना है कि चीन को टैरिफ़ से अधिक चिंता उन्नत चिप्स पर अमेरिकी प्रतिबंधों की है.
ये प्रतिबंध दोनों देशों के बीच एक प्रमुख मुद्दा रहे हैं लेकिन इनसे चीन की घरेलू तकनीक में निवेश को बल मिला है. पश्चिमी देशों पर ये निर्भरता नहीं है.
यही वजह है कि चीनी एआई फर्म डीपसीक ने चैटबॉट जारी करके सिलिकॉन वैली को चौंका दिया और अमेरिका को बेचैन कर दिया. यह ओपन एआई के चैटजीपीटी को टक्कर देता है.
अमेरिका चीन की उन्नत चिप्स पर प्रतिबंध लगाए इससे पहले ही इस फर्म ने कथित तौर पर एनवीडिया चिप्स का भंडार जमा कर लिया था.
स्टैंडर्ड चार्टर्ड के दिंग ने कहा, “इससे चीन की प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता पर असर पड़ सकता है, लेकिन चीन की मैन्युफैक्चरिंग की ताकत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.”
दूसरी तरफ मैन्युफै़क्चरिंग में तकनीकी तरक्की चीन को निर्यात में और भी बढ़त दिलाएगी.
मैन्युफैक्चरिंग में चीन कैसे बना महाशक्ति?
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विश्लेषकों का कहना है कि सरकार का का समर्थन, बेहतरीन सप्लाई चेन और सस्ते श्रम ने चीन को मैन्युफैक्चरिंग की महाशक्ति बना दिया है.
‘द इकोनॉमिस्ट’ इंटेलिजेंस यूनिट के विश्लेषक चिम ली ने बीबीसी को बताया, “वैश्वीकरण के साथ-साथ चीन की व्यापार समर्थक नीतियां और बाजार की संभावनाओं ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है. “
इसके बाद चीन की सरकार ने कच्चा माल लाने और सामान को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए सड़कों और बंदरगाहों के विशाल नेटवर्क के निर्माण में भारी निवेश किया.चीनी युआन और अमेरिकी डॉलर के बीच स्थिर विनिमय दर ने भी इसमें मदद की.
विश्लेषकों का कहना है कि हाल में हुए उन्नत तकनीकी के बदलावों ने सुनिश्चित कर दिया है कि चीन की प्रासंगिकता बनी रहेगी और वो अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे रहेगा.
चीन के पास पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग महाशक्ति होने के कारण काफी आर्थिक ताकत है लेकिन ट्रंप के टैरिफ़ से कई देशों के साथ अमेरिकी रिश्ते बिगड़ रहे हैं जो चीन के लिए एक राजनीतिक मौका भी है.
मूडीज के क्रूज कहते हैं, “चीन के पास मुक्त व्यापार की वकालत करके वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने का रास्ता खुला हुआ है.”
विश्लेषकों को कहना है कि चीन को अमेरिका से इतर भी देखना चाहिए जो कि अभी भी उसके निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है.
कनाडा और मेक्सिको के बाद चीन अमेरिकी निर्यात के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है
यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका के साथ चीन का व्यापार बढ़ रहा है, लेकिन यह कल्पना कठिन है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर निर्भर रहना बंद कर सकती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित