भारत के सबसे अमीर और ताक़तवर उद्योगपतियों में 62 साल के गौतम अदानी का नाम आता है.
अमेरिका में उन पर और उनके कुछ साथियों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है. अब तक उन पर लगे आरोपों में शायद यह सबसे गंभीर है.
इसे अमेरिका की सरकारी संस्थाओं- डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस और यूएस सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) ने लगाया है.
हालाँकि, अदानी समूह ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है. साथ ही कहा है कि वे क़ानूनी विकल्प तलाशेंगे.
सवाल तो कई हैं
इन आरोपों की वजह से अदानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई.
आरोपों की गंभीरता और उन पर आई प्रतिक्रियाओं को देखते हुए एक बात साफ़ हो जाती है कि यह मामला यहीं रुकने वाला नहीं है.
सवाल कई हैं. अमेरिका में इस मामले से जुड़ी कानून प्रक्रिया कैसी होगी? इन आरोपों से अदानी समूह के व्यापार पर किस क़िस्म का असर पड़ेगा?
क्या गौतम अदानी और उनके साथी जेल भी जा सकते हैं? भविष्य में अदानी समूह अपने प्रोजेक्ट के लिए विदेशों से धन कैसे जुटा पाएगा?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए बीबीसी हिंदी ने भारत और अमेरिका में कई विशेषज्ञों से बात की.
क़ानूनी प्रक्रिया और चुनौतियाँ
ब्रिओन पीस न्यूयॉर्क में सरकारी अटॉर्नी हैं.
गौतम अदानी और अन्य लोगों पर लगे आरोपों को समझाते हुए उन्होंने कहा, “अरबों डॉलर के कांट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारत में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने की एक योजना बनाई गई.”
“गौतम अदानी, सागर अदानी और विनीत जैन अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे थे. इसीलिए उन्होंने उनसे झूठ बोला.”
आनंद आहूजा अमेरिका में डिफेंस अटॉर्नी हैं. तीन दशक से अधिक समय से वह वहाँ प्रैक्टिस कर रहे हैं.
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मुझे लगता है कि आरोपों को सिद्ध करना इतना आसान नहीं होगा. मैं इसके दो कारण आपको बताता हूँ.”
“पहला, इसमें बताया गया है कि जिन्हें रिश्वत दी गई है, वे भारत में हैं. तो अमेरिकी अफ़सर भारत में लोगों के बयान कैसे लेंगे? इसमें भारत के क़ानूनों को भी देखना पड़ेगा.”
“अगर कोई सरकारी अधिकारी है तो उसके ख़िलाफ़ ऐसी क़ानूनी कार्यवाहियों के लिए सरकार से पहले इजाज़त लेनी पड़ती है. यह एक पेचीदा केस बन सकता है.”
“अमेरिका के सरकारी वकील किस हद तक भारत में रह रहे लोगों, ख़ासकर सरकारी अधिकारियों से पूछताछ कर सकते हैं, यह देखना होगा.”
“इसमें आगे चलकर भारत के सुप्रीम कोर्ट की भी भूमिका हो सकती है… क्योंकि क़ानून क्या कहता है, यह सुप्रीम कोर्ट ही तय कर सकता है.”
वे बताते हैं, “दूसरा कारण है कि धोखाधड़ी के केस में जज के सामने एक ज़रूरी बात साबित करनी होती है. वह है, एक ही साथ आरोपी के काम और नीयत दोनों से धोखाधड़ी पता चलती हो.”
“उदाहरण के तौर पर आपने कोई काम किया लेकिन आप साबित कर पाते हैं कि यह आपने ग़लत इरादे से नहीं किया तो उसे धोखाधड़ी कहना मुश्किल होगा.”
“क्या अमेरिकी सरकार के वकील इसे साबित कर पाएँगे, यह देखने वाली बात है.”
पूरी कार्यवाही को ख़त्म होने में कितना समय लग सकता है?
इस सवाल पर आहूजा कहते हैं, “डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के पहले के केस आप देखें तो नज़र आएगा कि अभियोग लगने से लेकर सुनवाई पूरी होने के बीच आमतौर पर छह महीने से एक साल तक का समय लगता है.’’
क्या कोई सज़ा हो सकती है?
एचपी रनीना एक वरिष्ठ कॉर्पोरेट वकील हैं. उनका मानना है, “आरोप बहुत गंभीर हैं. यदि साबित हो जाएँ तो आरोपियों को कारावास हो सकती है या हर्जाना देना पड़ सकता है या दोनों सज़ाएँ भी हो सकती हैं.”
“अगर हम यह मान लें कि जूरी आरोपियों को दोषी ठहराती है तो सज़ा काफ़ी हद तक वहाँ के जज पर निर्भर करेगा.’’
रनीना के मुताबिक, “जहाँ तक यूएस सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन की बात है वे हर्जाने के लिए समझौता कर सकते हैं.”
“हालाँकि, आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, जुर्माने की राशि बड़ी हो सकती है. उस जुर्माने की भरपाई का असर अदानी समूह की अन्य कंपनियों पर भी पड़ सकता है.”
साल 1997 में भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण के बारे में एक समझौता हुआ था.
सवाल उठ भी रहे हैं कि क्या अमेरिका गौतम अदानी को गिरफ़्तार करने की माँग कर सकता है? अगर ऐसा हुआ तो भारत का जवाब क्या होगा?
रनीना ने बताया, “यह तो प्रत्यर्पण से जुड़े समझौते की शर्तों पर निर्भर करता है. मेरा मानना है कि दोनों सरकारें इसमें शामिल हो सकती हैं. ताकि इस मामले की अहमियत को देखते हुए, दोनों के बीच एक आम सहमति बन सके.’’
शेयर बाज़ार और अदानी ब्रांड: क्या होगा असर?
अमेरिका में लगे आरोपों के बाद कीनिया की सरकार ने अदानी समूह के साथ हुए दो समझौतों को रद्द करने का फ़ैसला लिया है.
इन समझौतों के तहत अदानी समूह कीनिया की राजधानी नैरोबी में जोमो केन्यात्ता अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट में 1.85 अरब डॉलर का निवेश करने वाला था.
इसके बदले में उसे एयरपोर्ट को 30 साल तक चलाने का कांट्रैक्ट मिलने वाला था. इसके अलावा 736 मिलियन डॉलर का एक और समझौता था.
इसके तहत वहाँ बिजली की लाइन बिछाने का काम अदानी समूह को मिला था.
दोनों ही मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. कीनिया के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने भी गुरुवार को इन समझौतों को रद्द करने का एलान करते वक़्त भ्रष्टाचार का हवाला दिया था.
रूटो ने कीनिया के संसद में कहा था, “हमारी जाँच एजेंसियों और साझेदार देशों द्वारा दी गई नई जानकारी से भ्रष्टाचार के बारे में निर्विवाद सुबूत और विश्वसनीय जानकारी सामने आई है. मैं इस पर निर्णायक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करूँगा.’’
कीनिया की ही तरह अदानी समूह की कंपनियाँ, कई देशों में प्रोजेक्ट चला रही हैं या शुरू करने की कोशिश कर रही हैं. भारत में कई राज्य सरकारों और विदेश में कई सरकारों के साथ इस समूह की कंपनियों के समझौते भी हुए हैं.
हालाँकि जिस तरह कीनिया ने कदम उठाए हैं, क्या बाक़ी देशों में भी ऐसा हो सकता है, यह अभी साफ़ नहीं है.
बीते गुरुवार को अदानी समूह की अलग-अलग कंपनियों के शेयर की क़ीमतों में गिरावट दर्ज की गई थी. हालाँकि, आरोपों के चलते शेयरों की कीमतों में गिरावट पहले भी देखी गई हैं.
फिर उनमें सुधार भी हुआ है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
अम्बरीश बलीगा स्टॉक मार्केट एक्सपर्ट हैं और किसी संस्था से जुड़े नहीं हैं.
उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, “मुझे लगता है कि अदानी समूह के लिए इस बार शेयरों की क़ीमत में गिरावट उतनी बड़ी नहीं होगी जितनी हमने हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद देखी थी.”
जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च नाम की अमेरिकी संस्था ने अपनी रिपोर्ट में अदानी समूह पर गंभीर आरोप लगाए थे.
उसी हफ़्ते अदानी समूह की कंपनियों की कुल स्टॉक मार्केट क़ीमत तक़रीबन 50 अरब डॉलर घट गई थी.
बलीगा बताते हैं, “ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने देखा है कि यह ग्रुप चुनौतियों के सामने अपना रास्ता निकालने में कामयाब हो जाता है. लेकिन हाँ, ऐसी रिपोर्टों से उनकी छवि पर सवाल उठते हैं.’’
“इसके चलते समूह को धन जुटाने में भी देरी होती है. संयोग है कि इस बार जब आरोप सामने आए हैं तो वे अदानी ग्रीन के लिए फंड जुटा रहे थे.’’
“जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आई थी तब वे अदानी एंटरप्राइज़ेज़ के लिए फंड जुटा रहे थे.’’
संतोष देसाई विश्लेषक हैं. वे मानते हैं कि इस विवाद से अदानी समूह की छवि पर असर होगा.
देसाई कहते हैं, “निवेशक डर जायेंगे. मुझे लगता है आगे चल कर अदानी समूह के लिए विदेशों में ‘इंस्टिट्यूशनल फंडिंग’ तक पहुँचना भी उतना आसान नहीं होगा.”
“तब सवाल है, क्या इस मामले से इस बात पर फ़र्क़ पड़ता है कि आम जनता उन्हें कैसे देखती है? मुझे लगता है कि अदानी राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक प्रतीक बन गए हैं.”
“जो लोग उन्हें पसंद करते हैं, वे उन्हें एक चैंपियन के रूप में देखते रहेंगे. वे मानेंगे कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. जो लोग उन्हें नापसंद करते हैं, वे कहेंगे कि वे हमेशा से इस ग्रुप के बारे में सही थे.”
क्या ब्रांड इंडिया पर भी असर पड़ेगा?
संतोष देसाई कहते हैं, “निवेशक फ़ायदा और स्थिरता चाहते हैं. अगर भारत यह दे सकता है, तो कोई कंपनी क्या करती है या क्या नहीं करती, इससे फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.”
“वैसे भी हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहाँ कोई शायद ही किसी पर उँगली उठाने की क़ाबिलियत रखता हो.”
“हाँ, यह मामला इस धारणा को आगे बढ़ा सकता है कि व्यापार जगत में कुछ हद तक राजनीतिक संरक्षण एक ज़रूरत है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित