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ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा ने आठ सितंबर को ब्रिक्स देशों के नेताओं का वर्चुअल समिट बुलाया था. लेकिन पीएम मोदी इसमें शामिल नहीं हुए.
ऐसा तब है, जब इसी महीने पीएम मोदी एससीओ समिट के लिए चीन के तियानजिन शहर गए थे. दूसरी तरफ़ ब्रिक्स की अध्यक्षता अगले साल भारत के पास आने वाली है.
एससीओ और ब्रिक्स दोनों को चीन के दबदबे वाले गुट के रूप में देखा जाता है. नरेंद्र मोदी के बदले इस समिट में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर शामिल हुए.
पीएम मोदी के शामिल नहीं होने को भारत के संतुलनवादी रुख़ के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि ब्राज़ील ने इस समिट को अमेरिका विरोध के रूप में पेश नहीं किया था.
इस वर्चुअल समिट में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला भी शामिल हुए. ऐसे में लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी क्यों नहीं शामिल हुए?
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क्या नरम पड़ रहा है भारत?
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा है, ”यह संतुलनवादी रुख़ है या मोदी अमेरिका से डील करने के लिए नरम पड़ रहे हैं? ब्रिक्स के वर्चुअल ट्रेड समिट में मोदी के शामिल नहीं होने का फ़ैसला बहुत ही सोचा समझा था ताकि अमेरिका के साथ बातचीत के नाज़ुक दौर में उसे और नाराज़ न किया जाए. ऐसा तब है, जब भारत अमेरिका के टैरिफ़ का सबसे बड़ा शिकार है.”
”भले ही इससे संदेश जाए कि भारत ब्रिक्स को लेकर कम प्रतिबद्ध है. पुतिन और शी जिनपिंग के सामने अपने विदेश मंत्री को भेजकर मोदी ट्रंप के टैरिफ़ के ख़िलाफ़ एकजुट ब्रिक्स मोर्चे में शामिल होने से बच रहे हैं.”
चेलानी ने लिखा है, ”यह दिखाता है कि भारत अमेरिका से टकराव बढ़ाना नहीं चाहता है. ट्रंप के पहले कार्यकाल में मोदी ने अमेरिका के टैरिफ़ के जवाब में टैरिफ़ लगाया था लेकिन इस बार भारत ट्रंप के प्रतिबंधों और टैरिफ़ का जवाब देने से बच रहा है.”
कांग्रेस वर्किंग कमिटी की सदस्य सुप्रिया श्रीनेत ने भी एक्स पर पूछा है कि मोदी ब्रिक्स के वर्चुअल समिट में क्यों नहीं शामिल हुए? श्रीनेत ने लिखा है, ”क्या मोदी ट्रंप से इतने डर गए हैं? हमें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा क्यों नहीं करनी चाहिए?”
इस समिट में जयशंकर ने कहा, ”भारत यह मज़बूती से मानता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए और नियम आधारित हो. ट्रेड को अन्य मामलों से जोड़ने का कोई फ़ायदा नहीं होगा. ट्रेड को बाधित करना कोई समाधान नहीं है. ब्रिक्स देश इस मामले में मिसाल पेश कर सकते हैं.”
पहले से ही कहा जा रहा था कि अगर ट्रंप के कहे अनुसार, भारत रूस से तेल आयात बंद कर देता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति दूसरी मांग रखेंगे.
जयंत दासगुप्ता विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के राजदूत (2010-14) रह चुके हैं. इन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में 28 अगस्त को एक आर्टिकल लिखा था. जयंत दासगुप्ता का मानना है कि भारत अगर तेल ख़रीदना बंद कर दे तो संभव है कि ट्रंप गोलपोस्ट बदल दें.
दासगुप्ता ने लिखा था, “ट्रंप ने यूरोप और चीन पर (रूस से तेल ख़रीदने पर) कोई टैरिफ़ नहीं लगाया जबकि ये दोनों रूस के सबसे बड़े ऊर्जा ख़रीदार हैं. अगर भारत रूसी तेल की खरीद बंद भी कर देता है तो शर्तें बदलकर रूसी रक्षा उपकरण ख़रीद रोकने, ब्रिक्स से बाहर निकलने और दूसरे देशों की मुद्रा में व्यापार न करने तक जा सकती हैं.”
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ब्रिक्स पर अमेरिका का हमला जारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने अब ब्रिक्स पर हमला बोला है. नवारो ने सोमवार को कहा कि ब्रिक्स बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है क्योंकि इसके सभी सदस्य देश एक दूसरे से नफ़रत करते हैं. नवारो ने कहा कि ब्रिक्स देश अमेरिका का दोहन कर रहा हैं. उन्होंने ब्रिक्स की तुलना वैम्पायर से की है.
ब्रिक्स के संस्थापक देश ब्राज़ील, इंडिया, रूस और चीन हैं. इसमें बाद में साउथ अफ़्रीका शामिल हुआ था. लेकिन इस संगठन का लगातार विस्तार हो रहा है. इसे अमेरिका विरोधी संगठन के रूप में भी देखा जाता है, जिसमें चीन का दबदबा है. अब इसमें इन चार देशों के अलाव मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया भी शामिल हो गए हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में ब्रिक्स पर काफ़ी हमलावर दिख रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि ब्रिक्स अमेरिकी करेंसी डॉलर के दबदबे को कमज़ोर करने में लगा है. ट्रंप ब्रिक्स देशों को आए दिन धमकाते रहते हैं. इसी कड़ी में सोमवार को रीयल अमेरिकाज़ वॉइस शो को दिए इंटरव्यू में नवारो ने कहा, ”मुझे नहीं लग रहा है कि ब्रिक्स लंबे समय तक टिकेगा क्योंकि ऐतिहासिक रूप से इसके सदस्य देश आपस में ही एक दूसरे को मारने में लगे हैं.”
नवारो ने कहा, ”सीधी सी बात है कि ब्रिक्स का कोई भी देश अगर अमेरिका में सामान ना बेचे तो उनके लिए बने रहना आसान नहीं होगा. ये जब अमेरिका को सामान बेचते हैं तो किसी वैंपायर की तरह हमारा ख़ून पीते हैं.” दरअसल, नवारो कहना चाह रहे हैं कि ब्रिक्स देश अमेरिकी सामानों के लिए अपना बाज़ार नहीं खोलते हैं और अमेरिका के पूरे बाज़ार का फ़ायदा उठाते हैं.
नवारो पिछले कुछ समय से भारत को आए दिनों आड़े हाथों लेते रहते हैं. ख़ास कर रूस से भारत के तेल आयात को लेकर. नवारो का कहना है कि भारत अमेरिकी सामानों पर ज़्यादा टैरिफ लगाता है और अमेरिका में अपने सामानों पर कम टैरिफ़ चाहता है.
‘कैसे संभालेंगे मोदी?’
नवारो ने कहा, ”भारत का चीन के साथ दशकों से टकराव चल रहा है. चीन ने पाकिस्तान को परमाणु बम दिया. हिन्द महासागर में अब चीनी झंडे लगे पोत चक्कर काटते रहते हैं. मैं देखना चाहूंगा कि मोदी इसे कैसे संभालते हैं. रूस और चीन बिल्कुल एक लाइन पर हैं. रूसी पोर्ट व्लादिवोस्तोक पर चीन की नज़र है और साइबेरिया को पहले से ही उपनिवेश बना रहा है. पुतिन को इसके लिए शुभकामनाएं.”
ब्राज़ील पर भी निशाना साधते हुए नवारो ने कहा, ”ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा की समाजवादी नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था डूब रही है. यहाँ के असली नेता बोलसोनारो को क़ैद कर दिया गया है.” 2022 में राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद बोलसोनारो पर तख़्तापलट की साज़िश रचने का आरोप लगा था. इसी के तहत उन पर मुक़दमा चल रहा है.
नवारो ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करना होगा. उन्होंने कहा, ”भारत को ‘टैरिफ़ किंग’ कहा तो बुरा लगा था लेकिन यह पूरी तरह से सच है. अमेरिका के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाले बड़े देशों में भारत सबसे आगे है. हमें इसे सही करना होगा. भारत यूक्रेन में युद्ध से पहले रूस से तेल नहीं ख़रीदता था. लेकिन यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से भारत के मुनाफ़ाखोर पैसे कमा रहे हैं.”
नवारो ने कहा, ”अमेरिका ने ईयू, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया के साथ व्यापार समझौते किए हैं. ये सारे देश हमारे साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इन्हें पता है कि ये अमेरिकी बाज़ार से काफ़ी मुनाफ़ा कमा रहे हैं. मुझे लगता है कि भारत रूस से तेल ख़रीदना बंद कर देगा तो यह शांति के हक़ में होगा. यूक्रेन में शांति की राह नई दिल्ली से निकलती है. यूरोप को भी रूस से तेल ख़रीदना बंद कर देना चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित