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अयोध्या में 25 नवंबर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोपहर 12 बजे राम मंदिर पर भगवा ध्वज फहराया और कहा कि 500 साल का इंतज़ार ख़त्म हो गया.
उन्होंने कहा, “यह यज्ञ कभी आस्था से डिगा नहीं, कभी विश्वास से टूटा नहीं. यह पल सिर्फ़ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के विश्वास, प्रतीक्षा और धैर्य का फल था.”
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक गोल भी सेट किया कि ‘लॉर्ड मैकाले की मानसिकता से निकलना है.’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘मैकाले ने भारत में मानसिक ग़ुलामी की नींव रखी थी’, इससे अगले 10 साल में निकलना होगा.
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हालाँकि यह मौक़ा राम मंदिर के ध्वजारोहण का था लेकिन इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि प्रधानमंत्री के भाषण में स्पष्ट राजनीतिक संदेश था. एक तो उन्होंने 500 साल बाद राम मंदिर बनने की बात कही. वहीं पिछड़ी जातियों को हिंदुत्व के साथ जोड़ने का प्रयास किया.
क्या कोई सियासी मायने हैं?
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दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार और आरएसएस–बीजेपी को नज़दीक से जानने वाले विजय त्रिवेदी कहते हैं कि इस पूरे अभियान को वह चुनावी नज़रिए से नहीं देखना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री राजनीति का डिस्कोर्स बदलना चाहते हैं. वह यह दिखा रहे हैं कि हिंदू अब राजनीति का केंद्र बिंदु रहेगा, तो सभी राजनीतिक दलों को हिंदू को केंद्र में रखकर राजनीति करनी होगी, पहले मुस्लिम राजनीति का केंद्र हुआ करता था जिसे बीजेपी तुष्टिकरण की राजनीति कहती रही है.”
बिहार के चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने क्लीन स्वीप किया है. विपक्ष की सीटों की कुल संख्या 50 तक नहीं पहुँच पाई है.
2026 में चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश- असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं.
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ”मोदी अब चुनावी राजनीति की भी परवाह नहीं कर रहे हैं, कम से कम बाहरी तौर पर यही दिखाने का प्रयास है. इसलिए वह हिंदुत्व वाली राजनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. बार-बार 500 सालों का ज़िक्र यह जताने के लिए है कि हिंदू पहले उस तरह महत्वपूर्ण नहीं था, जो अब है.”
हालाँकि असम में बीजेपी की सरकार है, पुडुचेरी में एनडीए की सरकार है. इस साल 2025 में हुए चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को शिकस्त दी है. बिहार में बड़े मार्जिन से एनडीए की सरकार बनी है.
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ”चुनाव तो सिर्फ बाई प्रोडक्ट है, असली एजेंडा हिंदुत्व ही है क्योंकि बीजेपी 240 सीटों पर आने के बाद भी हिंदुत्व पर ही फ़ोकस कर रही है.”
‘जातीय गोलबंदी का जवाब हिंदुत्व’
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केरल और तमिलनाडु में बीजेपी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. केरल में बीजेपी के एकमात्र सांसद सुरेश गोपी हैं.
हालाँकि पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सरकार बनाने की इच्छा लंबे समय से रही है. लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीजेपी के सामने हैं. वो अब चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ लगातार बोल रही हैं.
उनका आरोप है कि एसआईआर के ज़रिए टीएमसी समर्थित वोट को काटने की योजना है. टीएमसी का अल्पसंख्यक वर्ग पर खासा प्रभाव है.
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी का यह अभियान हिंदुत्व की अपनी छवि मज़बूत करने का है.
प्रधानमंत्री मोदी ने ध्वजारोहण के बाद कहा, ”यह धर्मध्वजा केवल ध्वजा ही नहीं, बल्कि यह भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का ध्वज है.”
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस ने कहा, ”प्राण प्रतिष्ठा का कोई असर 2024 के आम चुनाव पर नहीं हुआ, लेकिन शायद बीजेपी को लगता है कि जातीय गोलबंदी का जवाब हिंदुत्व ही है. प्रधानमंत्री के भाषण से लग रहा था कि जातीय गोलबंदी का जवाब देने की तैयारी ही है.”
उन्होंने कहा, ”पीडीए का सफल प्रयोग यूपी में हो चुका है, इसलिए लगातार हिंदुत्व को उभारने की कोशिश की जा रही है. हालाँकि बिहार में पिछड़ी जाति के लोगों को बीजेपी ने आगे बढ़ाया है, लेकिन अभी बीजेपी का ध्यान यूपी पर ही है. इसलिए योगी आदित्यनाथ लगातार हिंदुत्व की ही बात कर रहे हैं.”
हालाँकि प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले प्राण प्रतिष्ठा की थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीटें कम हो गईं. वहीं इंडिया गठबंधन ने 43 सीटें जीती थीं. बीजेपी ख़ुद अयोध्या की सीट हार गई.
वरिष्ठ पत्रकार सैयद क़ासिम कहते हैं, ”राम मंदिर अब मुद्दा नहीं रहा, इसलिए उत्तर प्रदेश में इसका असर नहीं है. मंडल की राजनीति हमेशा मंदिर की राजनीति पर भारी रही है. हालाँकि इसका दूसरे प्रदेशों में क्या असर होगा, यह चुनाव के वक़्त पता चल सकेगा.”
‘प्रधानमंत्री ने दिया स्पष्ट राजनीतिक संदेश’
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हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस कार्यक्रम में सभी जातियों के लोगों को आमंत्रित किया था. इसमें बुंदेलखंड के आदिवासी समाज के लोग भी थे.
उन्होंने इस बात पर रोशनी डाली कि “यहां सात मंदिर निर्मित हैं, जिनमें माता शबरी का मंदिर भी शामिल है, जो आदिवासी समुदाय की प्रेम और आतिथ्य परंपराओं का प्रतीक है.”
प्रधानमंत्री ने निषादराज के मंदिर का ज़िक्र करते हुए कहा, “यह उस मैत्री का साक्षी है जो साधनों की नहीं, बल्कि उद्देश्य और भावना की पूजा करती है.”
उन्होंने बताया कि एक ही स्थान पर माता अहिल्या, महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य और संत तुलसीदास विराजमान हैं, जिनकी रामलला के साथ उपस्थिति भक्तों को उनके दर्शन कराती है.
समारोह की शुरुआत भी सप्त ऋषि मंदिर से हुई. यहाँ सप्त ऋषियों की प्रार्थना और विशेष वैदिक अनुष्ठान संपन्न किए गए.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस कहते हैं, “प्रधानमंत्री के भाषण में स्पष्ट राजनीतिक संदेश था, खासकर पिछडे़ समुदाय के लिए, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में दो बार ऋषि मंदिर का ज़िक्र किया, जो राम मंदिर परिसर के भीतर है.”
“इसमें निषादराज—जिन्होंने वनवास के दौरान भगवान राम को गंगा पार कराने में मदद की थी—और शबरी—वह आदिवासी महिला जिन्होंने राम को बेर खिलाए थे, उनके मंदिर शामिल हैं.”
वहीं विजय त्रिवेदी ने कहा, ”प्रधानमंत्री के भाषण में सभी जातियों को हिंदुत्व के नीचे लाने के प्रयास के तौर पर देखा जाना चाहिए. यही बीजेपी का प्रयास है.”
उत्तर प्रदेश में और बिहार में बीजेपी ने पिछड़ी जाति की नुमाइंदगी करने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन किया है, जो सफलता के साथ चल रहा है.
तमिलनाडु में भी एआईएडीएमके के साथ गठबंधन किया गया लेकिन वो चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पाया.
विजय त्रिवेदी का कहना है, ”मैकाले के शिक्षा व्यवस्था पर प्रहार करके प्रधानमंत्री ने ये जताने की कोशिश की है कि अभी भी इस देश में ग़ुलाम मानसिकता के लोग रहते हैं, उनसे निकलने की ज़रूरत है.”
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा ,”आज से 190 साल पहले, 1835 में मैकाले नाम के एक अंग्रेज़ ने भारत को अपनी जड़ों से उखाड़ने के बीज बोए थे. मैकाले ने भारत में मानसिक ग़ुलामी की नींव रखी थी. आने वाले 10 वर्षों में उस अपवित्र घटना को 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं. हमें आने वाले 10 वर्षों में लक्ष्य लेकर चलना है कि भारत को ग़ुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी. इस समारोह में आए लोगों के सामने दिए अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि “हमारे राम आ गए हैं. रामलला अब टेंट में नहीं, बल्कि दिव्य मंदिर में रहेंगे.”
हालाँकि सिद्धार्थ कलांहस कहते हैं, “अकेले हिंदुत्व काफ़ी नहीं है, इसलिए बीजेपी कभी गुजरात मॉडल पेश करती है तो कभी पिछड़ी जातियों की बात करती है.”
कार्यक्रम को लेकर सियासत
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इस कार्यक्रम को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है. अयोध्या के समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने आरोप लगाया कि उन्हें इस कार्यक्रम में बुलाया नहीं गया.
अवधेश प्रसाद ने कहा कि राम मंदिर पर ध्वजारोहण हो रहा है, इससे वह ख़ुश हैं.
उन्होंने कहा कि उन्हें निमंत्रण नहीं मिला, अगर मिलता तो पैदल नंगे पैर जाते, लेकिन वह आम श्रद्धालु की तरह जाएंगे.
अवधेश प्रसाद ने आरोप लगाया कि बीजेपी राम के नाम पर व्यापार कर रही है, क्योंकि राम सबके हैं, केवल बीजेपी के नहीं.
उनकी इस राय पर कांग्रेस के सहारनपुर से सांसद इमरान मसूद ने पीटीआई से कहा, ”स्थानीय सांसद को न बुलाना दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रधानमंत्री जी जब प्रधानमंत्री की हैसियत से आ रहे हैं, तो स्थानीय सांसद को बुलाना चाहिए.”
उन्होंने यह भी कहा, ”दलित होने की वजह से अवधेश प्रसाद को नहीं बुलाया गया.”
बीजेपी ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है. पार्टी के प्रवक्ता विनीत शुक्ला ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”वो लोग राम के विरोध में हैं, उन्हें बुलाने का कोई औचित्य नहीं था. जो काम 500 साल में नहीं हुआ, वह हो चुका है. राम मंदिर का भव्य निर्माण किया गया है.”
हालाँकि बीएसपी ने इस पूरे कार्यक्रम पर कहा कि वह धार्मिक मामलों पर प्रतिक्रिया नहीं देती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.