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अरावली: उत्तर भारत की सबसे पुरानी ढाल और सबसे आधुनिक संग्राम

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Dec 25, 2025


1960 के दशक तक मेवाड़ की अरावली पहाड़ियों से बाघ खत्म हो गए थे. तस्वीर राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क की है जिसके पीछे अरावली की पहाड़ियां हैं

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, 1960 के दशक तक मेवाड़ की अरावली पहाड़ियों से बाघ खत्म हो गए थे. तस्वीर राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क की है जिसके पीछे अरावली की पहाड़ियां हैं

इस दिसंबर की सुबह जब दिल्ली की कालिमा लिपटी धुंध सड़कों-लाइटों और समस्त आकृतियों को भी निगलने लगती है और गुरुग्राम के हाईवे पर कारें और दूसरे वाहन धातु के किसी सांप की तरह रेंगते हैं, कुछ ही दूर क्वार्ट्ज़ाइट की पुरानी लकीरें उभर आती हैं.

कोई हिमरेखा नहीं, कोई पोस्टकार्ड-शिखर नहीं; बस घिसी-छिली-कुतरी और ध्वस्त पहाड़ियां, जैसे पृथ्वी ने अपनी सबसे पुरानी हस्तलिपि पत्थर पर ही लिख छोड़ी हो.

अरावली में ऐसे ‘पोस्टकार्ड-शिखर’ कम हैं, यानी यह उतनी नाटकीय ऊंचाई वाली नहीं दिखती; लेकिन उसका पर्यावरणीय काम बहुत बड़ा है. धूल को रोकना, पानी रीचार्ज करना, जैव विविधता की रक्षा करना और अपनी गोद में वन्यजीवों का लालन-पालन.

यही अरावली है. उत्तर-पश्चिम भारत की वह पर्वतमाला, जिसे वैज्ञानिक साहित्य और लोकप्रिय भू-ज्ञान दोनों ‘भारत की सबसे पुरानी फोल्ड-माउंटेन बेल्ट’ के रूप में पहचानते हैं.

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