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हाल के वर्षों में तुर्की में प्रेस की आज़ादी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
तुर्की के सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में सरकार के ख़िलाफ विरोध प्रदर्शनों को कवर करने वाले कम से कम 10 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया.
इन पत्रकारों की गिरफ्तारी ने सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के सामने बढ़ते ख़तरों के बारे में चिंताओं को बढ़ा दिया है.
भ्रष्टाचार के आरोपों में इस्तांबुल के मेयर इकरम इमामोअलू की गिरफ्तारी के विरोध में तुर्की में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. जिसके बाद पत्रकारों को 1,110 से ज़्यादा व्यक्तियों के साथ हिरासत में लिया गया था.
इकरम इमामोअलू ने कहा है कि उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं. जबकि तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रेचेप तैयप्प अर्दोआन ने उनके इस दावे का खंडन किया है.
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रविवार को इमामोअलू को इस्तांबुल के बाहरी इलाके में मौजूद एक हाई सिक्योरिटी जेल में ले जाया गया.
उसी दिन उन्हें तुर्की के मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया. भविष्य में होने वाले किसी भी चुनाव में उन्हें अर्दोआन के सबसे ताक़तवर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जा रहा है.
तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव 2028 में होने वाले हैं, हालांकि समय से पहले भी चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है.
हिरासत में लिए गए ज़्यादातर पत्रकार फ़ोटोग्राफ़र थे. उनमें से सात पत्रकारों पर अब सार्वजनिक समारोहों पर कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है. साथ ही, उन्हें हिरासत में भी भेज दिया गया है.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) के तुर्की के प्रतिनिधि एरोल ओन्देरोग्लू कहते हैं, “फोटो लेने वाले पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाना यह दिखाता है कि सार्वजनिक अशांति के समय में पत्रकारों के काम को दबाने के लिए न्यायपालिका को हथियार बनाया जा रहा है”.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि लोगों की राय को बदलने में पत्रकारिता की भूमिका कितनी अहम है और सरकार इसे कितना ख़तरनाक मानती है”.
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बता दें कि 2024 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 दिशों की सूची में से तुर्की 158 वें स्थान पर है.
एविन बरिश आल्तिन्तस मीडिया एंड लॉ स्टडीज एसोसिएशन की अध्यक्ष हैं. मीडिया एंड लॉ स्टडीज एक ऐसा संगठन है जो तुर्की में हिरासत में लिए गए पत्रकारों की मदद करता है.
वह इस बात से सहमत है कि गिरफ्तारियां पत्रकारों के काम को दबाने और उनकी रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने के लिए की जा रही है और इसके लिए सरकार अदालतों का इस्तेमाल कर रही है.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “इन गिरफ्तारियों से दूसरे पत्रकारों पर भी नकरात्मक असर पड़ेगा, लेकिन इससे डरे बिना वे अपने काम को करना जारी रखेंगे”.
जैसे-जैसे तुर्की में विरोध प्रदर्शन तेज होते गए, वैसे-वैसे पुलिस ने पेपर स्प्रे और पानी की बौछारों से इसका जवाब देना शुरू कर दिया. इस दौरान सुरक्षा बलों के हाथों पत्रकारों के साथ बदतमीज़ी की भी अनेक ख़बरें सामने आई.
सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब शेयर किया गया. इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि पुलिस की कार्रवाई के दौरान पेपर स्प्रे के संपर्क में आने के बाद कैमरामैन तानसेल कैन को बोलने में कठिनाई हो रही है.
उन्होंने कहा, “मेरे उन्हें यह बार-बार बताने के बावजूद कि मैं एक पत्रकार हूं, छह या सात पुलिस अधिकारियों ने मुझ पर हमला किया. मैंने उन्हें अपना प्रेस कार्ड भी दिखाया. उन्होंने हमारे चेहरों पर गैस के गोले छोड़े और जब हम ज़मीन पर गिर गए तो उन्होंने हमें लाठियों से मारा और पीटा”.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) तुर्की में पत्रकारों को निशाना बनाए जाने की निंदा करता है. संगठन ने अधिकारियों से अपराधियों की पहचान कर उन पर मुकदमा चलाने के लिए भी कहा है.
सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रतिबंध
इंटरनेट पर निगरानी रखने वाली संस्था नेटब्लॉक्स के मुताबिक, तुर्की में एक्स, टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के इस्तेमाल पर लोगों की पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
अधिकारियों ने कुछ सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सैकड़ों अकाउंट को ब्लॉक करने का दबाव भी डाला है. इससे लोगों के लिए जानकारी साझा करना और उसे हासिल करना और भी मुश्किल हो गया है.
हिरासत में लिए गए पत्रकारों में से एक बुलेंत किलिच ने इंस्टाग्राम पोस्ट में कहा, “युवा बहुत गुस्स में हैं, खासकर सरकार का समर्थन करने वाले मीडिया के प्रति.”
एक्स की वैश्विक सरकारी मामलों की टीम ने एक पोस्ट में कहा, “समाचार संगठनों, पत्रकारों, राजनीतिक हस्तियों, छात्रों और अन्य लोगों के 700 से ज़्यादा अकाउंट को ब्लॉक करने के लिए सरकार के कई अदालती आदेशों पर आपत्ति जताते हैं.”
वे कहते हैं, “हमारा मानना है कि तुर्की सरकार यह फ़ैसला न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह लाखों लोगों को उनके देश में समाचार और राजनीतिक चर्चा में हिस्सा लेने से रोकता है.”
हालांकि तुर्की में अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थकों ने एक्स की टीम के बयान की आलोचना की. ऐसा इसलिए क्योंकि तुर्की सरकार के अनुरोध पर एक्स ने कथित तौर पर दर्जनों अकाउंट पर रोक लगा दी थी.
साइबर अधिकारों के एक्सपर्ट यमन आकदेनिज़ ने एक्स की आलोचना करते हुए कहा, “एक्स अभिव्यक्ति की रक्षा का दावा करता है, जबकि वह सेंसरशिप में सरकार की मदद भी करता है. इसलिए वह इसमें कोई बहाना नहीं बना सकता.”
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उन्होंने कहा, “निष्पक्ष कानून प्रक्रिया और स्वतंत्र अदालत के अभाव में, तुर्की इंटरनेट पर सेंसरशिप लगाने वाले सबसे ख़राब देशों में से एक है. वहीं इस सेंसरशिप को लगाने के लिए एक्स सरकार का सबसे बड़ा समर्थक बन गया है”.
फिल्म निर्माता गुचलू उन लोगों में शामिल थे जिनका अकाउंट एक दिन बाद ही निलंबित कर दिया गया था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें कई पुलिस अधिकारी एक प्रदर्शनकारी के साथ बदतमीज़ी करते हुए दिखाई दे रहे थे.
वह कहते हैं, “मैं इस बात को नहीं मानता कि एक्स प्रेस की आज़ादी या अभिव्यक्ति की आज़ादी का समर्थन कर रहा है. वे लोगों की आवाज दबा रहे हैं और अपने दर्शकों को लोगों की आवाज़ सुनने से रोक रहे हैं. मुझे लगता है कि वे तुर्की सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं”.
यमन ने एक्स पर नया अकाउंट खोल लिया है, जहां उनके पास अब 400 फॉलोअर्स हैं. इससे पहले उनके सस्पेंड किए गए अकाउंट को 18,500 लोग फॉलो करते थे.
बीबीसी ने एक्स की वैश्विक सरकारी मामलों की टीम से इस मामले पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी, लेकिन इस आर्टिकल के लिखे जाने के समय तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
मीडिया रेग्यूलेटर की तरफ से चेतावनी
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सोमवार को तुर्की के मीडिया रेग्यूलेटर आरटीयूके के अध्यक्ष एबूबेकिर साहिन ने विपक्ष का समर्थन करने वाले या स्वतंत्र मीडिया आउटलेट्स को चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि अगर वे विरोध प्रदर्शनों की कवरेज जारी रखते हैं तो उन्हें लंबे समय तक प्रतिबंध का सामना करना पड़ेगा और उनका लाइसेंस भी छीन लिया जाएगा.
उन्होंने कहा, “हम इस बात को दोहराते हैं कि जो लोग जनता को सड़कों पर उतरने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, अवैध बयानबाज़ी के लिए मंच देंगे, कानून के ख़िलाफ़ पक्षपातपूर्ण तरीके से रिपोर्टिंग करेंगे, उन्हें लंबे समय तक प्रतिबंध के साथ-साथ लाइसेंस रद्द करने तक के दंड का सामना करना पड़ेगा”.
उन्होंने कुछ मीडिया आउटलेट्स पर विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उन्होंने मीडिया से केवल आधिकारिक बयानों पर ही भरोसा करने को कहा.
उन्होंने यह भी कहा कि आरटीयूके की चेतावनियों का मकसद तुर्की में प्रेस की आजादी को ख़तरे में डालना नहीं है.
इस्तांबुल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को मीडिया की तरफ से कवरेज न मिलना एक दशक से भी पहले की घटना की याद दिलाता है. 2013 में, गेजी पार्क में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान मेनस्ट्रीम की मीडिया को भी घटनाओं की रिपोर्टिंग न करने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था.
यह प्रदर्शन दशकों में देखा गया देश का सबसे बड़ा सरकार विरोधी आंदोलन था.
उस वक्त, हज़ारों लोग सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे, तो देश के प्रमुख समाचार चैनलों ने इन विरोध प्रदर्शन को कवर नहीं किया.
इसकी जगह, उन्होंने पेंगुइन के बारे में डॉक्यूमेंट्री जैसे असंबंधित कार्यक्रम को लोगों को दिखाया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने मीडिया पर दबाव डाला. इस घटना ने देश में प्रेस की आज़ादी पर गहराते ख़तरे को उजागर किया.
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तुर्की में सरकार का पारंपरिक मीडिया पर बहुत नियंत्रण है. लगभग 90 प्रतिशत प्रमुख समाचार आउटलेट्स का स्वामित्व ऐसे लोगों या कंपनियों के पास है जो सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करते हैं.
वहीं, वैकल्पिक मीडिया को अक्सर कानूनी समस्याओं, सेंसरशिप और मनमाने प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. इससे उनके लिए स्वतंत्र रूप से ख़बरों को रिपोर्ट करना और भी मुश्किल हो जाता है.
विपक्ष ने हाल ही में सरकार का समर्थन करने वाले उन मीडिया आउटलेट्स के बहिष्कार की बात कही है, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों को कवर नहीं किया है. विपक्ष का आरोप है कि ये मीडिया चैनल निष्पक्ष रूप से समाचार देने के अपने काम को करने के बजाय सरकार के लिए काम कर रहे हैं.
विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) के नेता ओजगुर ओज़ेल ने इस्तांबुल के टाउन हॉल के बाहर बड़ी भीड़ को संबोधित किया. उन्होंने कहा, “हम उन सभी टीवी चैनलों का संज्ञान ले रहे हैं जिन्होंने इस हॉल में हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग नहीं करने का फ़ैसला किया”.
उन्होंने कहा, “जो मीडिया आउटलेट्स इस हॉल पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को कवर नहीं करेंगे, उनका बहिष्कार किया जाएगा”.
तुर्की में प्रमुख मीडिया ग्रुप का स्वामित्व अक्सर बड़े-बड़े बिजनेस ग्रुप वाली कंपनियों के पास होता है.
ओज़ेल के बहिष्कार के आह्वान के बाद, सरकार के साथ नज़दीकी रिश्ते रखने वाली कंपनियों की सूची सोशल मीडिया पर शेयर होने लगी.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) के ओंदेरोग्लू कहते हैं, “अगर तुर्की का मीडिया लाखों लोगों की मौजूदगी वाले विरोध प्रदर्शन पर अपनी आंखे बंद कर लेता है, तो इसे केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं माना जा सकता”.
उन्होंने कहा, “इसका मतलब यह है कि तु्र्की में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को अब कोई महत्व नहीं रह गया है. सरकार उन सभी मीडिया से छुटकारा पाना चाहती है जो उनकी आलोचना करते हैं. मुझे नहीं लगता कि वे आगे भी इस तरह के दबाव बनाने से बचेंगे”.
बीबीसी ने इस मुद्दे पर आरटीयूके से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से हमें कोई जवाब नहीं मिला.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित