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39 साल के रोहम अली असम के कामरूप ज़िले के गोरोइमारी गांव के रहने वाले हैं. वह ब्रह्मपुत्र में नाव चलाकर अपने परिवार के छह सदस्यों का पेट भरते हैं.
लेकिन इन दिनों वह मतदाता सूची में एसआर यानी ‘स्पेशल रिवीज़न’ को लेकर थोड़ी चिंता में हैं.
वह कहते हैं, “घर पर ज़्यादा पढ़ा-लिखा कोई नहीं है, जो अधिकारी से वोटर संबंधी बात कर लेगा. इसलिए मैं घर पर ही हूं. चिंता इस बात की है कि किसी वजह से वोटर लिस्ट से नाम न कट जाए.”
रोहम अली नागरिकता के सवाल पर ज़ोर देकर कहते हैं, “हमारे पूरे परिवार का नाम एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स) में है. हमारे पास नागरिकता के सारे काग़ज़ हैं. एसआर के बारे में ज़्यादा पता नहीं है लेकिन गांव में बताया गया है कि मतदाता सूची से जुड़ी जानकारी लेने अधिकारी घर पर आएंगे.”
कुछ ऐसी ही चिंता हिंदू बहुल ऊपरी असम के मरियानी में रहने वाली बंगाली मूल के मिनोती दास को सता रही है.
वह कहती हैं, “मैं एक प्राइवेट स्कूल में चपरासी की नौकरी कर घर चलाती हूं. सरकार से राशन और कुछ अन्य मदद मिलती है जिससे गुज़ारा हो जाता है. अगर किसी ग़लती की वजह से वोटर लिस्ट से नाम कट गया तो सरकार की तरफ से मिलने वाली योजनाएं बंद हो जाएंगी. एनआरसी के समय काफ़ी परेशान होना पड़ा था. इसलिए मैंने खुद बीएलओ से संपर्क कर अपने परिवार की वोटर लिस्ट का वैरिफ़िकेशन करवा लिया है.”
एसआईआर से कैसे अलग है एसआर?
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पिछले 17 नवंबर को भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार असम में मतदाता सूची में एसआर यानी ‘स्पेशल रिवीज़न’ का काम शुरू हो गया है.
चुनाव आयोग के अनुसार इस एसआर प्रक्रिया के तहत बूथ लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) घर-घर जाकर मतदाताओं का वैरिफ़िकेशन करेंगे. जबकि चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत देश के 9 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) का काम कर रहा है.
असम में शुरू हुई एसआर प्रक्रिया में नागरिकता की स्थिति पर ध्यान दिए बिना मौजूदा मतदाता सूची का फिज़िकल वैरिफ़िकेशन और इसे अपडेट करना शामिल होगा. एसआर के तहत बीएलओ मौजूदा वोटरों की डिटेल्स वाले पहले से भरे हुए फ़ॉर्म का इस्तेमाल करके वैरिफ़िकेशन के लिए घर-घर जाएंगे. असम में लगभग 29,656 बीएलओ को एसआर के काम में लगाया गया है.
वहीं ठीक इसके उलट एसआईआर में सभी रजिस्टर्ड वोटरों को मतदाता सूची में बने रहने के लिए गिनती के फ़ॉर्म जमा करने होंगे. इस प्रक्रिया में हर मतदाता से नागरिकता का सबूत मांगा जाएगा. एसआईआर में जिन वोटरों का नाम वैरिफ़ाई नहीं होगा उनका नाम लिस्ट से हटाया जा सकता है.
एसआईआर को लेकर चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने 27 अक्तूबर को एक आदेश जारी किया था. उस समय असम को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया. चुनाव आयोग ने इसकी वजह बताते हुए कहा था कि भारत के नागरिकता कानूनों में असम के लिए एक अलग प्रावधान है.
दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता पहचान प्रक्रिया का काम अंतिम चरण में है. लिहाज़ा असम में फिलहाल एसआईआर का काम नहीं किया जा सकता. लेकिन इस आदेश के महज कुछ दिन बाद असम में ‘स्पेशल रिवीज़न’ की घोषणा की गई जिसे लेकर राज्य का राजनीतिक माहौल गरमा गया है.
एसआर एक ‘ख़तरनाक साज़िश’
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असम में अगले चार महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उसे देखते हुए विपक्षी पार्टियां एसआर को न केवल ‘ख़तरनाक साज़िश’ बता रही है बल्कि सत्ताधारी बीजेपी पर चुनावी धांधली करने का संदेह भी कर रही है.
राज्य की क्षेत्रीय पार्टी असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने एसआर का विरोध करते हुए बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा, “असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ही असम में एसआर करवा रहे हैं. असल में यह राज्य के मतदाताओं के ख़िलाफ़ एक ख़तरनाक साजिश है. चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर ने खुद कहा था कि असम में एसआईआर का काम अभी नहीं होगा, इसके बाद अचानक ‘स्पेशल रिवीज़न’ का आदेश देकर यहां के मूल लोगों और मतदाताओं के भविष्य को लेकर चुनौती खड़ी कर दी है.”
उन्होंने कहा, “राज्य में फ़ाइनल ड्राफ़्ट से दो-तीन दिन पहले आए लोग अगर मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करवा सकते हैं तो यह कितनी ख़तरनाक बात होगी. ऐसी बात यहां के चुनाव अधिकारी कह रहे हैं. इन लोगों को याद रखना चाहिए कि असम में नागरिकता के मुद्दे से जुड़े संघर्ष का इतिहास रहा है. लिहाज़ा हमारा मानना है कि एनआरसी प्रक्रिया का काम पूरा होने के बाद ही एसआर एक्सरसाइज किया जाना चाहिए था.”
असम की मतदाता सूची में तथाकथित ‘डी-वोटर्स’ अर्थात डाउटफ़ुल या संदिग्ध वोटर्स को लेकर लंबे समय तक राजनीतिक घमासान होता रहा. बाद में इस मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में साल 2014 से असम के लिए एनआरसी का काम शुरू किया गया.
31 अगस्त, 2019 को एनआरसी की फ़ाइनल सूची जारी कर दी गई. 1,600 करोड़ रुपये से ज़्यादा ख़र्च कर बनाई गई एनआरसी में असम समझौते की कट-ऑफ़ तारीख़ 24 मार्च, 1971 के आधार पर 3 करोड़ 3 लाख जमा आवेदनों में से लगभग 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया.
इसके बावजूद बीजेपी सरकार ने फ़ाइनल एनआरसी में ग़लती होने की शिकायत करते हुए इसे स्वीकार करने से मना कर दिया. बाद में सरकार ने एनआरसी में पुनः समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई तब से यह मामला अधर में लटका है.
भारत के चुनाव आयोग ने डी-वोटर कैटेगरी 1997 में शुरू की थी क्योंकि डाउटफ़ुल वोटरों की भारतीय नागरिकता की पुष्टि नहीं हुई होती है, इसलिए उनको चुनाव में वोट देने की इजाज़त नहीं है.
वोटरों के नाम काटे-जोड़े जा सकते हैं?
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असम प्रदेश कांग्रेस के नेता तथा गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील हाफ़िज़ रसीद अहमद चौधरी एसआर के जरिए कुछ इलाकों में वोटरों के नाम काटने और जोड़ने की बात पर संदेह जताते हैं.
वह कहते हैं, “भले ही एसआर को एक सामान्य पुनरीक्षण बताया जा रहा है लेकिन बूथ स्तर पर इसमें धांधली हो सकती है. उदाहरण के तौर पर राज्य में जहां-जहां सरकार ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया है वहां प्रभावित हुए लोगों के नाम काटे जा सकते हैं. क्योंकि जब उन पतों पर बीएलओ वैरिफ़िकेशन करने जाएंगे और उस दौरान वहां कोई नहीं मिलेगा तो सैकड़ों नाम कट भी सकते हैं.”
“इस प्रक्रिया में कुछ मुसलमान बहुल इलाकों में लोगों को परेशानी हो सकती है. जबकि मतदाता सूची में नए नाम चुनाव के पहले तक जोड़ने की बात कही जा रही है. यह दरअसल इस प्रक्रिया में संदेह पैदा करता है. इसके अलावा बीएलओ को इतना कम समय दिया है कि उसमें फ़ॉर्म भरना और फिर क्लेम करना संभव नहीं दिख रहा.”
एसआर प्रक्रिया में कुछ ऐसा ही संदेह मुसलमान बहुल इलाकों में लंबे समय से काम करने वाले अज़ीज़ुर रहमान को भी है.
रायजोर दल नामक क्षेत्रीय पार्टी के महासचिव रहमान कहते हैं, “चुनाव आयोग 1952 के आम चुनाव के समय से ही चुनाव के पहले मतदाता सूची में संशोधन के लिए समरी रिवीजन करता आ रहा था लेकिन अलग से एसआर करने का आदेश जारी कर सभी को चिंता में डाल दिया है. एनआरसी का काम पूरा नहीं होने तक इस तरह का वैरिफ़िकेशन समझ से बाहर है.”
एक सवाल का जवाब देते हुए रहमान कहते हैं, “चुनाव से दो दिन पहले आने वाले लोग भी सूची में अपना नाम लिखवा सकते हैं, इससे संदेह बढ़ जाता है. बीते दिनों चुनाव आयोग पर जितने भी आरोप लगे हैं उनका आयोग ने तर्कसंगत कोई जवाब नहीं दिया है. ये लोग असम में भी धांधली कर सकते हैं.”
“उदाहरण के तौर पर 22 विधानसभा में मुसलमान वोटर 90 फ़ीसदी से ज़्यादा है वहां भले ही धांधली का मौका न मिले. लेकिन कुछ ऐसी विधानसभाएं है जहां मुसलमान वोटरों का अगर एसआर के तहत नाम काट दिया गया तो वहां बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है. हमने अपने कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर नज़र रखने को कहा है.”
‘एसआर को लेकर भ्रम फैला रहा है विपक्ष’
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असम में एसआर प्रक्रिया को लेकर उठ रहे इन तमाम सवाल और आरोपों पर प्रदेश बीजेपी ने भ्रम फैलाने की बात कही है. प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार गुप्ता ने बीबीसी हिन्दी से कहा, “एसआर प्रक्रिया को लेकर किसी तरह के आरोप सही नहीं है. जल्दबाज़ी में एसआर करने के सवाल उठ रहे हैं तो चुनाव में अभी चार महीने से अधिक का समय है और एसआर का काम नवंबर के अंतिम सप्ताह से शुरू हो चुका है. असम में लगभग 26 हजार बूथ हैं और प्रत्येक बूथ के लिए बीएलओ को काम पर लगाया गया है.”
बीजेपी नेता गुप्ता कहते हैं, “धांधली की बात कही जा रही है तो बता दूं कि बीएलओ के अलावा प्रत्येक राजनीतिक पार्टी की तरफ से विधानसभा क्षेत्र के स्तर पर आयोग ने एक बूथ लेवल एजेंट-1 को रखा है और बूथ स्तर पर इन पार्टियों के बूथ लेवल एजेंट-2 को नियुक्त किया गया है. एक बूथ में औसतन 200 घर हैं और करीब 2 हज़ार मतदाता. ऐसे में एक बूथ का काम पूरा करने में महज़ पांच-छह दिन ही लग रहे हैं.”
“जहां तक बात अतिक्रमण के तहत हटाए गए लोगों की है तो इन लोगों ने अपना खुद का घर छोड़कर अवैध तरीके से सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा था. लिहाज़ा ऐसे अधिकतर लोगों के नाम उनके पुराने मकान वाली मतदाता सूची में है. इसके अलावा कोई भी व्यक्ति अपना नाम वोटर लिस्ट में ट्रांसफर करवा सकता है. नए मतदाताओं के नाम कैसे कोई जोड़ देगा. वोटर लिस्ट में नाम चढ़ाने से पहले आवास से लेकर आधार कार्ड तक कई तरह के वैरिफ़िकेशन होते हैं. ये लोग केवल भ्रम फैला कर मतदाताओं को डराने का प्रयास कर रहे हैं.”
इससे पहले, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि राज्य में मतदाता सूची का एसआईआर तब तक शुरू नहीं किया जा सकता, जब तक एनआरसी को आधिकारिक तौर पर नोटिफ़ाई नहीं कर दिया जाता.
सीएम सरमा ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों का ज़िक्र करते हुए कहा, “एक सही मतदाता सूची तैयार करने के लिए उसमें मरे हुए लोगों के नाम, नाबालिगों के नाम समेत वोटरों के ग़लत नाम और पते में गड़बड़ियां को ‘स्पेशल समरी रिवीज़न’ के जरिए ठीक किया जाएगा. मुझे पूरी उम्मीद है कि चुनाव से पहले हम एक सही और शुद्ध वोटर लिस्ट हासिल करने में सक्षम होंगे.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.