“उस दिन सुबह साढ़े 4 बजे काम पर गया था. हम चार मज़दूर थे. हम सभी कोयला निकालते हुए एक सुरंग (खदान) के काफ़ी अंदर तक चले गए थे.”
“काम का पहला दिन था, थोड़ी थकावट हो रही थी. सोचा वापस लौटते हैं. उतने में तेज़ गति से पानी आने की एक डरावनी आवाज़ सुनी तो लगा मौत मेरी तरफ़ आ रही है.”
इतना कहते ही 39 साल के राजीव बर्मन के चेहरे पर घबराहट झलकने लगती है. राजीव मौत के उस मंज़र को अब तक भूल नहीं पाए हैं.
दरअसल राजीव असम की एक कोयला खदान दुर्घटना में जीवित निकले मज़दूर हैं जो घटना वाले दिन रेट हॉल (चूहे का बिल) जैसी संकरी सुरंग के भीतर बैठकर कोयला निकाल रहे थे.
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असम के दीमा हसाओ ज़िले की इस कोयला खदान में अब भी 7 मज़दूर फंसे हुए हैं.
इन मज़दूरों को तलाशने के लिए सेना, एनडीआरएफ़ और नौसेना के गोताखोरों की एक टीम लगातार खदान के अंदर अभियान चला रही है. जबकि यह हादसा छह दिन पहले सोमवार सुबह क़रीब 8 बजे हुआ था.
सोमवार की सुबह क्या हुआ था
सोमवार की सुबह जब राजीव खदान के अंदर कोयला निकाल रहे थे तभी खदान में पानी घुस आया.
उस भयावह मंज़र को याद करते हुए राजीव कहते हैं, “मैं खदान के अंदर था और मेरे तीन साथी आगे थोड़ी दूरी पर काम कर रहे थे. जैसे ही हमने काम ख़त्म करने की बात की, अचानक पानी भरने की एक भयानक आवाज़ सुनी.”
राजीव ने बताया, “हम सब बाहर निकलने के लिए चलने लगे. हम क़रीब 80 से 90 मीटर अंदर थे. सुरंग बेहद संकरी और महज़ 3 से साढ़े तीन फीट चौड़ी होती है. इसलिए वहां बैठकर ही चलना पड़ता है. लंबी सुरंग में बाहर से न कोई आवाज़ आती है और न ही रोशनी दिखाई देती है.”
राजीव कहते हैं, “सब कुछ ख़त्म हो रहा था. मां,पत्नी और बेटे की याद आ रही थी. पानी तेज़ी के साथ जैसे ही पास आया मेरा हेलमेट नीचे गिर गया और टॉर्च बंद हो गई. अब अंधेरी सुरंग से बाहर निकलना मेरे लिए मुश्किल था. मैं समझ गया था कि अब जान नहीं बचेगी.”
एक गहरी लंबी सांस लेने के बाद राजीव काफ़ी धीमी आवाज़ में कहते हैं, “मुझे ऐसा लगा कि अगर मैं सुरंग के अंदर सीधे लेट जाऊं तो पानी के तेज़ बहाव के साथ शायद बाहर निकल जाऊंगा. क्योंकि मैं सुरंग में प्रवेश करने वाले मुंह से अब महज़ 10-15 मीटर ही दूर था.”
राजीव बताते हैं, “मैंने ईश्वर का नाम लिया और अंधेरी सुरंग में लेट गया. थोड़ी ही देर में पानी के बहाव के साथ मैं बाहर कुँए में जाकर गिरा. वहां कई मज़दूर रस्सी और मोटर के पाइप पकड़े हुए थे. कुछ लोग लोहे की चेन से लटके कोयला खींचने वाली लकड़ी के बक्से को पकड़ कर अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे. अभी कुंए में 15-20 फ़ीट ही पानी भरा था.”
राजीव ने कहा, “मैंने भी एक लोहे की चैन को पकड़ लिया. मेरा शरीर कई जगहों से ज़ख़्मी हो गया था. इस बीच ऊपर क्रेन चलाने वाले व्यक्ति को एहसास हुआ कि अंदर कुछ हुआ है. जैसे ही उन्होंने क्रेन को ऊपर खींचा तो दो मज़दूर भी लोहे की चेन पकड़कर ऊपर चले गए. फिर उन लोगों ने क्रेन की मदद से कोयला निकालने वाले लकड़ी के बॉक्स नीचे भेजे और उस पर चढ़कर हम बाहर निकले. क़रीब 25 लोग इस तरह जान बचाकर खदान से बाहर आए थे.”
लगभग एक घंटे तक ये मज़दूर एक क्रेन से बंधी रस्सी और लोहे की चेन से लटके रहे. इस दौरान तीन सौ फीट से ज़्यादा गहरे कुएं में पानी भरता गया.
राजीव को बेहद अफ़सोस है कि उस दिन उनके साथ काम करने गए तीन दोस्त अब तक खदान में लापता हैं.
असम के कोकराझार ज़िले के एक छोटे से गांव चितिला बाज़ार के रहने वाले राजीव कहते हैं, “मेरे साथ सुरंग में दो साथी मेरे ही ज़िले के थे और संजीव सरकार बंगाल के रहने वाले थे. पता नहीं वे ज़िंदा भी होंगे या नहीं.”
नौसेना के गोताखोर नहीं तलाश पाए हैं मज़दूरों को
असम के सुदूर पहाड़ी इलाक़े की बाढ़ ग्रस्त खदान में फंसे 8 मज़दूरों को बचाने के लिए तेज़ी से काम चल रहा है.
लेकिन क़रीब 320 फीट गहरी इस खदान में पानी और मलबा भर जाने से नौसेना के गोताखोरों को अब तक सफलता नहीं मिल सकी है.
अब तक दो शव बरामद किए जा चुके हैं. एनडीआरएफ़ का कहना है कि खदान में फंसे बाकी लोगों को तलाशने के लिए हर दिन गोताखोर कैमरे लगे हुए रिमोट ऑपरेटेड वाहन लेकर अंदर जा रहे हैं.
पिछले पांच दिनों से चल रहे बचाव अभियान की जानकारी देते हुए एनडीआरएफ़ के डिप्टी कमांडर एन.के. तिवारी ने बीबीसी से कहा, “असल में खदान के अंदर जमा पानी के कारण गोताखोरों को अंदर सतह तक जाने में परेशानी हो रही है.”
उन्होंने कहा, “एनडीआरएफ़ के गोताखोर जहां 40 फीट तक पानी के नीचे जा सकते हैं, वहीं नौसेना के गोताखोर और नीचे तक गोता लगा सकते हैं. लेकिन 300 फीट तक मलबे वाले पानी के अंदर जाना बहुत जोखिम का काम है. वहां तक जाना संभव नहीं है. अंदर विज़िबिलिटी नहीं होने के कारण कोई चीज़ डिटेक्ट नहीं हो पा रही है.”
एनडीआरएफ़ के अनुसार फिलहाल हादसे वाली खदान और उसके आस-पास की 5 खदानों से पानी बाहर निकालने के लिए उच्च क्षमता वाले 10 पंप लगाए गए हैं. ताकि गोताखोर अंदर तक जाकर खदान में लापता मज़दूरों को तलाश सकें.
एनडीआरएफ अधिकारी एन.के. तिवारी कहते हैं, “खदान से पानी बाहर निकालने के साथ नौसेना के गोताखोर बीच-बीच में खदान के अंदर भी जा रहे हैं. लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है.”
वह बताते हैं, “पानी कम नहीं होने तक गोताखोर रेट हॉल के ज़्यादा अंदर तक नहीं जा सकते. यह सुरंगें दो सौ-ढाई सौ मीटर लंबी हैं और ऊंचाई महज़ 3 फीट है. यह सभी सुरंग जैसी खदान आसपास की दूसरी खदानों के साथ जुड़ी हैं. अंदर जान का ख़तरा होता है.”
राजीव तो अपनी जान बचाकर इस खदान से बाहर आ गए लेकिन उनके तीन साथी मज़दूरों के घर वालों का रोज़ फ़ोन आता है.
राजीव बड़े अफ़सोस के साथ कहते हैं, “पांच दिन बीत चुके हैं. शायद ही अब कोई ज़िंदा बचा होगा. मेरे पास जो फ़ोन है वो मेरे साथी खुशी मोहन राय का है. उनके घर वाले काफ़ी परेशान हैं. मुझे रोज़ाना इस उम्मीद में फ़ोन करते हैं शायद वह ज़िंदा मिल जाएं. काश! ईश्वर ऐसा चमत्कार कर दे.”
जान के जोख़िम के बाद भी काम क्यों कर रहे हैं मज़दूर
जब इस काम में जान का जोख़िम है तो मज़दूर इन कोयला खदानों में क्यों काम करते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए राजीव कहते हैं, “हम ग़रीब मज़दूर हैं. इसलिए यह जोख़िम भरा काम करते हैं. क्योंकि यहां मज़दूरी काफी अच्छी मिल जाती है.”
उन्होंने कहा, “हर मज़दूर रोज़ाना दो हज़ार रुपए कमा लेता है. कुछ मज़दूर महीने में 80-90 हज़ार भी कमा लेते हैं. यहां नेपाल से मज़दूर काम करने आते हैं. दूसरे काम में मज़दूरी केवल चार सौ रुपए ही मिलती है. मेरा एक 9 साल का बेटा है. वो पढ़ाई करता है. परिवार का पेट पालने के लिए जोखिम उठाना पड़ता है.”
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खदान में लापता हुए 9 मज़दूरों की एक सूची जारी कर कहा था कि बाढ़ वाली खदान अवैध लगती है.
उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की जांच कर रही है. इस बीच पुलिस ने शुक्रवार को और एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है. इस खदान हादसे में अब तक दो लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है.
भारत ने 2014 में तथाकथित रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन इसके बावजूद असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में छोटी अवैध खदान में कोयला निकालने का काम चल रहा है.
जब यहां दुर्घटनाएँ होती हैं तो उस समय काफी हल्ला मचता है लेकिन अब तक इस क्षेत्र में अवैध खनन के ख़िलाफ़ बड़ी कार्रवाई के तौर कुछ भी सामने नहीं आया है.
असम की विपक्षी पार्टियां भी दीमा हसाओ ज़िले में हुई इस कोयला खदान घटना पर कई तरह के आरोप लगाते हुए सरकार से सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं.
इससे पहले जनवरी 2024 में नागालैंड राज्य में रैट-होल कोयला खदान में आग लगने से छह श्रमिकों की मौत हो गई थी.
2018 में मेघालय में एक अवैध खदान में कम से कम 15 लोग फंस गए थे, जब पास की एक नदी का पानी खदान में भर गया था. व्यापक स्तर पर लंबे समय तक चले बचाव अभियान में केवल दो मज़दूरों के ही शव बरामद हुए थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.