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गुरुवार दोपहर एक बजकर 40 मिनट पर हुए एयर इंडिया विमान हादसे के एक घंटे के भीतर मैं अहमदाबाद के सिविल अस्पताल पहुंच गई थी.
मैं अगले नौ घंटे तक अस्पताल में रही और ये मेरे जीवन के सबसे दर्दनाक और दिल दहलाने वाले पलों में से एक थे.
पीड़ितों के रिश्तेदार अपनों के लिए दु:खी थे. वे असहाय महसूस कर रहे थे.
मैं जिस किसी से भी मिली, वह रो रहा था. उनमें गुस्सा था, क्योंकि उनमें से कई ने शिकायत की कि उन्हें कोई जानकारी नहीं मिल रही है. रिश्तेदारों ने पुलिस को तस्वीरों के साथ हवाई टिकट दिखाए और अधिक जानकारी देने की गुहार लगाई.
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अहमदाबाद से लंदन के गैटविक एयरपोर्ट के लिए उड़ान भरने वाली एयर इंडिया की फ़्लाइट नंबर 171, टेक ऑफ़ के चंद सेकेंड बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई जिसमें विमान में सवार 242 में से 241 लोगों की मौत हो गई.
विमान, अहमदाबाद के जिस रिहायशी इलाके में गिरा वहां भी कई लोगों की मौत हो गई.
सिविल अस्पताल के बाहर के हालात
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जब अस्पताल के अंदर जाने से रोका गया, तो विरोध में आवाजें उठीं और गुस्सा भड़क गया.
घटनास्थल के क़रीब मौजूद सिविल अस्पताल वह जगह थी, जहां अहमदाबाद से लंदन जाने वाली फ़्लाइट के यात्रियों के रिश्तेदार इकट्ठा होने लगे थे.
कई लोगों ने सुना था कि घायलों को यहां लाया जाएगा. वे अपनों को पहुंचाकर अभी-अभी एयरपोर्ट से बाहर निकले थे, तभी उन्होंने दुर्घटना की आवाज़ सुनी और अस्पताल पहुंचे.
लोग अपने भाई, भाभी, पति, बच्चों, मां और पिता को ढूंढ रहे थे.
तारापुर के कमलेशभाई ने बीबीसी को बताया, “मेरा बेटा पार्थ पहली बार स्टूडेंट वीज़ा पर लंदन जा रहा था.” उनके परिवार के आंसू नहीं थम रहे थे.
उन्होंने कहा, “हम उसे छोड़कर अभी-अभी घर जा रहे थे. एक रेस्तरां में लंच का इंतजार करते समय, मैंने अपने फ़ोन पर हादसे की ख़बर देखी. हम तुरंत सिविल अस्पताल के लिए निकल पड़े, लेकिन ट्रैफ़िक जाम के कारण हमें एक घंटे की देरी हो गई.”
कमलेशभाई ने अस्पताल के कर्मचारियों को पार्थ की तस्वीर दिखाई और पूछा कि क्या उसे इलाज के लिए लाया गया है.
उनके बगल में खड़ी उनकी पत्नी रो पड़ी, इस बीच कमलेशभाई के रिश्तेदार उन्हें सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे.
ट्रॉमा सेंटर के बाहर पसरा मातम
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जब मैं पहली बार ट्रॉमा सेंटर पहुंची, तो अस्पताल के बाहर मुख्य सड़क का एक हिस्सा बंद था. ख़ासकर एंबुलेंस और अस्पताल से आने-जाने वाले वाहनों के लिए.
एंबुलेंस के सायरन लगातार बज रहे थे. सड़क पर पुलिस के साथ सुरक्षा गार्ड तैनात थे और जून की धूप तेज़ थी. अहमदाबाद के प्राइवेट अस्पतालों के कई डॉक्टर मदद के लिए आ गए थे.
जब भी ट्रॉमा सेंटर में एंबुलेंस आती, तो रिश्तेदार यह देखने के लिए दौड़ पड़ते कि अंदर कौन है.
उन सभी के पास बताने के लिए एक जैसी कहानियां थीं.
खम्भीसर के कृष्णा पटेल की भाभी फ़्लाइट में थीं. उन्होंने बीबीसी को बताया, “मेरा भाई लंदन में रहते हैं. उनकी पत्नी वहाँ जा रही थीं. हम उन्हें एयरपोर्ट पर छोड़कर चले ही थे कि हमें दुर्घटना की ख़बर मिली.”
मैं एक ऐसे व्यक्ति के परिवार से मिली जो अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए लंदन से आए थे और उस फ़्लाइट में मौजूद थे.
भटकते रहे परिजन
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भरूच की एक महिला जानकारी के लिए इधर-उधर भाग रही थीं. कुछ समय पहले ही उन्होंने अपने बेटे को एयरपोर्ट पर छोड़ा था.
अरावली की एक मां कैलाशबेन पटेल का परिवार भी ऐसे लोगों की लिस्ट में शामिल था, जो कुछ जानकारी की उम्मीद कर रहा था. वह अपने बेटे से मिलने लंदन जा रही थीं.
दोपहर तक, कई रिश्तेदार उम्मीद खो चुके थे और पोस्टमॉर्टम रूम की ओर बढ़ने लगे.
शवों को पहले एंबुलेंस से ट्रॉमा सेंटर लाया गया और फिर पोस्टमॉर्टम रूम में ले जाया गया. कई एंबुलेंस बाहर खड़ी थीं.
हर बार जब शव आता था, तो चिंतित रिश्तेदार खड़े होने या उसके क़रीब जाने की कोशिश करते थे, ताकि पता चल सके कि यह उनका कोई अपना तो नहीं है.
पोस्टमॉर्टम रूम के बाहर एक मंदिर है, जहां रिश्तेदार अच्छी ख़बर के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
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एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि शवों की पहचान करना आसान नहीं था.
जैसे-जैसे शाम ढलती गई और थोड़ी-बहुत जानकारी मिलने लगी, लोग परेशान होने लगे.
अस्पताल में आने वाली एंबुलेंस की संख्या कम होने लगी थी.
उदय मेहता अपने चाचा इंद्रवदन दोशी और चाची ज्योतिबेन दोशी को खोज रहे थे.
उन्होंने कहा, “मेरे चाचा और चाची फ़्लाइट से लंदन जा रहे थे. मैं पिछले साढ़े तीन घंटे से एक जगह से दूसरी जगह जा रहा हूं, लेकिन मुझे कोई जानकारी नहीं मिली है. मुझे नहीं पता कि कहां जाना है या किससे पूछना है.”
शवों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट
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शाम तक एकमात्र ज़िंदा बचे व्यक्ति की ख़बर की पुष्टि नहीं हुई थी. इसके बाद डॉक्टर ने विश्वासकुमार रमेश नाम के शख़्स के अस्पताल में वार्ड बी-7 में भर्ती होने की जानकारी दी.
इस ब्रिटिश नागरिक को वार्ड सी-7 में शिफ़्ट किया गया. उन्हें कड़ी पुलिस सुरक्षा में रखा गया था और किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं थी.
सिविल अस्पताल ने डीएनए टेस्ट से जुड़ी प्रक्रिया की शुरुआत की घोषणा की.
बीजे मेडिकल कॉलेज के परीक्षण केंद्र में डीएनए सैंपल को इकट्ठा करने की व्यवस्था की गई थी.
माता-पिता, बच्चों या भाई-बहनों से डीएनए सैंपल देने का अनुरोध किया गया था. लेकिन अगर परिवार के करीबी सदस्य उपलब्ध नहीं थे, तो अन्य रिश्तेदारों से नमूने लिए गए.
एक महिला ने कहा, “मेरे चाचा की बेटी, उनके पति और उनके तीन बच्चे – पांच लोगों का परिवार लंदन जा रहा था. हम डीएनए सैंपल देने आए थे.”
एक और महिला रोने लगीं. उनकी बहन ने हमें बताया कि महिला की पिछले हफ़्ते ही शादी हुई थी. महिला के पति शादी के लिए अहमदाबाद से फ़्लाइट से लंदन जा रहे थे.
दुख और दिल दहला देने वाली कहानियों का कोई अंत नहीं था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित