तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड ने आंध्र प्रदेश सरकार से कहा है कि टीटीडी के सभी ग़ैर-हिंदू कर्मचारियों को दूसरी जगह नौकरी दी जाए.
भविष्य में इस फ़ैसले का असर आंध्र प्रदेश में उन तमाम मंदिरों पर व्यापक रूप से पड़ेगा, जो भक्तों से मिलने वाली धनराशि के ज़रिए संचालित होते हैं.
तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) बोर्ड ने हाल ही में यह निर्णय लिया है कि तिरुमाला स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में ग़ैर-हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति न की जाए.
बोर्ड ने राज्य सरकार से कहा है कि वो ग़ैर-हिंदुओं की नियुक्ति किसी और विभाग में कर दे या उन्हें वीआरएस (वॉलंटियर रिटायरमेंट) लेने की अनुमति दे दे.
चेयरमैन ने क्या कहा?
टीटीडी बोर्ड के इस निर्णय ने विवाद खड़ा कर दिया है. क्योंकि, तेलंगाना हाई कोर्ट की डिवीज़न बेंच ने 2018 में इस मामले में फ़ैसला सुनाया था कि ग़ैर-हिंदू कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है, वो सभी शासकीय कर्मचारी हैं.
टीटीडी के चेयरमैन बीआर नायडू ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”मेरी सोच इस विवाद को मैत्रीपूर्ण ढंग से ख़त्म करने की है. हम कोई भी एकतरफ़ा फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं.”
”एक बार हमें ग़ैर-हिंदू कर्मचारियों पर विजिलेंस विभाग की रिपोर्ट मिल जाए, तो मैं उनसे मिलूंगा और चर्चा करूंगा कि किस तरह उनको दूसरे विभाग में नियुक्त किया जा सकता है या फिर वो लोग कैसे वीआरएस ले सकते हैं.”
उन्होंने कहा, ”उनको कहां भेजना है, यह बाद की बात है. हम इस मामले में सरकार की मदद लेंगे.”
नायडू ने कहा, ”यह मांग कई सालों से उठती रही है कि टीटीडी में केवल हिंदुओं को नियुक्ति दी जाए. हम ऐसा करना चाहते थे ताकि भक्तों के बीच मंदिर की पवित्रता को लेकर कोई शक़ न रहे.”
पूर्व अधिकारी क्या बोले?
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आई.वाय.आर. कृष्णा राव ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”जो नियम टीटीडी के लिए सही हैं वो बाक़ी सभी हिंदू मंदिरों के लिए समान रूप से प्रासंगिक हैं.”
”अगर तिरुमाला में ग़ैर-हिंदू काम नहीं कर सकते हैं तो वो श्रीशैलम, अन्नावरम या श्रीकालाहस्ती में भी काम नहीं कर सकते हैं.”
कृष्णा राव अपनी बात को यह तर्क देते हुए सही ठहराते हैं, ”नियमानुसार मंदिर में केवल हिंदुओं को काम करने दिए जाने का प्रावधान है. ऐसा साल 2007 के सरकारी आदेशानुसार है.”
टीटीडी ने पहली बार साल 1988 में मंदिर प्रशासन में ग़ैर-हिंदुओं पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था.
तब संस्था के अंतर्गत आने वाले शिक्षण संस्थानों को एक अपवाद के रूप में अलग रखा गया था.
लेकिन साल 2007 में एक सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसमें शिक्षण संस्थानों में भी ग़ैर-हिंदुओं की नियुक्ति पर रोक लगा दी गई थी.
दरअसल यह आदेश एक स्थानीय टीवी चैनल के एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद जारी किया गया था.
इस स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया था कि टीटीडी की एक अधिकारी अपने आधिकारिक वाहन का इस्तेमाल संडे को चर्च जाने के लिए कर रही थीं.
इसके बाद कुछ कर्मचारी इस मामले को लेकर तेलंगाना हाई कोर्ट पहुंच गए थे. इसके बाद ग़ैर-हिंदू कर्मचारियों को टीटीडी से बाहर करने का अभियान तेज़ी से शुरू हो गया था.
कोर्ट ने क्या कहा?
तेलंगाना हाई कोर्ट में जस्टिस रमेश रंगनाथन और के.विजया लक्ष्मी की खंडपीठ ने यह फ़ैसला सुनाया था कि टीटीडी बोर्ड सरकारी कर्मचारियों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है.
इस आदेश पर कृष्णा राव कहते हैं, “टीटीडी को तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ अपील दाखिल करना होगी. मेरे विचार से यह अदालत का ग़लत फ़ैसला है.”
“टीटीडी के कर्मचारियों को कई जगहों पर पोस्टिंग दी जाती है. आप ये नहीं कह सकते कि आपकी धार्मिक आस्था कुछ और है, फिर भी आप हिंदू मंदिर में काम करना चाहते हैं.”
कृष्णा राव ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मंदिर के संचालन में किसी सार्वजनिक पैसे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. टीटीडी को मिलने वाला राजस्व या अन्य मंदिरों में आने वाला पैसा भी भक्तों की ओर से मिलता है. इस आधार पर तो यहां हिंदुओं को ही काम करना चाहिए.”
राजनीतिक पहलू
तेलंगाना बीजेपी के प्रवक्ता एनवी सुभाष टीटीडी के निर्णय को सही ठहराते हुए अपनी बात कहते हैं.
उन्होंने कहा, ”हम उनको बर्खास्त नहीं कर रहे हैं. उनको केवल वापस भेजा जा रहा है या वीआरएस लेने को कहा जा रहा है.”
उन्होंने कहा, ”जगन मोहन रेड्डी सरकार के दौरान बोर्ड में कुछ लोग ग़ैर-हिंदू थे. इससे श्रद्धालुओं की भावनाओं को चोट पहुंची है, क्योंकि इससे तीर्थ स्थल की पवित्रता नष्ट हो जाती है.”
वह कहते हैं, ”क्या कोई वेटिकन जा सकता है और आरती कर सकता है? क्या कोई हिंदू दरगाह या चर्च में काम कर सकता है?”
पूर्व टीटीडी चेयरमैन वाइवी सुब्बा रेड्डी के कार्यकाल के समय जगन मोहन रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
रेड्डी इस बात का खंडन करते हुए कहते हैं कि बोर्ड में ग़ैर-हिंदुओं को नियुक्त नहीं किया गया था.
उन्होंने बीबीसी हिंदी से हुई बातचीत के दौरान बीजेपी प्रवक्ता के उन आरोपों को भी ख़ारिज किया जिसमें यह कहा गया था कि बालाजी के दर्शन करने के लिए कतार में खड़े लोगों को बाइबल बांटी गई थी.
रेड्डी ने कहा, “ये कैसे मुमकिन है? आपको लगता है हम इसकी अनुमति देंगे?”
बीजेपी का स्टैंड इस मामले पर चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि वो सत्ताधारी दल तेलगु देशम पार्टी के साथ गठबंधन में है.
राज्य सरकार का नेतृत्व टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जनसेना के पवन कल्याण के पास है.
जून में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी.
उन्होंने कहा था कि राज्य प्रशासन की साफ-सफाई शुरू करेंगे, जो जगन मोहन रेड्डी के कार्यकाल में भ्रष्ट हो चुकी है. इसकी शुरुआत तिरुमाला-तिरुपति से जुड़े मामलों से होगी.
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के कार्यकाल के दौरान तिरुपति मंदिर में चढ़ाए जाने वाले लड्डू में मिलावटी घी के इस्तेमाल किए जाने का आरोप लगाया था.
इस पर खासा विवाद हुआ था.
इसके बाद गठबंधन में उनकी सहयोगी जनसेना पार्टी के नेता और एक्टर पवन कल्याण ने 11 दिन तपस्या करने और ”सनातन धर्म रक्षा बोर्ड” की स्थापना की मांग की थी.
कर्मचारी क्या बोले?
हालांकि, टीटीडी कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष कंडारापु मुरली ने बीबीसी हिंदी से इस मामले पर अलग बात कही.
उन्होंने कहा, ”यह आरोप लगाया गया कि कुछ लोग किसी विशेष धार्मिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने में जुटे हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके उलट ग़ैर-हिंदू कर्मचारी केवल अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि ये फ़ैसला बीजेपी और आरएसएस के दबाव में लिया गया है.”
मुरली ने कहा, ”जिन 31 गैर-हिंदू कर्मचारियों की बात हो रही है वो अस्पताल, स्कूल, बगीचे और ड्राइवर के तौर पर नौकरी कर रहे हैं. उनकी मौजूदगी से मंदिर के कामकाज में किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. अगर किसी मामले में हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया जाता है, तो यह न्यायालय की अवमानना है.”
सुब्बा रेड्डी भी मुरली से सहमत हैं. वो कहते हैं, ”ग़ैर-हिंदू अस्पताल और स्कूल वगैरह में काम करते हैं.”
हालांकि, टीटीडी चेयरमैन नायडू ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”हमारे पास केवल प्राथमिक स्तर का डेटा मौजूद है. हम और भी ज्यादा जानकारी जुटा रहे हैं. इस डेटा को विजिलेंस के साथ साझा किया गया है, ताकि वो जांच कर सके.”
उन्होंने कहा, ”व्यक्तिगत तौर पर मैं किसी धर्म के ख़िलाफ़ नहीं हूं. मेरे कार्यालय में कई ग़ैर-हिंदू कर्मचारी काम कर रहे हैं. मंदिर की सेवा में श्रीवाणी ट्रस्ट की भूमिका को कम करने के पीछे का मकसद यह था कि हम भक्तों के बीच विश्वास पैदा करना चाहते थे. यह हमारी प्राथमिकता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित