डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा के भय से घिरे रहते हैं और अक्सर देखा जाता है कि वे चिंता या अवसाद से भी ग्रस्त हो जाते हैं। इससे न केवल उनके शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट होती है, बल्कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
ऐसे छात्र अपनी कठिनाई बता नहीं पाते, जिसे उनके शारीरिक हावभाव या कुछ संकेतकों से समझा जा सकता है। आइआइटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने ऐसे शारीरिक संकेतकों की पहचान की है, जिनसे यह पता लगाया जा सकेगा कि किन छात्रों में परीक्षा के दौरान चिंता बढ़ने का जोखिम अधिक है।
क्यों अहम मानी जा रही है ये शोध?
इस खोज को शिक्षा प्रणाली में तनाव प्रबंधन और प्रदर्शन सुधारने के लिए बड़े बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह शोध ‘बिहैवियरल ब्रेन रिसर्च’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोध में यह समझने की कोशिश की गई कि परीक्षा के दबाव में कुछ छात्र बेहतर प्रदर्शन क्यों कर पाते हैं जबकि कई छात्र चिंता से जूझ कर टालमटोल वाला व्यवहार अपना लेते हैं।
एनसीईआरटी के अनुसार भारत में लगभग 81 प्रतिशत छात्र परीक्षा के तनाव से प्रभावित होते हैं, जिसका असर उनकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर लंबे समय तक पड़ता है। आइआइटी मद्रास के इंजीनियरिंग डिजाइन विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश बालासुब्रमण्यम ने बताया कि टीम ने छात्रों की स्वयं बताई गई भावनाओं के बजाय नापे जा सकने वाले शारीरिक संकेतों पर ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने बताया, “जब तनाव के दौरान मस्तिष्क और हृदय के बीच संचार प्रणाली कमजोर पड़ती है, तो कुछ छात्रों में चिंता और अधिक बढ़ जाती है। इससे स्पष्ट जैविक अंतर सामने आता है कि कौन छात्र तनाव में अनुकूलन कर पाता है और कौन नहीं।”
विज्ञानियों ने तलाशे दो प्रमुख संकेत
अध्ययन की मुख्य बातें दो शारीरिक संकेतकों को जोड़ने में निहित हैं- फ्रंटल अल्फा एसिमिट्री (एफएए), जो कि भावनात्मक नियमन का मस्तिष्क आधारित संकेतक है, और दूसरा, हार्ट रेट वैरिएबिलिटी (एचआरवी)- जो हृदय के अनुकूलन नियंत्रण को मापता है। साथ मिलकर, ये संकेत चिंताग्रस्त छात्रों की पहचान करने में मदद करते हैं।
टीम ने पाया कि जिन छात्रों में एफएए पैटर्न नकारात्मक होता है, उनमें तनाव के समय हृदय के संतुलन तंत्र की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। इसका मतलब है कि उनकी आतंरिक चिंता हृदय की प्रतिक्रिया को भी प्रभावित करती है, जिससे वे परीक्षा जैसी स्थिति में अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं।
एआइ आधारित निगरानी से बनेंगी नई संभावनाएं
शोधकर्ता स्वाती परमेश्वरन ने बताया कि इन मार्कर्स की मदद से भविष्य में ऐसे एआइ आधारित टूल विकसित किए जा सकते हैं, जो वास्तविक समय में यह पहचान सकें कि कौन सा छात्र परीक्षा के तनाव के जोखिम में है।
उन्होंने कहा कि यह शोध व्यक्तिगत स्तर पर तनाव प्रबंधन कार्यक्रम तैयार करने में मदद करेगा, जिसे स्कूलों और विश्वविद्यालयों के सेहत कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है।