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उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान एक ऐसा नाम है जो हमेशा सुर्ख़ियों में रहता है.
वह तीन दशकों से अधिक समय से प्रदेश की राजनीति के केंद्र में बने हुए हैं.
17 नवंबर को पैन कार्ड की गड़बड़ी से जुड़े दो मामलों में उन्हें और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म को सात साल की सज़ा सुनाई गई है.
रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने जालसाज़ी, धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश की धाराओं में आज़म ख़ान और अब्दुल्ला आज़म को दोषी ठहराया.
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अदालत ने दोनों पर 50 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया.
निर्णय सुनते ही पुलिस ने अदालत परिसर में ही दोनों को हिरासत में ले लिया.
कब का था यह मामला?
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यह मामला दिसंबर 2019 में दर्ज हुआ था और तब से लगातार जांच और सुनवाई चल रही थी.
अभियोजन पक्ष के अनुसार अब्दुल्ला आज़म ने दो अलग-अलग जन्म तिथियों के आधार पर दो पैन कार्ड बनवाए थे.
एक पैन कार्ड में जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 दर्ज थी जबकि दूसरे में 30 सितंबर 1990 दर्ज कराई गई थी.
वास्तविक जन्मतिथि के आधार पर वह 2017 के विधानसभा चुनाव में 25 वर्ष की न्यूनतम आयु पूरी नहीं करते थे.
आरोप है कि चुनाव लड़ने की पात्रता सुनिश्चित करने के लिए दूसरा पैन कार्ड बनवाया गया.
इस प्रक्रिया में आज़म खान पर सहयोग और साज़िश का आरोप लगाया गया.
यह मामला रामपुर के वर्तमान बीजेपी विधायक आकाश सक्सेना ने दर्ज कराया था.
उनका कहना है कि आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ ज़्यादातर मामलों में ठोस दस्तावेज़ी प्रमाण मौजूद हैं.
फ़ैसले के बाद उन्होंने कहा कि जिसने ग़लत किया है, उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी.
इस फ़ैसले के बाद आज़म ख़ान ने कहा, “अदालत ने गुनहगार समझा, इसलिए सज़ा दी है.”
हालाँकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा, “सत्ता के ग़ुरूर में जो नाइंसाफ़ी और ज़ुल्म की हदें पार कर देते हैं, वो ख़ुद एक दिन क़ुदरत के फ़ैसले की गिरफ़्त में आकर बेहद बुरे अंत की ओर जाते हैं.”
क्या सरकार के निशाने पर हैं आज़म खान?
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आज़म ख़ान 23 सितंबर को कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद रिहा हुए थे. वह सिर्फ़ 55 दिन जेल के बाहर रहे.
इससे पहले वह दो बार जेल गए हैं. एक बार लगभग 22 महीने जेल में रहे और दूसरी बार लगभग 23 महीने.
आज़म ख़ान ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से पिछले महीने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके ऊपर 100 से अधिक मुक़दमे हैं, जिनमें कुछ मुर्ग़ी चोरी जैसे आरोप भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा था, “मेरे ऊपर इल्ज़ाम है कि मुर्ग़ी चोरी कराई है. मैं और मेरी पत्नी ने शराब की दुकान लुटवाई है.”
आज़म ख़ान ने बताया कि उनके परिवार के ख़िलाफ़ पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मामले दर्ज किए गए.
उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी जेल में रहीं और उनका बेटा, जो दो बार विधायक रह चुका है, वो भी जेल में रहा.
उनकी पत्नी तज़ीन फ़ातिमा विधायक और सांसद रह चुकी हैं.
आज़म ख़ान ने कहा कि उन्होंने कई साल जेल की ऐसी कोठरी में गुज़ारे जहाँ कोई पाँच मिनट भी नहीं रह सकता. उन्होंने कहा कि वे दिन उनकी ज़िंदगी के सबसे कठिन दिनों में से थे, लेकिन न्यायपालिका पर उनका भरोसा कभी कम नहीं हुआ.
आज़म ख़ान के इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील इमरानउल्ला ने कहा, “तकरीबन 42 मुक़दमों में ट्रायल चल रहा है. कुछ में बरी भी हुए हैं, वहीं कुछ में सज़ा हुई है.”
पिछले कई सालों में आज़म ख़ान पर कई तरह के मामले दर्ज हुए हैं.
इनमें ज़मीन से जुड़े विवाद, विश्वविद्यालय निर्माण में कथित अनियमितताएँ, चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन, सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने के आरोप और प्रशासनिक मामलों से संबंधित विवाद शामिल हैं.
आज़म ख़ान के विरोधियों का कहना है कि यह सारे मामले उनकी कार्यशैली का परिणाम हैं.
वहीं समर्थकों का कहना है कि यह राजनीतिक प्रतिशोध का संकेत है और आज़म ख़ान को निशाना बनाया जा रहा है.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहम्मद आज़म ने कहा, “पूरी सरकार उनके ख़िलाफ़ साज़िश कर रही है. सरकार नहीं चाहती कि आज़म साहब जेल से बाहर रहें, लेकिन हमें न्यायपालिका से उम्मीद है.”
‘योगी के लिए आज़म कोई राजनीतिक ख़तरा नहीं’
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एक ओर यह तथ्य भी है कि उनके ख़िलाफ़ मामलों की संख्या बहुत अधिक है और वह लगातार कोर्ट और जांच एजेंसियों के बीच उलझे रहते हैं.
दूसरी ओर यह भी सच है कि कुछ मामलों में अदालतों ने उन्हें दोषी माना है और सज़ा भी सुनाई है.
राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान ने कहा, “यह योगी का स्टाइल है. आज़म ख़ान मुस्लिम हैं, इसलिए उनसे विशेष अदावत है.”
आज़म ख़ान की राजनीति हमेशा तीखे बयानों, आक्रामक शैली और सत्ता से सीधी टक्कर के लिए जानी जाती है.
इसी शैली की वजह से वह समय-समय पर विवादों के केंद्र में आते रहे हैं.
शरत प्रधान कहते हैं, “योगी के लिए आज़म ख़ान कोई राजनीतिक ख़तरा नहीं हैं, लेकिन वह जिस बेबाकी से बोलते हैं, वह सरकार को पसंद नहीं है.”
हालाँकि भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय. जैसी करनी वैसी भरनी.”
उन्होंने कहा, “सत्ता के रसूख में सपा नेताओं ने क़ानून को तोड़ा-मरोड़ा था. अब पाई-पाई का हिसाब हो रहा है. न्याय हो रहा है. सपा को अगर इससे दर्द हो रहा है तो दर्द निवारक दवाएँ लें.”
सरकार के निशाने पर क्या मायावती-अखिलेश भी?
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मायावती और अखिलेश यादव विपक्ष के नेता हैं, लेकिन ये नेता क़ानूनी कार्यवाही का सामना आज़म ख़ान जैसे स्तर पर नहीं कर रहे हैं.
हालाँकि अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ भी जांच हुई है.
राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं, “मायावती तो बीजेपी के साथ हैं. अखिलेश यादव मुस्लिम नहीं हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार सैयद क़ासिम कहते हैं, “आज़म ख़ान की मायावती और अखिलेश से कोई बराबरी नहीं है. दोनों अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.”
उनका कहना है कि आज़म ख़ान से पहले कई मुस्लिम नेताओं को जेल भेजा गया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.
सैयद क़ासिम कहते हैं, “मायावती और अखिलेश के साथ ऐसा इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि उनके साथ उनकी बिरादरी और पार्टी खड़ी है. आज़म और अन्य मुस्लिम नेताओं के साथ न बिरादरी है, न पार्टी.”
वह कहते हैं, “आज़म से पहले मुख़्तार अंसारी और अतीक अहमद के साथ भी यही हुआ, हालाँकि उनका आपराधिक इतिहास रहा है.”
सैयद क़ासिम का कहना है, “आज़म ख़ान के साथ वही हुआ है जो आज़म ने रामपुर में अपने विरोधियों, ख़ासकर नवाब परिवार के साथ किया है.”
हालाँकि नवाब परिवार से अपने रिश्तों के बारे में आज़म ख़ान ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से दावे के साथ कहा था कि ‘नवाब जनता का शोषण करते थे’ और वह शोषितों की लड़ाई लड़ रहे हैं.
नवाब घराने के हैदर अली ख़ान का कहना है, “आज़म ख़ान जनता के अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए जेल में नहीं गए बल्कि ज़मीन कब्ज़ाने के आरोप में जेल गए हैं.”
दरअसल आज़म ख़ान की राजनीति की शुरुआत नवाब परिवार के विरोध से हुई थी.
रामपुर नवाबों का इलाक़ा रहा है, और उनकी कई पीढ़ियाँ राजनीति में सक्रिय रही हैं.
ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान मिक्की मियाँ और उनकी पत्नी बेग़म नूर बानो कांग्रेस के सांसद रहे हैं.
काज़िम अली ख़ान कांग्रेस और बीएसपी से विधायक रह चुके हैं. मायावती सरकार में मंत्री भी थे.
हैदर अली ख़ान ‘हमज़ा मियाँ’ ने 2022 में अपना दल से चुनाव लड़ा लेकिन अब्दुल्ला आज़म से हार गए.
हालाँकि आज़म ख़ान का राजनीतिक वर्चस्व बढ़ने से नवाब परिवार की राजनीति हाशिए पर चली गई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.