इमेज स्रोत, Kevin Church/BBC
जब मुझे तीन अनजान लोगों के सामने अचानक पांच मिनट का भाषण देने और फिर 17-17 के अंतराल में 2023 से शुरू कर उलटी गिनती करने को कहा गया तो मेरे चेहरे पर तनाव साफ़ दिख रहा था.
दरअसल, ससेक्स यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक इस थोड़े डरावने अनुभव को एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए कैमरे पर रिकॉर्ड कर रहे थे. इसमें वे थर्मल कैमरों की मदद से तनाव का अध्ययन कर रहे थे.
तनाव चेहरे में खून के प्रवाह को प्रभावित करता है और मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि नाक के तापमान में गिरावट से तनाव के स्तर का पता लगाया जा सकता है.
इससे ये भी देखा जा सकता है कि तनाव के बाद व्यक्ति कितनी जल्दी सामान्य स्थिति में लौटता है. अध्ययन से जुड़े मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि थर्मल इमेजिंग तनाव पर रिसर्च में एक “गेम चेंजर” साबित हो सकती है.
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मैं जिस प्रयोग वाले स्ट्रेस टेस्ट से गुजरी, वह बहुत सोच-समझकर इस तरह डिजाइन किया गया था कि इससे लोगों को परेशानी हो. मुझे यूनिवर्सिटी पहुंचने तक ये अंदाज़ा नहीं था कि मैं किस प्रक्रिया से गुजरने वाली हूं.
पहले मुझे एक कुर्सी पर बैठाकर हेडफ़ोन पर व्हाइट नॉइज़ सुनने को कहा गया. व्हाइट नॉइज़ एक ऐसी आवाज़ होती है जिसमें अलग-अलग फ़्रीक्वेंसी की साउंड होती है.
जब अलग-अलग फ़्रीक्वेंसी वाली आवाज़ों को मिक्स किया जाता है, तो जो शोर बनता है, उसे ‘व्हाइट नॉइज़’ कहा जाता है. इसे नींद लाने, एकाग्रता बढ़ाने या बाहरी आवाज़ों से ध्यान भटकने से बचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
तनाव का पता कैसे चलता है?
यहां तक तो सब ठीक जा रहा था, एकदम शांतिपूर्ण.
इसके बाद इस टेस्ट को करने वाले रिसर्चर ने तीन अनजान लोगों को कमरे में बुलाया.
वे सभी चुपचाप मुझे घूरने लगे. इसके बाद रिसर्चर ने मुझे बताया कि मेरे पास अब केवल तीन मिनट हैं और मुझे अपने ‘ड्रीम जॉब’ के बारे में पांच मिनट बात करनी है.
ये सुनने के बाद मेरे गले के पास गर्मी महसूस हुई, मनोवैज्ञानिकों ने थर्मल कैमरे से मेरे चेहरे का रंग बदलते हुए रिकॉर्ड किया. मेरी नाक का तापमान तेजी से गिरा. ये थर्मल इमेज में नीला हो गया.
ये सब तब हुआ जब मैं सोच रही थी कि बिना तैयारी के मैं पांच मिनट में कैसे बताऊं. फिर मैंने ये बोलना शुरू किया कि मैं अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होना चाहती हूं.
ससेक्स के रिसर्चरों ने यह स्ट्रेस टेस्ट (तनाव पता लगाने वाली जांच) 29 वॉलंटियर्स पर किया. हर एक में नाक का तापमान 3 से 6 डिग्री तक घट गया.
मेरी नाक का तापमान 2 डिग्री गिरा, क्योंकि मेरे नर्वस सिस्टम ने नाक से खून का प्रवाह घटाकर आंखों और कानों की ओर भेज दिया. शरीर की ये प्रतिक्रिया इसलिए थी ताकि मैं ख़तरे को देख और सुन सकूं.
इस रिसर्च में शामिल ज़्यादातर लोग मेरी तरह जल्दी ही सामान्य हो गए. कुछ मिनटों में उनकी नाक फिर से गर्म हो गई.
मुख्य रिसर्चर प्रोफ़ेसर गिलियन फॉरेस्टर ने बताया कि रिपोर्टर और ब्रॉडकास्टर होने की वजह से मैं शायद “तनावपूर्ण परिस्थितियों की आदी” हूं.
उन्होंने मुझे बताया, “आप कैमरे के सामने और अनजान लोगों से बात करती रहती हैं, इसलिए आपमें शायद इस तरह की परिस्थिति में तनाव झेलने की सहनशक्ति ज़्यादा है.”
“लेकिन आप जैसी व्यक्ति में भी खून के प्रवाह में बदलाव होना दिखाता है कि ‘नाक का ठंडा पड़ना’ तनाव के बदलाव का एक भरोसेमंद संकेतक है.”
‘नाक का ठंडा पड़ना’
इमेज स्रोत, Kevin Church/BBC News
वैसे तो तनाव जीवन का हिस्सा है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इस रिसर्च से तनाव को ख़तरनाक स्तर तक पहुंचने से रोका जा सकता है.
प्रोफ़ेसर फॉरेस्टर कहती हैं, “किसी की नाक के तापमान के सामान्य होने में जितना समय लगता है, वो इस बात का संकेत हो सकता है कि वह व्यक्ति अपने तनाव को कितनी अच्छी तरह संभाल पाता है.”
“अगर इससे उबरना असामान्य रूप से धीमा है तो क्या ये चिंता या अवसाद का संकेत हो सकता है? और क्या हम इसके लिए कुछ कर सकते हैं?”
दरअसल, यह तकनीक बिना किसी हस्तक्षेप के केवल शारीरिक प्रतिक्रिया को मापती है, इसलिए यह शिशुओं या ऐसे लोगों में तनाव की निगरानी करने में भी उपयोगी हो सकती है जो बातचीत नहीं करते.
मेरे स्ट्रेस टेस्ट का दूसरा हिस्सा तो मेरी नज़र में पहले से भी ज़्यादा मुश्किल था. मुझसे 17 के अंतराल के साथ 2023 से उलटी गिनती करने के लिए कहा गया. जब भी मैं गलती करती, तीन अजनबियों के उस पैनल में से कोई न कोई मुझे टोक देता और फिर से शुरू से उलटी गिनती करने के लिए कहता.
मैं मानती हूं कि मानसिक तौर पर गिनती करने में मैं ख़राब हूं.
जैसे-जैसे मैं गिनती करने की कोशिश में उलझती रही, मुझे बस यही लग रहा था कि इस भरे हुए कमरे से किसी तरह भाग निकलूं.
इस रिसर्च में शामिल 29 वॉलंटियर्स में से केवल एक ने ही बीच में टेस्ट छोड़कर कमरे से बाहर जाने के लिए कहा.
बाक़ी लोगों ने मेरी तरह ही ये टेस्ट पूरा किया.
भले ही टेस्ट के दौरान अपमानजनक महसूस हुआ हो लेकिन फिर अंत में हमें हेडफोन पर शांत सा कुछ सुनने के लिए दिया गया.
चिंपैंज़ियों को वीडियो दिखाने पर क्या हुआ?
प्रोफ़ेसर फॉरेस्टर 18 अक्तूबर को लंदन में होने वाले न्यू साइंटिफिक लाइव इवेंट में दर्शकों के सामने तनाव मापने वाली इस तरीके को पेश करेंगी.
शायद इस तरीके की सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि थर्मल कैमरे शरीर की उस स्वाभाविक प्रतिक्रिया को पकड़ लेते हैं, जो तनाव के समय अपने आप होती है और ये सिर्फ़ इंसानों में नहीं, बल्कि चिंपैंज़ी चिंपांज़ी, गोरिल्ला जैसे प्राइमेट्स में भी होती है.
इसलिए ये तकनीक उन पर भी काम कर सकती है.
रिसर्चर मौजूदा समय में इसे चिंपैंज़ी और गोरिल्ला के संरक्षण स्थलों में उपयोग के लिए तैयार कर रहे हैं. उनका मक़सद ये समझना है कि इन जानवरों का तनाव कैसे कम किया जाए. ख़ासतौर पर जिन जानवरों को मुश्किल हालात से बचाकर लाया गया है, उनकी ज़िंदगी बेहतर कैसे की जाए.
टीम ने ये पाया कि जब वयस्क चिंपैंज़ियों को छोटे (बच्चे) चिपैंज़ियों के वीडियो दिखाए गए, तो वो ज़्यादा शांत हो गए. जब रिसर्चरों ने उनके बाड़े के पास एक स्क्रीन लगाई और वीडियो चलाया तो उनकी नाक का तापमान बढ़ गया यानी वो शांत हो गए.
यानी तनाव के मामले में, छोटे जानवरों को खेलते हुए देखना अचानक इंटरव्यू देने या हिसाब लगाने के बिल्कुल उलट असर डालता है.
इमेज स्रोत, Gilly Forrester/University of Sussex
ऐसे अभयारण्यों में थर्मल कैमरे का इस्तेमाल काफ़ी काम का साबित हो सकता है. इससे उन जानवरों को अपने नए माहौल और ग्रुप में ढलने में मदद मिल सकती है, जिन्होंने पहले बहुत मुश्किल हालात का सामना किया हुआ है.
ससेक्स यूनिवर्सिटी की रिसर्चर मरिएन पैसली बताती हैं, “ये जानवर हमें बता नहीं सकते कि वो कैसा महसूस कर रहे हैं, और कई बार तो अपने असली एहसास छुपाने में भी बहुत माहिर होते हैं.”
वो कहती हैं, “हमने पिछले सौ साल से भी ज़्यादा समय से प्राइमेट्स का अध्ययन किया है ताकि खुद इंसानों को बेहतर समझ सकें.”
“अब जब हमें इंसानी मानसिक सेहत के बारे में इतना कुछ पता चल गया है, तो शायद अब वक्त है कि हम उस समझ का थोड़ा फायदा उन्हें भी लौटाएं.”
अगर इस छोटे से वैज्ञानिक प्रयोग में झेली गई मेरी तकलीफ़ से हमारे इन दूर के रिश्तेदारों की तकलीफ़ थोड़ी कम करने में काम आ जाए तो ये अच्छा है.
अतिरिक्त रिपोर्टिंग: केट स्टीफंस, फ़ोटोग्राफ़ी: केविन चर्च
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.