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आयोग ने बूथों के नवीकरण में बंगाल सरकार की भूमिका पर उठाया सवाल, सामने आई बड़ी वजह

Byadmin

Oct 26, 2025


राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चुनाव आयोग व राज्य सरकार में तकरार बढ़ती जा रही है। आयोग ने राज्य के बूथों के नवीकरण में सरकार की भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठाया है।

मालूम हो कि राज्य सरकार की अधीनस्थ कंपनी मैकिंटोश बर्न ने बूथों के नवीकरण की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन उसने अचानक इस काम से हाथ खींच लिया। इसका स्पष्ट कारण भी नहीं बताया। इसके बाद आयोग को आनन-फानन में जिला चुनाव अधिकारियों (जो कि जिलाधिकारी हैं) को यह दायित्व सौंपना पड़ा है।

कंपनी के गैर-जिम्मेदाराना आचरण से आयोग क्षुब्ध

जिला चुनाव अधिकारी अपने जिले के प्रत्येक बूथ में आधारभूत संरचना विकसित करेंगे। आयोग सरकारी कंपनी के इस गैर-जिम्मेदाराना आचरण से बेहद क्षुब्ध है। मैकिंटोश बर्न को 80,000 से अधिक बूथों के नवीकरण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

पहले दिखाई दिलचस्पी, फिर खींच लिए हाथ

यह कंपनी बंगाल सरकार के लोक निर्माण विभाग के अधीन काम करती है। शुरू में कंपनी ने बूथों के नवीकरण का काम करने में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन बाद में हाथ खींच लिया। उसने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) मनोज अग्रवाल को पत्र लिखकर परियोजना से हटने की बात कह दी है। मैकिंटोश बर्न ने पत्र में यह भी अनुरोध किया है कि आयोग इसे लेकर उसके विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे।

कड़ी कार्रवाई के मूड में आयोग

आयोग ने इस मामले में अब तक अपना रूख स्पष्ट नहीं किया है, हालांकि सूत्रों के हवाले से खबर है कि इसे लेकर मैकिंटोश बर्न को नोटिस भेजा जा सकता है। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर कार्रवाई की जा सकती है। मालूम हो कि बंगाल सरकार शुरू से ही एसआईआर का पुरजोर विरोध कर रही है।

सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कई नेता इसे लेकर चुनाव अधिकारियों व कर्मचारियों व भाजपा के लोगों को धमका चुके हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो सार्वजनिक तौर पर सीईओ पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की चेतावनी दी थी। कुछ दिन पहले मतदाता सूची के संशोधन कार्य में गड़बड़ी के दोषी पाए गए राज्य सरकार के कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर भी आयोग व राज्य सरकार में टकराव देखने को मिला था।

मुख्यमंत्री ने पहले दोषी कर्मचारियों को हटाने से साफ इन्कार कर दिया था। आयोग के सख्ती करने पर सरकार को अंतत: उन्हें हटाना पड़ा था। इस मामले में आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को दिल्ली स्थित अपने कार्यालय तक तलब किया था।

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