आलू की अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक लगाने के पश्चिम बंगाल सरकार के फै़सले से एक तरफ आलू की क़ीमतें बढ़ गई हैं, वहीं दूसरी तरफ़ व्यापारियों को यह डर सता रहा है कि राज्य के ‘कोल्ड स्टोरेज’ में रखा हुआ 3.5 लाख टन आलू सड़ सकता है.
इस फै़सले का असर कई राज्यों पर भी पड़ा है, जहां आलू की क़ीमतें औसत से दोगुना हो गई हैं.
इन राज्यों में झारखंड और ओडिशा जैसे सीमावर्ती राज्यों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्य भी शामिल हैं, जो आलू की आपूर्ति के लिए पश्चिम बंगाल पर निर्भर हैं.
पश्चिम बंगाल सरकार के कृषि मंत्री बेचाराम मन्ना का कहना है कि आलू की आपूर्ति राज्य के बाहर तब तक नहीं की जाएगी, जब तक राज्य में आलू की क़ीमतें स्थिर नहीं हो जातीं.
व्यापारी संगठनों के प्रतिनिधि क्या चिंता जता रहे हैं?
कई टन आलू के सड़ने की आशंका को देखते हुए राज्य के ‘कोल्ड स्टोरेज’ संघ के प्रतिनिधियों ने इस स्थिति पर सरकार से चर्चा की है और राज्य के कृषि मंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक को ‘स्थिति से अवगत’ कराया है.
संघ के प्रवक्ता सुभाषजीत साहा ने कहा, “अगर गोदामों से आलू नहीं निकाला गया, तो वो ख़राब हो सकता हैं और इससे व्यापारियों और किसानों को करोड़ों का नुक़सान होगा.”
सुभाषजीत साहा का कहना है कि ज़्यादातर कोल्ड स्टोरेज पश्चिम मिदनापुर और बांकुड़ा में स्थित हैं. कुछ अन्य ज़िलों में भी कोल्ड स्टोरेज मौजूद हैं.
संघ का दावा है कि पूरे राज्य के कोल्ड स्टोरेज में इस समय लगभग 3.5 लाख टन आलू रखा हुआ है, जिसे अब तक बिक जाना चाहिए था.
अब समस्या ये भी है कि दूसरे राज्यों से नया आलू बाज़ार में आ रहा है, जो पुराने आलू के दाम पर बिक रहा है. इसलिए लोग पुराने की जगह नया आलू खरीदना पसंद कर रहे हैं.
व्यापारियों की हड़ताल के बाद सरकार ने प्रतिबंध हटाने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद व्यापारी संगठनों ने अपनी हड़ताल वापस ले ली थी.
‘कोल्ड स्टोरेज’ के मालिकों ने राज्य सरकार को दी गई रिपोर्ट में बताया है कि पश्चिम बंगाल में क़रीब 475 कोल्ड स्टोरेज हैं. इन गोदामों में सबसे ज़्यादा आलू पश्चिम मिदनापुर के कोल्ड स्टोरेज में रखा गया है, जहां 30 लाख 50 किलो की आलू की बोरियां मौजूद हैं.
इसके अलावा, हुगली ज़िले के गोघाट ब्लॉक में लगभग 17 लाख बोरियां और बांकुड़ा और बर्दवान जिलों में क़रीब 28 लाख बोरियां रखी हुई हैं. ये आलू अब तक बाज़ार में बिक जाना चाहिए था, लेकिन ये अभी भी गोदामों में ही पड़ा है.
पश्चिम बंगाल सरकार का क्या कहना है?
पश्चिम बंगाल सरकार के कृषि मंत्री बेचाराम मन्ना ने बीबीसी से बातचीत के दौरान केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वो राज्य में रोक के बावजूद बांग्लादेश को आलू का निर्यात कर रही थी.
वो कहते हैं, “केंद्र सरकार कुछ आलू के व्यापारियों से मिलकर ऐसा कर रही थी. बीच में दाना तूफ़ान भी आया और ज़ोरदार बारिश का दौर भी चला. इसके कारण आलू की नई फसल ठीक से बाजार तक नहीं पहुंच सकी और किल्लत पैदा हो गई.”
उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने इसी वजह से फै़सला किया कि पहले अपने राज्य में आलू की क़ीमत स्थिर हो जाए और ये सुलभ तरीके से उपलब्ध हो सके, उसके बाद ही राज्य से बाहर आलू भेजा जाएगा. अब स्थिति जैसे सामान्य होती नज़र आएगी, उसी हिसाब से हम निर्णय लेंगे.”
पश्चिम बंगाल में आमतौर पर आलू की क़ीमत 20 से 28 रुपए प्रति किलो तक होती है, जो अब 40 रुपए के आसपास पहुंच गई हैं. वहीं, ऑनलाइन ऐप से अगर कोई मंगवाता है, तो इसकी क़ीमत 45 रुपए प्रति किलो है.
राज्य के भीतर आलू की क़ीमतें अधिक होने से थोक व्यापारी भी सीमित मात्रा में आलू की खरीद कर रहे हैं. इस कारण स्थानीय बाज़ारों में इसकी क़ीमतें कम ही नहीं हो पा रहीं.
मध्य कोलकाता के इंटाली बाज़ार में आलू 35 रुपए प्रति किलो बिक रहा है.
सब्जी विक्रेता सुदीप नस्कर कहते हैं, “प्रति किलो उन्हें सिर्फ एक या दो रुपए का मुनाफ़ा हो रहा है, क्योंकि थोक बाज़ार से ही आलू महंगा मिल रहा है.”
दूसरे राज्यों की चिंता क्या है?
झारखंड की मुख्य सचिव अलका तिवारी ने पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क कर समस्या का जल्द समाधान निकालने का अनुरोध किया है.
राज्य सरकारों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी है, लेकिन इस दौरान पुलिस ने झारखंड और ओडिशा से लगी सीमाओं पर सख्ती दिखाते हुए “आलू की तस्करी” रोकने के लिए दबाव बनाया है और कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया है.
इससे पहले, अगस्त में भी पश्चिम बंगाल सरकार ने दूसरे राज्यों को आलू की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसका जमकर विरोध हुआ था.
ओडिशा की विधानसभा में भी इसे लेकर काफ़ी हंगामा हुआ था. तब ओडिशा सरकार ने कहा था कि राज्य पश्चिम बंगाल पर आलू की निर्भरता कम करने के उपाय खोज रहा है.
अगस्त महीने में भी ओडिशा की विधानसभा सत्र के दौरान खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री कृष्ण चंद्र पात्रा ने कहा था, “ओडिशा सरकार उत्तर प्रदेश से आलू मंगवाने का प्रयास कर रही है और पश्चिम बंगाल पर निर्भरता कम कर रही है.”
इससे पहले भी ओडिशा और झारखंड के साथ आलू की आपूर्ति को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की खींचतान हो चुकी है.
मामला इतना गंभीर हो गया था कि 27 जुलाई को नीति आयोग की बैठक के दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी ने बैठक में शामिल हुईं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस मुद्दे पर चर्चा की थी.
इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखकर आलू की आपूर्ति बहाल करने का अनुरोध किया था.
झारखंड में भी ऐसा ही हुआ. आलू की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी ममता बनर्जी से आपूर्ति बहाल करने की मांग की थी.
उन्होंने आलू की समस्या का हल निकालने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम भी बनाई, जो पश्चिम बंगाल के अधिकारियों से बातचीत कर इस मामले का समाधान ढूंढ रही है.
आलू पर राजनीति?
पश्चिम बंगाल में व्यापारियों के महासंघ यानी ‘कन्फेडरेशन ऑफ़ वेस्ट बंगाल ट्रेडर्स एसोसिएशन’ को लगता है कि अब आलू को लेकर राजनीति शुरू हो गई है.
संगठन के उपाध्यक्ष प्रदीप लाहोरिवाल का कहना है कि पिछले दो सालों से प्रदेश के आलू व्यापारियों को भारी नुक़सान झेलना पड़ रहा है.
बीबीसी से बात करते हुए वो आरोप लगाते हैं कि सिर्फ बांग्लादेश की सीमा पर आलू के ट्रकों को राज्य सरकार ने रोक दिया, जिसकी वजह से कई व्यापारियों को बड़ा नुक़सान हुआ.
वो कहते हैं कि पश्चिम बंगाल की मिट्टी भी पंजाब और हरियाणा की तरह काफी उपजाऊ है, “मगर फिर भी यहाँ कृषि का पूरा सिस्टम चरमराया हुआ है.”
आलू का उत्पादन
पश्चिम बंगाल पूरे देश में आलू उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, जबकि सबसे ज़्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है.
राष्ट्रीय बागवानी परिषद के आंकड़ों के अनुसार, देश में आलू के कुल उत्पादन का 29.65 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में होता है, जबकि पश्चिम बंगाल में 23.51 प्रतिशत उत्पादन होता है. इसके अलावा बिहार में लगभग 17 प्रतिशत, जबकि गुजरात और मध्य प्रदेश में भी क़रीब 7 प्रतिशत उत्पादन होता है.
आलू उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है, जहां सालाना उत्पादन लगभग 5.6 करोड़ टन होता है. वहीं, चीन में इसका सालाना उत्पादन लगभग 9.5 करोड़ टन के आसपास है.
असम, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आलू का उत्पादन केवल 1.5 प्रतिशत के आसपास ही है.
प्रदीप लाहोरिवाल कहते हैं कि इसी वजह से पश्चिम बंगाल पर अन्य पूर्वी राज्यों की आलू की आपूर्ति के लिए निर्भरता बढ़ जाती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.