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दिल्ली और एनसीआर में सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाकर एनिमल शेल्टर्स में रखने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की काफ़ी चर्चाएं हैं.
एक पक्ष इस फ़ैसले को अच्छा बता रहा है. वहीं पशु प्रेमी और पशुओं के लिए काम करने वाले संगठनों का मानना है कि आवारा कुत्तों की समस्या का यह स्थायी समाधान नहीं है.
आठ हफ़्तों के अंदर सड़कों से हटाकर एनिमल शेल्टर्स में आवारा कुत्तों को भेजने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सोमवार की शाम इंडिया गेट पर कुछ लोगों ने प्रदर्शन भी किया.
वहीं इस फ़ैसले को कैसे अमलीजामा पहनाया जाएगा इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
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दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का कहना है कि यह फ़ैसला जनता को राहत देने वाला है और सरकार ईमानदारी से समस्या का समाधान करेगी.
दूसरी ओर दिल्ली के मेयर इक़बाल सिंह ने बताया है कि नगर निगम के पास कोई ‘शेल्टर होम नहीं हैं.’
हालांकि, इक़बाल सिंह ने बताया कि दिल्ली नगर निगम के पास 10 नसबंदी केंद्र हैं जिन्हें बढ़ाया जा सकता है और कुछ शेल्टर होम बनाए जाएंगे.
आवारा कुत्ते रेबीज़ की बढ़ती घटनाओं की बड़ी वजहों में से एक हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताई है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में साल 2024 में रेबीज़ से 54 मौतें दर्ज की गईं, जो 2023 में दर्ज 50 मौतों से अधिक थीं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में रेबीज़ के असली आंकड़ों की जानकारी नहीं है लेकिन उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ हर साल इससे 18 से 20 हज़ार मौतें होती हैं.
रेबीज़ और आवारा कुत्तों की समस्या दुनियाभर में है. इसको लेकर सबसे अहम सवाल यह उठता है कि भारत और दुनियाभर में आवारा कुत्तों पर क़ाबू पाने के लिए किस तरह की नीति का पालन किया जाता है.
भारत का एबीसी रूल्स 2023
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आवारा पशुओं के प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार का संशोधित पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 मौजूद है. इसमें आवारा कुत्तों की संख्या को काबू में करने के लिए केंद्र ने कई दिशानिर्देश तय किए हैं.
इस नियम में आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के बाद नगर पालिका के पास उन्हें वापस छोड़ने का अधिकार होता है.
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसले में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने एबीसी नियम 2023 को ‘बेतुका’ बताया है.
बेंच ने कहा, “सभी इलाक़ों से कुत्तों को उठाइये और उन्हें शेल्टर होम्स में भेजिए. फ़िलहाल के लिए नियमों को अलग रखिए.”
भारत के राज्यों में क्या हैं हाल?
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देश के अधिकतर राज्यों में आवारा कुत्तों और रेबीज़ से निपटने के लिए एबीसी नियम 2023 के अनुसार ही क़दम उठाए जाते हैं.
साल 2022 में मत्स्य पालन और पशुपालन मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी थी कि देश में सबसे अधिक आवारा कुत्तों की संख्या उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में है जबकि दादर और नगर हवेली, लक्षद्वीप और मणिपुर में सड़कों पर कोई भी आवारा कुत्ता नहीं है.
हालांकि मंत्रालय ने बताया था कि 2012 के मुक़ाबले 2019 में उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों की संख्या घटकर 20.59 लाख हो गई थी.
उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों को लेकर सबसे कड़े नियम हैं. उत्तर प्रदेश नगर पालिका नियम के तहत उन्हें सार्वजनिक जगहों पर अनियंत्रित खाना खिलाना प्रतिबंधित है.
वहीं केरल में 2012 की तुलना में 2019 में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ी. वहां पर तकरीबन 2.89 लाख कुत्ते हैं. आवारा कुत्तों के हमलों से निपटने के लिए राज्य ने एबीसी के नियमों को लागू करने के लिए विशेष निगरानी कमिटियां बनाई हैं.
दूसरी ओर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई ने संतुलित रुख़ अपनाया है. मुंबई में आवारा कुत्तों और बिल्लियों को खाना खिलाना क़ानूनी है लेकिन उन्हें चुनिंदा और साफ़ जगहों पर ही ऐसा करने की अनुमति है.
वहीं पर्यटन के लिए मशहूर गोवा राज्य में भी आवारा कुत्तों की अधिक संख्या है. गोवा देश का पहला रेबीज़ कंट्रोल्ड राज्य है. साल 2017 के बाद से राज्य में इंसानों में रेबीज़ के मामले सामने नहीं आए थे.
हालांकि साल 2023 में एक मामला सामने आया जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई.
दुनिया के किस देश में क्या हैं नियम?
बीते साल जुलाई में तुर्की की सड़कों और ग्रामीण इलाक़ों से तक़रीबन 40 लाख कुत्तों को हटाने का फ़ैसला लिया गया. इस फ़ैसले की बड़े पैमाने पर निंदा हुई.
प्रदर्शनकारियों को डर था कि कई कुत्तों को मारा जा सकता है. मई में तुर्की की संवैधानिक अदालत ने कहा था कि कुत्तों को हटाने का फ़ैसला जारी रहेगा.
अमेरिका में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर आवारा पशुओं को क़ानूनी रूप से सुरक्षा हासिल है ताकि पशुओं को उपेक्षा, दुर्व्यवहार और उन्हें आवारा छोड़े जाने से बचाया जा सके.
अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, अमेरिका के न्यूयॉर्क में आवारा कुत्तों के लिए ग़ैर लाभकारी संस्था एनिमल केयर सेंटर्स (एसीसी) काम करती है. यह संगठन कुत्तों को शेल्टर्स में ले जाते हैं जहां उनके लिए घर ढूंढा जाता है और उन्हें सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाता है.
वहीं ब्रिटेन की बात करें तो वहां आवारा कुत्तों के मामले को स्थानीय प्रशासन संभालता है. डॉग्स ट्रस्ट संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक़, ब्रिटेन में 2023-24 के दौरान स्थानीय प्रशासन तक़रीबन 36 हज़ार कुत्तों को संभालता था.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़, लंदन में ज़िला प्रशासन आवारा कुत्तों की देखरेख करता है और डॉग वॉर्डन सर्विस मुहैया कराता है. क़ानून के मुताबिक़, आठ हफ़्तों से अधिक उम्र के सभी पालतू कुत्तों के लिए एक माइक्रोचिप होती है, जो उसके मालिक के फ़ोन नंबर से जुड़ी होती है.
स्थानीय प्रशासन को क़ानूनी अधिकार है कि वह आवारा पशुओं के लिए मालिक ढूंढे, अगर न मिले तो उसे कुछ दिनों तक अपने पास रखे और अगर कोई मालिक न मिले तो उन्हें मार दे.
सिंगापुर में भी क़ानूनी निकाय पशु एवं पशु चिकित्सा सेवा (एवीएस) आवारा कुत्तों की देखरेख करती है. इस कार्यक्रम के तहत आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है, उनकी नसबंदी की जाती है, संक्रामक रोगों को लेकर उनका टीकाकरण किया जाता है.
सिंगापुर में आवारा कुत्तों को एक माइक्रोचिप भी लगाई जाती है ताकि उनका पता लगाया जा सके.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक़, जापान में एक कड़ा पशु कल्याणकारी ढांचा है जिसमें आवार कुत्तों को पकड़कर उन्हें शेल्टर्स में रखा जाता है और उन्हें गोद लिया जा सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, बीमार और ख़तरनाक जानवरों को मारने का अधिकार प्रशासन को दिया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.