मध्य प्रदेश के इंदौर शहर का ‘भिखारी मुक्त अभियान’ चर्चा में है.
इंदौर में प्रशासन ने 1 जनवरी, 2025 से भीख मांगने के साथ भीख देने को भी प्रतिबंधित कर दिया है.
प्रशासन का कहना है कि इसकी तैयारियां उन्होंने बहुत पहले से ही शुरू कर दी थी और भिखारियों के पुनर्वास के लिए विशेष योजना भी चलाई जा रही है.
यही नहीं, भीख मांगने वाले किसी व्यक्ति की सूचना देने पर इनाम देने की भी घोषणा की गई है. ये पहल तब और सुर्ख़ियों में आई जब प्रशासन ने इंदिरा बाई नाम की महिला को लव कुश चौराहे के पास भीख मांगते हुए पकड़ा.
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पुलिस ने बताया कि जांच के दौरान पता चला कि इंदिरा साधारण भिखारी नहीं थी. उनके पास एक एकड़ ज़मीन, दो मंज़िला मकान, बाइक और स्मार्टफोन था.
पूछताछ में पता चला कि इंदिरा ने अपने परिवार के साथ केवल 45 दिनों में भीख मांगकर लगभग ढाई लाख रुपये जुटाए थे.
इंदौर में कई भिखारी हैं ‘हाई-प्रोफ़ाइल’
इंदिरा ने स्वीकार किया कि वो अकेली नहीं थीं, बल्कि अपने तीन नाबालिग बच्चों को भी भीख मांगने के काम में लगाती थीं. बच्चों में से एक ने बाल सुधार गृह में बयान दिया कि मां ही उनसे भीख मंगवाती थीं.
ये भी सामने आया कि इंदिरा राजस्थान के बारां ज़िले की रहने वाली हैं और अपनी कमाई अपने पास रखती हैं.
पुलिस ने इंदिरा को सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ़्तार किया और बाद में न्यायिक हिरासत के बाद परामर्श देकर उन्हें राजस्थान वापस भेज दिया गया.
इंदिरा का मामला अकेला नहीं है. हाल के महीनों में प्रशासन ने ऐसे कई भिखारियों को पकड़ा, जो रोज़ाना हज़ारों रुपये कमा रहे थे.
शकुंतला बाई नाम की महिला से प्रशासन ने 75,000 रुपये बरामद किए. पहले उन्हें उज्जैन स्थित सेवाधाम आश्रम में रखा गया, लेकिन अब उन्होंने शपथ ली है कि वो दोबारा भीख नहीं मांगेंगी.
शकुंतला ने बताया, “मैं अब काम करके ही पैसे कमाऊंगी. मेरे पास से मिले पैसे भीख के नहीं थे बल्कि मैंने काफ़ी पैसे सिलाई से भी जोड़े थे. “
उन्होंने आगे कहा, “मुझे समझ आ गया है की मेहनत से ही आगे बढ़ा जा सकता है. अब मैं अपना जीवन बगैर भीख मांगे चलाऊंगी.”
अब ‘भिखारी मुक्त’ शहर की ओर इंदौर?
इंदौर को सात बार देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया है.
प्रशासन का दावा है कि अब ये “भिखारी मुक्त” बनने की ओर क़दम बढ़ा रहा है, क्योंकि प्रमुख चौराहों और मंदिरों के पास भिखारियों की भीड़ पर्यटकों के सामने शहर की छवि ख़राब करती है.
प्रशासन ने तय किया है कि इन भिखारियों का पुनर्वास कराकर उन्हें वैकल्पिक रोज़गार से जोड़ा जाएगा.
ज़िला कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि इस अभियान के तहत अब भीख मांगना और देना, दोनों ही अपराध हैं.
उन्होंने बताया, “किसी सार्वजनिक स्थान पर भिखारियों को देखने या उनकी सूचना देने वाले को 1000 रुपये इनाम दिया जा रहा है.”
“ये आदेश नागरिक संहिता 2023 की धारा 163 (1-2) के तहत जारी किया गया है. इसके साथ ही धारा 144 के तहत कार्रवाई करने के लिए दलों का गठन किया गया है.”
भिखारियों के बारे में जानकारी देने वालों को इनाम
इस आदेश के निकलने के दस दिनों के अंदर अब तक 15 लोगों को इनाम दिया गया है. वहीं, प्रशासन तीन लोगों पर मामला दर्ज कराने की तैयारी में है.
महिला और बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी दिनेश मिश्रा ने बताया, “जिन लोगों पर मामला दर्ज कराने की तैयारी है, वो भिखारियों को भीख दे रहे थे.”
उन्होंने कहा, “जिन्हें भीख दी जा रही थी, वह इतने ग़रीब और वृद्ध हैं कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से कोई फ़ायदा नही होगा.”
“इसलिए उन लोगों पर कार्रवाई करने की तैयारी है जो पढ़े लिखे हैं और उसके बाद भी समझ नहीं रहे हैं.”
“हमारा मक़सद मामला दर्ज कराना नहीं है, बल्कि भीख मांगने की आदत ख़त्म करना है. इसलिए जितना ज़िम्मेदार भिखारी है, उससे ज़्यादा देने वाले हैं.”
दिनेश मिश्रा कहते हैं कि इनाम जागरूकता का परिचय देने के लिए दिया जा रहा है.
हालांकि, इस मामले में प्रशासन उन लोगों के नाम सामने नहीं लाना चाहता है, जिनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जाना है. स्थानीय लोगों का दावा है कि भिखारी अब न के बराबर शहर में दिख रहे हैं.
इंदौर के भिखारी कहां चले गए?
इस सवाल के जवाब में प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि काफी लोगों को उज्जैन के सेवाधाम भेज दिया गया है और रोज़गार से भी जोड़ दिया गया है.
कुछ अपने घर पर हैं और उम्रदराज़ लोगों के बच्चों से एक अंडरटेकिंग ली गई है कि वो उनकी देखभाल और भरण पोषण करेंगे.
अगर संबंधित व्यक्ति फिर भी भीख मांगते हुए पाया जाता है तो अंडरटेंकिग लेने वाले व्यक्ति पर ही कार्रवाई की जाएगी.
वहीं, मामला दर्ज कराने के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में मिश्रा बताते हैं कि इसके तहत कलेक्टर एक आदेश धारा 163 के तहत निकालेंगे और एफ़आईआर दर्ज की जाएगी.
इसके बाद पूरी जांच के बाद मामला कोर्ट में पेश किया जाएगा.
इस अभियान में प्रशासन के साथ एनजीओ ‘परमपूज्य रक्षक आदिनाथ वेलफेयर एंड एजुकेशन सोसाइटी’ भी काम कर रही है.
संस्था की अध्यक्ष रुपाली जैन ने बताया कि उनकी टीम 2022 से सर्वे कर भिखारियों की पहचान करती है और फिर उनकी काउंसलिंग और पुनर्वास का काम करती है.
संस्था ने अब तक 650 बच्चों और 2,500 वयस्कों का पुनर्वास किया है.
पुनर्वास प्रक्रिया के तहत भिखारियों की स्किल डेवलपमेंट की जाती है. उनकी रुचि और क्षमता के आधार पर उन्हें रोज़गार के विकल्प दिए जाते हैं.
प्रशिक्षण के बाद कुछ लोग फलों और सब्ज़ियों के ठेले लगा रहे हैं, तो कुछ मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, अगरबत्ती कारख़ानों और हैंडीक्राफ्ट में काम कर रहे हैं.
‘बेहद चुनौतीपूर्ण काम’
एनजीओ के अनुसार, इंदौर में लगभग 8,000 भिखारी हैं. साथ ही एनजीओ का दावा है कि हर महीने लगभग 20 करोड़ रुपये भीख में दिए जाते हैं.
इनमें मानसिक रूप से अस्वस्थ, निराश्रित और आदतन भिखारी शामिल हैं. कुछ गिरोह भी सक्रिय हैं, जो बच्चों और महिलाओं को भीख मांगने के लिए मजबूर करते हैं.
संस्था के सदस्यों ने बताया कि भिखारियों को मुख्यधारा में लाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है.
कई बार टीबी और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त भिखारी उन पर हमला कर देते हैं. अब तक संस्था के सदस्यों पर 72 बार हमले हो चुके हैं.
रुपाली जैन ने बताया कि इंदौर की व्यावसायिक प्रकृति और धार्मिक महत्व इसे भिखारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाते हैं.
यहां खजराना मंदिर, रंजीत हनुमान मंदिर और इंद्रेश्वर महादेव मंदिर जैसे बड़े धार्मिक स्थल हैं. साथ ही, मॉल और चाट चौपाटी जैसे व्यावसायिक स्थानों पर भी भिखारी आसानी से भीख मांग सकते हैं.
प्रशासन और एनजीओ का उद्देश्य इंदौर को पूरी तरह भिखारी मुक्त बनाना है. इस कोशिश को जल्द ही मध्य प्रदेश के अन्य शहरों में भी लागू किया जाएगा.
ज़िला कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा, “हमारी कोशिश है कि कोई भी व्यक्ति भीख न मांगे और वैकल्पिक कामों में लग जाए.”
प्रशासन की अच्छी पहल
भोपाल के समाजशास्त्री प्रमोद सोनी इंदौर प्रशासन की पहल को अच्छा मानते हैं.
उन्होंने बताया, “शुरू में भीख मांगना इनकी मजबूरी थी, लेकिन बाद में यह एक आदत अथवा कंपल्शन बन चुकी है, मतलब जिनकी आर्थिक स्थिति भीख मांग कर अच्छी खासी सुधर चुकी है, वह अब भी भिक्षावृत्ति को ही अपने रोज़गार का साधन मानने लगे हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी इसी में लगे हैं.”
“यहां तक कि बच्चे भी इसी को अपना रोज़गार का साधन मानकर लगे हुए हैं. इन बच्चों को भिक्षावृत्ति से दूर ले जाना बेहद ज़रूरी है.”
वहीं, वो यह भी कहते हैं कि ऐसे बहुत से लोग होते है जिनके लिये भीख मांगना मजबूरी है. ऐसे मामलों में प्रशासन को सामने आना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए.
सोनी ने कहा, “लेकिन, उन लोगों पर ज़रूर कार्रवाई की जा सकती है जो आदत से मजबूर हैं.”
“इंदौर शहर ने सफ़ाई में सफलता पाकर बता दिया है कि वहां के लोग बहुत कुछ कर सकते हैं. हम यही उम्मीद करें कि लोग देना बंद कर देंगे तो मांगने वाले भी अपने लिए दूसरा काम तलाशेंगे.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित