बिकिनी किलर चार्ल्स शोभराज को गिरफ़्तार करने में महाराष्ट्र के पुलिस इंस्पेक्टर झेंडे की अहम भूमिका रही. उनकी ज़िंदगी पर आधारित एक फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है.
सीरियल किलर शोभराज को दिसंबर 2022 में 78 साल की उम्र में नेपाल के काठमांडू की जेल से रिहा किया गया था. चार्ल्स शोभराज को ‘बिकिनी किलर’ के नाम से भी जाना जाता है.
जब वह जेल से बाहर आ रहा था, तब बीबीसी मराठी ने एक ऐसे मराठी पुलिस अधिकारी से बातचीत की थी, जिन्होंने इस अंतरराष्ट्रीय अपराधी को दो बार गिरफ़्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचाया था.
चार्ल्स शोभराज को पकड़ने की ये घटनाएं बेहद रोमांचक हैं और उस पुलिस अधिकारी का नाम है मधुकर झेंडे.
85 साल के मधुकर झेंडे साल 1996 में मुंबई पुलिस से सहायक पुलिस आयुक्त पद से रिटायर हुए थे.
लेकिन उनके कार्यकाल में शोभराज को पकड़ने की उनकी उपलब्धि का उल्लेख बार-बार होता है.
झेंडे ने चार्ल्स शोभराज को पहली बार साल 1971 में मुंबई में गिरफ़्तार किया था. उस समय वह मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे.
झेंडे बताते हैं कि साल 1971 तक शोभराज की ‘सीरियल किलर’ के रूप में कोई पहचान नहीं थी.
उस समय वह अफ़ग़ानिस्तान, ईरान जैसे देशों से महंगी इम्पोर्टेड गाड़ियाँ चुराकर मुंबई में बेचा करते थे.
लेकिन दिल्ली में किए गए एक अपराध के कारण वह भारत में जांच एजेंसियों के रडार पर आए.
दिल्ली में अपराध के लिए हुई तलाश
झेंडे ने बताया कि वह अपराध क्या था और उसके बाद भारत की जांच एजेंसियों ने चार्ल्स शोभराज को पकड़ने के लिए कैसे कोशिश की.
मधुकर झेंडे कहते हैं, “दिल्ली में अशोका नाम का एक फाइव स्टार होटल था. साल 1971 में चार्ल्स शोभराज ने वहां की एक कैबरे डांसर से दोस्ती की और उसे शादी का झांसा दिया. उसने कहा कि वह उसके लिए गहने खरीदेगा.”
“इसके लिए उसने (होटल में मौजूद) एक गहनों की दुकान से गहने लेकर एक व्यक्ति को बुलाया. उस व्यक्ति को कॉफ़ी में कुछ मिलाकर बेहोश कर दिया और गहने और उस लड़की को लेकर भाग गया.”
वो कहते हैं, “जब दुकान का मालिक यह देखने के लिए ऊपर गया कि उसका स्टाफ़ वापस क्यों नहीं आया है, तो देखा कि गहने ग़ायब थे और उसका स्टाफ़ बेहोश पड़ा था. इसके बाद उसने पुलिस को इसकी जानकारी दी.”
मधुकर झेंडे बताते हैं, “पुलिस को वहां एक पासपोर्ट मिला, जिस पर नाम लिखा था ‘चार्ल्स शोभराज’. इसके बाद से ही वह वॉन्टेड हो गया. इस घटना की ख़बर अख़बारों में छपी और चार्ल्स शोभराज का नाम सुर्खियों में आ गया.”
इसके बाद, 1971 में ही मधुकर झेंडे को उनके एक मुख़बिर से जानकारी मिली कि मुंबई में एक विदेशी व्यक्ति ने एक बड़ी लूट की योजना बनाई है. इसमें उसके साथ चार-पांच विदेशी लोग हैं और उनके पास रिवॉल्वर, राइफ़ल जैसे हथियार भी हैं.
मधुकर झेंडे कहते हैं कि यह जानकारी मिलने के बाद उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ ताज होटल के आसपास निगरानी शुरू की.
कहते हैं कि मुख़बिर से मिली जानकारी के आधार पर अपराधियों को पकड़ने के लिए कोशिशें तेज़ हो गईं.
चार्ल्स शोभराज की पहली गिरफ़्तारी कैसे हुई?
यह घटना साल 1971 की है, फिर भी मधुकर झेंडे का कहना है कि उन्हें उस पल के बारे में सब कुछ स्पष्ट रूप से याद है.
वह कहते हैं, “हम दो-चार अधिकारी टैक्सी में बैठे थे. 11 नवंबर 1971 को शोभराज सूट-बूट पहनकर हमारी टैक्सी के पास से गुज़रा. जैसे ही वह पास से गया, हमें यकीन हो गया कि यह वही अपराधी है जिसकी हमें तलाश थी. हमने जाकर उसे पकड़ लिया. उसके पास रिवॉल्वर था. हमने उसे हिरासत में लिया, लेकिन वह कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था.”
मधुकर कहते हैं, “हम उसे पुलिस स्टेशन लेकर गए और वहां उससे पूछताछ की गई. लेकिन उसने कुछ नहीं बताया. बाद में जब उसकी तलाशी ली गई, तो उसके पास से 4-5 रसीदें मिलीं. उसने अपने सभी साथियों को पास के होटलों में ठहराया था. फिर हम उन होटलों में गए और हमने वहां छापा मारा. वहां से हमने सभी को गिरफ्तार किया. उनके पास से राइफल्स, स्मोक बम, हैंड ग्रेनेड- काफ़ी कुछ मिला.”
इस तरह पहली बार चार्ल्स शोभराज, मधुकर झेंडे के हाथ लगा. उसे पकड़ने के बाद दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया क्योंकि उसकी दिल्ली में गहनों की लूट के मामले में तलाश थी.
झेंडे बताते हैं कि दिल्ली पुलिस के शोभराज को हिरासत में लेने के बाद भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया. युद्ध के दौरान ब्लैकआउट होते थे.
इसी दौरान शोभराज ने पेट में दर्द का बहाना किया और खुद को अस्पताल में भर्ती करवा लिया. इसके बाद वो ब्लैकआउट का फायदा उठाकर अस्पताल से फ़रार हो गया.
शोभराज ने बदला तरीका
झेंडे बताते हैं कि इस घटना के बाद से उसने अपराध करने की एक खास शैली विकसित की.
1972 से 1976 के बीच चार्ल्स शोभराज पर 12 लोगों की हत्या करने का शक़ था. कुछ की मौत ड्रग्स ओवरडोज़ से हुई, कुछ को डुबाकर मारा गया, कुछ को चाकू से और कुछ को गैसोलीन से मारा गया.
झेंडे बताते हैं कि चार्ल्स शोभराज ने पूरी दुनिया में ऐसे अपराध किए कि इंटरपोल ने उसके ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया.
1976 में शोभराज फिर दिल्ली आया. उसके साथ तीन महिलाएं थीं.
मधुकर बताते हैं कि उन्होंने कुछ फ्रेंच छात्रों को खुद को टूर गाइड के रूप में लेने के लिए राज़ी किया और फिर उन्होंने उन छात्रों को नशीली गोलियाँ दीं.
वह कहते हैं, “कुछ छात्रों की किस्मत अच्छी थी कि वो पुलिस से संपर्क करने में सफल रहे. इसके बाद शोभराज को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया. उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला और उसे 12 साल की सज़ा हुई.”
शोभराज को दिल्ली की तिहाड़ जेल भेजा गया. लेकिन जेल में 10 साल की सज़ा पूरी होने के बाद उसने वहां से भागने की योजना बनाई.
जेल में पार्टी और भागने की योजना
16 मार्च 1986 को शोभराज तिहाड़ जेल से फ़रार हो गया. इसके लिए उसने जेल में एक पार्टी रखी थी.
इस पार्टी में उसने कैदियों के साथ-साथ गार्ड्स को भी बुलाया था. पार्टी में दिए गए बिस्किट और अंगूर में नींद की दवा मिलाई गई थी.
इन्हें खाने के बाद थोड़ी ही देर में बाकी सभी बेहोश हो गए. जो लोग बेहोश नहीं हुए वो थे शोभराज और उसके साथ जेल से भागे चार और लोग.
अपनी योजना पर शोभराज को इतना भरोसा था कि उसने जेल से बाहर निकलने के बाद गेट के पास खड़े होकर फोटो भी खिंचवाया था.
इस घटना के बाद एक बार फिर से चार्ल्स शोभराज की तलाश शुरू हुई.
उसे पकड़ने के लिए जांच एजेंसियां सक्रिय थीं. इसी दौरान उन्हें एक सुराग मिला.
रेलवे पुलिस ने 29 मार्च को अजय सिंह तोमर नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. उससे पुलिस को शोभराज के ठिकाने की जानकारी मिली.
मधुकर झेंडे बताते हैं कि तोमर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस आयुक्त ने उन्हें तुरंत बुलाया. उस समय झेंडे पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे. उन्होंने 1971 में शोभराज को पहली बार पकड़ा था और 1976 में दिल्ली में उसकी गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में गवाही देने भी गए थे.
वहां भी उनका और शोभराज का आमना-सामना हुआ था. इसलिए उन्हें शोभराज की शक्ल, शरीर की बनावट और उसकी अपराध करने की शैली की अच्छी जानकारी थी.
तोमर से मिली जानकारी के आधार पर मधुकर झेंडे के नेतृत्व में मुंबई पुलिस ने गोवा में शोभराज को पकड़ने की योजना बनाई.
गोवा में शोभराज की तलाश
झेंडे बताते हैं कि उन्होंने शोभराज से जुड़ी जानकारी इकट्ठा की तो पता चला कि उसकी पत्नी अमेरिका में है और वह गोवा से फर्ज़ी पासपोर्ट पर पत्नी से मिलने जाने वाला है.
उसके पास एक मोटर साइकिल थी और उसका नंबर झेंडे को मिल गया था. इन्हीं दो सुरागों के आधार पर वह गोवा पहुंचे और लगातार छह दिन तक उसे खोजते रहे.
मधुकर झेंडे कहते हैं, “गोवा में पर्यटकों के लिए मोटर साइकिल स्टैंड होते थे. हम वहां जाकर पूछताछ करते थे. हम कहते थे कि मेरी गाड़ी मेरा भाई लेकर आया है, क्या आपने उसे देखा है?”
“वहां एक 14-15 साल का लड़का था. उसने कहा-‘आपका भाई कैसा हो सकता है? यह गाड़ी तो मोरपंखी रंग की नई गाड़ी है, जिसे कोई विदेशी चला रहा है. आप तो भारतीय लगते हैं.’ उसके इस जवाब से मुझे यकीन हो गया कि शोभराज उसी इलाके़ में है.”
मधुकर झेंडे ने पुलिस आयुक्त को फ़ोन कर चार-पांच और अधिकारियों को भेजने को कहा. उनके कहने पर और अधिकारी गोवा पहुंचे.
झेंडे बताते हैं कि वो लोग दिनभर गाड़ी की तलाश में घूमते और शाम को उस इलाके़ के होटलों में शोभराज की राह देखते.
होटल ‘ओ कोकेरो’ में गिरफ्तारी
मधुकर बताते हैं, “6 अप्रैल को रात क़रीब 10-11 बजे दो लोग सनहैट पहनकर आए. मैंने सोचा, रात में सनहैट क्यों पहनी है? ध्यान से देखा तो पता चला कि वह शोभराज था. मैं चुपचाप उठकर दीवार के पीछे छिप गया.”
वह बताते हैं, “वे दोनों आए, टेबल पर बैठे और ऑर्डर किया. मैंने उस समय एक प्लान बनाया. मेरे साथ के अधिकारी अंदर बैठे थे और मैं अकेला बाहर था.”
“हमने आपस में समन्वय किया और अपनी-अपनी पोज़िशन ले ली. कुछ बाहर थे, कुछ अंदर…. और शोभराज गिरफ्तार हुआ,”
मधुकर झेंडे बताते हैं, “जब सभी अधिकारियों ने अपनी पोजीशन ले ली, तो मैं उठा और पीछे से जाकर उसे कसकर पकड़ लिया और कहा, ‘चार्ल्स…’ वह घबरा गया.”
वह कहते हैं, “उसने बंदूक उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अनलोड थी. हमारे पास हथकड़ी नहीं थी, तो बंदूक की डोरी से हमने उसे बांधा. होटल वाले से कहा कि अगर कोई रस्सी वगैरह हो तो दे दो.”
झेंडे ने आगे की कहानी बताई, “हमने शोभराज को पूरी तरह बांध दिया. उसे हमारी कार की पिछली सीट पर बैठाया. एक डिब्बा दिया और कहा कि अगर कुछ करना हो तो इसी में कर लेना.”
“इसके बाद हमने पुलिस आयुक्त को फ़ोन कर बताया कि शोभराज पकड़ा गया है. वे बहुत खुश हुए. हमें रिसीव करने के लिए वरिष्ठ अधिकारी पनवेल तक आए थे.”
शोभराज के बारे में क्या बताया?
इसके बाद झेंडे और उनके सहयोगियों की इस कामयाबी की ख़बर सभी अख़बारों में छपी. दूरदर्शन पर उनका इंटरव्यू लिया गया.
झेंडे हँसते हुए कहते हैं कि इस घटना के बाद उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली.
चार्ल्स शोभराज के बारे में वो बताते हैं कि गोवा से मुंबई तक के 12-14 घंटे के सफर में शोभराज ने ज्यादा बात नहीं की.
वह कहते हैं, “उसने मुझसे कहा-आपने अपना काम कर लिया. अब मुझे पकड़ने से आपको बहुत नाम मिलेगा.”
शोभराज के बारे में झेंडे कहते हैं, “शोभराज बहुत घमंडी इंसान है. वह पुलिस को नहीं मानता, कोर्ट को नहीं मानता. वह खुद को बहुत होशियार समझता है.”
झेंडे बताते हैं, “जब मैंने सफर के दौरान उससे बात करने की कोशिश की, तो उसने कहा- ‘आप अपना काम करें, मैं अपना काम करूंगा.’ वह बेहद निर्दयी इंसान है.”
राजीव गांधी ने मुलाक़ात के लिए गाड़ी रुकवाई
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मधुकर झेंडे ने हाल ही में फ़िल्म के संदर्भ में दिए एक इंटरव्यू में एक खास याद भी साझा की.
वह बताते हैं कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मुंबई दौरे पर आए थे, उस वक्त उन्होंने खुद झेंडे से मिलने के लिए अपनी गाड़ी रुकवाई थी.
झेंडे कहते हैं कि सुरक्षा कारणों से वहां पर मुलाक़ात नहीं हो सकी थी, लेकिन बाद में राजीव गांधी ने उन्हें बुलवा कर उनकी विशेष सराहना की थी.
नेटफ़्लिक्स पर आई फ़िल्म के संदर्भ में दिए इंटरव्यू में अभिनेता मनोज बाजपेयी ने झेंडे के बारे में बताया कि अंतरराष्ट्रीय अपराधी को पकड़ने के कारण टाइम्स मैगज़ीन में भी उनका नाम छपा था.
गोवा में पकड़े जाने के बाद शोभराज पर फिर से मुक़दमा चला और उसकी सज़ा बढ़ा दी गई.
1997 में जब उसे रिहा किया गया, तब बैंकॉक में उस पर मुक़दमा चलाने की समयसीमा समाप्त हो चुकी थी.
भारत ने 1997 में उसे फ्रांस प्रत्यर्पित कर दिया.
2003 में शोभराज की नेपाल वापसी
2003 में चार्ल्स शोभराज नेपाल लौटा. इस बार वह और भी बेफिक्र होकर आया था. उसने वहां मीडिया से बातचीत भी की.
असल में उसका काठमांडू आना एक चौंकाने वाला फै़सला था क्योंकि नेपाल ही एकमात्र देश था जहां वह अब भी वांटेड था.
नेपाल पुलिस ने उसे काठमांडू के एक कैसीनो से गिरफ्तार किया. जिसके बाद 2004 में उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई.
21 दिसंबर 2022 को नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज को रिहा करने का आदेश दिया.
बीबीसी नेपाली ने बताया कि उसकी उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित