एएनआइ, नई दिल्ली। राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी) की नई कक्षा सातवीं की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक ‘समाजों की खोज: भारत और उससे आगे’ भारत के मध्यकालीन इतिहास का दायरा व्यापक बनाते हुए इसे उत्तर भारत केंद्रित कथा से बाहर निकालकर पूरे देश के विविध राजवंशों और सांस्कृतिक परंपराओं तक ले जाती है।
छठवीं से 12वीं शताब्दी की अवधि को समेटते हुए यह पुस्तक पहली बार छात्रों को एक सच्चा अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है।पूर्ववर्ती पुस्तकों में जहां मुख्य जोर पाल-प्रतिहार-राष्ट्रकूटों की त्रिपक्षीय संघर्ष और शुरुआती सल्तनतकाल पर रहा करता था, वहीं नई पुस्तक नई शिक्षा नीति 2020 और एसीएफ-एसई 2023 के अनुरूप दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और उत्तर-पूर्व के कई महत्वपूर्ण परंतु कम चर्चित राजवंशों को समान महत्व देती है।
पाठ्यपुस्तक में होगा ये खास तेलंगाना के काकतियाओं को उनके सुदृढ़ स्थानीय प्रशासन, ग्राम स्वशासन, सिंचाई व्यवस्थाओं और तेलुगु साहित्य के संरक्षण के लिए विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। वारंगल के हनमकोंडा स्थित प्रसिद्ध ‘हजार स्तंभ मंदिर’ को उनकी स्थापत्य प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण बताया गया है।
कर्नाटक के चालुक्यों, पल्लवों और होयसलों के साथ-साथ पूर्वी भारत के पूर्वी गंगों को भी प्रमुखता दी गई है- विशेषकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क के सूर्य मंदिर जैसे भव्य निर्माणों के संदर्भ में। विद्वान-राजा भोज (परमार वंश) के ‘समरांगण सूत्रधार’ को मध्यकालीन तकनीकी और स्थापत्य ज्ञान का आधारग्रंथ बताया गया है।
असम के कामरूप की ब्रह्मपाल वंश के उल्लेख से उत्तर-पूर्व की ऐतिहासिक उपस्थिति मजबूत की गई है। इसके अलावा, भंजा, चापा, गुहिल, कालचुरी, कदंब, मैत्रक, मौखरि, शिलाहार, सोमवंशी, उत्पल, तोमर और चाहमान जैसे अनेक क्षेत्रीय राजवंशों का भी परिचय कराया गया है।
शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और बसवेश्वर जैसे दार्शनिकों व समाज-सुधारकों को शामिल करते हुए यह पुस्तक दक्षिण भारतीय भक्ति आंदोलन और वैदांतिक परंपराओं की व्यापक झलक देती है। स्थापत्य खंड में एलोरा के कैलाश मंदिर, चोलकालीन बसवेश्वर मंदिर और चंदेलों के लक्ष्मण मंदिर को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
नई पाठ्यपुस्तक में समग्रता पर फोकस नई पाठ्यपुस्तक अपने समग्र और संतुलित दृष्टिकोण से छात्रों को भारत के मध्यकालीन इतिहास की विविधता, जटिलता और सांस्कृतिक संपन्नता से परिचित कराती है और वह भी पूरे देश के प्रतिनिधित्व के साथ।
पुराने संस्करण के उलट, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत और दिल्ली सल्तनत के स्मारकों पर केंद्रित थे, नई पाठ्यपुस्तक क्षेत्रीय वास्तुकला को ऐतिहासिक चर्चाओं के केंद्र में रखती है, और धार्मिक कहानियों और स्थानीय कारीगरी के मेल पर जोर देती है।