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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की एक तंग गली में पसरा सन्नाटा अब एक परिवार की बेचैनी की कहानी कहता है.
पिछले बीस दिनों से नरेंद्र सिंह राणा का घर चिंता, उम्मीद और सवालों के बीच झूल रहा है. उनके 22 वर्षीय बेटे करणदीप सिंह राणा, जो मर्चेंट नेवी में कैडेट के तौर पर काम कर रहे थे, अचानक समुद्र के बीच एक जहाज़ से लापता हो गए.
18 सितंबर को करणदीप देहरादून से निकले थे. उन्होंने इराक़ से चीन के लिए कच्चा तेल ले जाने वाले तेलवाहक जहाज़ ‘एमटी फ्रंट प्रिंसेज़’ पर सवार होकर यात्रा शुरू की थी.
यह जहाज़ मार्शल आइलैंड्स के झंडे के तहत चलाया जाता है और इसे सिंगापुर की निजी कंपनी एग्ज़ीक्यूटिव शिप मैनेजमेंट (ईएसएम) संचालित करती है, जो जहाज़ के क्रू की भर्ती और प्रबंधन का काम करती है.
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कंपनी के अनुसार, “20 सितंबर को जब एमटी फ्रंट प्रिंसेज़ श्रीलंका के दक्षिण-पूर्व में लगभग 150 नॉटिकल मील की दूरी पर था, तभी कैडेट करणदीप राणा जहाज़ से लापता पाए गए.”
कंपनी का कहना है कि उसने “घटना को पूरी गंभीरता और संवेदना के साथ लिया है” और “सभी समुद्री और क़ानूनी एजेंसियों के साथ जांच में पूरा सहयोग किया जा रहा है.”
लेकिन करणदीप का परिवार कंपनी के इन दावों से संतुष्ट नहीं है. परिवार का कहना है कि घटना को लेकर कई विरोधाभासी बातें बताई जा रही हैं और उन्हें अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई.
‘कैसे कोई ऑन बोर्ड लापता हो सकता है?’
करण के पिता नरेंद्र सिंह राणा कहते हैं, “जब मुझे बताया गया कि मेरा बेटा लापता हो गया है, मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई. मुझे बताया गया कि वह लगभग छह बजे डेक पर फ़ोटोशूट करने गया था और फिर वापस नहीं लौटा.”
राणा बताते हैं कि उन्हें यह सूचना मुंबई से एक कैप्टन ऋषिकेश ने दी थी, लेकिन बातचीत में कई विरोधाभास थे.
वह कहते हैं, “कभी कहा गया कि वह डेक पर गया था, कभी कहा गया कि उसे आख़िरी बार चीफ़ कुक ने देखा था. मगर जहाज़ की जिस जगह की बात की जा रही है, वहाँ से समुद्र बहुत नीचे है, नीचे गिरने का सवाल ही नहीं उठता.”
नरेंद्र सिंह का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय तक अपील की है. “मैं ख़ुद मुख्यमंत्री धामी से मिला. उन्होंने आश्वासन दिया, मगर अब तक कोई ठोस कार्रवाई दिखाई नहीं दे रही. न कंपनी से सही जवाब मिला, न सरकार से कोई मदद या जानकारी.”
वह आगे कहते हैं, “एक दिन दिल्ली से दो लोग आए थे जो ख़द को कंपनी का प्रतिनिधि बता रहे थे. उन्होंने कहा कि करण की खोज जारी है. मगर मैं कैसे मान लूँ कि मेरा बेटा बस ऐसे ही ग़ायब हो गया?”
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माँ की प्रार्थना, ‘बस मेरा बच्चा लौट आए’
दीवार पर टंगी बेटे की बचपन की तस्वीर को देखते हुए माँ शशि राणा की आँखें भर आती हैं. वह कहती हैं, “अब मेरे दिन और रात एक जैसे हैं. मेरा बच्चा मेरे पास आ जाए, यही दुआ है.”
शशि बताती हैं कि आख़िरी बार उनकी बेटे से 20 सितंबर को दोपहर 12:30 बजे बात हुई थी. “वह बिल्कुल सामान्य था. कुछ भी ऐसा नहीं लगा कि वह परेशान है.”
वह कहती हैं, “कंपनी ने हमें साफ़-साफ़ नहीं बताया कि बेटे के साथ क्या हुआ. उन्होंने बस कहा कि वह शिप पर नहीं है और न समुद्र में मिला है. मगर ऐसा कैसे हो सकता है? हमें तो यही लगता है कि कुछ गड़बड़ है. मेरे बेटे के साथ कुछ ग़लत हुआ है.”
‘मैं हर जगह मेल कर रही हूँ’
करणदीप की बहन सिमरन अब इस पूरे मामले को हर स्तर पर उठाने में लगी हैं. वह कहती हैं, “जिस कैप्टन ने मेरे पिता को बताया था कि करण लापता है, उसी ने कहा कि आख़िरी बार उसे शाम 5:45 बजे लाइफ़ बोट के पास देखा गया था. लेकिन शाम पाँच बजे के बाद किसी को डेक पर जाने की इजाज़त नहीं होती. तो वह वहाँ कैसे गया?”
सिमरन बताती हैं, “जहाज़ से हमें बताया गया कि एक कैमरा और एक जूता डेक पर मिला. मगर सिर्फ़ कैमरा और जूता मिलना बहुत डराने वाला है. यह कंपनी की ज़िम्मेदारी थी कि करण को सुरक्षित रखे. ऑन ड्यूटी कोई कैसे ग़ायब हो सकता है?”
वह कहती हैं, “17 सितंबर को करण ने मुझे एक वॉयस मैसेज भेजा था. उसने कहा था कि काम बहुत ज़्यादा है, कई लोग उसे पसंद नहीं करते, और कैप्टन उस पर काम का बहुत बोझ डालता है. उसने कहा कि लगता है जैसे तीन-चार लोगों का काम वह अकेला कर रहा है.”
सिमरन ने बताया कि उन्होंने विदेश मंत्रालय, डीजी शिपिंग, एमआरसीसी कोलंबो, चीन, सिंगापुर और श्रीलंका एम्बेसी, सभी जगह ईमेल भेजे. वह कहती हैं, “मैंने आईटीएफ़ लंदन (इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फ़ेडरेशन) को भी लिखा कि एमटी फ्रंट प्रिंसेज़ शिप से एक कैडेट मिसिंग है. उसके बाद ही कुछ जवाब आने शुरू हुए.”
कंपनी की सफ़ाई और जांच की प्रक्रिया
कंपनी एग्ज़ीक्यूटिव शिप मैनेजमेंट (ईएसएम) ने 10 अक्तूबर को एक विस्तृत बयान जारी करते हुए कहा कि कैडेट करणदीप सिंह राणा के लापता होने की घटना को “बेहद गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ लिया गया है.”
कंपनी के अनुसार, “घटना की सूचना मिलते ही जहाज़ और समुद्री प्राधिकरणों के साथ मिलकर पूरे पैमाने पर खोज और बचाव अभियान शुरू किया गया. इस अभियान में दो अन्य मर्चेंट नेवी जहाज़ और श्रीलंका की ओर से तैनात हेलिकॉप्टर भी शामिल थे. समुद्र और हवा दोनों माध्यमों से 96 घंटे चली खोज के बावजूद कैडेट राणा का पता नहीं चल सका.”
ईएसएम ने कहा कि वह परिवार के साथ “लगातार संपर्क में है” और “हर संभव भावनात्मक, प्रशासनिक और लॉजिस्टिक सहयोग प्रदान कर रही है.”
कंपनी के अनुसार, “24 सितंबर को हमारे प्रतिनिधि दिल्ली में परिवार से मिले और परिवार की जहाज़ के क्रू से 45 मिनट की बातचीत भी कराई गई.”
कंपनी ने बताया कि एक इंडिपेंडेंट सर्वेयर को नियुक्त किया गया है, जिसने 7 अक्तूबर को जहाज़ का दौरा किया.
कंपनी ने कहा, “यह सर्वेयर अपनी रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय समुद्री मानकों के तहत तैयार करेगा और इसे फ्लैग स्टेट, डीजी शिपिंग (भारत), आईटीएफ़ और भारतीय दूतावास (चीन) के साथ साझा करेगा. परिवार को भी रिपोर्ट की कॉपी दी जाएगी.”
ईएसएम का कहना है कि, “ऐसे समय में अफ़वाहें और अपुष्ट जानकारी तेज़ी से फैल सकती हैं, लेकिन कंपनी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि हर तथ्य केवल आधिकारिक प्रक्रियाओं के ज़रिए ही सामने आए.”
कंपनी ने बताया कि यह घटना उसके पूरे संगठन को गहराई से प्रभावित कर चुकी है, और जहाज़ के क्रू को मनोवैज्ञानिक परामर्श भी प्रदान किया जा रहा है. कंपनी ने कहा, “हम अपने क्रू, कैडेट राणा के परिवार, और उन मूल्यों के साथ खड़े हैं, जो हमारी समुद्री बिरादरी की पहचान हैं.”
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परिवार को उम्मीद
राणा परिवार अब हर दिन जवाब की प्रतीक्षा में है. पिता नरेंद्र सिंह राणा कहते हैं, “मुझे लगता है कि करण कहीं है, बस हमें उसकी सही जानकारी नहीं दी जा रही. मैं अपने बच्चे की आवाज़ अब भी अपने कानों में सुनता हूँ.”
माँ कहती हैं, “अगर मेरा बेटा ज़िंदा है तो उसे वापस लाओ, और अगर नहीं है तो सच्चाई बताओ. बस इतना जानना चाहती हूँ कि मेरे बच्चे के साथ हुआ क्या है.”
सिमरन रोज़ नई मेल लिखती हैं और जवाब का इंतज़ार करती हैं. वह कहती हैं, “हर दिन सुबह उठकर मैं सोचती हूँ कि आज शायद कोई मेल या जवाब आएगा, कोई अच्छी ख़बर मिलेगी. मैं बस चाहती हूँ कि करण को इंसाफ़ मिले और उसका सच दुनिया जाने.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित