इमेज कैप्शन, जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का दिया एक फ़ैसला बीते दिनों सुर्खियों में रहा है….में
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा अपनी एक हालिया टिप्पणी से सुर्ख़ियों में हैं.
एक फ़ैसले में उन्होंने कहा है कि ‘स्तनों को छूना’ और ‘पायजामी की डोरी तोड़ना’ बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के दायरे में नहीं आता.
ये टिप्पणी यूपी के कासगंज ज़िले के पॉक्सो के एक केस की सुनवाई के दौरान दी गई, जिस पर कई महिला नेताओं और वकीलों ने आपत्ति जताई है.
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से दख़ल देने की मांग की है. वहीं शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सीजेआई को ख़त लिखकर हाई कोर्ट के जज की बर्ख़ास्तगी की मांग की है.
जस्टिस मिश्रा न्यायिक सेवा से प्रमोट होकर साल 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचे हैं.
उन्होंने कई हाई प्रोफ़ाइल मामलों की सुनवाई की है, जिनमें मथुरा की शाही ईदगाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी हटाने जैसे मामले सामने हैं.
पूरा मामला क्या है?
उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक पॉक्सो केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों और उपलब्ध तथ्यों के आधार पर ये सिद्ध करना संभव नहीं है कि उन्होंने बलात्कार करने की कोशिश की थी.
कोर्ट ने कहा कि अगर ये साबित करना है कि बलात्कार का प्रयास हुआ, तो अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अभियुक्तों का इरादा अपराध को अंजाम देने का था.
अदालत ने ये भी कहा है कि बलात्कार करने की कोशिश और अपराध की तैयारी के बीच का अंतर समझना ज़रूरी है.
इस आधार पर हाई कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 354बी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 और 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुक़दमा चलाया जाए.
कौन हैं जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा?
इमेज स्रोत, SANJAY KANOJIA/AFP via Getty Images
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का जन्म वर्ष 1964 में हुआ.
उन्होंने 1987 में क़ानून में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली और 1990 में मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट के तौर पर उत्तर प्रदेश की न्यायिक सेवा में शामिल हुए.
साल 2005 में उन्हें उच्च न्यायिक सेवा में प्रमोट किया गया और 2019 में वह ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश बनाए गए.
अपने करियर के दौरान उन्होंने बागपत और अलीगढ़ ज़िलों में सेवाएं दीं. साथ ही लखनऊ में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश और न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (जेटीआरआई) के निदेशक के रूप में भी काम किया.
15 अगस्त 2022 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया और 25 सितंबर 2023 को वह स्थायी जज बने. वह नवंबर 2026 में रिटायर होने वाले हैं.
किन अहम मामलों से जुड़े रहे?
इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, सांकेतिक तस्वीर
शाही ईदगाह विवाद:
जस्टिस मिश्रा मथुरा के उस बहुचर्चित केस की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा हैं, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच ज़मीन विवाद को लेकर याचिकाएं दायर की गई हैं. इस मुक़दमे की अगली सुनवाई 3 अप्रैल 2025 को तय है.
योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी हटाने का आदेश:
मार्च 2024 में जस्टिस मिश्रा ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द किया जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना यूनानी दार्शनिक प्लेटो से की गई थी और धार्मिक व्यक्ति के सत्ता में होने के लाभ बताए गए थे.
पुराने हत्या मामले में बरी का आदेश:
साल 2024 में एक फ़ैसले में जस्टिस मिश्रा उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसने 1981 के एक हत्या मामले में 71 वर्षीय अंतिम जीवित अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि घटनास्थल की स्थिति को लेकर संदेह है और गवाहों की गवाही और जांच अधिकारी के बयानों में विरोधाभास पाए गए.
गुज़ारा भत्ते में बढ़ोतरी:
एक पारिवारिक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की कि “मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2500 रुपये में एक समय का खाना जुटाना कठिन है.”
अदालत ने गुज़ारा भत्ता बढ़ाकर 5000 रुपये प्रति माह करने का आदेश दिया.
बलात्कार मामलों में पीड़िता की गवाही को अहम माना:
2023 में एक फ़ैसले में उन्होंने कहा कि बलात्कार पीड़िता की गवाही को अतिरिक्त पुष्टि की नज़र से देखना अनुचित है.
आदेश में उन्होंने लिखा कि पीड़िता कोई सह-अपराधी नहीं होती, इसलिए उसकी बात को पर्याप्त माना जाना चाहिए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.