इमेज कैप्शन, मौत से कुछ दिन पहले एक अगस्त को एक लाइव टेलीकास्ट से ली गई अनस अल-शरीफ़ की तस्वीर
इसराइल के हमलों में मारे गए अल जज़ीरा के पांच पत्रकारों के जनाज़े में ग़ज़ा की सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी. ये इस बात का सबूत था कि वे इस इलाक़े में कितने जाने-पहचाने पत्रकार थे .
ग़ज़ा शहर के अल-शिफ़ा अस्पताल के पास स्थित एक टेंट पर इसराइल के निशाना साधकर किए गए हमले में अल जज़ीरा के इन पांच पत्रकारों की मौत हो गई. इसराइल के इस हमले की कई देश आलोचना कर रहे हैं तो वहीं इसराइल ने इन हमलों को जायज़ ठहराते हुए इन पत्रकारों पर इसराइल विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है.
मारे गए पत्रकारों में अनस अल-शरीफ़ भी शामिल थे, जिन्हें ग़ज़ा पट्टी से रिपोर्टिंग करने वाले सबसे प्रमुख संवाददाताओं में गिना जाता था.
अल जज़ीरा का कहना है कि रविवार देर शाम हुए इसराइली हमले में उसके पांच मीडियाकर्मी, अनस अल-शरीफ़, मोहम्मद कुराइका, इब्राहिम ज़हीर, मोहम्मद नौफ़ाल और मोएमेन अलीवा की मौत हो गई.
ये सभी अस्पताल के मेन गेट पर पत्रकारों के लिए बने एक टेंट में मौजूद थे. इसराइल का कहना है कि अनस अल-शरीफ़ का नाता हमास से था और वो हमास की पूर्वी जबालिया बटालियन से जुड़े थे.
वहीं अल जज़ीरा ने इसका खंडन करते हुए इसे ‘टारगेटेड किलिंग’ बताया है. चैनल के मैनेजिंग एडिटर मोहम्मद माववाद ने कहा कि यह निशाना बनाकर की गई हत्या है.
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इमेज कैप्शन, इसराइली हमले में मारे गए पत्रकारों के जनाज़े में शामिल लोग
इस घटना के बारे में बीबीसी को जो जानकारी मिली है उसके अनुसार ग़ज़ा युद्ध शुरू होने से पहले अनस अल-शरीफ़ हमास की मीडिया टीम के साथ काम कर रहे थे.
हाल में सोशल मीडिया पर किए कुछ पोस्ट में वो हमास की आलोचना करते हुए देखे गए थे.
बीबीसी संवाददाता जॉन डॉनिसन कहते हैं कि अपने दावे के समर्थन में इसराइल ने जो सबूत पेश किए हैं वो नाकाफ़ी हैं.
ये घटना ऐसे वक्त हुई है जब इसराइल की सुरक्षा कैबिनेट ने ग़ज़ा शहर पर नियंत्रण के पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है.
वहीं अब ऑस्ट्रेलिया भी उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है जो फ़लस्तीन को बतौर देश मान्यता देगा.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने कहा है, “मैं कंफ़र्म कर सकता हूं कि सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऑस्ट्रेलिया फ़लस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता देगा. हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करेंगे ताकि ये हक़ हकीकत में बदले.”
एंथनी अल्बनीज़ की घोषणा को इसराइली राष्ट्रपति आइसैक हरज़ोग ने “ख़तरनाक ग़लती” कहा है. उनका कहना है कि “ये आतंक को इनाम देने जैसा है.”
इससे पहले ब्रिटेन, फ़्रांस और कनाडा ने फ़लस्तीन को मान्यता देने की बात कही है.
युद्ध के पहले दिन से कर रहे थे रिपोर्टिंग
अल-शिफ़ा अस्पताल के नज़दीक हुए हमले में कम से कम सात लोगों की मौत हुई है.
यरूशलम में मौजूद बीबीसी अंतरराष्ट्रीय मामलों के संवाददाता जेरेमी बोवेन का कहना है, ”टेंट में अल जज़ीरा के संवाददाता अनस अल-शरीफ़ और मोहम्मद कुराइका और दो कैमरामैन मौजूद थे. यहां उनके एक ड्राइवर भी थे जो शायद वहीं के स्थानीय वीडियो प्रोवाइडर की तरफ से आए थे.”
जेरेमी बोवेन ने कहा, “ग़ज़ा में रिपोर्टिंग को लेकर इसराइल दबाव में है. वो पत्रकारों को वहां से रिपोर्टिंग की इजाज़त नहीं देता. ग़ज़ा में अल जज़ीरा की एक बड़ी टीम थी, लेकिन अब ये पूरी टीम ख़त्म हो चुकी है. ये फ़लस्तीनी पत्रकार थे जो ग़ज़ा में रहते थे. ये सात अक्तूबर 2023 को ग़ज़ा में मौजूद थे और युद्ध के पहले दिन से वहां से रिपोर्टिंग कर रहे थे.”
इसराइल के क्या हैं आरोप?
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इसराइली सेना (आईडीएफ़) ने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा है, “अनस जमाल महमूद अल-शरीफ़ हमास के एक आतंकी सेल के प्रमुख थे और इसराइली नागरिकों और आईडीएफ़ के जवानों पर रॉकेट हमलों की योजना को आगे बढ़ा रहे थे.”
आईडीएफ़ ने सोशल मीडिया पर इस दावे से जुड़े कुछ सबूत भी पोस्ट किए हैं. आईडीएफ़ के अनुसार “वो हमास की पूर्वी जबालिया बटालियन से जुड़े थे.”
एक सप्ताह पहले आईडीएफ़ के प्रवक्ता ने अनस अल-शरीफ़ को एक ‘ख़तरनाक आतंकी’ बताया था.
उस वक्त अल जज़ीरा ने कहा था कि इसराइली सेना उनकी ज़िंदगी को ख़तरे में डाल रही है.
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने भी इसी तरह का एक बयान जारी कर कहा था कि पत्रकारों की जान जोख़िम में नहीं डाली जानी चाहिए.
अल जज़ीरा का क्या कहना है?
बीबीसी न्यूज़ ने अल जज़ीरा के मैनेजिंग एडिटर मोहम्मद माववाद से बात की. उनका कहना है कि ये टारगेटेड किलिंग यानी निशाना बनाकर की गई हत्या थी.
उन्होंने कहा, “ग़ज़ा शहर में आख़िरी बची उस आवाज़ को ख़त्म कर दिया गया है जो वहां हो रही तबाही की रिपोर्टिंग कर रहे थे. अनस अल-शरीफ़, मोहम्मद कुराइका बहादुर पत्रकार थे. वो दबाव के बीच भी ज़िंदगी को दांव पर लगाकर रिपोर्टिंग कर रहे थे.”
मोहम्मद माववाद ने कहा कि अनस पर हमला उस वक्त हुआ जब अस्पताल के पास थे और मीडिया के लिए बने टेंट में थे.
उन्होंने कहा, “न तो वो फ्रंटलाइन पर थे और न ही मिलिटराइज़्ड ज़ोन में. वो आख़िरी बची सुरक्षित जगह में थे. उनकी मौत उस जगह पर हुई जहां वो डिब्बों के बीच सो रहे थे. हमने उनके साथ एक लाइव किया था और एक और लाइव से पहले वो थोड़ा आराम कर रहे थे.”
बीबीसी ने अल जज़ीरा के मैनेजिंग एडिटर से अनस अल-शरीफ़ को लेकर इसराइल के आरोपों के बारे में भी सवाल किए,
जवाब में उन्होंने कहा कि अनस ग़ज़ा के आम लोगों का दर्द, उनकी आवाज़ दुनिया तक पहुंचा रहे थे.
उनका कहना है कि इसराइल सरकार नहीं चाहती कि ग़ज़ा से कोई भी आवाज़ बाहर आए.
ग़ज़ा में अल जज़ीरा कैसे करता है काम?
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इमेज कैप्शन, ग़ज़ा सिटी में अल-शिफ़ा अस्पताल के पास पत्रकारों के टेंट पर रात में हुआ इसराइली हमला
बीबीसी और अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के पत्रकारों को इसराइल, ग़ज़ा जाने की अनुमति नहीं देता है.
ग़ज़ा से आने वाली ख़बरों के लिए गज़ा के स्थानीय पत्रकारों और वहां के लोगों पर निर्भर होना होता है.
लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों को ग़ज़ा में काम करने की अनुमति नहीं है तो अल-जज़ीरा वहां कैसे काम करता है?
इस बारे में बीबीसी संवाददाता योलांद नेल समझाती हैं, “अल जज़ीरा स्थानीय रूप से भर्ती किए गए पत्रकारों का इस्तेमाल करता है जो संवाददाता, कैमरामैन और प्रोड्यूसर के रूप में काम करते हैं. पूरी ग़ज़ा पट्टी पर उनकी मौजूदगी है और अरब जगत में उनकी कवरेज काफी अधिक है.”
वो कहती हैं, “युद्ध के दौरान जब अन्य पत्रकार ग़ज़ा तक नहीं पहुंच सके, अल-जज़ीरा ने वहां से लगातार रिपोर्टिंग की. अनस अल-शरीफ़ ने ग़ज़ा शहर के हालात, भुखमरी की स्थिति को लेकर व्यापक रिपोर्टिंग की है. वो जबालिया से ग़ज़ा शहर आए थे. मुझे याद है मैंने वहां एक विवादित इसराइली सैन्य अभियान पर उनकी रिपोर्ट देखी थी.”
इसराइली कार्रवाई की हो रही आलोचना
संयुक्त राष्ट्र ने इसे मानवीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन बताया है.
ब्रिटेन ने इसे बेहद चिंताजनक घटना कहा है और इसराइल से अपील की है कि वो ये सुनिश्चित करे कि पत्रकार सुरक्षित तरीके से बिना डर के रिपोर्टिंग कर सकें.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बागे़री ने कहा है दुनिया को चाहिए कि वो इसके लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराए.
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने कहा है, “पत्रकारों को बिना भरोसेमंद सबूत दिए आतंकी करार देना इसराइल के लिए पैटर्न बन गया है. ये प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर उसके इरादों पर संदेह पैदा करता है.”
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे युद्ध अपराध और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन कहा है.
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार अक्तूबर 2023 में जब से इसराइल ग़ज़ा युद्ध शुरू हुआ है तब से अब तक ग़ज़ा में 269 पत्रकारों की मौत हुई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.